करामाते हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु
हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से बहोत सी करामातें भी ज़ाहिर हुई हैं जिनमे से चंद का आपके सामने ज़िक्र किया जाता है |
निदाए फ़ारूक़ी ने फ़तेह दिला दी :- हज़रत अल्लामा अबू नईम रहमतुल्लाहि अलैह ने दलाइल में हज़रत उमर बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है के हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु जुमे का खुत्बा फरमा रहे थे यकायक फ़ौरन आपने दरमियान में खुत्बा छोड़कर तीन बार ये फ़रमाया “या सारियातुल जबल” यानी ऐ सारिया पहाड़ की तरफ जाओ “या सारियातुल जबल” यानी ऐ सारिया पहाड़ की तरफ जाओ “या सारियातुल जबल” यानी ऐ सारिया पहाड़ की तरफ जाओ इस तरह हज़रते सरिया रदियल्लाहु अन्हु को पुकार कर पहाड़ की तरफ जाने का हुक्म दिया और उसके बाद फिर खुत्बा शुरू फरमा दिया हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु ने बाद नमाज़ हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से मालूम किया के आप तो खुत्बा फरमा रहे थे फिर यकायक बुलंद आवाज़ से “या सारियातुल जबल” कहा तो ये क्या मुआमला था | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कसम है ख़ुदाए ज़ुल्जाल की में ऐसा कहने पर मजबूर हो गया था | मैंने मुसलमानो को देखा की वो पहाड़ के पास लड़ रहे है और कुफ्फार उनको आगे पीछे से घेरे हुए है ये देख कर मुझ से ज़ब्त न हो सका और मेने कह दिया ऐ सारिया पहाड़ की तरफ जाओ
इस वाक़िये के कुछ रोज़ बाद हज़रत सरिया रदियल्लाहु अन्हु का क़ासिद एक खत लेकर आया जिस मे लिखा था हम लोग जुमा के दिन कुफ्फार से लड़ रहे थे और क़रीब था के हम शिकस्त खा जाते के ऐन जुमा की नमाज़ के वक्त हमने किसी की आवाज़ सुनी “या सारियातुल जबल” ऐ सारिया पहाड़ की तरफ हट जाओ इस आवाज़ को सुनकर हम पहाड़ की तरफ चले गए तो अल्लाह पाक ने काफिरों को शिकस्त दी हमने उन्हें क़त्ल कर डाला इस तरह हमको फ़तेह हासिल हो गयी हज़रते सरिया रदियल्लाहु अन्हु निहावंद में लड़ाई कर रहे थे जो ईरान में सूबा आज़र बाईजान के पहाड़ी शहरों में से है और मदीना तय्यबा से इतनी दूर है के उस ज़माने में वहां से चल कर एक महीने के अंदर नेहावंद नहीं पहुँच सकते थे | तो जब नेहावंद मदीना तय्यबा से इतनी दूर है के उस ज़माने में आदमी वहांसे चल कर एक माह में नेहावंद नहीं पहुंच सकता था मगर हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने मस्जिदे नबवी में खुत्बा फरमाते हुए हज़रते सारिया रदियल्लाहु अन्हु को नेहावंद में लड़ते हुए मुलाहिज़ा फ़रमाया और आपने ये भी देखा के दुश्मन मुसलमानो को आगे पीछे से घेरे हुए हैं और पहाड़ करीब में है और फिर आपने उन्हें आवाज़ देकर पहाड़ की तरफ जाने का हुक्म फ़रमाया और बगैर किसी मशीन की मदद के अपनी आवाज़ को वहां तक पहुंचा दिया ये हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की खुली हुई करामात है |
हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की इस करामात को हज़रत इमाम बहकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने हज़रत इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु से भी रिवायत की है जो हदीस की मशहूर मोअतमद किताब “मिश्कात शरीफ के साफा 546 पर भी लिखी हुई है |
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तेरे लब से जो बात निकली :- हज़रते इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने एक शख्स से पूछा के तुम्हारा नाम किया है? उस ने कहा जमरा यानि चिंगारी | फिर आप रदियल्लाहु अन्हु ने उस के बाप का नाम पूछा तो उस ने कहा शहाब यानि शोअला | फिर आप रदियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा तुम्हारे क़बीले का नाम किया है? उस ने कहा हरका यानि आग | और जब आप ने उस के रहने की जगह मालूम की तो उसने हुरा बताया यानि यानि गर्मी | आप ने पूछा के हुरा कहाँ है? उस ने कहा शोअला वाली जगह में “इन सारे जवाबात को सुनने के बाद हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया अपने अहलो अयाल की खबर लो के वो सब जल कर मर गए” जब वो शख्स अपने घर वापस हुआ तो देखा वाक़ई उस के घर को आग लगई | थी और सब लोग जल कर मर गए थे |
आप ने दरियाए नील जारी कर दिया :- हज़रत अबुश शैख़ किताबुल इस्मत में हज़रात क़ैस बिन हज्जाज रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते है के जब हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के ज़मानए खिलाफत में मिस्र को फ़तेह किया तो अहले अजम एक मुक़र्रर दिन पर हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु के पास आए और कहा ऐ हाकिम हमारे इस दरियाए नील के लिए एक पुराना तरीक़ा चला आ रहा के जिस के बगैर वो जारी नहीं होता बल्कि सूख जाता है और हमारी खेती का दारो मदार इसी दरियाए नील के पानी ही पर है हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु ने लोगों से फ़रमाया के दरियाए नील के जारी रहने का वो पुराना तरीक़ा किया है…?
उन लोगों ने कहा जब इस महीने के चाँद की ग्यारवी तारीख आती है तो हम लोग एक कुँआरी नौ जवान लड़की को मुन्तख़ब कर के उस के माँ बात को राज़ी करते हैं फिर उसे बेहतरीन क़िस्म के जेवरात और कपड़े पहनाते हैं उस लड़की को दरियाए नील में डाल देते हैं | हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया “इस्लाम में ऐसा कभी नहीं हो सकता | ये तमाम बातें लगव और बेकार हैं | इस्लाम इस क़िस्म की तमाम बातिल बातों को मिटाने आया है | वो लड़की को दरियाए नील में डालने की इजाज़त हरगिज़ नहीं दे सकते” | आप के इस जवाब के बाद वो लोग वापस चले गए कुछ दिनों के बाद वाक़ई दरियाए नील बिलकुल खुश्क हो गया | यहाँ तक के बहुत से लोग वतन छोड़ने पर तय्यार हो गए | हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु ने ये मुआमला देखा तो एक खत लिखकर हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को सारे हालात से बा ख़बर किया |
आप ने खत पढ़ने के बाद हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु को तहरीर फ़रमाया के तुमने मिसरियों को बहुत अच्छा उम्दह जवाब दिया | बेशक इस्लाम इस क़िस्म की तमाम लगव और बेहूदा बातों को मिटाने के लिए आया आया है में इस खत के साथ एक “रुक्का यानि तहरीर परचा छोटा खत” रवाना कर रहा हूँ तुम इस को दरियाए नील में डाल देना | “रुक्का यानि तहरीर परचा छोटा खत” हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु को पहुंचा तो आप ने उसे खोल कर पढ़ा उस में लिखा हुआ था “अल्लाह के बन्दे उमर अमीरुल मोमिनीन की तरफ से मिस्र के दरियाए नील को मालूम हो के अगर तू बज़ाते खुद जारी होता है तो मत जारी हो और अगर ख़ुदाए अज़्ज़ा वजल तुझ को जारी फरमाता है तो में अल्लाह से दुआ करता हूँ के वो तुझे जारी जारी फरमा दे” |
हज़रत अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हु ने अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के इस रुक्के को रात के वक़्त दरियाए नील में डाल दिया | मिस्र वाले जब सुबह को नींद से बेदार हुए तो देखा के अल्लाह पाक ने उस को इस तरह जारी फरमा दिया है के सुला हाथ पानी और चढ़ा हुआ है | फिर दरियाए नील इस तरह कभी नहीं सूखा और मिस्र वालों की ये जाहिलाना रस्म हमेशा के लिए ख़त्म हो गई | ये हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की बहुत बड़ी करामत है की आप ने दरियाए नील के नाम खत लिखा और ख़ुदाए अज़्ज़ा वजल से दुआ की | तो वो दरियाए नील जो हर साल एक कुँअरि लड़की की जान लिए बगैर जारी नहीं होता था हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु के खत से हमेशा के लिए जारी हो गया | इससे ये बात भी मालूम हुई के बेहरो बर यानि खुश्की और पानी दोनों पर हुकूमत करते थे
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आपकी शेर ने हिफाज़त की :- खिलाफते फ़ारूक़ी का ज़माना था एक अजमी शख्स मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा आया जो हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को तलाश कर रहा था | किसी ने बताया के कहीं बाहर सो रहे होंगें | वो शख्स आबादी से निकल कर आप को तलाश करने लगा यहाँ के तक हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को इस हालत में पाया के वो ज़मीन पर सर के नीचे ज़राह रखे हुए सो रहे थे | उस ने दिल में सोचा सारी दुनिया में इस शख्स की वजह से फितना बरपा है इस लिए के इस वक़्त के ईरान और दुसरे मुल्कों में इस्लामी फोजों ने तहलका मचा रखा है लिहाज़ा इस को क़त्ल कर देना ही मुनासिब है और आसान भी है इस लिए के आबादी के बाहर सोते हुए शख्स को मार डालना कोई मुश्किल बात नहीं |
ये सोच कर उस ने नियाम से तलवार निकाली और आप की ज़ाते बाबरकत पर वार करना ही चाहता था के गैब से दो शेर आये और उसकी तरफ बढ़े इस मंज़र को देख कर वो चीख पड़ा उसकी आवाज़ से हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु जाग उठे आप के बेदार होने पर उस ने अपना सारा वाक़िआ बयान किया और फिर मुस्लमान हो गया |
ये भी आप की एक करामत है के शेर जो इंसान के जान लेवा हैं वो आप की हिफाज़त के लिए आगए और क्यों न हो के “जो अल्लाह तआला का हो जाता है तो अल्लाह तआला उसकी इसी तरह हिफाज़त फरमाता है |
अल्लाह के वली की रूहानी ताक़त :- हज़रत अल्लामा इमाम राज़ी रहमतुल्लाह अलैह सूरह कहफ़ की तफ़्सीर में फरमाते हैं | जब कोई बंदह नेकियों पर हमेशगी इख़्तिया करता है तो इस मक़ामे रफ़ी तक पहुँच जाता है के जिस के मुतअल्लिक़ अल्लाह तआला ने फ़रमाया है तो जब अल्लाह के जलाल का नूर उसकी समाअत हो जाता है और वो दूर नज़दीक की आवाज़ को सुन लेता है और जब यही नूरे जलाल उसकी नज़र हो जाता है तो वो दूर नज़दीक की चीज़ों को देख लेता है और जब यही नूरे जलाल इस का हाथ हो जाता है तो वो बंदह आसान व मुश्किल और दूर नाज़दीक की चीज़ों में तसर्रुफ़ करने पर क़ादिर हो जाता है |
की मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है किया लौहो कलम तेरे है
हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म की अदालत
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हज़रते उमर और बादशाहे जाब्ला बिन अल इहीम :- ऊस व ख़ज़रज के कुछ क़बीलों ने मुल्के शाम में एक चश्मे पर जिसका नाम गसान था डेरा डाला और इस इलाके के कुछ शहरों पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद एक अज़ीमुश्शान सल्तनत क़ायम कर दी और मुलुके गसानिया के मुअज़्ज़ज़ नाम से मशहूर हो गए | मुलुके गसान में सबसे पहला बादशाह “जफना” हुआ है और सबसे आखिरी बादशाह “जाब्ला बिन अल इहीम” वो पहले बुत परस्त थे फिर रूमी बादशाहों के साथ तअल्लुक़ की वजह से अपना क़दीम यानी पुराना मज़हब छोड़कर इसाई हो गए थे क़ुरैशे मक्का के बाद सबसे ज़्यादा जिन को इस्लाम की ताक़त तोड़ देने और इसको सफ्हे हस्ती से मिटा देने की फ़िक्र थी वो मुलुके गसान थे | अरब के दुसरे क़बीले अगरचे मुक़ाबले के लिए तय्यार हुए थे लेकिन उनके बाक़ायदा लश्कर न था और न किसी किस्म का अहम साज़ो सामन था मगर गसानियों की सल्तनत निहायत बाक़ायदा और मुनज़्ज़म थी और इनका लश्कर भी आरास्ता था और सबसे ज़्यादा ये के एक ज़बरदस्त बादशाह “क़ैसरे रूम” से इनके तअल्लुक़ात थे जो हर वक्त इनकी इमदाद पर तय्यार था मुल्के गसान मुसलमानो को सफ्हे हस्ती से मिटाने के लिए सोच ही रहा था के इसी दौरान में सरकार अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ासिद हज़रत शुजाअ वहब अल असदी रदियल्लाहु अन्हु उसके नाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत लेकर ऐसे वक़्त में पहुंचे जबके क़ैसरे रूम किसरा के मुक़ाबले से फारिग होकर शुक्राना अदा करने के लिए बैतुल मुक़द्दस आया हुआ था और गसान का बादशाह उसकी दावत के इंतज़ाम में मशगूल था इसी सबब से कई रोज़ तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ासिद हज़रत शुजाअ वहब अल असदी रदियल्लाहु अन्हु को वहां ठहरना पड़ा और कई रोज़ तक रसाई न हो सकी आखिर किसी तरह एक रोज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ासिद मुल्के गसान के सामने पेश हुए और उन्होंने जो नामा मुबारक उसको दिया उसका मज़मून ये था “में तुमको सिर्फ एक खुदा पर ईमान लाने की तरफ बुलाता हूँ अगर तुम ईमान ले आए तो तुम्हारा मुल्क तुम्हारे लिए बाकी रहेगा”
गसान का बादशाह हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत पढ़कर भड़क उठा और गुस्से से कहा के मेरा मुल्क कौन छीन सकता है में खुद मदीने पर हमला करूँगा और उसकी ईंट से ईंट बजा दूंगा और क़ासिद से कहा के जाकर यही बात मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कह देना | हज़रत शुजाअ वहब अल असदी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मदीना तय्यबा पहुंचकर जब मेने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से गसान के बादशाह की पूरी कैफियत बयान की तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “बादा मुल कुहु” यानी उसका मुल्क तबाहो बर्बाद हो गया |
सीरते हल्बीया में है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत मुबारक हारिस गसानी के नाम था और “इबने हिशाम वगैरा दुसरे मुअर्रिख़ीन ने लिखा है” के हज़रत शुजाअ वहब अल असदी रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत मुबारक “जबला बिन अल इहीम के यहां लेकर गए थे |
अलग़रज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खत मुबारक भेजने का ये असर हुआ जो आग अंदर ही अंदर सुलग रही थी वो भड़क उठी और मुल्के गसान अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ आमादए जंग हुआ यहाँ तक के गसानियों ही की दुश्मनी के नतीजे में मोताका सख्त तिरीन माआरका हुआ जिसमे मुसलमानो को बहुत बड़ा नुक्सान उठाना पड़ा बहुत से सिपाही और कई एक बुर्गज़ीदा सिपे सालार इस जंग में शहीद हो गए मदीना तय्यबा पर गसानी बादशाह के हमले की खबर जब क़ासिद के ज़रिये पहुंची तो मुसलमान बहुत तशवीश और फ़िक्र में हुए के अगरचे अल्लाह के मेहबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद के मुताबिक बादशाहे गसान खाइब व खासिर होगा और उसका मुल्क तबाहो बर्बाद होगा लेकिन मदीना शरीफ पर इसके हमले से नामालूम कितनी जाने ज़ाये होंगी कितनी औरतें बेवा हो जाएँगी और नामालूम कितने बच्चे यतीम हो जायेंगे मगर अल्लाह तआला ने इसके हमले से मदीना तय्यबा को मेहफ़ूज़ रखा |
गसानी बादशाह जिसके मदीना शरीफ पर हमला करने की खबर गरम थी वो हारिस था या जबला अल इहीम इसमें इख़्तेलाफ़ है तबरानी में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है उससे मअलूम होता है के वो गसानी बादशाह “जबला बिन अल इहीम ” था
अलग़रज़ जबला बिन अल इहीम ने मुसलमानों से दुश्मनी ज़ाहिर करने में कोई कमी नहीं रखी थी मगर इसके बावजूद इस्लाम की खूबियों से वाक़िफ़ था उसके कानो तक इस्लाम की अच्छाइयां पहुँचती रहती थी |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सच्चाई की दलीलों और निशानियों का भी उसे इल्म होता रहता था अंसार हज़रत का मुसलमान होकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने यहाँ ठहराना और उनकी हिफाज़त व हिमायत के लिए जानो माल को क़ुर्बान कर देना भी आहिस्ता आहिस्ता उसके अंदर इस्लाम की मोहब्बत पैदा कर रहा था इसलिए के अंसार और जबला दोनों एक ही क़बीले से तअल्लुक़ रखते थे |
बिला आखिर इस्लाम की मोहब्बत उसके दिल में बढ़ती गई यहाँ तक की हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के खिलाफत के ज़माने में वो मोहब्बत इस क़दर बढ़ गई के उसने खुद हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को लिखा के में इस्लाम में दाखिल होने के लिए आपकी खिदमत में हाज़िर होना चाहता हूँ आपने निहायत ख़ुशी से तहरीर फ़रमाया के तुम बिला खटक चले आओ हर हाल में तुम हमारी तरह हो जाओगे |
जबला बादशाह अपने क़बीला “अक़” और गसान के 500 आदमियों को लेकर रवाना हुआ जब मदीना शरीफ दो मंज़िल रह गया तो उसने हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु कि खिदमत में खबर भेजी के में हाज़िर हो रहा हूँ और अपने लश्कर के 200 सवारों को हुक्म दिया के ज़रबफ़्त व हरीर की सुर्ख़ व ज़र्द दो रद्दियां पहने और घोड़ो पर दीबाज की झोली डालकर उनके गले में सोने के तोक पहनाएं और अपना ताज सर पर रखा फिर पूरी शान दिखलाने के लिए अपने खानदान की बेहतरीन और माया नाज़ कर्त मारिया ताज में लगाएं मारिया तमाम गसानी बादशाहों की दादी थी इसके पास दो बालियां थी जिनमे दो मोती कबूतर के अण्डे के बराबर लगे हुए थे ये बालियां अपनी खूबसूरती और बेशक़ीमत मोतियों की वजह से बेमिसाल समझी जाती थी कहा जाता है के पूरी दुनिया के बादशाहों के ख़ज़ानों में ऐसे मोती और ऐसी बालियां नहीं थी मुलुके गसान को इनपर फख्र था और वो इनको बेशक़ीमत और नादिर होने के अलावा अपनी साहिबे इक़बाल दादी की यादगार समझकर इन बालियों का निहायत एहतराम करते थे और इसी वजह से जबला ने ये दिखलाने को के अपनी इस शाहाना हैसियत और हालते आज़ादी व खुद मुख्तारी को छोड़कर दीने इस्लाम में दाखिल होकर अमीरुल मोमिनीन की पैरवी को गवारा करता हूँ इन बेशक़ीमत बालियों को भी अपने ताज में लगा लिया था इस तरह बड़ी शानो शौकत के साथ मदीना शरीफ में दाखिल होने को तय्यार हुआ | हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने मुसलमानो को जबला के इस्तकबाल करने और ताज़ीम व तकरीम के साथ उतारने का हुक्म दिया |
मदीना शरीफ में ख़ुशी और मसर्रत का जोश फैला हुआ था बच्चे और बूढ़े सभी इस जुलूस के नज़ारे को देखने के लिए अपने अपने घरों से निकल पड़े मुसलमानों के लिए हकीकत में इससे बढ़कर ख़ुशी की और कौन सी बात हो सकती थी के मज़हबे इस्लाम जिसके फैलाने की खिदमत उनके सुपुर्द हुई थी उसके अंदर इस तरह राज़ी और ख़ुशी से बड़े बड़े बादशाह दाखिल हुए मगर इस वक्त ये ख़ुशी इस वजह से और दो बाला हो रही थी के वही गसान का बादशाह जिसके हमले का चर्चा मदीना शरीफ में घर घर था और जिसके डर से सब सहमे रहते थे आज वही बादशाह इस तरह सरे तस्लीम ख़म किये हुए मदीना शरीफ में दाखिल हो रहा है ये सब अल्लाह पाक की क़ुदरत और इस्लाम की एक करामात थी और इसी वजह से सब छोटे बड़े इस जुलूस को देखने के लिए निकल खड़े हुए |
अलग़रज़ बड़ी शानो शौकत और निहायत ताज़ीम व तकरीम से इस्तक़बालिया जमाअत के झुरमुट में शाहाना जुलूस के साथ जबला मदीना शरीफ में दाखिल हुआ हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने मेहमान दारी की रसम में कोई कसर उठा न रखी और मदीना शरीफ में इन नए मेहमानो की आमद से खूब चहल पहल रही | इत्तेफाक से हज का ज़माना क़रीब था हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु हर साल हज के लिए मक्का शरीफ हाज़िर हुआ करते थे इस साल जब वो हज के लिए निकले तो जबला भी साथ में रवाना हुआ वहां बदकिस्मती से ये बात पेश आ गई के तवाफ़ की हालत में जबला की लुंगी पर जो बवजह शाने बादशाही ज़मीन पर घसिटती हुई जा रही थी क़बीला फ़ज़ारा के एक शख्स का पैर पड़ गया जिसकी वजह से लुंगी खुल गई जबला को गुस्सा आया और उसने इतनी ज़ोर से मुँह पर घुसा मारा के उसकी नाक टेढ़ी हो गई |
ये मुक़दमा खलीफा की अदालत में पहुंचा हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने बगैर किसी रियायत के हक़ फैसला करते हुए जबला से फ़रमाया के या तो तुम किसी तरह मुद्दई को राज़ी कर लो वरना बदला देने के लिए तय्यार हो जाओ जबला जो अपने को बड़ी शान वाला समझता था ये ख़िलाफ़े उम्मीद फैसला उसे सख्त नागवार गुज़रा और हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु खूब जानते थे के जबला को ये फैसला नागवार गुज़रेगा मगर आपने इसकी कोई परवाह न की और बादशाह का लिहाज़ किये बगैर हक़ फैसला सुना दिया उसने कहा एक मामूली अदमी के बदले मुझसे बदला लिया जायेगा में बादशाह हूँ और वो एक आम आदमी है हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के बादशाह और रियाया को इस्लाम ने अपने अहकाम में बराबर कर दिया है किसी को किसी पर फ़ज़ीलत है तो तक़वा ओ परहेज़गारी के सबब |
जबला ने कहा में तो ये समझ कर इस्लाम में दाखिल हुआ था के में पहले से ज़्यादा मुअज़्ज़ज़ और मोहतरम होकर रहूँगा हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के इस्लामी क़ानून का फैसला यही है जिसकी पाबन्दी हम पर और तुम पर लाज़िम है इसके खिलाफ कुछ हरगिज़ नहीं हो सकता तुमको अपनी इज़्ज़त कायम रखनी है तो उसको किसी तरह राज़ी कर लो वरना आम मजमे में बदला देने को तय्यार हो जाओ जबला ने कहा तो में फिर इसाई हो जाऊंगा आप रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया तो अब इस सूरत में तेरा क़त्ल ज़रूरी होगा इसलिए के जो मुर्तद हो जाता है यानी जो मज़हबे इस्लाम का कलमा पढ़ते हुए फिर उसके बाद मज़हबे इस्लाम से फिर जाए इस्लाम में उसकी सजा यही है जबला ने कहा अपने मुआमले में गौर फ़िक्र करने के लिए आप मुझे एक रात की मोहलत दें हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने उसकी ये दरख्वास्त मंज़ूर कर ली और उसे एक रात की मोहलत दे दी तो जबला इसी रात को अपने लश्कर के साथ पोशीदा तौर पर (छुपकर) मक्का शरीफ से भाग गया और कुस्तुन्तुनिया पहुंचकर नसरानी बन गया मअज़ल्लाह |
ये है हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की बेमिसाल अदालत के आपने एक मामूली आदमी के मुक़ाबले में ऐसी शान शौकत वाले बादशाह की कोई परवाह न की उसे मुद्दई के राज़ी करने या बदला देने पर मजबूर किया और इस बात का ख्याल बिलकुल नहीं फ़रमाया के ऐसे ज़लीलुलक़द्र बादशाह पर इस फैसले का रद्दे अमल क्या होगा लेहाज़ा मानना पड़ेगा के खुल्फ़ए राशिदीन ने अपनी इसी क़िस्म की खूबियों से इस्लाम की जड़ों को मज़बूत फ़रमाया और उसे खूब रौशन व ताबनाक चमकदार बनाया रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन |
क्या हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के साहबज़ादे जिनका नाम “अब्दुर रहमान औसत” ने शराब पीकर ज़िना किया था? :- बाज़ लोग आप रदियल्लाहु अन्हु के अद्ल व इन्साफ की तारीफ़ बयान करते हुए ये कहते हैं के
“आपके साहबज़ादे हज़रत अबू शहमा जिनका नाम “अब्दुर रहमान औसत” रदियल्लाहु अन्हु ने शराब पी और फिर इसी नशे की हालत में ज़िना किया इन बातों पर हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने उनको कोड़े लगवाए यहाँ तक के इसी तकलीफ से बीमार होकर उनका इंतेक़ाल हो गया” तो हज़रत अबू शहमा रदियल्लाहु अन्हु की जानिब ज़िना और शराब पीने की निस्बत गलत मशहूर हो गयी है मोअतबर,मोअतमद किताब “मजमउल बिहार” में है के ज़िना की निस्बत सही नहीं इसी तरह हुज़ूर सरकार मुफ्तिए आज़मे हिन्द के मश्हूरो माअरूफ़ खलीफा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “फ़तवाए शरहे बुखारी” जिल्द 2 इस रिवायत के मुतअल्लिक़ आपसे सवाल किया गया तो आप जवाब में तहरीर फरमाते हैं ये रिवायत मेरी नज़र से नहीं गुज़री मजमउल बिहार में है के ज़िना की निस्बत सही नहीं अलबत्ता उन्होंने नबीज़ पी थी और नबीज़ उस पानी को कहते है के जिसमे खजूर भिगोई गयी हो और उसकी मिठास पानी में उतर आयी हो “उम्दतुर रिआया हाशिया शरहे वकाया जिल्दे अव्वल मजीदी”
इसी तरह हुज़ूर फकीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अमजदी रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर ज़माना किताब “फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 2 सफा नंबर 710 पर आप इसके जवाब में तहरीर फरमाते हैं के हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूक़ी आज़म रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे जिनका नाम “अब्दुर रहमान औसत” और कुन्नियत “अबू शहमा है उनकी जानिब शराब पीने और ज़िना करने की निस्बत गलत है बल्कि सही ये है के उन्होंने नबीज़ पी थी जिसकी वजह से नशा हो गया था उनपर हद क़ायम फ़रमाई फिर वो बीमार हो गए इसके बाद इंतक़ाल हो गया
और नबीज़ दो तरह की होती है एक तो वो जिसमे नशा नहीं होता ऐसी नबीज़ हलाल व पाक है और एक नबीज़ वो होती है जिसमे नशा होता है और वो हराम व नजिस नापाक होती है हज़रत अबू शहमा रदियल्लाहु अन्हु ने नबीज़ ये समझ करके की ये हलाल है नशे वाली नहीं मगर वो नशे वाली साबित हुई तो हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने उनकी गिरफ्त फ़रमाई और अद्ल व इन्साफ के मुताबिक़ उन्हें सज़ा दी |
तर्जुमाने नबी , मेज़बान नबी
जाने शाने अदालत पे लाखों सलाम
(फतावा फैज़ुर रसूल जिल्द 2 सफा नंबर 710) (मजमउल बिहार) (फ़तवाए शरहे बुखारी जिल्द 2) (सूरह हुजरात आयात 13 पारा 26) (सीरतुल हल्बीया) (मदारीजुन नुबुव्वत) (तफ़्सीरे कबीर सूरह कहफ़ आयात 9, 12,) (इज़ालतुल खुलफ़ा) (सही बुखारी शरीफ) (तारीखे मदीना दमिश्क) (खुल्फ़ए राशिदीन) (तारीख़ुल खुलफ़ा) (मुअत्ता इमाम मालिक) (कंज़ुल उम्माल) (हिलयतुल औलिया) (उम्दतुर रिआया हाशिया शरहे वकाया जिल्दे अव्वल मजीदी)
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