इब्राहीम खलीलुल्लाह के भतीजे :- हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम हज़रत सय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे हैं सदूम के नबी थे | और आप हज़रत सय्यदना इब्राहीम खलीलुल्लाह के साथ हिजरत करके मुल्के शाम में आये थे और हज़रत सय्यदना इब्राहीम खलीलुल्लाह की दुआ से आप नबी बनाए गए | (नुरुल इरफ़ान)

दुनिया में सबसे पहले शैतान ने बद फेली करवाई :- दुनिया में सबसे पहले शैतान ने बद फेली करवाई, वो हज़रते सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम में अमरद (बगैर दादी मूछ का नौजवान लड़का) हसीन यानि खूबसूरत लड़के की शक्ल में आया और उन लोगों को अपनी तरफ माइल किया यहां तक के गन्दा काम करवाने में कामयाब हो गया और इसका उनको ऐसा चस्का लगा के इस बुरे काम के आदि हो गए और नौबत यहां तक पुहंची के औरतों को छोड़कर मर्दों से अपनी “ख्वाहिश” पूरी करने लगे | (मुकाशिफतुल क़ुलूब)

हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम ने समझाया :- हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम उन लोगों को इस फेले बद (गन्दा नाजाइज़ व हराम काम) से मना करते हुए जो बयान फ़रमाया उसको पारा 8 सूरह आराफ़आयत नंबर 80 और 81 में इन अलफ़ाज़ में ज़िक्र किया गया है:

أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ مَا سَبَقَكُمْ بِهَا مِنْ أَحَدٍ مِنْ الْعَالَمِينَ (80) إِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِنْ دُونِ النِّسَاءِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ (81)

तरजुमा कंज़ुल ईमान : किया वो बेहयाई करते हो जो तुम से पहले जहां में किसी ने न की तुम तो मर्द के पास शहवत से जाते हो औरतें छोड़कर, बल्कि तुम लोग हद से गुज़र गए |

हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम के दुनिया व आख़िरत की भलाई पर मुश्तमिल बयान आफ़ियत निशान को सुनकर बेहया क़ौम ने बजाए सरे तस्लीम ख़म करने के बेबाक जवाब दिया उसे पारा 8 सूरातुल अराफ़ आयत 82 में इन लफ़्ज़ों के साथ बयान किया गया है:

وَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلاَّ أَنْ قَالُوا أَخْرِجُوهُمْ مِنْ قَرْيَتِكُمْ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُون82

तर्जुमा कंज़ुल ईमान: और इसकी क़ौम का कुछ जवाब न था मगर यही कहना के उनको अपनी बस्ती से निकाल दो ये लोग तो पाकीज़गी चाहते हैं |

क़ौमे लूत पर लरज़ा ख़ेज़ अज़ाब नाज़िल हो गया :- जब क़ौमे लूत की सरकशी और खसलते बद फेली (गन्दा काम) क़ाबिले हिदायत न रही तो अल्लाह तआला का अज़ाब आ गया, जैसा के हज़रत सय्यदना जिब्रील अलैहिस्सलाम चंद फरिश्तों के साथ अमरद (बगैर दादी मूछ का नौजवान लड़का) हसीन यानि खूबसूरत लड़कों की सूरत में मेहमान बनकर हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे | इन मेहमानो के हुसनो जमाल और क़ौम की बदकारी की खसलत के ख्याल से हज़रते सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम मुशव्वश यानि फ़िक्र मंद हुए| थोड़ी देर बाद क़ौम के बद फेलो ने हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम के मकाने आली शान का मुहासिरा (घेरना) कर लिया और इन मेहमानो के साथ बद फेली के बुरे इरादे से दिवार पर चढ़ने लगे | हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम ने निहायत दिल सोज़ी के साथ इन लोगो को समझाया मगर वो अपने बद (बुरे) इरादे से बाज़ न आए | आपको मुतफक्किर और रंजीदा देख कर हज़रत सय्यदना जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा या नबी अल्लाह आप ग़मगीन न हो हम फरिश्ते हैं और इन बदकारों (बुरे काम करने वाला) पर अल्लाह का अज़ाब लेकर उतरे हैं आप मोमिनीन और अपने अहिल व अयाल को साथ लेकर सुबह होने से पहले पहले इस बस्ती से दूर निकल जाईए और खबर दार कोई शख्स पीछे मुड़कर न देखे बस्ती की तरफ वरना वो भी इस अज़ाब में गिरफ्तार हो जायेगा | जैसा के हज़रत लूत अलैहिस्सलाम अपने घर वालों और मोमिनो को साथ लेकर बस्ती से बाहर तशरीफ़ ले गए | फिर हज़रत सय्यदना जिब्रील अलैहिस्सलाम इस शहर की पांचों बस्तियों को अपने परों पर उठाकर आसमान की तरफ बुलंद हुए और कुछ ऊपर जाकर उन बस्तियों को ज़मीन पर उलट दिया | फिर उन पर इस ज़ोर से पत्थरों की बारिश के क़ौमे लूत की लाशों के भी परखचे उड़गए ऐन यानि ख़ास उस वक़्त जब के ये शहर उलट पलट हो रहा था हज़रते सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम की एक बीवी जिसका नाम “वाइला” था जो के दर हक़ीक़त मुनाफ़िक़ा थी और क़ौम के बदकारो से मुहब्बत रखती थी उसने पीछे मुड़कर देख लिया और उसके मुँह से निकला: हाएरे मेरी क़ौम ये कहकर खड़ी हो गई फिर अज़ाबे इलाही का एक पत्थर उसके ऊपर भी गिरपड़ा और वो भी हलाक हो गई

सूरतुल अराफ़ आयत 83 और 84 में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है:

أَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلاَّ امْرَأَتَهُ كَانَتْ مِنْ الْغَابِرِينَ (83) وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَراً فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ (84)

तर्जुमा कंज़ुल ईमान: तो हम ने उसे और उसके घर वालों को निजात दी मगर उसकी औरत, वो राहजनी वालों में हुई | हमने उनपर एक मीनह बरसाया तो देखो कैसा अंजाम हुआ मुजरिमो का |

बदकार क़ौम पर बरसाए जाने वाले हर पत्थर पर उस शख्स का नाम लिखा था जो इस पत्थर से हलाक हुआ | (तफ़्सीरे सावी)

पत्थर ने पीछा किया :- हज़रत सय्यदना लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम का एक ताजिर उस वक़्त कारोबारी तौर पर मक्का शरीफ की ज़्यारत को आया था उसके नाम का पत्थर वहीँ पहुँच गया मगर फरिश्ते ने ये कहकर रोक लिया के ये अल्लाह का हरम है चुनाचे वो पत्थर 40 दिन तक हरम के बाहर ज़मीन व आसमान के दरमियान मुअल्लक़ (लटका रहा) रहा जैसे ही वो ताजिर (बिजनिसमैन) फारिग हो कर मक्का से निकल कर हरम से बाहर हुआ वो पत्थर उसपर गिरा और वो वहीँ हलाक हो गया | (मुकाशिफतुल क़ुलूब)

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ख़िन्ज़ीर (सुअर) इगलाम बाज़ होता है :- मुफ़स्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खां अलैहि रहमतुल्लाह हन्नान फरमाते हैं: फाहिशा (बेहयाई) वो गुनाह है जिसे अक़्ल भी बुरा समझे| अगरचे बदतरीन गुनाहे कबीरा है मगर उसे रब ने फाहिशा यानि बेहयाई न फ़रमाया क्योंकि नफ़्से इंसानी इससे घिन नहीं करती| बहुत से अक़्लमंद कहलाने वाले इसमें गिरफ्तार हैं मगर इगलाम यानि बद फेली गन्दा काम तो ऐसी बुरी चीज़ है के जानवर भी इससे मुतानफ्फिर (यानि नफरत) हैं सिवाए सुअर के लड़कों से इगलाम हराम क़तई है इसके हराम होने का मुनकिर यानि इंकार करने वाला काफिर है लूति यानि इगलाम बाज़ मर्द “औरत के क़ाबिल नहीं रहता | (नुरुल इरफ़ान)

अल्लाह अज़्ज़वजल की बारगाह में सबसे ज़्यादा नापसंदीदा गुनाह :- हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने एक मर्तबा शैतान से पुछा के अल्लाह अज़्ज़वजल को सबसे बढ़कर कोनसा गुनाह नापसंदीदा है? इब्लीस बोला: अल्लाह तआला को ये गुनाह सबसे ज़्यादा नापसंदीदा है के मर्द, मर्द से बद फेली करे औरत, औरत से अपनी ख्वाइश पूरी करे | (तफ़्सीर रुहुल बयान)

ख़ातामुल मुर्सलीन रहमतुलिल्ल आलमीन सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमाने इबरत निशान है :- जब मर्द मर्द से हराम कारी करे तो वो दोनों ज़ानी हैं और जब औरत औरत से हराम कारी करे तो वो ज़ानिया है | (अस्सुनानुल कुबरा)

तीन तरह के अमरद परस्त :- हज़रत सय्यदना अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के आखरी ज़माने में कुछ लोग लूतीया कहलाएंगे और तीन तरह के होंगे (1) वो के जो (शहवत) के साथ सिर्फ मर्दो की सूरते देखेंगे और बावजूदे शहवत उनसे बातचीत करेंगे (2) जो शहवत के साथ उनसे हाथ मिलाएंगे और गले भी मिलेंगे (3) जो उनके साथ बदफेली करेंगे उन सभी पर अल्लाह तआला की लानत है मगर वो जो तोबा कर लेंगे तो अल्लाह तआला उनकी तोबा कबूल फरमा लेगा और वो लानत से बचे रहेंगे | (क़ौमे लूत की तबहकारिया)

सुलगती लाशें :- हज़रत सय्यदना ईसा रूहुल्ला अलैहिस्सलाम ने एक बार जंगल में देखा एक ” मर्द ” पर आग जल रही है आपने पानी लेकर आग बुझानी चाहि तो आग ने मर्द की सूरत इख्तियार कर ली हज़रत सय्यदना ईसा रूहुल्ला अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला की बारगाह में अर्ज़ की या अल्लाह इन दोनों को अपनी असली हालत पर लोटादे ताके में इनसे इनका गुनाह पूंछू चुनाचा मर्द और अमरद आग से बाहर आ गए मर्द कहने लगा या रूहुल्ला अलैहिस्सलाम मेने इस अमरद से दोस्ती की थी अफ़सोस शहबत मगलूब होकर मेने शबे जुमा इससे बदफेली (गन्दा काम) की दुसरे दिन भी काला मुँह किया एक नसीहत करने वाले ने खुदा का खौफ दिलाया मगर में न माना फिर हम दोनों मर गए अब बारी बारी आग बनकर एक दुसरे को जलाते है और हमारा ये अज़ाब क़यामत तक है | अल्लाह की पनाह (नुज़हतुल मजालिस)

अमरद भी जहन्नम का हक़दार :- अमरद (बिना दाढ़ी मूछ वाला लड़का) से दोस्तीया करने वाले शैतान के वार से खबरदार ! इब्तिदा (शुरू करना ) नियत साफ़ ही सही , मगर शैतान को बहकाते देर नहीं लगती , अमरद से दोस्ती करने वाले का कुछ नहीं तो बदनिगाही और शहवत के साथ बदन टकराने के गुनाह से बचना तो निहायत ही दुशवार होता है | ये भी याद रहे ! अगर अमरद रज़ा मंदी से या पैसों या नौकरी वगैरह के लालच में बद फेली करवाएगा तो वो भी गुनहगार और जहन्नम का हक़दार है |

क़ौमे लूत के क़ब्रिस्तान में :- हज़रत सय्यदना वकी रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है: जो शख्स क़ौमे लूत जैसा अमल (बद फेली) करता होगा और बगैर तोबा मरेगा तो दफ़न होने के बाद उसे क़ौमे लूत के क़ब्रिस्तान में भेज दिया जायेगा और उसका हशर क़ौमे लूत के साथ होगा यानि क़यामत में उन्ही के साथ उठेगा| (इब्ने असाकर)

इगलाम बाज़ की दुनिया में सज़ा :- हनफ़ी मज़हब में इगलाम बाज़ यानि बद फेली करने वाले की सज़ा ये है के उसके ऊपर दिवार गिरा दें या ऊंची जगह से उसके औंधा करके गिराएं और उसपर पत्थर बरसायें या उसे क़ैद में रखें यहां तक के मरजाएं तौबा करलें| चंद बार ये फैले बद किया हो तो बादशाहे इस्लाम उसे क़त्ल कर डाले याद रहे ये इजाज़त आम आदमी को हासिल नहीं है ये सज़ा सिर्फ जो हाकिमे इस्लाम हो यानि सिर्फ मज़हबे इस्लाम का हाकिम हो या बादशाहे इस्लाम हो| (दुर्रे मुख़्तार )

सवाल :- जो बद फेली को जाइज़ समझे या जाइज़ कहे क्या वो मुस्लमान रहेगा?
जवाब :- नहीं वो काफिर हो जायेगा |

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फुक़हाए किराम अलैहिमुर्रिज़वान फरमाते हैं: जिसने हरामे इजमायी की हुरमत का इंकार किया या उसके हरामे होने में शक किया वो काफिर है जैसे शराब, ज़िना, लिवातत, सूद वगैरह| मेरे आक़ा आला हज़रत मौलाना अश्शाह इमाम अहमद राजा खान अलैहिर रहमतुर रहमान “लिवातत” के हलाल होने के क़ाइल के बारे में इरशाद फरमाते हैं लिवातत को हलाल सलमझ ने वाला काफिर है| (फतावा रजविया जिल्द 23)

सवाल :- उस शख्स के लिए क्या हुक्म है जो जाइज़ तो न कहे मगर ये तमन्ना करे के काश बद फेली जाइज़ होती?
जवाब :- ये तमन्ना भी कुफ्र है अल बेहरुराइक में लिखा है के जो हराम काम कभी हलाल न हुए उनके बारे में हलाल होने की तमन्ना (आरज़ू) करना कुफ्र है जैसे ये तमन्ना करना काश ज़ुल्म, झूट, ज़िना, ग़ीबत,क़त्ले नाहक़ हलाल होते|

ए अल्लाह की रहमत से जन्नतुल फिरदोस में आक़ा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के पड़ोस के तलबगार बद फेली से बचने के लिए निगाहों की हिफाज़त भी ज़रूरी है के ये इस खौफनाक गुनाह की पहली सीढ़ी है इससे ज़रूर बचें|

बद निगाही की वजह से पूरा क़ुरआन भुला दिया गया :- हाफिज अबू अमर मदरसे में क़ुरआने पाक पढ़ाते थे एक बार एक खूबसूरत लड़का पढ़ने के लिए आ गया उसकी तरफ गन्दी लज़्ज़त के साथ देखते ही उनका सारा क़ुरआन भुला दिया गया | खूब तौबा की और रोते हुए मशहूर ताबई बुजरुग हज़रत सय्यदना हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर होकर अपना वाक़िया सुनाया और दुआ के तालिब हुए |फ़रमाया इसी साल हज की सआदत हासिल करो और मिना शरीफ की मस्जिदुल खैफ शरीफ में जाकर वहाँ पेशे इमाम से दुआ कराओ चुनाचे इमाम साहब ने हज किया और मस्जिदुल खैफ शरीफ में ज़ुहर से पहले हाज़िर हो गए, एक नूरानी चेहरे वाले बूढ़े पेशे इमाम साहब लोगों के झुरमुट के अंदर मेहराब में तशरीफ़ फरमा थे | कुछ देर के बाद एक साहब तशरीफ़ लाये, सबने खड़े होकर उनका इस्तक़बाल किया इमाम साहब भी इसी में बैठ गए अज़ान हुई और नमाज़े ज़ुहर के बाद लोग मुन्तशिर हो गए पेश इमाम सब को तनहा पाकर हाफिज साहब आगे बड़े सलाम व दस्त बोसी के बाद रोते हुए अपनी बात अर्ज़ करके दुआ की इल्तिजा की (दरख्वास्त) पेशे इमाम साहब की दुआ करते ही सारा क़ुरआन मजीद फिर हिफ़्ज़ हो गया, इमाम साहब ने पुछा तुम्हे मेरा पता किसने बताया? अर्ज़ की हज़रत सय्यदना हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह ने | फरमाने लगे अच्छा उन्होंने मेरा पर्दा फाश किया है अब में भी उनक राज़ खोलता हूँ, सुनो ज़ुहर से पहले जिन साहब की आमद पर उठकर सबने ताज़ीम की थी वो हज़रत सय्यदना हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह थे वो अपनी करामात से बसरा से यहां मिना शरीफ की मस्जिदुल खैफ में तशरीफ़ लाकर रोज़ाना नामज़े ज़ुहर अदा फरमाते हैं| अल्लाह की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी बे हिसाब मगफिरत हो | (तज़किरतुल औलिया)

आखरी उम्र है क्या रोनके दुनिया देखूं
अब तो बस एक ही धुन है के मदीना
देखूं

हाफ़िज़ की तबाही का एक सबब :- ए मदीने के आरज़ू मंद आशिकाने रसूल: देखा आपने
अमरद की तरफ “गन्दी लज़्ज़त” के साथ देखने से हाफ़िज़ा भी (याद दाश्त) तभाह हो सकता है बदनिगाही और टीवी वगैरा पर फिल्मे डिरामे देखना गुनाह और हराम जहन्नम में लेजाने वाला काम है और इससे हाफ़िज़ा भी (याद दाश्त) कमज़ोर होता है लेकिन खबरदार किसी हाफिज साहब की मंज़िलें कमज़ोर होने की सूरत में सिर्फ अपनी अटकल से ये ज़हन बना लेना के बद निगाही के सबब ऐसा हुआ है बद गुमानी और मुस्लमान पर बद गुमानी हराम और जहन्नम में लेजाने वाला काम है|

दो अज़ान पढ़ने वालों की बर्बादी :- हज़रत सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अहमद मुअज़्ज़िन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: में तवाफ़े काबा में मशगूल था के एक शख्स पर नज़र पड़ी जो गिलाफ़े काबा से लिपट कर एक ही दुआ बार बार कर रहा था: या अल्लाह मुझे दुनिया से मुस्लमान ही रुखसत करना | मेने उससे पूछा: इस के अलावा कोई और दुआ क्यों नहीं मांगते? उसने कहा मेरे दो भाई थे: बड़ा भाई चालीस साल तक मस्जिद में बगैर तनख्वा लिए अज़ान देता रहा, उसकी जब मौत का वक़्त आया तो उसने क़ुरआने पाक माँगा: हमने उसे दिया ताके इससे बरकतें हासिल करे मगर क़ुरआन शरीफ हाथ में लेकर वो कहने लगा: तुम सब गवाह हो जाओ के में क़ुरआन के तमाम एतिक़ादात व अहकामात से बेज़ार हूँ और नसरानी (किश्चियन) मज़हब इख़्तियार करता हूँ, फिर वो मर गया उसके बाद दूसरे भाई ने तीस बरस तक मस्जिद में फिसबिलिल्लाह अज़ान दी मगर उसने भी आखरी वक़्त नसरानी (किश्चियन) होने का ऐतिराफ़ किया और मर गया, लिहाज़ा में अपने खात्मे के बारे में बेहद फ़िक्र मंद हूँ और हर वक़्त ख़ातिमा बिलखैर की दुआ मांगता रहता हूँ हज़रत सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अहमद मुअज़्ज़िन रहमतुल्लाह अलैह ने उससे इस्तिफ़सार (पूछना) फ़रमाया के तुम्हारे दोनों भाई आखिर ऐसा कौनसा गुनाह करते थे? उसने बताया “वो गैर औरतों में दिलचस्पी लेते थे और अमरदों (बगैर दाढ़ी मूछ का लड़का) को शहवत से देखते थे| (अर रोजुल फाइक)

चेहरे का गोश्त झड़ गया :- एक बुजरुग रहमतुल्लाह अलैह को बादे इन्तिक़ाल ख़्वाब में देखकर किसी ने पुछा: अल्लाह तआला ने आप के साथ क्या मुआमला किया कहने लगे : मुझे बरगै खुदा वन्दी में पेश किया गया और मेरे गुनाह गिनवाने शुरू किए गए, में इक़रार करता गया और वो माफ़ होते गए मगर एक गुनाह पर शर्म के मरे में चुप हो गया और देखते ही देखते मेरे चेहरे की खाल और गोश्त सबकुछ झड़ गया ख्वाब देखने वाले ने पूछ: आखिर वो गुनाह कोनसा था फ़रमाया अफ़सोस एक बार मेने एक अमरद (बगैर दाढ़ी मूछ का लड़का)पर शहवत भरी नज़र डाली थी| (कीमियाये सआदत)

ए ख़ौफ़े खुदा और इश्क़े मुस्तफा रखने वाले लरज़ उठिये के जब अमरद को शहवत के साथ देखने का इस क़द्र खौफनाक अंजाम है तो नाजाने बद फेली का अज़ाब किस क़द्र शदीद होगा |

खौफ नाक सांप की मार :- एक बुजरुग रहमतुल्लाह अलैह को इन्तिक़ाल के बाद ख्वाब में देखा गया के उनका आधा चेहरा काला है वजह पूछने पर बताया के जन्नत में जाते हुए जहन्नम पर से जैसे ही गुज़रा एक खौफनाक सांप आया और उसने मेरे चेहरे पर एक ज़ोरदार ज़र्ब लगते हुए कहा तूने फुला दिन एक अमरद को शहवत के साथ देखा था ये उस बद निगाही की सज़ा है अगर तो ज़्यादा देखता तो में ज़्यादा सज़ा देता (तज़किरतुल औलिया)

बोसा लेने का अज़ाब :- नक़्ल किया जाता है: जो किसी लड़के का (शहवत के साथ) बोसा लेगा वो पांच सो साल जहन्नम की आग में जलाया जायेगा | (मुकाशिफतुल क़ुलूब)

बद निगाही से शकल बिगड़ सकती है सरकारे मदीना करारे कलबो सीना ने इरशाद फ़रमाया: तुम या तो अपनी निगाहें नीची रखो और अपनी शर्म गाहों की हिफाज़त करोगे या फिर अल्लाह तआला तुम्हारी शक्लें बिगड़ देगा| (अल मोजामुल कबीर लित तबरानी)

क़ब्र में कीड़े सबसे पहले तेरी आँख खाएंगे :- औरतों और अमरदों वगैरा से बद निगाही करने वालों खबरदार अल्लाह तआला फरमाता है ए इब्ने आदम मेरी हराम की हुई चीज़ों की तरफ मत देख क़ब्र में कीड़े सबसे पहले तेरी आँख खाएंगे याद रख हराम पर नज़र और उसकी मुहब्बत पर तेरा मुहासबा (पूछ ताछ) किया जायेगा और कल बरोज़े क़यामत मेरे हुज़ूर खड़े होने को याद रख क्योंकि में लम्हा भर के लिए भी तेरे राज़ों से गाफिल नहीं होता, बेशक में दिलों की बात जनता हूँ|

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नज़र की हिफाज़त करने वाले के लिए जहन्नम से अमन है :- जो अमरदों और गैर औरतों वगैरा की मौजूदगी में आंखें झुकाता: अपनी गन्दी ख्वाइश दबाता और उनको देखने से खुदको बचाता है वो क़ाबिले सद मुबारक बाद है अल्लाह तआला फरमाता है जिसने मेरी हराम की हुई चीज़ों से अपनी बांखो को झुका लिया यानि उन्हें देखने से बचाया में उसे जहन्नम से अमन अत करूंगा|

इब्लीस का ज़हरीला तीर :- अल्लाह के मेहबूब दानए गूयूब मुनज़्ज़ा अनिल ओयूब सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने आली शान है के हदीसे क़ुद्सी (यानि फरमाने खुदा) है के नज़र इब्लीस के तीरों मेसे एक ज़हर में बुझा हुआ तीर है जो शख्स मेरे खौफ से इसे तर्क (छोड़ना) करदे तो में उसे ऐसा ईमान अत करूंगा जिसकी हलावत (मिठास) वो अपने दिल में पायेगा| (अल मोजामुल कबीर लित तबरानी)

अमरद के साथ तन्हाई 7 दरिंदों से भी ज़्यादा खातर नाक है :- एक ताबई बुजरुग रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: नौजवान सालिक यानि इबादत गुज़ार नौजवान के साथ बगैर दाढ़ी मूछ के लड़के के बैठने को 7 दरंदों से ज़्यादा खतरनांक समझता हूँ और आगे फरमाते हैं कोई शख्स एक माकन में किसी अमरद के साथ तनहा रात न गुज़ारे इमाम इब्ने हजर मक्की शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं बाज़ उल्माए किराम ने अमरद को औरत पर कयास करते हुए घर दुकान या हम्माम में इसके साथ ख़ल्वत (यानि तन्हाई) को हराम क़रार दिया क्योंकि शफीउल मुज़नबीन अनीसुल गरीबिन सलल्लाहु अलैहि वसललम का फरमान है “जो शख्स किसी औरत (अजनबिया) के साथ होता है तो वहाँ तीसरा शैतान होता है | (तिर्मिज़ी शरीफ)

अमरद औरत से भी ज़्यादा खतरनाक है -:- हज़रत सय्यदना इमाम इब्ने हजर मक्की शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: जो अमरद औरतों से ज़्यादा खूसूरत होता है उसमे फितना भी ज़्यादा होता है इसलिए के उससे औरतों की निस्बत बुराई का ज़्यादा इमकान होता है लिहाज़ा उसके साथ तन्हाई इख़्तियार करना ज़्यादा हराम है अहनाफ के नज़दीक शहवत न हो तो अमरद के साथ तन्हाई हराम नहीं और बाज़ शवाफे के नज़दीक अमरद के साथ तन्हाई का मुतलक़न हराम होना हमें एहतियात का दर्स देता है |

अमरद के साथ 17 शयातीन :- हज़रत सय्यदना सुफ़यान सॉरी रहमतुल्लाह अलैह एक हम्माम में दाखिल हुए आपके पास एक अमरद (बगैर दाढ़ी मूछ का लड़का) आया तो इरशाद फ़रमाया इसे मुझसे दूर करदो क्योंकि में हर औरत के साथ एक शैतान जब के हर अमरद के साथ 17 शयातीन देखता हूँ|

अमरद के साथ 70 शैतान :- अमरद के साथ किए जाने वाले वार से खबर दार करते हुए मेरे आक़ा आला हज़रत रहमतुल्लाह फरमाते हैं औरत के साथ दो शैतान होते हैं और अमरद के साथ 70 | (फतावा रजविया)

परहेज़गार भी फंस जाते हैं एक बुजरुग रहमतुल्लाह अलैह से एक बार शैतान ने कहा दुनिया के माल की मुहब्बत से तो बचने में आप जैसे लोग कामयाब हो जाते हैं मगर मेरे पास अमरद की कशिश का जाल ऐसा है के इसमें बड़े बड़े परहेज़गारों को फंसा लेता हूँ |

इमामे आज़म का अमरद के बारे में तर्ज़े अमल :- हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह जब बारगाहे सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह में पढ़ने केलिए हाज़िर हुए तो बे रेश अमरद हसीन थे इमाम आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह ने उनको हुक्म दिया के पहले क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ कर लीजिये वो एक हफ्ते के बाद फिर इल्म दीन हासिल करने केलिए हाज़िर हो गए फ़रमाया मेने कहा था हिफ़्ज़ कर लीजिये लेकिन आप फिर आ गए अर्ज़ की हुज़ूर तामीले इरशाद में हिफ़्ज़ करके ही हाज़िर हुआ हूँ एक हफ्ते में क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ कर लेने का सुन कर इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह उनकी ज़िहानत और क़ुव्वते हाफ़िज़ा से बेहद मुतअस्सिर हुए मगर उनकी कशिश में कमी लाने की गरज़ से उनके वालिद माजिद से फ़रमाया इनका सर मुंडवा दीजिये और इन्हे पुराने कपडे पहनाइए वो सर मुंडवा कर हाज़िर हुए तब भी ख़ौफ़े खुदा की वजह से इमामे आज़म अबू हनीफा उनको अपने सामने नहीं बल्कि अपनी पीठ सुतून के पीछे बिठाकर पढ़ाते ताके उनपर नज़र न पड़े |

अच्छों के नाम पर नाम रखो :- क़यामत के दिन तुम को तुम्हारे बापों के नाम से पुकारा जायेगा लिहाज़ा अपने अच्छे नाम रखो हुज़ूर सदरुशशरिया बदरुत्तरिका हज़रते अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: बच्चे का अच्छा नाम रखा जाए, हिंदुस्तान में बहुत लोगों के ऐसे नाम हैं जिन के कुछ माना नहीं या उनके बुरे माने हैं ऐसे नामो से इहतिराज़ (यानि परहेज़) करें अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम के असमाए तइयबह और सहाबा व ताबईन और बुज़र्गाने दीन के नाम पर नाम रखना बेहतर है उम्मीद है के इनकी बरकत बच्चे के शामिले हाल हो| (बहारे शरीअत)

हर बच्चे का नाम रखो :- बच्चा ज़िंदह पैदाह हुआ या मुर्दाह उसकी ख़िलक़त (यानि पैदाइश) तमाम यानि मुकम्मल हो या न तमाम यानि न मुकम्मल बेहरे हाल उसका नाम रखा जाए और क़यामत के दिन उसका हशर होगा यानि उठाया जायेगा| (दर्रे मुख़्तार, बहारे शरीअत)

मालूम हुआ के जो बच्चा कच्चा गिरजाए उसका भी नाम रखा जाए जैसा के किताब का नाम औलाद के हुक़ूक़ पेज नंबर 17 पर है नाम रखें यहां तक के कच्चे बच्चे का भी जो कम दिनों का गिर जाए वरना अल्लाह तआला के यहाँ शाकि होगा यानि शिकायत करेगा और फरमाने मुस्तफा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम है: कच्चे बच्चे का नाम रखो अल्लाह तआला उसके जरिया तुम्हारे मीज़ान यानि अमल तौल ने के तराज़ू को भरी करेगा|

मुहम्मद नाम रखने के बारे में :- हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जिसके लड़का पैदा हुआ और वो मेरी मुहब्बत और मेरे नाम से बरकत हासिल करने के लिए उसका नाम मुहम्मद रखे वो और उसका लड़का दोनों जन्नत में जायेंगें | और फरमाते हैं रोज़े क़यामत दो शख्स अल्लाह तआला के हुज़ूर खड़े किये जायेंगे हुक्म होगा: इन्हें जन्नत में लेजाओ अर्ज़ करेंगे इलाही हम किस अमल पर जन्नत के क़ाबिल हुए? हम ने तो जन्नत का कोई काम नहीं किया फरमाएगा जन्नत में जाओ मेने हलफ किया है के जिसका नाम अहमद मुहम्मद हो वो दोज़ख में न जायेगा| (फतावा रजविया)

तुममे से किसी का क्या नुकसान अगर उसके घर में एक मुहम्मद या दो मुहम्मद या तीन मुहम्मद हों ये हदीस पाक नक़ल करने के बाद सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं इसी लिए मेने अपने सब बेटों भतीजों का अक़ीक़े के सिर्फ मुहम्मद नाम रखा फिर नाम मुबारक के अदब की हिफाज़त और बच्चों की पहचान हो सके इसलिए उर्फ़ यानि पुकारने के लिए जुदा जुदा मुक़र्रर किये| हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम अबू हामिद मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह का अपने वालिद साहब का और दादा जान का मुबारक नाम मुहम्मद था|

औलादे नरैना का अमल :- सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताज़े गिरामी जलीलुल क़द्र ताबई इमाम आता रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: जो चाहे के उसकी औरत के हमल में लड़का हो उसे चाहिए अपना हाथ हामिला औरत के पेट पर रखकर कहे: अगर लड़का है तो मेने उसका नाम मुहम्मद रखा इंशा अल्लाह लड़का ही होगा| (फतावा रजविया)

आज कल अल्लाह की पनाह नाम बिगाड़ने की वबा आम है और मुहम्मद नाम का बिगाड़ना तो बहुत ही सख्त तकलीफ देह है लिहाज़ा हर मर्द का नाम मुहम्मद या अहमद रख लीजिये और उर्फ़ यानि पुकारने केलिए बिलाल राजा, नूरी राजा, हिलाल राजा, जलाम राजा, कमाल राजा, और ज़ैद राजा, वगैरह रख लीजिये|

नोट -:- फरिश्तों के मख़सूस नाम पर नाम रखना दुरुस्त नहीं लिहाज़ा किसी का जिब्रील या मिकाइल वगैरह नाम न रखए क्योंकि हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं: फरिश्तों के नाम पर नाम न रखो| (शुआबुल ईमान)

नोट -:-मुहम्मद नबी, अहमद नबी, नबी अहमद नाम रखना हराम है जब भी नाम रखे उसके माने पर गौर कर लीजिए या किसी आलिम से पूछ लीजिए बुरे माने वाले नाम न रखो जैसा के ग़फ़ूरुदीन के माने हैं दीनका मिटने वाला ये नाम रखना सख्त बुरा है बुरे नाम बुरी तासीर रख ते हैं जैसा के सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने बुरे नमो का सख्त बुरा असर पढ़ते देखा है अपनी आँखों से नाम के असरात आने वाली नस्ल में भी आसकते हैं| (बहारे शरीअत)

बुरे नाम का असर :- “सही बुखारी” में सईद बिन मुसय्यब रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के मेरे दादा नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए हुज़ूर ने पुछा तुम्हारा नाम क्या है? उन्होंने कहा हज़न फ़रमाया तुम सहिल हो यानि अपना नाम “सहिल” रखो के उसके माने हैं नरम और “हज़न” सख्त को कहते हैं उन्होंने कहा के जो नाम मेरे बाप ने रखा है उसे नहीं बद लूँगा सईद बिन मुसय्यब कहते हैं इसका नतीजा ये हुआ के हम्मे अब तक सख्ती पाई जाती है| (बुखारी)

नोट :- यासीन या ताहा नाम रखना मना है मुहम्मद यासीन भी नाम नहीं रख सकते हाँ गुलाम यासीन गुलाम ताहा नाम रखना जाइज़ है| (फतावा रजविया)

बहारे शरीअत अक़ीक़े के बयान में है अब्दुल्लाह व अब्दुर्रहमान बहुत अच्छे नाम हैं मगर इस ज़माने में ये अक्सर देखा जाता है के बजाए अब्दुर्रहमान इस शख्स को बहुत से लोग रहमान कहते हैं और गैर खुदा को रहमान कहना हराम है इसी तरह अब्दुल ख़ालिक़ को ख़ालिक़ और अब्दुल माबूद को माबूद कहते है और इसी तरह अब्दुल कय्यूम को कय्यूम अब्दुल जब्बार को सिर्फ जब्बार कहते हैं इस क़िस्म के नमो में ऐसी नाजाइज़ तरमीम हरगिज़ नाकि जाए इसी तरह बहुत से नमो में तसगीर यानि छोटा करने क रिवाज़ है नमो को बिगाड़ते हैं जिससे हिक़ारत निकलती है ऐसा हरगिज़ जाइज़ नहीं जो बुरे नाम हों उनको बदलकर अच्छा नाम रखना चाहिए हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम बुरे नाम को अच्छे नाम से बदल दिया करते थे एक खातून का नाम “आसिया” (यानी गुनाहगार था) हुज़ूर साहिबे लौलाक सल्ललाहु अलैहि वस्सलाम उसके नाम को बदल के जमीला रखा (मुस्लिम शरीफ) ऐसे नाम मना है जिनमे अपने मुँह से खुद को अच्छा बताना यानी अपने (अपने मुँह मिया मिट्ठू ) सरकार आला हज़रत ने फ़रमाया कोई इस नाम के साथ नाम न रखे जिसमे अपनी बढ़ाई और तारीफ़ का इज़हार हो मुस्लिम शरीफ में है सरकार सल्ललाहु अलैहि वस्सलाम ने “बर्रा” यानी नेक बीवी नामी औरत का नाम बदलकर ” ज़ैनब” रखा तुम में नेको कार कौन है | (मुस्लिम शरीफ )

नोट :- ऐसे नाम रखना जाइज़ नहीं जो कुफ्फार के लिए ख़ास हो फतावा रजविया में है नामो की एक किस्म कुफ्फार से मुख़्तस (मख़सूस ) जैसे जिरजिस पुतरस यूहन्ना वगैरा और ऐसे नाम जिनमे कुफ़्फ़ारो (काफिर लोग ) मोशहाबत पाई जाती हो हरगिज़ हरगिज़ जाइज़ नहीं गुलाम मुहम्मद, गुलाम ग़ौस, गुलाम रसूल, गुलाम अली,गुलाम सिद्द्की, गुलाम रजा, गुलाम फ़ारूक़ रखना जाइज़ है |

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