नूरे जानो नूरे इमां नूरे क़ब्रो हश्र दे
बुल हुसैन अहमदे नूरी लिका के वसाते
आप की पैदाइश शरीफ :- सिराजुस्सालिकीन नूरुल आरफीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश 19, शव्वालुल मुकर्रम 1255, हिजरी मुताबिक़ 26, दिसम्बर 1839, ईस्वी को बरोज़ जुमेरात मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी इंडिया में हुई,
आप का इसमें गिरामी :- आप का नामे नामी व इसमें गिरामी “सय्यद अबुल हुसैन अहमदे नूरी” है और तारीखी नाम “मज़हर अली” है और लक़ब “मियां साहब” है,
आप के वालिद माजिद :- आप के वालिद माजिद का नामे नामी हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हसन मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह,
हज़रत सय्यद अबुल हुसैन अहमदे नूरी रहमतुल्लाह अलैह अभी आप 11, ग्यारह साल के थे, के 26, जमादिउल ऊला 1266, हिजरी में काठियावाड़ में वालिद माजिद का इन्तिकाल हो गया और वहीँ मदफ़ून भी हुए,
आप के खानदानी हालात :- आप सादात हुसैनी ज़ैदी वास्ती बिलगिरामि वालिद माजिद की तरफ से हैं, नीज़ वालिदा माजिदा हज़रत सय्यद मुहम्मद सुगरा बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह की बीसवीं पुश्त में हैं,
आप के आबाओ अजदाद हर अहिद में सरदार व मुक़्तदा रहे हैं, ये खानदान आप का 614, हिजरी मुताबिक 1217, ईस्वी में बिलगिराम को फ़तेह कर के इस मक़ाम पर रौनक अफ़रोज़ हुआ और जागीर व ख़िताबते शाही से मुअज़ज़ रहा 1017, हिजरी 1689, ईस्वी में मीर अब्दुल जलील रहमतुल्लाह अलैह यानि आप के जद्दे अमजद साहब गौस व क़ुतबे मारहरा मुक़र्रर हो कर रौनक अफ़रोज़ हुए मारहरा शरीफ में,
आप का हुलिया मुबारक :- हज़रत सय्यद अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह का सरापा इस तौर पर है, क़द, मियाना लेकिन बावजूद मियाना कदो क़ामत होने के मजमे में सब से बुलंद नज़र आते, सर, सर मुबारक बड़ा और पेशानी भी खूब बड़ी, भंवें, बारीक और ये हज़रात सादाते बिलगिरामि में उमूमन हैं, पलकें, दराज़ आँखें बड़ी और रौशन सफेदी और सियाही तेज़ सुर्ख के डोरे पड़े, शूगले महमूदा में सियाही मुतलक़ नज़र न आती, और शुग्ल बरोज़ में दोनों पुत लियाँ एक साअत बराबर नज़र आ जातीं, ना बुलंद व चौड़ी, मुँह भी फराख, दांत मुबारक निहायत साफ़ चमकदार और मज़बूत जो गालिबन वक़्ते वफ़ात शरीफ तक सब दांत मौजूद थे कोई गिरा नहीं था, रेश मुबारक पूरी भरी हुई, सीना मुबारक चौड़ा, हाथ लम्बे, उँगलियाँ बारीक दराज़ शिकम मुबारक, आखिर उमर शरीफ में कमर मुबारक ख़त्म हो गई थी जो चलने में महसूस होती थी, पाऊँ की एड़ियां छोटी और निहायत खूबसूरत रफ़्तार तेज़, हांसी आप की सिर्फ तबस्सुम थी,
ज़्यादातर अमामा, रंगीन कुरता, सफ़ेद नक्शबंदी पजामा, ढीली दो पल्ली कुलाह (टोपी) गोशे खुले हुए, कभी क़ादरी कमीस और और लम्बा भी पहिनते, एक छोटा दो पट्टा जो बशक्ल “ला” गले में होता, रूमाल सफ़ेद इस्तेमाल फरमाते,
आप की तालीमों तरबियत :- आप की उमर शरीफ जब ढाई साल की हुई तो वालिद माजिद का विसाल हो गया, इस लिए आप की तालीमों तरबियत की तमाम ज़िम्मेदारी जद्दे अमजद हज़रत सय्यद शाह आले रसूल मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह, की आगोश में तरबियत हुई, आप के दरस का आगाज़ सय्यद शाह आले रसूल मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने हस्बे क़ाइदा इक़रा शरीफ की चंद आयात से फ़रमाया उस के बाद सीने मुबारक से लगा लिया और “रब्बी यस्सिर व तम्मिम बिल खैर” के साथ खास दुआएं दीं और दरगाह शरीफ के मकतब फ़ारसी में दाखिल फरमा दिया,
मकबत में बा क़ाइदा दाखिल होने के बाद आप ने फ़ारसी, अरबी, फ़िक़्हा, तफ़्सीर, हदीस, लुग़त, मंतिक, और दूसरे उलूमो फुनून को हासिल फ़रमाया,
आप के असातिज़ाए किराम की फेहरिस्त हस्बे ज़ेल है, अगर आप ने किसी से कुछ इल्मी बातें मालूम कीं तो उनकी भी ताज़ीम असातिज़ा की तरह करते,
(1) हज़रत मियां जी रहमतुल्लाह साहब (2) हज़रत जमाल रौशन साहब (3) हज़रत अब्दुल्लाह साहब रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम,
मज़कूरा बाला असातिज़ाए किराम के अलावा और भी दीगर (दूसरा) असातिज़ाए किराम के अस्मा मन्दर्जा ज़ेल हैं,
(4) हज़रत शेर बाज़ खान मारहरवी (5) हज़रत अशरफ अली मारहरवी (6) हज़रत अमानत अली मारहरवी (7) हज़रत इमाम बख्श मारहरवी (8) हज़रत सय्यद औलादे अली मारहरवी (9) हज़रत अहमद खान जलीसरी (10) हज़रत मौलवी मुहम्मद सईद उस्मानी बदायूनी (11) हज़रत इलाही खेर मारहरवी (12) हज़रत हाफ़िज़ अब्दुल करीम पंजाबी (13) हज़रत हाफिज़ो कारी मुहम्मद फ़य्याज़ रामपुरी (14) हज़रत मौलवी फ़ज़्लुल्लाह जलीसरी (15) हज़रत मौलाना नूर अहमद उस्मानी बदायूनी (16) हज़रत मौलाना मुफ़्ती हसन खान उस्मानी बरेलवी (17) हज़रत हकीम मुहम्मद सईद बिन हकीम इम्दादा हुसैन मारहरवी (18) हज़रत मौलवी हिदायत अली बरेलवी (19) हज़रत मौलवी मुहम्मद तुराब अली अमरोहा (20) हज़रत मौलवी मुहम्मद हुसैन शाह विलायती (21) हज़रत मौलवी मुहम्मद हुसैन बुखारी कश्मीरी (22) हज़रत मौलाना मुहम्मद अब्दुल क़ादिर उस्मानी बदायूनी मुतावफ़्फ़ा (1319) रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,
आप की उलूमे बातिन की सनादें :- आप ने जिन से उलूमे बातनि का इक्तिसाबे फ़ैज़ो बरकात हासिल किया इस में सिरे फेहरिस्त हुज़ूर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह हैं जिनकी बारगाहे आली वक़ार में आप ने काफी फैज़े रूहानी व इसनादे रूहानी हासिल फ़रमाया,
हज़रत के अलावा जिन असातिज़ाए किराम से अज़कार व औराद व सुलूक को पायाए व तकमील तक पहुंचाया उनके अस्माए गिराम मन्दर्जा ज़ेल हैं,
(1) हज़रत सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन (2) हज़रत मुफ़्ती सय्यद ऐनुल हसन बिलगिरामि (3) हज़रत शाह शमशुल हक़ उर्फ़ तिनका शाह (4) हज़रत मौलवी अहमद हसन मुरादाबादी (5) हज़रत हाफिज शाह अली हुसैन मुरादाबादी रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,
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आप को बैअतो खिलाफत किस बुज़रुग से थी :- आप को खिलाफत व इजाज़त अपने शैख़े तरीक़त “हुज़ूर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह” से थी, चुनाचे मारफअत की तकमील के बाद आप को इजाज़त आम मरहमत फ़रमाई और जिस सनद को आप के शैख़े तरीकत ने अता फ़रमाई आप को सलासिल खम्सा क़दीरिया, चिश्तिया, व नक्शबंदिया, सोहरवर्दिया, व मदारिया क़दीमा व जदीदा व क़दीरिया रज़्ज़ाक़िया, व अल्विया मिनामिया इजाज़त अज़कार व अशग़ाल व औराद की इजाज़त दी,
मज़कूरा बाला सनद के अलावा हुज़ूर ख़ातिमुल अकाबिर रहमतुल्लाह अलैह ने आप को क़ुरआने मजीद, सेहा सित्ता, व मुसन्निफ़ात हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी व हसने हसीन, दलाईलुल खैरात, व असमाए अरबाईना, व हिज़्बुल बहिर, व हदीसे मुसलसल व मुसाफ़हात व मुशाबिका और तमाम उलूम की सनादें जो आप को अपने असातिज़ा से पहुंची थीं, अता फ़रमाई जिन में से अक्सर इसनाद छप चुकी हैं,
आप के फ़ज़ाइलो कमालात :- नूरुल आरफीन सिराजुस्सालिकीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह आप सिलसिलए आलिया “क़दीरिया रज़विया के अड़तीसवें 38, इमाम व शैख़े तरीकत हैं” आप अपने वक़्त के नामी गिरामी शैख़े तरीकत हैं, आप के फ़ज़ाइल व मनाक़िब पर इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने एक तवील (लम्बा) नज़्म तहरीर फ़रमाई है, जिस का पहला मिसरा इस तरह है जो हदाइके बख़्शिश हिस्सा अव्वल में मौजूद है,
बर तर कयास से है मक़ामे अबुल हुसैन
सिदरा से पूछो रिफ़ाअते बामे अबुल हुसैन
आप का हल्काए बैअत व इरशाद बहुत वसी बड़ा था, आप इस्लाहे बातिन से पहले इस्लाहे ज़ाहिर का ख़ुसूसन अक़ीदा की सेहत का ख़ास ख्याल फरमाते थे, और आप का वही मसलको मशरब था जिस पर हज़रत ताजुल फुहूल और इमामे अहले सुन्नत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह थे, शिईयत, राफ्ज़ीयत तफ्ज़ीलियत और नीचरियत का तहरीरी रद्द फ़रमाया और उनके इंसिदाद (इंतिज़ाम, रोक थम) में कोशिश बलीग़ फ़रमाई, अभी आप की उमर शरीफ सात से ज़्यादा नहीं थीं के ख़ातिमुल अकाबिर हुज़ूर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के हुक्म के मुताबिक सोमो ख़ल्वत और अशग़ाल व औराद में मसरूफ (बीजी) हुए यहाँ तक के 18, अठ्ठारा साल तक ज़िक्रे जलाली व जमाली व ख़ल्वत में रहे, और सुलूक को बा क़ाइदा हासिल फरमा कर फनाए मअनवी से बकाए हक़ीक़ी के मक़ाम पर फ़ाइज़ हुए तसल्लुब फिद्दीन के आप और आप के खानदान ने जो नुकूश छोड़े वो रहती दुनिया तक के लिए आप के तसानीफ़ से ज़ाहिर व बाहिर हैं तसव्वुफ़ के ज़रिए हिंदुस्तान में इस्लामी मुआशिरा व दीनी हमीयत की तरवीजो इशाअत आप तमाम उमर फरमाते रहे इन में बेशुमार खूबियों के साथ अख़लाक़ो मुरव्वत, जूदू सखावत के पैकर थे,
आप शुरू से ही शरीअत के पाबंद थे :- आप को 11, साल की उमर में आप के जद्दे अकरम व शैख़े तरीकत ख़ातिमुल अकाबिर हुज़ूर सय्यद शाह आले रसूल रहमतुल्लाह अलैह ने मुजहिदात व सुलूक व रियाज़ात तरीक़ए मुजहिदात और खास ख़ास दुआएं खानदानी मिस्ल हुरूफ़ हिजा, हिज़्बुल बहिर, चहिल इस्म, हिर्ज़े यमानी, हैदरी बांत अज़मत फरतीया बर्हिति की दावत बा क़ाइदा आप से अदा कराई आप के जद्दे अमजद ने आप के औक़ात को बचपन ही में ऐसा मज़बूत कर दिया था, के आखिर वक़्त तक रियाज़त व रोज़े सोम व ख़ल्वत शब बेदारी तहज्जुद, तिलावत व ज़िक्र आदते करीमा हो गए थे, और आप की रियाज़त को देख कर आप की दादी जान घबरा जाती और रोकना चाहतीं तो आप के जद्दे अमजद इरशाद फरमाते के रहने दो इन को ऐशो आराम से किया काम ये कुछ और ही हैं और इनको कुछ और ही होना है ये अक्ताबे सबआ यानि “सात क़ुतुब में से एक क़ुतुब हैं”
जिनकी बशारत हज़रत सय्यद शाह शरफुद्दीन बू अलीशा कलंदर पानीपती रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत शैख़ बदीयुद्दीन क़ुत्बे मदार मकानपर रहमतुल्लाह अलैह ने दी है और यही इस सिलसिले के आखिर हैं,
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आप ने रूहानी फ़ैज़ो बरकात किस किस से पाया :- नूरुल आरफीन सिराजुस्सालिकीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने रूहानी फ़ैज़ो बरकात मन्दर्जा ज़ैल अम्बियाए किराम व औलियाए इज़ाम से हासिल किया:
(1) हुज़ूर रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारते मुक़द्दसा व मुसाफा व बैअत व अख़्ज़ फैज़ किया और आग़ोशे रहमत में बैठे (2) हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम (3) हज़रत सय्यदना ईसा अलैहिस्सलाम (4) हज़रत सय्यदना सुलेमान अलैहिस्सलाम की ज़्यारत फ़रमाई और इन हज़रात अम्बियाए किराम से भी फ़ैज़ो बरकात हासिल किया, (5) हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम व सय्यदुश शुहदा हज़रत सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़्यारत की और फैज़ हासिल किया, (6) हज़रत गौसुस सक़लैन क़ुत्बुल कौनैन सय्यदना शैख़ अबू मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु, (7) ख्वाजाए ख़्वाजगान शहंशाहे हिंदुस्तान हज़रत शैख़ ख्वाज़ा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती संजरी अजमेरी रदियल्लाहु अन्हु, (8) हज़रत ज़ुन्नुन मिसरी रहमतुल्लाह अलैह, (9) हज़रत ख्वाज़ा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह जैसे बड़े बड़े औलियाए किराम की ज़्यारत भी फ़रमाई और फ़ैज़ो बरकात भी हासिल किया (10) नीज़ अपने अकाबिर अक़ताब मारहरा से हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील रदियल्लाहु अन्हु और ख़ातिमुल अकाबिर की ज़्यारतों व ख़ास तवज्जुह से फ़ैज़याब हुए,
आप के अख़लाक़े हसना :- शरीअत व तरीक़त की इस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ होने के बावजूद आप अहले हाजात व हाज़िर बाश लोगों से हमेशा खन्दा रोइ (हसं मुख) और निहायत नरमी से कलाम फरमाते, कभी कुछ एतिराज़ नहीं करते, आप आला दरजे के खुश आदत और खुश अख़लाक़ थे छोटे बच्चों को मुहब्बत व शफ़क़त से पास बुलाते, सर पर हाथ फेरते कुछ चीज़ें अता करते, और उनकी बातें सुनते जवानो पर इनायत और बूढ़ों की इज़्ज़त करते और यही हिदायत अपने खादिमो को भी करते,
आप का सब्र व साबित क़दमी:
सब्र व साबित क़दमी में भी आप का मक़ाम बहुत बुलंद है आप के साहबज़ादे जिन का नाम सय्यद मुहीयुद्दीन जिलानी था बचपन ही में इन्तिकाल फ़रमागए मगर आखिर उमर तक कभी शिकवा व अफ़सोस न फ़रमाया यूही एक बार आप को बुखार आ गया, इस हालत में भी निहायत फरहत व सुरूर से इरशाद फरमाते के तमाम अज़कार व अशग़ाल सुलूक का मक़सद क़ल्ब को हरारत पहुँचाना है और ये बिला मेहनत बुखार से हासिल है तो फिर इस को बुरा क्यों कहें और इस नेमत का शुक्र क्यों न अदा करे? शिद्दते मर्ज़ में अफ़सोस सिर्फ मस्जिद के तर्क का फरमाते मस्जिद के अलावा कभी मर्ज़ की शिकायत न करते,
आप की जूदू सखावत:
अख़लाक़ो सिबात के साथ जूदू सखावत तो आप का मूर्सि मश्ग़ला था, के कभी कोई साइल आप के दर से महरूम न जाता और अपनी ज़रुरत व सवाल से ज़्यादा पाता, बाज़ को तहाईफ़ व हिदायात के तौर पर चीज़ें अता करते बहुत से गरीब खादिमो की परवरिश को ज़रूरी तसव्वुर करते और उनके हाल का इज़हार भी पसंद नहीं करते, उनकी ज़रूरत की चीज़ें ख़राब व खस्ता पसंद फरमा लेते और नइ व उम्दा चीज़ें उनको अता फरमाते और ये इरशाद फरमाते के इस नमूने की हम को मुद्दत से तलाश थी, ये हम को बहुत पसंद है यहाँ तक के आप किसी का लोटा, किसी का पानदान और किसी का संदूक वगैरा ले लेते और फ़ौरन अपना उम्दा सामान अता फरमा देते फिर उसके बाद वो सामान भी उन लोगों को देते हुए कहते के हमारे पास और आ गए हैं, अब इस की ज़रूरत नहीं और शायद ही हफ्ता भर लिहाफ तोशक बिछोना, चादर, कपड़े आप के पास रह जाते बल्के उसे भी बख्श देते, सुबह से शाम तक अहले हाजात का सिलसिला बंधा रहता और हर वक़्त दरियाए करम जारी रहता, आप इरशाद फरमाते के बख़ील कंजूस की सुहबत से परहेज़ करना चाहिए,
एहतिराम फुकरा व सादात:
और ये भी आप की आदते करीमा थी के हर सालिक परहेज़गार फ़क़ीर चाहे किसी भी खानदान से हो निहायत मुहब्बत से मिलते और फुकरा क़ादिरिया से खुसूसियत बरती जाती नीज़ साहबज़ादगाने कालपी शरीफ व बांसा शरीफ और हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की औलाद की निहायत ताज़िमों तौक़ीर करते सज्जादा नशीन व खुद्दामे अस्ताना हज़रात अकाबिर की ख़ातिरो मदारत फरमाते, आप बद मजज़ूबों से दूर रहने की हिदायत फरमाते और आप खादिमो को भी हुक्म था हर दुर्वेश साहिबे सुलूक पाबंदे शरआ बिला लिहाज़ क़दीरियत व चिश्तियत बिला गरज़ दुनियावी सिर्फ ज़रूरत की मुताबिक मिलो,
सिवाए दीनी दुआ, दुनियावी मतलब न चाहो, हर फ़क़ीर की ताज़ीम व खिदमत करो और उनके पोशीदा हालत मत ढूंढो, कम से कम से ज़रूरी है की बिला तहक़ीक़ व तफ्तीश हाल खाना जो हाज़िर हो ज़रूर पेश करो की बेहतरीन खैरात भूके को खाना खिलाना है और हमेशा नेक गुमान रखो,
जिस फ़क़ीर का ज़ाहिर ख़िलाफ़े शरआ हो उससे मतलब न रखो, लेकिन लेकिन बुरा कहना व ग़ीबत व ऐब तलाश करना बेहतर नहीं, हज़रात सादाते किराम की खातिर तवाज़ो फरमाते और गैर सादात पर उनको हर हैसियत से मुक़द्दम फरमाते और इरशाद फरमाते की सादाते किराम की ताज़ीम इस निस्बत से की ज़ुर्रियत फातिमा ज़ेहरा ताहिरा हुज़ूर सरवरे काइनात रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं करना चाहिए, अगर हज़रात सादाते किराम किसी गैर सय्यद से मुरीद व शागिर्दी भी करलें जब भी शैख़ व उस्ताद पर उन की ताज़ीम सियादत ज़रूरी है, सिवाए कसब तरीका और कोई खिदमत उन से न ली जाए इस लिए की ये मखदूम ज़ादाए आलमीयान हैं और तमाम जहाँ की हकीकी और सच्चे पीर ज़ादे हैं, जो दौलते दीनो दुनिया इल्मो फ़क़्र आलम में हैं सब उनके घर की दी हुई हैं और इन्ही की ज़रिए से हैं,
अल हुब्बु लिल्लाह वल बुग़्ज़ू लिल्लाह :- किसी से दोस्ती और दुश्मनी में भी आप अपने अस्लाफ के नक़्शे क़दम के सख्त पाबंद थे, और आप की आदते करीमा थी के अल्लाह ही के लिए दोस्ती और अल्लाह ही के लिए दुश्मनी किसी से करते अगर मुनाफिक़ीन व बदमज़हब फासिके मोलिन दरबार में हाज़िर होते और अपने मारूज़ात में कामयाब भी हो जाते लेकिन आप के अमल से ज़ाहिर होता के इससे आप बे तवज्जुह ही फरमा रहे हैं, और वो क़ल्बी लगाओ नहीं जो एक सहीहुल अक़ीदा सुनी के साथ होता बल्के जल्द से जल्द उस को रुखसत करने का हुक्म फरमाते और खादिमो से फरमाते के मुआमलात दुनियावी में हम नहीं रोकते, लेकिन किसी बदमज़हब से दोस्ती बुरी बात और हराम हैं उन लोगों की मजालिस मज़हबी और ख़ास सुहबतों में हर गिज़ शिरकत न करो के ये कम से कम मुदाहनत (सुस्ती, जो दिल में हो उस के खिलाफ ज़ाहिर करना) और सुस्ती एतिक़ाद हैं,
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हुज़ूर गौसे आज़म से आप का क़ल्बी दिली लगाओ :- हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से मुहब्बत व क़ल्बी लगाओ का ये आलम था के आप अक्सर इरशाद फरमाते हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का खानदाने मारहरा मुक़द्दसा हम बड़े गय्यूर (गैरत वाला बा हया) हैं, उनका मुतावस्सिल (वसीला ढूंढने वाला) जब भी कहीं जाएगा परेशान नहीं होगा और इस बात की तस्दीक़ हज़रत शैख़ अकबर मुहीयुद्दीन इबने अरबी रदियल्लाहु अन्हु का क़ौल इरशाद फरमाते हैं के “एक औरत दो शौहरों की बीवी नहीं हो सकती और न ही एक तालिब दो शेखों का मुरीद”
राहे सुलूक में अव्वल व आखिर मरहला एतिक़ाद शैख़े तरीक़ा का है, जब तक ये नहीं कुछ नहीं और जो एक दरवाज़े का मरदूद है इस की राह भी मस्दूद है (रुका हुआ) हमारे घर में कौन सी नेमत नहीं जो किसी दूसरे दरवाज़े पर जाएं और साइल हों,
कुछ हमारे मुन्तसिबान ने दूसरी बैअत की जिसकी वजह से तरह तरह की तकलीफ में शामिल हो गए और कहने लगे के फुलां ने बद दुआ की है? हाशा हम को इस का ख्याल भी नहीं आया किया कीजिए इस खानदाने बरकातिया के कुछ मुताअखिरीन भी क़दम बा क़दम हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु इस लिए वो गवारा नहीं फरमाते के उनके मुन्तसिब हक़ीर व ज़लील हों,
इस लिए जो इस खानदान की तौहीन करेगा वो ज़लील होगा इस लिए के “हम नौ 9, पुश्तों से क़ादरी” हैं, और इसी निस्बत पर फख्र करते हैं हम को दावा है के कम से कम इस खानदान के मुन्तसिब में दो बातें ज़रूर होंगीं अगरचे तरीके से बिलकुल न वाक़िफ़ हो और अमल से खाली हो अव्वल ये के किसी दूसरे खानदान के फ़क़ीर के हाथ से सदमा नहीं उठाएगा, और दूसरा ये के उमर भर किसी हालत में रहा हो इंशा अल्लाह तआला वक़्ते आखिर तौबा व निदामत पर मरेगा के सरकार बहुत आली हैं,
आप के रोज़ो शब के मामूलात :- सिराजुस्सालिकीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की आदते करीमा थी की तहारत फरमाकर नमाज़े तहज्जुद अदा फरमाते, उस के बाद औराद व अशग़ाल जो खानदान से हासिल थे मशगूल हो जाते, नमाज़े सुबह के लिए ताज़ा वुज़ू करते सुन्नते अदा करते बा हालते सेहत मस्जिद तशरीफ़ ले जाते, अगर कोई भी शख्स जो क़ुरआने करीम बा क़ाइदा पढ़ता और कम कम से कम मसाइल तहारत व नमाज़ और जमाअत से वाक़िफ़ होता और उस को हाज़िर पाते तो इक़्तिदा फरमाते वरना खुद नमाज़ पढ़ते,
नमाज़ के बाद शुरू में ज़िक्र बा जिहर और अहदे आखिर में बा खफा फरमाते, फिर दुआ व वज़ाइफ़ मामूला पढ़ कर नमाज़े अशराक़ व नमाज़े चाशत से फारिग हो कर कुछ हल्का नाश्ता फरमाते, फिर खादिम हाज़िर होते और ज़रूरी मअरूज़ात पेश करते नुकूश व दुआएं अता करते कुछ खुद्दाम को उस दिन के लिए हिदायात ज़रूरिया मिलतीं, और किसी सुलूक, फ़िक़ह व तारिख की किताब का मुतालआ भी फरमाते और हाज़रीन से फवाइद ज़रूरिया भी बयान फरमाते जाते अगर किसी जगह तशरीफ़ ले जाना या दावत मंज़ूर फ़रमाली होती तो ज़वाल के क़रीब तशरीफ़ ले जाकर बा वुज़ू खाना तनावुल फरमाते अक्सर हाज़िरीन शरीक होते, किसी को कोई चीज़ अता करते बाज़ मरीज़ों को खाने में कुछ तनावुल फरमा कर अता करते फारिग होकर पान नोश फरमाते और फ़ौरन पान थूक कर गरारा और कुल्ली से मुँह साफ़ फरमाते अब इस वक़्त जमाअत आम रुखसत हो जाती और ख़ास लोग मौजूद रहते जो अपने अपने मअरूज़ात पेश करते सब के जवाब अता करते,
कभी कोई किताब मुलाहिज़ा फरमाते और कभी हस्बे रविश “हुज़ूर सय्यदुल आरफीन सय्यदना शाह हमज़ा ऐनी रहमतुल्लाह अलैह” की किताब सिरहाने रख कर आराम करते सिर्फ दो एक खुद्दाम मख़सूस हाज़िर रहते गर्मी के मौसम में पंखा झलते वरना बा अहिस्तीगी पाऊँ एक घंटा जाड़े में और क़द्रे गर्मी में ज़्यादा आराम फरमाकर उठते और तहारत फरमाकर नमाज़े ज़ोहर बा जमाअत अदा फरमाते, नमाज़ के बाद क़ुरआने करीम की एक पूरी मंज़िल पढ़ते फिर दलाईलुल खैरात, हसने हसीन, और कुछ दुआएं पढ़ने के बाद दरबार आम हो जाता और खुद्दाम हाज़िर हो कर मअरूज़ात पेश करते, डाक के खुतूत के जवाबात भी पेश्तर इसी वक़्त में अता फरमाते और हाजत रवाई मखलूके खुदा में बाकमाल फरहत मसरूफ हो जाते और इल्मी व उम्दा नसीहत का आगाज़ फरमाते यहाँ तक के अस्र का वक़्त हो जाता नमाज़े अस्र के लिए वुज़ू फरमाकर नमाज़ अदा फरमाते और औरादे मख़सूसा पढ़ते, ख़वास हाज़िर होते और फिर वही दरियाए रहमत व करम की तुग़यानी होती,
नमाज़े मगरिब पढ़ते फिर बहुत ही कम खाना तनावुल फरमाने के बाद नमाज़े ईशा अदा फरमाते बादे नमाज़ अहज़ुल खवास कुछ वारदात अर्ज़ करते कुछ हिदायत पाते और रुखसत हो जाते यहाँ तक के मजमा बर्खसात हो जाता और खुद्दामे खास से ज़िक्रे हुज़ूर ख़ातिमुल अकाबिर रहमतुल्लाह अलैह सुनते हुए आराम फरमाते,
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आप की मशहूर लिखी हुई चंद किताबें :-
- अल असलुल मुसफ्फा फी अक़ाइदे अरबाबे सुन्नतिल मुस्तफा, उर्दू में अक़ाइदे अहले सुन्नत के बयान में,
- इश्तिहारे नूरी, ये नदवा के मकाइद पर है,
- तहक़ीकुत तरावीह, गैर मुक़ल्लिदीन वहबिया के रद्द और तादाद रकआत तरावीह पर है,
- दलीलुल यक़ीन मिन कलिमातुल आरफीन, रफ़्ज़ियों के रद्द में है,
- अक़ीदए अहले सुन्नत, उर्दू ये जंग्गे जुमल सिफ़्फ़ीन और नाहिरवान की तफ्सीलात व मौक़िफ़ अहले सुन्नत की वज़ाहत,
- अल जफर, ये इल्मे जफ़र में है,
- लताइफे तरीकत कशफ़ुल क़ुलूब, ये सुलूक में है,
- सिराजुल अवारिफ फी अल वसाया वल मआरिफ़,
- अंनुजूम,
- सलातुल ग़ौसिया,
- सलातुल मुईनिया,
- मजमूआ, इस में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम व हज़रत अली व हज़रत हसनैन करीमैन व गौसे आज़म रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन के 99, असमाए गिरामी का ज़िक्र है,
- सलातुल नक्शबंदिया,
- सलातुल सबिरिया, सलातुल अबुल ऊलाईया, सलातुल मदरिया, इस में भी अक्सर असमाए गिरामी 99, सेगे के साथ दर्ज हैं,
- सलातुल अक़रबा, इस में बेश्तर खानदानी बुज़ुर्गों के असमाए गिरामी का ज़िक्र है,
आप का अदबी व शेअरी ज़ोक :- आप इन तमाम हमा गीर ख़ुसुसियात के साथ साथ बड़ा पाकीज़ा अदबी ज़ोक भी रखते थे, चुनाचे आप के नज़्म करदा कलाम से इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा होता है के आप उर्दू फ़ारसी अरबी के क़ादिरूल कलाम शायर थे, आप कभी नूर और कभी नूरी तखल्लुस फरमाते, आप के कलाम से एक शेर मुलाहिज़ा करें,
दूर आँखों से हैं और दिल में है जलवा उनका
सारी दुनिया से निराला है ये परदा उनका
आप की कशफो करामात
दूर दराज़ मक़ाम पर एक आने वाहिद में तशरीफ़ ले गए :- हज़रत साहबज़ादा सय्यद हुसैन हैदर साहब, व साहबज़ादा हकीम सय्यद आले हुसैन साहब जनाब डाक्टर मुहम्मद नासिर खान मारहरवी से खुद सुनी हुई रिवायत बयान करते हैं के डाक्टर साहब ज़िला एटा के कुछ गाँव के डाक्टर थे, एक अनजान शख्स हाज़िर हुआ और बयान किया के क़रीब ही एक गाँव में एक मरीज़ है आप चल कर देखें और दवा भी दे दें? इस शख्स ने माक़ूल फीस भी पेश की डाक्टर साहब इस के साथ रवाना हो गए, आबादी से चंद कोस चल कर दरिया के किनारे एक वहशतनाक जंगल में पहुंचे तो इस शख्स ने वहां रुक कर आवाज़ दी इस आवाज़ पर फ़ौरन दो शख्स लाठियां लिए हुए आ गए इन तीनो मदमाशो ने इरादा किया के डाक्टर साहब का सामान और नक़द रूपया छीन लें और क़त्ल कर के दरिया में डाल दें इन लोगों की भयानक शक्ल तन्हाई जंगल, और इरादा क़त्ल से डाक्टर साहब को सख्त खौफ पैदा हुआ, इस मुश्किल में डाक्टर साहब ने हज़रत को याद फ़रमाया और इस्तिगासा किया बगैर हज़रत की इमदाद के उनके जंगल से छूटना मुश्किल है लिल्लाह मदद फरमाइए और अपने खादिम को इस अचानक की बला से निजात दिलाईए? इस के साथ ही डाक्टर साहब ने देखा के दूसरी तरफ से हज़रत तशरीफ़ फरमा हैं और इरशाद फरमा रहे हैं के घबराओ नहीं हम आ गए हैं हज़रत के इशारे से वो तीनो भाग गए उस के बाद में परेशान हुआ के अँधेरी रात में कहाँ जाऊं? हज़रत ने इरशाद फ़रमाया हमारे साथ चले आओ रवाना हुए और थोड़ी ही देर में अपने गाऊं में पहुंच गए आबादी में पहुंच कर अचानक हज़रत हम से अलग हो गए और मुझ से इरशाद फ़रमाया तुम आबादी में चले आए हो में घर पहुंच कर सुबह तक शदीद बुखार और बेहोशी में मुब्तला रहा, दूसरे दिन हस्बुल हुक्म खिदमत में हाज़िर हुआ, हज़रत ने मुस्कुरा कर फ़रमाया अल हम्दुलिल्लाह अंजाम बखैर हुआ घबराओ नहीं ये बात क़ाबिले तज़किरा नहीं,
आइंदा बातों का इल्म :- जनाब मुंशी अब्दुल क़ादिर और मुंशी अब्दुल अज़ीज़ साहब बदायूनी पर क़त्ल का एक मुक़दमा चला और पुलिस ने मोके की शहादत भी पेश कर दी, उन्होंने हज़रत की खिदमत में आ कर इस्तिगासा पेश किया हज़रत ने फ़रमाया मुत्मइन रहो कुछ न होगा तमाम कागज़ात पुलिस दाखिले दफ्तर हो जाएंगें और तुम से जवाब न लिया जाएगा, चुनाचे बावजूद अफसर की रिपोर्ट के कुछ न हो सका और बिला जवाब रिहा हो गए, इसी तरह मौलवी हाजी अता मुहम्मद व मौलवी मेहबूब अहमद सकिनाने बदायूं पर मुक़दमा चला और बचने की कोई उम्मीद न रही, हज़रत ने हुक्म फ़रमाया के कुछ नहीं होगा यहाँ तक के तमाम मुख़ालिफ़ीन आजिज़ हो गए और कुछ न कर सके,
बारगाहे ख्वाजा गरीब नवाज़ में अर्ज़ियाँ :- जनाब मौलाना गुलाम शब्बर बदायूनी “तज़्किराए नूरी” में लिखते हैं के एक मर्तबा हज़रत अपने खुद्दाम की जमाअत के साथ सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन अजमेरी रदियल्लाहु अन्हु के उर्से मुबारक में हाज़िर हुए, और रजाबुल मुरज्जब शरीफ की पांचवी तारिख को हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ रदियल्लाहु अन्हु के दरबार से फ़क़ीर को हुक्म हुआ है के तुम खुद्दाम में से जिस किसी को कुछ ख़ास अर्ज़ करना हो तो दरख्वास्त लिख कर हुज़ूर में पेश करो वो अर्ज़ियाँ हमारे ज़रिए से हुज़ूर में पेश होंगी और तुम को हुक्म मिलेगा, खादिम ने अर्ज़ किया के वो अर्ज़ियाँ किस तरीके से दरबार तक पेश होंगी तो इरशाद फ़रमाया के आस्ताने के खुद्दाम कुछ जिन्नात भी हैं जो इस काम पर मामूर हैं के तुम्हारी अर्ज़ियाँ लेकर पेश करदें,
ये मालूम कर के खादिम को ख़याल हुआ के हुज़ूर से वो अर्ज़ियाँ लेकर इस आस्ताने के खादिम की ज़्यारत और कुछ ख़ास अर्ज़ हाल करूंगा? यहाँ तक के अर्ज़ियाँ मुरत्तब हुईं सब ने जमा करके हज़रत की खिदमत में हाज़िर कीं, हज़रत ने वो तमाम खुतूत हाफिज़ नज़रुलाह खान साहब बदायूनी को देदीं, और फ़रमाया के आस्तानए आलिया के पच्छिम दख्खिन वाले कोने पर चिल्ले की तरफ जो एक सर बस्ता दुर्रा है वहां जाओ और जो शख्स तुम से अर्ज़ियाँ तलब करे उसे देदो?
ये खादिम (मौलाना गुलाम शब्बर बदायूनी) हुक्म सुन कर हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब के पीछे लग गया और हर तरफ होशियारी से नज़र डालता हुआ ये ख्याल लिए हुए चल रहा था के शायद मौका ज़्यारत मुझे भी मिल जाएगा जब मज़कूरा दुर्रा में दाखिल हुए तो हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब और मेरे दरमियान चंद सेकंड का फासला हो गया बहुत जल्द मेने आगे बढ़ कर गौर किया के मज़कूरा जगह यही है अब ज़रूर कोई तशरीफ़ ला कर मिलेगें और अर्ज़ियाँ तलब करेंगें लेकिन देखता किया हूँ हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब खाली हाथ हैं मेने उन से मालूम किया के अर्ज़ियाँ कहाँ हैं? उन्होंने मज़ाक़ करते हो अभी तुमने मुझ से ये कह कर के हुज़ूर ने अर्ज़ियाँ तलब फ़रमाई हैं,
सब अर्ज़ियाँ मुझ से लीं अब मुझ से पूछते हो? इस जवाब पर में हैरान सा हो गया यहाँ तक के हज़रत की खिदमत में वापस आ कर हाफ़िज़ साहब ने अर्ज़े हाल किया और में खड़ा रहा, इस के बाद हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के वही ख़ादिमें आस्ताना थे जो इस सूरत में तुम से अर्ज़ियाँ ले गए फिर मुझ से फ़रमाया के तू भी गया था? मेने अर्ज़े हाल बयान कर दिया, इरशाद फ़रमाया ये तुम्हारे सबब हुआ है बताऊँ तुम्हारा किया इरादा था जवाब देने पर हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के ये भी हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ रदियल्लाहु अन्हु का खास करम था वरना मुझ जैसे हज़ारों फ़क़ीर इस दरबार आली में हाज़िर होते हैं, और अपना अपना सालाना ले जाते हैं मगर ये खास निगाहे करम बाज़ खुद्दाम ख़ास पर होती हैं के वो अपने मुतवस्सिलों की अर्ज़ियाँ हुज़ूर में पेश करें तीसरे दिन अर्ज़ियाँ हम सब को वापस मिली और सब पर एहकामात दर्ज थे नवादिरात (अजीबो गरीब चीज़ें) से थे,
आप की शादी व निकाह :- आप की पहली शादी अपने चचा सय्यद शाह ज़हूर हुसैन की साहबज़ादी रुक़य्या बेगम से हुई, दूसरी शादी फूफी की लड़की अल्ताफ फातिमा से हुई मगर दोनों से कोई औलाद ज़िंदा नहीं रही,
आप के खुलफाए किराम :- अगरचे हज़रत को कोई औलाद नहीं थी मगर आप की रूहानी औलादों की तादाद बेशुमार हैं, जो आप के दामने करम से वाबस्ता होकर आलमे इस्लाम की अज़ीम खिदमात अंजाम दी हैं, जिन से आप का सिलसिला क़यामत तक ज़िंदा व ताबिन्दा रहेगा, चंद मशहूर खुल्फ़ए किराम के असमाए गिरामी दर्ज किए जाते हैं:
- मुजद्दिदे आज़म अल्लामा अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी,
- हुज़ूर सय्यदी मुर्शिदी ताजदारे अहले सुन्नत क़ुत्बे आलम सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा क़ादरी बरेलवी,
- हज़रत शाह मेहदी हसन,
- हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हैदर,
- हज़रत हाजी सय्यद शाह हसन,
- हज़रत सय्यद इबने हसन,
- हज़रत हाजी सय्यद शाह इस्माईल हसन,
- हज़रत सय्यद शाह इर्तिज़ा हुसैन उर्फ़ पीर मियां,
- हज़रत सय्यद मुहम्मद अय्यूब हसन,
- हज़रत नवाब मुईनुद्दीन खान,
- हज़रत सय्यद इस्हाक़ हसन,
- हज़रत सय्यद इक़बाल हसन,
- हज़रत सय्यद फ़ज़ल हुसैन,
- हज़रत हकीम सय्यद आले हसन,
- हज़रत मौलाना हकीम मुहम्मद अब्दुल क़य्यूम,
- हज़रत मौलाना क़ाज़ी मुशीर इस्लाम अब्बासी,
- हज़रत हकीम इनायतुल्लाह बरेलवी,
- हज़रत मौलाना मुश्ताक़ अहमद सहारनपुर,
- हज़रत मौलाना अब्दुर रहमान देहलवी,
- हज़रत मौलाना मुफ़्ती अज़ीज़ुल हसन बरेलवी,
- हज़रत मौलाना मुफ़्ती बदरुल हसन,
- हज़रत मौलाना गुलाम शब्बर बदायूनी,
- हज़रत मीर शाह अली गढ़ी,
- हज़रत अमीनुद्दीन खान मेरठी,
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आप के मलफ़ूज़ात शरीफ :- हुसूले “वरा” (तक़वा परहेज़गारी) के मुतअल्लिक़ फरमाते हैं के वरा (तक़वा परहेज़गारी) उस वक़्त तक कामिल नहीं हो सकता जब तक अपने लिए इन दस सिफ़ाते जलील की पाबन्दी ज़रूरी क़रार न दे, (1) ज़बान को काबू में रखना (2) ग़ीबत से परहेज़ करना (3) किसी भी आदमी को अपने से हक़ीर ज़लील न जाने (4) महारिम (जिनका देखना हराम हो) उन पर नज़र न डाले (5) जब बात कहे तो सच और इंसाफ की कहे (6) इनआमात व एहसानाते खुदा का ऐतिराफ़ करता रहे (7) मालो मता राहे खुदा में खर्च करता रहे (8) अपनी ज़ात के लिए भलाई का चाहिने वाला न रहे (9) पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबन्दी करे (10) सुन्नते नबवी और इजमाए मुस्लिमीन का अदबो एहतिराम करे,
बख़ील कंजूस की सुहबत से दूर रहो,
बदमज़हबों की सुहबत से दूर रहो के इस की वजह से एतिक़ाद में फ़र्क़ व सुस्ती आती है,
चालीस दिन लगातार गोश्त खाने से क़सावत (संग दिल, बेरहमी) पैदा होती है,
तरीक़त शरीअत से अलग नहीं है बल्के इंतिहाई कमाल शरीअत को तरीक़त कहते हैं,
समआ मुरव्वजाए हाल सरासर लगव व लहू है ऐसे मजमे में अहले समआ को जाना भी दुरुस्त नहीं के समआ के लिए बहुत से शराइत हैं,
आप का विसाले मुबारक :- 11, रजाबुल मुरज्जब 1334, हिजरी मुताबिक 31, अगस्त 1906, ईस्वी में विसाल फ़रमाया,
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”
आप का मज़ार शरीफ :- ज़िला एटा यूपी इंडिया में दरगाहे बरकातिया मारहरा मुताहिर के बरामदे दख्खिन में आप का मज़ार मुक़द्दस ज़्यारत गाहे खलाइक़ है,
मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए नूरी, तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, बरकाती कोइज़, तज़किराए मशाइखे मारहरा,
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