(1)
सिलसिलए आलिया साबिरिया चिश्तिया के मशाइखे इज़ाम की तफ्सीली जानकारी :- सिलसिलए चिश्तिया के सरबराह इमामुल असफिया व आरफीन, मुजतहिद व फ़क़ीह हज़रत सय्यदना हसन बसरी रदियल्लाहु अन्हु की ज़ाते मुबारक है, आप की इस फ़ज़ीलत व बुज़ुरगी का सबब इमामुल मुत्तक़ीन अमीरुल मोमिनीन बाबे शहरे इल्म हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम से ज़ाहिरी व बातिनी उलूम का हासिल करना है, हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु ने आप को वुज़ू करना सिखाया या नीज़ बसरा की मस्जिद में तमाम वाइज़ीन किराम को वाइज़ व तलक़ीन से रोक दिया मगर आप को इजाज़त अता फ़रमाई, आप ने जिस को भी हिदायत फ़रमाई वो मंज़िल पर पंहुचा, आप की मजलिस में गनी आता तो देनिया से बेज़ार हो जाता, काफिर आता तो मुस्लमान हो जाता, ख़ौफ़े इलाही उरूज पर था हमेशा अर्ज़ करते, या अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त “हसन” गुनहगार है, रहम फरमा शर्म सार ना कर, आप फरमाते हैं के “मारफअत” ये है के खुसुमत (लड़ाई झगड़ा दुश्मनी) का एक ज़र्रा भी दिल में न हो आप ने 111, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(2)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हज़रत शैख़ अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु हुए: आप साहिबे समआ थे, राहे खुदा में सब कुछ लुटा देना आप का वस्फ़ था, आप ने 177, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(3)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हज़रत ख़्वाजा फ़ुज़ेल बिन अयाज़ रदियल्लाहु अन्हु हुए: लक़ब “सिराजुल वासिलीन” है हज़रत बू अली राज़ी तीस साल आप की खिदमत में रहे और तरबियत हासिल की फ़क़्रो फ़ाक़ा व राज़ी बा हक होना उसूल दुरवेशी था, आप ने 187, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और जन्नतुल मुअल्ला में मदफ़ून हुए वहीँ आप का मदीना शरीफ में मज़ार शरीफ है,
(4)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हज़रत ख़्वाजा सुलतान इब्राहीम बिन अधहम बल्खी रदियल्लाहु अन्हु हुए: आप ने बादशाहत को खुदा हाफ़िज़ कहा यानी छोड़ दिया, मुमलिकत फ़क़ीरी के ग़ौसुल आज़म हुए जिस जगह क़याम फरमाते वो जगह मुश्कबार हो जाती ईसार व शुकरे हक़ तआला बराबर अदा करना आप की शाने फ़क़ीरी थी, विसाल 22, बाईस जमादिउल अव्वल दो सौ अस्सी 280, हिजरी में हुआ, और बाज़ हज़रात का कहना है के आप की वफ़ात 161, हिजरी में हुई, और एक क़ौल के मुताबिक आप का विसाल माहे शव्वाल की एक तारीख 187, हिजरी को अबू अब्दुल्लाह तीसरे खलीफा के अहदे हुकूमत में हुआ,
(5)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हज़रत ख़्वाजा हुज़ैफ़ा मरअशी रदियल्लाहु अन्हु हुए: अपने वक़्त के फ़क़ीह व आलिम व आमिल थे, और फ़रमाया के क़ुव्वते रूह दूर्वेशां ज़िक्र ला लाइलाहा इलल्लाह है, आप अहले ज़र से दूर रहते और फ़क़ीरों की मुहब्बत में वक़्त गुज़ारते, और फरमाते हैं जिस पीर के पास दौलत देखो उससे किनारह कश हो जाओ, आप ने सरकारे दो आलम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बशारत पाई के जो भी तेरे वसीले से आएगा बहिश्त (जन्नत) में जाएगा, आप ने 252, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(6)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हुए हज़रत ख़्वाजा हबीरा बसरी रदियल्लाहु अन्हु: आप ख़ल्वत नशीन थे, मालदारों से बहुत परहेज़ करते थे एक बार अज़ राहे अक़ीदत में एक शख्स ने एक हज़ार दिरहम पेश किए आप बेहोश हो गए, होश आने पर आप ने फ़रमाया के अहले मुहब्बत के सामने गैर मतलूब चीज़ लाइ जाए तो यही हाल होगा, आप ने 287, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(7)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हुए हज़रत ख़्वाजा मुम्शाद अलू दिनोरि रदियल्लाहु अन्हु हैं: और आपने “”हज़रत शैख़ मारूफ करखि रदियल्लाहु अन्हु”” “और हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह ख़फ़ीफ़ रदियल्लाहु अन्हु” से भी खालफत पाई, आप साहिबे समआ थे, आप मशाइखे किराम के उर्स करते और खाना पेश करते, आप ने फ़रमाया के ख़ामोशी और मुराकिबा से शीशए दिल मुसफ्फा पाक साफ़ और रोशन हो जाता है, एक ने सवाल किया के खुदा कहाँ है? फ़रमाया जहाँ तू न हो, 299, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(8)
आप के खलीफा हुए हज़रत ख़्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु हुए: आप सिलसिलए चिश्तियाए सर चश्मा हैं पिरो मुर्शिद ने आप को चिश्त रवाना फ़रमाया वहां आप ने ख़ानक़ाह क़ाइम फ़रमाई और ख्वाजाए चिश्त कहलाए आप ही की वजह से सिलसिलए चिश्तियाए को (चिश्ती” कहा जाता है, आप की मजलिस की ये तासीर थी के मरीज़ शिफा पाते, अपने दिलों को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ लगा देते लेकिन अरबाबे दुनिया को महफ़िल में नहीं आने देते,
(9)
आप के खलीफा क़ुत्बे वक़्त हज़रत सय्यदना शैख़ अबू अहमद चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु हुए: आप फरसनाका के सुल्तान के बेटे थे, सिलसिलए नसब हज़रत इमाम हसन रदियल्लाहु अन्हु पर मुनतहि होता है, जिस बीमार पर तवज्जुह फरमाते शिफयाब हो जाता समआ की हालत में पेशानी मुनव्वर हो जाती और शुआएं नूर निकलती दिखाई देती, आप नया कपड़ा ज़ेबे तन नहीं करते, मशहूर वाक़िअ है के फ़ज़ल बिन याहया बर मक्की ने आप के ज़ोक़े समआ पर एतिराज़ किया तो बुखार के मर्ज़ में मुब्तला हो गया और आलमे रूया में सरकारे दो जहाँ रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इताब ज़ाहिर फ़रमाया के तेरा समआ से इंकार दर हकीकत मुझ से इंकार है जा अबू अहमद से मुआफी मांग, चुनाचे आप की चश्मे इनायत से वो फ़ौरन शिफयाब हो गया, आप ने फ़रमाया के अगर मुस्लमान सच्चे दिल से “ला इलाहा इलल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम” कहे तो आग का असर नहीं हो सकता, हज़ारों अफ़राद आप के फैज़े असर से हलक़ाए इस्लाम में दाखिल हुए बल्के चिश्त में कोई काफिर नहीं रहा जो आप के दौर में मुस्लमान न हो गया हो, क़ौल व फेल का असर तमाम रखते थे, आप ने 355, हिजरी में विसाल फ़रमाया
(10)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम हुए आप के बेटे हज़रत सय्यदना शैख़ अबू मुहम्मद चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु हुए: और आप ही से खिरकाए खिलाफत पहना आप की तासीर निगाह का ये आलम था के जिस शख्स के लिए मंज़ूर होता वो चश्मे ज़दन में वली हो जाता, आप की विलादत बा सआदत के लिए आप के वालिद ने हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में बशारत पाई और हस्बे हुक्म नाम सरकार सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के नाम पर रखा, वालिद के नक़्शे क़दम पर चलते हुए समआ की आला दरजे की महफिले आरास्ता फरमाते जिससे हाज़िरीन को फैज़ पहुँचता, सुल्तान सुबुगतिगीन इरादत मंदों में दाखिल होकर कामयाबियों से हमकिनार हुआ, आप ने 411, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(11)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम आप के सगे भांजे हज़रत सय्यदना नासिरुद्दीन ख्वाजा अबू युसूफ चिश्ती हसनी रदियल्लाहु अन्हु हुए” आप पेवंद का लिबास पहनते, फ़क़ीरों दुरवेशों की बहुत ताज़ीम करते, इरशाद फरमाते के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोस्त फ़क़ीर दुर्वेश होते हैं, नज़र फुकरा में तक़सीम कर देते, साहिबे समआ थे, आप की महफिले समआ में उलमा सुल्हा व फुकरा व मशाइख ही शरीक होते, आप ने 459, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(12)
और आप ने खिरकाए खिलाफत अपने बेटे हज़रत सय्यदना ख्वाजा मौदूद चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु को अता फ़रमाया: और अपना क़ाइम मक़ाम बनाया, आप में ख़ुल्क़ व तवाज़े की सिफ़त थी, सलाम करने में पहिल करते, फरमाते मेराज शरीफ में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सरकारे दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम फ़रमाया, अस्सलामु अलइका अय्युहनन नबीयू व रहमतुल्लाह सरकारे दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का मोजिज़ा था के कोई भी आप से सबक़त न कर सका, साहिबे समआ थे आगाज़ महफ़िल से पहले क़ुरआने पाक की तिलावत होती और ख़त्म महफ़िल तिलावते क़ुरआने पाक पर होती, आला दरजे का खाना खिलते, आप ने फ़रमाया के रूह तसर्रूफ़े औलिया व असरे विलायत इशां हमा जास्त यानी रूह औलिया का तसर्रुफ़ और असरे विलायत हर जगह है, आप ने काफी सफर किया बैतुल मुक़द्दस से नवाहे चिश्त से व बल्ख तक आप के दो हज़ार से ज़्यादा खुलफ़ा और बेशुमार मुरीद थे, आप के नामे मुबारक की बरकत से मसाइब और मुश्किलात ख़त्म हो जातीं, साहिबे करामात थे, हसन के साथ विसाल फ़रमाया, आप ने 527, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(13)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत शैख़ हाजी शरीफ जंदनी रदियल्लाहु अन्हु: और आप ही के जानशीन बने, आप फ़क़ीरों दुरवेशों की ताज़ीम बहुत करते थे, यहाँ तक के उनकी पाऊं की ख़ाक आखों से लगा लेते और फरमाते फ़क़ीर दुर्वेश मुझ को बेच डालें तो में राज़ी हूँ साहिबे समआ थे, पेवंद लगा हुआ लिबास पहिनते फ़ाक़ा होता तो आप सौ रकअत नमाज़े शुकराने की अदा करते, मशहूर वाक़िआ है के जब सुल्तान संजर का इन्तिकाल हुआ तो एक शख्स ने ख्वाब में देखा और उससे पूछा के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तुम्हारे साथ क्या मुआमला क्या? उस ने जवाब दिया के मेरे पास कोई चीज़ रहे आख़िरत की नहीं थी अलबत्ता एक बार मस्जिद में हज़रत शैख़ हाजी शरीफ जंदनी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर था इस की बरकत से बख्श दिया गया, आप ने 612, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(14)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत शैख़ ख्वाजा उस्मान हारूनी रदियल्लाहु अन्हु: आप उलूमे शरीअत व तरीक़त में यगानाए रोज़गार थे, मशाइख के मसलक गुलामी से मुनसलिक थे आप को इबादत में कमाल का इसतगराक हासिल था साहिबे समआ थे, एक बार वक़्त का खलीफा मोतरिज़ हुआ, और दरबारी उलमा से समआ के जवाज़ पर बहस करने के लिए आप को तलब किया, आप ने फ़रमाया के किसी को फतह अहले समआ पर हासिल नहीं हुई हमारे खुलफ़ा और मुरीदों में ये सुन्नत क़यामत तक जारी रहेगी इंशा अल्लाह तआला,
(15)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन हसन चिश्ती सुल्तानुल औलिया अजमेरी रदियल्लाहु अन्हु: आप की नगाह की तासीर का ये आलम था जिस फ़ासिक़ पर पढ़ जाती वो ताइब हो जाता और फर्माबरदार हो जाता, आप ने 6, रजब 633, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार शरीफ अजमेर राजिस्थान में है,
(16)
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तिया काकी रदियल्लाहु अन्हु, आप ने सिलसिले की नशरो इशाअत व इस्तेहकाम का काम किया आप हर वक़्त खौफ खुद में डूबे रहते, सुन्नते नबवी के बे इंतिहा पाबंद और इश्के इलाही से मगलूब थे मुरीदों के लिए तज़किया व तरबियत में कमाल रखते थे, आप ने 661, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
(17)

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और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत ख्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रदियल्लाहु अनु हुए: और आप ने सिलसिले को मुनज़्ज़म किया और चार चाँद लगाए, आप ने 664, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार शरीफ पाकिस्तान में है,
आप के तीन खुलफ़ा से तीन सिसिले जारी हुए:
हज़रत शैख़ जमालुद्दीन रदियल्लाहु अन्हु हांसवी से सिलसिलए जमालिया जो बाद में निज़ामिया में शामिल हो गया,
हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन सरकार महबूबे इलाही रदियल्लाहु अन्हु से सिलसिलए निज़ामिया, आप साहिबे जमाल थे, नतीजा ये हुआ के सिलसिला मुशिक की तरह महक उठा और हिंदुस्तान के कोने कोने में खुशबू फेल गई, आप ने 725, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार दिल्ली में है,
हज़रत सय्यदना ख्वाजा अलाउद्दीन अली अहमद साबरी हसनी व हुसैनी कलियरी रदियल्लाहु अन्हु आप से सबिरिया सिलसिए जारी हुआ, आप साहिबे जलाल थे, आप के जलाल का असर सिलसिले पर ऐसा पड़ा, आप के खुलफ़ा मुजाहिद हुए इस्लाम की फरोग की खातिर हर किस्म का जिहाद किया और आज सिलसिलए सबिरिया पूरे हिंदुस्तान ही में नहीं बल्के इस के बाहर भी शरीअत व तरीक़त का मुहाफ़िज़ समझा जाता है, आप ने 690, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार कलियर शरीफ में है,
और आप के वाहिद खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन रदियल्लाहु अन्हु तुर्क पानीपति: आप ने 715, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और वाहिद मुरीद हुए “हज़रत मख़्दूमुल मशाइख शैख़ मुहम्मद जलालुद्दीन कबिरुल औलिया उस्मानी पानीपति” और आप का मज़ार यही पानीपत हरयाना इण्डिया में है, आप ने 765, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए “हज़रत शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा बाराबंकवी रहमतुल्लाह अलैह” आप ने 837, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार बाराबंकी उत्तर प्रदेश इंडिया में है, आप को मुमताज़ दर्जा हासिल था, आप ने सिलसिले की इशाअत में गैर मामूली मुजाहिदा किया और उसे पूरी दुनिया में रोशनाश (पहचान) कर दिया, आप का खास वस्फ़ ये तहरीर हुआ है के जो भी आप के ज़हिन में आता चन्द साअत में ज़हूर हो जाता,
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और वाहिद मुरीद हुए, आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ आरिफ अहमद रदियल्लाहु अन्हु, आप ने 855, हिजरी में विसाल फ़रमाया,
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और वाहिद मुरीद हुए आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह, जिन से खानकाहे शैखुल आलम में मज़बूती पैदा हुई और उसके असर में इज़ाफ़ा हुआ,
और आप के खलीफा व क़ाइम मक़ाम और मुरीद हुए “”हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह”” इबने हज़रत शैख़ मुहम्मद इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह इबने हज़रत शैख़ सफियुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह नोमानी रदोल्वी हुए, आप ने शाह आबाद फिर गंगोह को मरकज़ बना कर सिलसिले की इशाअत का काम सर अंजाम दिया, इस में तरतीब व तंज़ीम पैदा की और उसे ख्वास व आवा में मक़बूल बनाया, आप ने 944, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार गंगोह शरीफ यूपी में है,
और आप के खुलफ़ा और खुलफ़ा के खुलफ़ा नेनिहायत जांफशनी मेहनत के साथ तब्लीग के मुश्किल काम से उहदा बरा होते रहे,
फिर एक और बड़ी शख्सियत हज़रत हाजी इम्दादुल्लाह माहिर मक्की रहमतुल्लाह अलैह, आप ने 1310, हिजरी में विसाल फ़रमाया, आप ने तब्लीगी काम गैर मुल्को में भी रोशनास कराया,
और इन के अलावा शैखुल आलम के साथ हज़रत शाह इल्तिफ़ात अहमद रहमतुल्लाह, हज़रत शाह हयात अहमद रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शाह आफ़ाक़ अहमद रहमतुल्लाह अलैह, इलाहबादी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत शाह खामोश रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन,

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“आप का मज़ार शरीफ रुदौली ज़िला बाराबंकी में है जो लखनऊ से तक़रीबन 92, किलो मीटर है इंडिया में”

शैखुल आलम का नाम व ख़िताब :- आप का असली नाम “शैख़ अहमद” आप के पिरो मुर्शिद “हज़रत मख़्दूमुल मशाइख शैख़ मुहम्मद जलालुद्दीन कबिरुल औलिया उस्मानी पानीपति रहमतुल्लाह अलैह” ने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से “शैख़ अब्दुल हक़” नाम रखा अवाम व ख्वास में शैखुल आलम और “मखदूम साहब” के बुज़रुग खिताबत से मशहूर हैं, “साहिबे अनवारुल उयून” ने आप के मलफ़ूज़ात शरीफ में “शैखुल आलम” के नाम से तहरीर फरमाए हैं, जौनपुर और उस के आसपास के लोग आप को “मख़्दूमीन” कहते हैं,

आप के अलक़ाबात :- “साहिबे अनवारुल उयून” ने इन अलक़ाब के साथ खिराजे अक़ीदत पेश किया है “क़ुत्बुल अक़ताब, ताजुल औलिया, हादियुल असफिया, सुल्तानुल आरफीन, बुरहानुल वासिलीन हज़रत शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा रहमतुल्लाह अलैह,

आप का नसब नामा व खानदान :- आप के वालिद माजिद का इस्मेगिरामि शैख़ उमर और आप के दादा का शैख़ दाऊद था, शैख़ उमर साहिबे ज़ोहदो तक़वा से आरास्ता थे, आप के दो साहबज़ादे हुए, एक शैख़ तक़ीयुद्दीन और दूसरे शैख़ अहमद, शैख़ तक़ीयुद्दीन बड़े थे, आप ने इल्मे दीन हासिल करने की वजह से दिल्ली को अपना वतन बनाया और यहीं इन्तिकाल फ़रमाया,
इन्होने दरस व तदरीस और उलमा व फुज़्ला की मुहब्बतों में ज़िन्दगी बसर की मगर शैख़ अहमद ने रुदौली नहीं छोड़ी और यहीं वासिले बा हक़ हुए, यही शैख़ अहमद अब्दुल हक़ साहब तौशा रदौलवी के नामे नामी में से तमाम आलम में रोशन हुए, आप ही की ज़ात से रुदौली चश्माए हक़ बनी और आप की ख़ानक़ाह आलम पनाह सिलसिलए सबिरिया चिश्तिया का अहम तिरीन मर्कज़ बनी,

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आप के दादा जान शैख़ दाऊद रहमतुल्लाह अलैह :- शैख़ दाऊद रहमतुल्लाह अलैह हसब व नसब में मुमताज़ थे, आप का सिलसिलाए नसब अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर बिन खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु पर मुनतहि (पूरा) होता है, आप अफगानिस्तान के शहर बल्ख के रहने वाले थे, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दौरे हुकूमत में कुछ लोगों के साथ हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, सुल्तान ने बहुत ही ताज़िमों तकरीम के साथ खुश आमदीद कहा और सूबाए ऊध में जागीर अता की, रुदौली को आप ने अपना वतन बनाया, सुलूक व मारफ़त की तालीम व तरबियत हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत हासिल की और खलीफा हुए,
आप ने रुदौली में सुकूनत रिहाइश इख़्तियार की, हज़रत शैख़ दाऊद और हज़रत शैख़ उमर का विसाल रदौली में हुआ, हज़रत मखदूम छोटे राना के क़ब्रिस्तान में मदफ़ून हुए,

हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश :- आप की विलादत बसआदत किस सन में हुई सही पता नहीं चलता, न तो “अनवारुल उयून” में तरहरीर है और न “अख़बारूल आखिर” में अगलब यही है के किसी तज़किराह या किताब मुस्तनद में मज़कूर नहीं अलबत्ता “बज़्मे सूफ़िया” में आप की उमर शरीफ एक सौ आठ 108, साल दी गई है, लेकिन ये क़तई तो नहीं मगर क़रीने क़यास है, के सने पैदाइश 729, हिजरी निकलता है,
साहिबे मिरातुल असरार: के मुताबिक आप की उमर एक सौ बीस साल 120, है,
इस के बरख़िलाफ़ हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के मौजूदा सज्जादा नशीन हज़रत शाह क़ुरैश अहमद के मुताबिक तारीखे पैदाइश 21, माहे ज़िल क़ाइदा 737, हिजरी है,
आप के पिरो मुर्शिद हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 765, हिजरी में हुआ, और हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह ने 837, हिजरी में विसाल फ़रमाया, यानी हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह ने पिरो मुर्शिद के विसाल के बाद तक़रीबन 72,73, साल तक तबलीग़े दीन की महफिले आरास्ता रखीं, 12, साल की उमर में दिल्ली तशरीफ़ ले गए, दिल्ली में कम से कम आप का क़याम सने बुलुगीयत ज़रूर रहा, इस की दलील ये है के आप के बड़े भाई शैख़ तक़ीयुद्दीन ने अनवारुल उयून के मुताबिक आप की शादी का पैगाम दिल्ली में किसी के यहाँ दिया, मालूम होने पर आप दिल्ली से चले गए इस लिए कितने साल आप दिल्ली में रहे और किस उमर में पहले पानी पत शरीफ में पिरो मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर हुए कहा नहीं जा सकता लेकिन क़यास से ये मालूम होता है के बैअत व रुश्दो हिदायत के वक़्त आप की उमर 21, साल या कुछ और रही होगी यानि 90, नव्वे साल से ज़्यादा उमर हुई इतनी बात तो यक़ीनी है, मगर कामिल उमर कितनी हुई क़तई तौर पर से नहीं बताया जा सकता,

शैखुल आलम का एक बचपन का वाकिया :- आप अपनी दाया की गोद में थे के फ़ौरन उसकी गोद से उड़कर आफताब के मुकाबिल सीमाब की तरह बेकरार हुए ये देख कर दाया हैरान खौफ ज़दा और परेशान हो कर रोने लगी लेकिन थोड़ी देर बाद खुदा की महिरबानी से आप फिर इस की गोद में वापस आ गए,

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शैखुल आलम की इब्तिदाई तालीम व तरबियत :- आप अभी बच्चे ही थे के वालिद माजिद का साया सर से उठ गया, परवरिश तालीमों तरबियत की ज़िम्मे दारी मादरे महिर्बान और बड़े भाई शैख़ तक़ीयुद्दीन के सर आयी, दिल्ली में आप शैख़ तक़ीयुद्दीन के यहाँ पर एक अरसा तक रहे, शैख़ तक़ीयुद्दीन ने आप की ज़ाहिरी तालीम के सिलसिले में कोशिश की मगर आप ने उस की तरफ रगबत नहीं की, शैख़ तक़ीयुद्दीन जब पढ़ाते तो आप कहते हैं के मुझ को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मारफअत का इल्म सिखाओ, एक बार परेशान होकर जुमे के दिन दिल्ली के असातिज़ा के पास ले गए और गुज़ारिश की के ये लड़का मुझ से नहीं पढ़ता शायद आप लोगों का ही कहना माने चुनाचे मीज़ानुस्सरफ सामने रखी गई जब ज़राबा यज़रीबू की गरदान तक पहुंचे और उस के माने बताए तो शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के मारना और मारा जाना खासो आम के एजाज़ का रास्ता है इन्तिकाल के लिए नहीं, आप लोग मुझे ऐसा इल्म सिखाए जिससे मुझे खुदा की मारफअत हासिल हो,
इससे ये नतीजा निकला के आप रस्मी उलूम से बेगाना थे दुरुस्त नहीं आप की ज़िन्दगी के वाक़िआत बताते हैं के इल्मे बातिन के साथ साथ इल्मे ज़ाहिरी में भी कमाल हासिल किया था बाज़ अहले नज़र ने आप को नवी सदी हिजरी का मुजद्दिद भी शोमर किया है, आप के इरशादात भी मुजद्दिदाना अहमियत के हामिल हैं,

शैख़ की सआदत मंदी :- शैख़ तक़ीयुद्दीन और उनकी बीवी को आप से बे इंतहा मुहब्बत थी दोनों दिलो जान से चाहते थे, के आप इल्म हासिल करें, आप की भावज शैख़ तक़ीयुद्दीन से कहतीं के मियां अहमद को पढ़ाते क्यों नहीं? वो तुम्हारा छोटा भाई है तुम नहीं पढ़ाओगे तो किस के पास जाएगा, शैख़ तक़ीयुद्दीन फरमाते के ये ऐसे इल्म में डूबे हुए हैं के इस के मुकाबले में हमारे इल्म की परवाह नहीं करते आओ में तुम को मुशाहिदा कराता हूँ,
आप भी भाई और भावज के फर्माबरदार थे, भाई के पैर दबाते थे,

शादी का पैगाम :- शैख़ तक़ीयुद्दीन ने आप की शादी का पैगाम दिल्ली में किसी के यहाँ दिया, तो लड़की वालों से जा कर कहा के मुझ को अपनी लड़की नहीं देना में शादी के क़ाबिल नहीं हूँ, लेकिन देर उमर में सुन्नते नबवी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी की, इस वाक़िये के बाद दिल्ली से “”हक़”” की तलाशो जुस्तुजू में निकल पड़े,

आस्तानाए पिरो मुर्शिद पर हाज़री :- जिस ज़माने में आप बातनी तिशनगी से मजबूर होकर शहर व सहरा की ख़ाक छान रहे थे, मंज़िले मक़सूद की राह नहीं मिल रही थी, इसी दौरान में “हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह” आफ़ताबे विलायत पर चमक रहे थे, जिससे एक आलम मुनव्वर हो रहा था बेशुमार हक़ के तालिबान को राहें मिल रही थीं, इस की किरने आप के ऊपर पड़ीं, और आप ने पानीपत शरीफ का रुख किया,
आप आस्तानए आलिया सबिरिया पर हाज़िर हुए शैखुल मशाइख ने बे अंदाज़ लुत्फ़ो करम फ़रमाया और हज़रत समदियत के हुक्म पर और हज़रत अहदियत की इजाज़त से अपने सर मुबारक से टोपी उतार कर पहनाई और फ़रमाया की “”ये सब खुदा की हुक्म से हुआ है”” साहिबे फ़ज़ीलत मेहमान की आमद पर खाने का इंतिज़ाम हुआ दस्तर ख्वान पर महज़ूरात शरअय्या व ममनू चीज़ देख कर कबीदा खातिर (रंज गम) हुए हाथ खींच लिया और उठ खड़े हुए, सरकारे आलिया में जाकर टोपी वापस करदी और अपनी राहली,

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आस्तानए आलिया पर दोबारा हाज़री :- चलते चलते शाम हो गई, एक शहर के पास पहुंचे वहां एक आदमी से मालूम किया ये कोन सा शहर है? उस ने जवाब दिया “पानीपत” रात गुज़री और सुबह को चल पड़े शाम के वक़्त खुद फिर पानीपत की क़रीब पाया, हैरत में रात बसर की और सुबह के वक़्त फिर रवाना हुए, रास्ते में जंगल पड़ा और देखा की एक साहिबे जमाल दरख़्त (पेड़) पर बैठा है, उससे रास्ता मालूम किया तो उस ने जवाब दिया की रास्त तो तुमने दरे जलालुद्दीन पर गुम कर दिया है और अगर यक़ीन न आए तो वो दो आदमी आ रहे हैं उन से पूछ लो, उन लोगों ने भी यही जवाब दिया अब शैखुल आलम के दिल में ये बात रासिख़ (असली पक्का) हो गई, के मंज़िले मक़सूद आस्तानए आलिया के अलावा और कहीं नहीं है, ये समझ कर सही अक़ीदे के साथ पिरो मुर्शिद की खदमत में हाज़िर हुए,
वापसी में आप के दिल में तमन्ना पैदा हुई के मुर्शिद की टोपी के साथसाथ कोई शिरीनी भी अता फरमाते तो क्या खूब अच्छा होता, “हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह” रोज़ाए हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन तुर्क पानीपती रहमतुल्लाह अलैह में आप का इन्तिज़ार कर रहे थे, एक हाथ में टोपी थी और दुसरे हाथ में नान व हलवा था दोनों तबर्रुकात आप को अता कर दिए,

आप ने खिरकाए खिलाफत किस्से पहना :- आप ने खानकाहे आलिया में एक मुद्दत तक रियाज़त व मुजाहिदा किया सुलूक और मारफअत की मंज़िलें पिरो मुर्शिद “”हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह“” की रहनुमाई में तय कीं, यही आप के पिरो मुर्शिद हैं, पिरो मुर्शिद ने तालीमों तरबियत के बाद खिरकाए खिलाफत अता फ़रमाया,
हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “”आप ने सय्यदुल अव्वलीन व आखिरीन रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी में सई व कोशिश की इस लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से “अब्दुल हक़” का ख़िताब पाया ज़हे कमाल की पीर की पैरवी में मिसाल पाई,

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आप के पिरो मुर्शिद की दुआ :- हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह के बहुत से खलीफा हुए जिन में अफ़ज़ल तिरीन और कामिल तीन अश्ख़ास हुए, एक शैखुल आलम शैख़ अब्दुल हक़ रुदौलवी, दूसरे शैख़ निज़ाम संनामी और शैख़ बहराम बेडलवी थे, लेकिन सिरे फेहरिस्त शैखुल आलम ही का नाम आता है, क़ुत्बे रब्बानी के ख़िताब अता करने के बाद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से बे इंतहा रिक़्क़त आमेज़ दुआ की और आप से फ़रमाया मेने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दरख्वास्त की है के हमारा सिलसिला तुम से जारी हो, तमाम आलम तुम्हारे नूरे मारफअत से रोशन हो जाए जिस का असर क़यामत तक बाक़ी रहे और गलगला भी कम न हो,
आप पिरो मुर्शिद की निगाह में निहायत बुलंद मक़ाम रखते थे, ये इस बात से ज़ाहिर है के आप ने अपने विसाल से पहले अपने साहबज़ादे ख्वाजा शिब्ली रहमतुल्लाह अलैह से वसीयत की थी के मेरा खिरका और तमाम मुतअल्लिक़ात शैखुल आलम शैख़ अब्दुल हक़ रुदौलवी के हवाले कर देना और फ़रमाया के ज़रुरत के वक़्त अहमद अब्दुल हक़ तुम्हारी दस्तगीरी के लिए काफी हैं,
वतन की वापसी:
खिरकाए खिलाफत हासिल करने के बाद आप रुदौली वापस हुए,

आप की सैरो सियाहत :- रुदौली में मुस्तक़िल सुकूनत रिहाइश इख़्तियार करने के बाद सियाहत के लिए निकलते और फिर वापस आ जाते, तक़रीबन तमाम हिंदुस्तान की सियाहत के दाइरे में खास तौर से, सिंध, पंजाब, दिल्ली, का इलाक़ा और बिहार व बंग्गाल थे, पानीपत, संन्नाम, दिल्ली, भकर, राइसिरि, कन्नौज, ऊध, जौनपुर, और दूसरे मक़ामात पर बराबर आमदो रफ़्त रहती, कभी मगरिब की तरफ जाते और कभी मशरिक की सम्त इख़्तियार करते,
दौरान सियाहत उलमा, व फुज़्ला, दुर्वेश व फुकरा, बादशाह व गदा, आम और ख़ास से मुलाक़ात करते, तबादलाए ख़याल और बहसों मुबाहिसा करते, आप के दोस्तों में कलंदर, दीवाने और मजज़ूब भी थे,

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कलियर शरीफ मज़ार पर आप की हाज़री :- सिलसिले आलिया सबिरिया के बानी हज़रत ख्वाजा अलाउद्दीन अली अहमद साबिर रहमतुल्लाह अलैह कलियर ज़िला सहारनपुर उत्तर प्रदेश में है और आप का विसाल 690, हिजरी में हुआ, आप के वालिद माजिद का इसमें गिरामी सय्यद अब्दुर रहीम बिन सय्यद सैफुद्दीन अब्दुल वहाब बिन हज़रत सय्यद अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु था, वालिदा माजिदा हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की सगी बहिन थीं,
हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आप को खिलाफत से नवाज़ा और और कलियर की सनादे विलायत अता फ़रमाई, पिरो मुर्शिद फरमाते थे, “मेरे सीने का इल्म शैख़ निज़ामुद्दीन बदायूनी को और मेरे दिल का इल्म अली अहमद साबिर को मिला”
आप साहिबे कशफो करामाते आलिया और साहिबे मक़ामाते जलीला थे, आप के वाहिद खलीफा हज़रत खाजा शमशुद्दीन तुर्कपानी पति हुए, और उनके वाहिद खलफा हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह और उनके खलीफा “शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा बाराबंकवी हुए जिन से सिलसिलए सबिरिया चिश्तिया में इस्तिक़ामत पैदा हुई और उस का फैज़ जारी हुआ,
कहते हैं के हज़रत साबिरे पाक रहमतुल्लाह अलैह की जलाली कैफियत की वजह से कलियर इतना वीरान हो गया था के लोग जाते हुए डरते थे, यहाँ तक के आप के खुलफ़ा भी नहीं गए एक ज़माने तक मज़ारे मुबारक ख़ल्क़ से रूपोश रहा, एक लम्बे अरसे के बाद जो एक सदी के क़रीब होता है सब से पहले “शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा बाराबंकवीहज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबिरुलऔलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैहकलियर तशरीफ़ लेगए फिर उनके बाद उनके खलीफा हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह ने इस ख़ानक़ाह को आबाद किया,
हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के साहिबे सज्जादा हज़रत शाह क़ुरैश अहमद का फरमाना है के हज़रत साबिरे पाक रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे मुबारक की बाज़ याफ़त और तामीर का सेहरा हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के सर है सब से पहले वही तशरीफ़ ले गए कुल शरीफ किया और फातिहा की और उसका दरवाज़ा सब के लिए खोल दिया,
दरगाहे साबिरिया के सब से पहले मतवल्लि बेशक हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह हुए उनके विसाल के बाद ये मनसब उनकी औलाद में बाक़ी रहा, उन की एक शाख खानदान गंगोह में आबाद हुई और एक शाख खानदान कलियर शरीफ में,

हज़रत शैख़ नूर क़ुतब आलम पनडवी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाक़ात का वाक़िआ :- आप उन मुमताज़ और साहिबे कमाल बुज़ुर्गों में से हैं जिन से हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने बा नफ़्से नफीस खुद जा कर मुलाक़ात की इस मुलाक़ात का बयान “साहिबे अनवारुल उयून” “साहिबे अख़बारूल अखियार” दोनों ने किया है हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह हर उस शख्स से मुलाकात करते थे जिससे मंज़िले मक़सूद की राह का कुछ भी पता चलता, पंडवा शरीफ में आप दरिया के किनारे खड़े थे शैख़ नूरुल हक़ वद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात करने का जी चाहा और ये सोच कर के दुर्वेश के पास खली हाथ नहीं जाना चाहिए हरी घास लेकर शैख़ नूर रहमतुल्लाह अलैह के पास गए उस्वक़्त वहां दस्तर ख्वान बिछा हुआ था और अहबाब तशरीफ़ फरमा थे हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने घास शैख़ नूरुल हक़ रहमतुल्लाह अलैह के ज़ानों पर रख कर कहा “”बाबा सफ़ा है”” हज़रत शैख़ नूर क़ुतब आलम रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया “बाबा इज़्ज़त है” दोनों वली थोड़ी देर तक खामोश रहे और एक दूसरे को देखते रहे और कोई गुफ्तुगू नहीं हुई फिर हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह वापस आए,
नोट :- “साहिबे अख़बारूल अखियार” हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने इस वाक़िए की तशरीह फ़रमाई की हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह मरतबाए सफ़ा पर थे जो मरतबए इज़्ज़त से ऊंचा है इस लिए खबर मतलूब हज़रत शैख़ नूर क़ुतब आलम रहमतुल्लाह अलैह से नहीं मिली और आप लोट आए,

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हालाते ज़िन्दगी हज़रत शैख़ नूर क़ुतब आलम पंडवी रहमतुल्लाह अलैह :- शैख़ नूरुल हक़ वद्दीन अल माअरूफ़ क़ुत्बे आलम रहमतुल्लाह अलैह सिलसिलए निज़ामिया के मशहूर बुज़रुग हज़रत शैख़ अलाउल हक़ वद्दीन (मतावफ़्फ़ा 800, हिजरी) के सबहज़ादे व खलीफा थे, हिंदुस्तान के मशहूर व मारूफ औलिया अल्लाह में आप का शुमार होता है, आप साहिबे इश्को मुहब्बत व शोको तसर्रुफ़ व करामात थे, ख़ानक़ाह शरीफ जिस को आप के वालिद साहब ने क़ाइम किया था, बंगाल में सिलसिलए निज़ामिया की अहम तिरीन मर्कज़ थी जिस दौर में आप मसनद नशीन थे रुश्दो हिदायत कर रहे थे बंगाल की सियासत बड़े नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी मजबूरन आप ने उस में हिस्सा लिया, इस के अलावा आप ने बाज़ अहम खिदमत भी की थीं, आप के मक़तूबात एक अहम मक़ाम रखते हैं, आप ने 813, हिजरी में विसाल फ़रमाया, और आप का मज़ार बंगाल पांडवा शरीफ में है,
आप का शजरए तरीक़त :- सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह, और आप के खलीफा हैं हज़रत शैख़ अखी सिराज रहमतुल्लाह अलैह, और आप के खलीफा हैं, हज़रत शैख़ अलाउल हक़ वद्दीन पांडवी रहमतुल्लाह अलैह, और आप के खलीफा हैं हज़रत शैख़ नूर क़ुतब आलम रहमतुल्लाह अलैह,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- खज़ीनतुल असफिया, सैरुल अक़ताब, अनवारुल उयून, अख़बारूल अखियार, मिरातुल असरार, बज़्मे सूफ़िया, हयातुल शैखुल आलम, तारीखे मशाइखे चिश्त, तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, अनवारुल आशिक़ीन, तज़किराए औलियाए हिन्दो पाक ,

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