शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिलए नसब :-
- अमीरुल मोमिनीन ख़लीफ़ए दोम हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु,
- हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु,
- हज़रत शैख़ नासिर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मंसूर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अदहम रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ सुल्तान इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अबुल फतह रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह मुहम्मद वाइज़ अल अकबर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह मुहम्मद वाइज़ असगर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मसऊद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ ख्वाजा अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ फखरुद्दीन मेहमूद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन फर्ख काबुली रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अहमद युसूफ रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मुहम्मद अकबर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मुहम्मद युसूफ सानी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मुहम्मद अहमद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ शोएब रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ दाऊद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ उमर रहमतुल्लाह अलैह,
- शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा रहमतुल्लाह अलैह
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शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की शक्लो सूरत :- आप बुलंद क़ामत थे, क़द आप का बुलंदी की तरफ परवाज़ करता हुआ मालूम होता था, रंग सुर्ख गंदमी था, पेशानी कुशादा और बिनि ज़हानत की आईनादार थी, आँखें कुशादा और तेज़ थीं,आप के शहाने (कन्धा) चौड़े, जिस्म मज़बूत और गैर मामूली क़ुव्वत बर्दाश्त का हामिल,
आप की सेहत :-
सेहत आला दर्जे की थी बड़े से बड़ा सफर और बड़ी से बड़ी जिस्मानी मेहनत से इज़मिहलाल (उदासी) का बाइस न होती, बंगाल से शहर अजुद्द्दिया तक पैदल सफर किया मगर थकन का नामोनिशान नहीं था, इबादातों रियाज़त व मुजाहिदात का दारो मदार अच्छी सेहत पर है बेहतर नताइज बैगर अच्छी सेहत के मुमकिन नहीं आप ने अज़ीम मुजाहिदात किए मगर जिस्मानी कमज़ोरी ज़ाहिर नहीं हुई सेहत अतिया है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का मगर इंसान भी हिफ़ाज़ते सेहत के उसूलों की पाबन्दी से उसे बरक़रार रख सकता है,
आप का लहजा व ज़बान :-
लहजा पुर वक़ार,अंदाज़े गुफ्तुगू मुआस्सिर और मतीन था, आप के दिल में जो भी आता चंद घड़ी में उस का ज़हूर हो जाता, नज़रो ज़बान में बला की तासीर थी, उलमा व फुज़्ला व उमरा व ज़ी हैसियत अश्ख़ास से बात करते वक़्त झिझिकते और खौफ महसूस करते,
क़ुव्वत :-
आप मज़बूत क़ुव्वत इरादी के मालिक थे, जो बात फरमाते हो जाती, जो क़दम उठाते मंज़िल पर पड़ता, अनासिर की शिद्दत इरादे में हाइल न होती क़ुव्वत इरादी इस दरजे पर थी जहाँ गैर ज़ी रूह अशिया भी शख्सियत की ताबे हो जाती हैं,
एक बक्क़ाल (सब्ज़ी बेचने वाला) आप का मुरीद था शराब के नशे में एक दिन वो ख़ानक़ाह में आ कर “हक़ पीरे मन पाक” का नारा लगाने लगा, आप के फरमान पर भी बाज़ न आया तो आप ने ज़मीन पर असा मारा और असा टूट गया असा टूटते ही इस पर से शराब की मस्ती उतरी और मोत का नशा चढ़ने लगा बिला आखिर इस दुनिया से गुज़र गया,
आप ने मलिक शम्मो को मुरीद नहीं किया अलबत्ता पगड़ी और कम्बल अता फ़रमाया, जब उस को कोई मुश्किल पेश आती या जंग के लिए जाता तो कंबल ओढ़ लेता और पगड़ी सर पर बांध लेता, मुश्किल आसान हो जाती और जंग में कामयाबी होती,
आप का लिबास :-
आप खिरका पहिनते सियाह उन का चोगा, अगर फट जाता तो पेवंद लगा लेते, खिरके के साथ साफ़ सुथरा लिबास भी रखते, किसी मुअज़ज़ शख्स से मिलने जाते तो पहिन लेते कोलाहे चार तुर्की (तुर्की टोपी) पहिनते और दस्तार भी बांधते थे आप सुल्तान इब्राहीम शर्क़ी से जो जौनपुर मिलने गए, तो गुदड़ी उतार कर साफ़ उजला लिबास पहिन लिया जब वापस हुए तो फिर गुदड़ी पहिनली,
असा :-
आप असा लिए रहते थे, सफ़रों हज़र में अपने साथ रखते थे,
सफाई व पाकीज़गी :-
सफाई और पाकीज़गी का ख्याल रखते और पाको साफ़ चीज़ खाते, मशहूर वाक़िअ है के जब आप अपने मुर्शिद हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबीरुल औलिया पानी पति रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए तो दस्तर ख्वान पर ममनूअ चीज़ें देख कर उठ खड़े हुए एक लुक्मा भी नहीं चखा और अपनी राह ली दूसरी बार जब वापस आए तो तो पिरो मुर्शिद के इसरार पर खुद रू साईन की पाक व साफ़ रोटियां खाईं,
मेल जोल :-
आप सब से मेल जोल रखते मगर अवाम से ज़्यादा हक़ बात आप की ज़बान पर रहती, मरीज़ की इयादत करते, लोगों के दुःख दर्द में शारीक होते,शैख़ ज़करिया इबने सुलेमान बीमार हुए तो आप उनको देखने गए,
इंसानो से मुहब्बत :-
शहर सन्नाम में आप ने मज़ीद इबादतों रियाज़त की एक दीवाने से दोस्ती हो गई, उसका क़याम एक मस्जिद में था लोग खाने पीने की चीज़ें दे जाते वो रखे रहता जब आप उससे मिलने जाते तो कहता अहमद ये खुदा की नेमत है तुम भी खाओ और मुझे भी खिलाओ चुनाचे आप भी खाते और उस को भी खिलाते दीवान माज़ूर था वरना वो खुद भी खा सकता था, हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के खिलाने की ज़रूरत नहीं थी,
फ़क़रो क़नाअत :-
एक बार सुल्तान इब्राहिम शर्की जौनपुरी की तरफ से इख़राजात ख़ानक़ाह और अहले खानदान के लिए कई गाँव और बहुत से तहाईफ़ नज़र किए गए मगर आप ने लेने से इंकार कर दिया और फ़रमाया मेरी और औलाद फ़क़्र की क़द्र नहीं जानेगी इसी तरह मुहम्मद खान मकता रुदौली ने सात सौ बीघा ज़मीन आप की खिदमत में पेश की आप ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए,
दुनिया और दुनिया के नाम से लरज़ा बर अंदाम होते थे, हज़रत शैख़ अब्दुल कुदूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के आज तक जब के आप के विसाल को एक लम्बा अरसा गुज़र गया और ये तीसरी पुश्त है आप की औलाद में इतनी वुसअत नहीं हुई के इत्मीनान से ज़िन्दगी बसर कर सकें और फिकरे मआश से बेफिक्री हासिल हो और न दुनियावी बादशाहों के दफ्तर ही में हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का नाम लिखा गया और न आप के फ़रज़न्दों में से किसी का नाम मरक़ूम हुआ,
गुरूर घमंड से बेज़ारी :-
आप को गुरू घमंड तमकिनत (शानो शौकत, हुकूमत) और बादशाहाना तुमताराक (धूम धाम) बिलकुल नहीं भाता था, जिस शख्स में चाहे वो कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो आप उस में अगर किसी किस्म की खराबी पाते तो टोकते फ़ौरन डांटते समझाते,
आप का बे तकल्लुफ अंदाज़ :-
आप में एक आदमी के किरदार की लतीफ़ खूबियां थीं, सादा तबियत पाई थी, हर शख्स से बेतकल्लुफ मिलते कोई बुलाता तो उसके यहाँ तशरीफ़ लेजाते खाना पेश करता तो तनावुल फरमाते यानि खा लेते, पलंग नहीं होता तो ज़मीन पर बैठ जाते सोना होता तो अक्सर दरख्त (पेड़) के नीचे लेट जाते, अक्सर रूठ जाते और मान भी जाते,
आप की सखावत :-
आप सखी भी थे जो कुछ मिलता उस को राहे खुदा में खर्च कर देते, गरीबों नादारों मुफ़लिसों और बेबाओं की मदद करते राएसीरी के सफर में आप को एक घोडा नज़र में मिला आप ने अज़ीम मुरीद बख्तियार जौनपुरी को हुक्म दिया के इस को बेचकर लाचार और मजबूर औरतों में तक़सीम कर दो उन्होंने ऐसा ही किया,
मज़ाह :-
एक बार एक अमीर शख्स ज़ैनुद्दीन औधी से मिलने गए, दरबान ने फ़क़ीर जान कर अंदर जाने की इजाज़त नहीं दी, उसका क़ाइदा था के वो उसको मिलने देता जो तहाईफ़ लेकर आता आप लोट आए, एक तशत पलेट में कंकर पथ्थर से भरा ऊपर से साफ़ सुथरा दस्तर ख्वान डाल दिया साफ़ सुथरा उजला लिबास पहना और एक आदमी को साथ लेकर तशत लिए हुए फिर शैख़ ज़ैनुद्दीन के घर गए, इस बार दरबार ने जाने दिया शख्स ज़ैनुद्दीन औधी से मुलाकात हुई जब उसने दस्तर ख्वान हटाया तो उसमे कंकर पथ्थर नज़र आए उन्होंने कहा मखदूम ये क्या? आप ने फ़रमाया जिसके पास कंकर पथ्थर हों वो तुम्हारे पास आ सकता है,
आप की बे खोफ़ी :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह निडर और बेखौफ थे “अनवारुल उयून” में कई वाक़िआत बयान किया गए हैं साहिबे मिरातुल असरार ने एक अहम वाकिअ लिखा है के गाँव बेहरीला में जा कर तनहा अज़ान पड़ी, हक़ तआला की महिरबानी से बहुत से लोग ईमान ले आए, इस की तस्दीक़ अनवारुल उयून से भी होती है के इस गाँव के नो मुस्लिम कमालुद्दीन नामी आप के मुरीद थे,
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हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के मुअल्लिक़ पेशनगोई :- हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के वालिद हज़रत शैख़ मुहम्मद इस्माईल अभी बच्चे ही थे के चंद बच्चों के साथ हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत के लिए आए आप ने शैख़ मुहम्मद इस्माईल को बुलाकर निहायत शफ़क़त से पीठ तपथपाइ और फ़रमाया के इस लड़के की पुश्त में एक ऐसा मुबारक बच्चा देख रहा हूँ जो अपने ज़माने का क़ुतब होगा उसके मुरीद हमारे मुरीद होंगे और वो हमारे बड़े खुलफ़ा में होगा हमारी नेमत उसको पहुंचेगी,
इमामे रब्बानी शैख़ अहमद मुजद्दिदे अल्फिसानी सरहिंदी फ़ारूक़ी रहमतुल्लाह अलैह के मुअल्लिक़ पेशनगोई :- सियाहत के ज़माने में आप का गुज़र सरहिंद शरीफ से हुआ आप ने फ़रमाया के मुझे यहाँ एक वली की खुशबू महसूस होती है एक ज़मानाए दराज़ के बाद इमामे रब्बानी शैख़ अहमद मुजद्दिदे अल्फिसानी सरहिंदी फ़ारूक़ी रहमतुल्लाह अलैह का ज़हूर हुआ,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की कुछ करामात :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह से खवारिक आदात व करामात का ज़हूर बहुत हुआ है, नकल: है के हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह तमाम बुज़ुर्गों के मक़ामात मुतअय्यन करके बताते थे के फुलां दुरवेश यहाँ तक पंहुचा फुलां यहाँ तक पंहुचा इस मंज़िल तक पंहुचा कमाल व जमाल किसी दुरवेश और साहिबे तसर्रुफ़ के आला मर्तबे की हद यहाँ तक सुनने में नहीं आयी,
नकल: है के हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के अगर में एक देग खाना पकाऊं और उससे क़यामत तक मखलूक खाती रहेगी मगर कमी नहीं होगी इस में ख़ल्क़ का भी फायदा है इस फरमान के बाद एक देग खाना पकाकर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मखलूक के हवाले कर दिया,
तीन दिन तक तमाम आने जाने वाले लोग इस देग से खाते रहे लेकिन उस में कुछ कमी नहीं आयी फिर आप ने फ़रमाया अहमद बन्दे सब खुदा के हैं वो रज़्ज़ाक़े मुतलक़ है, उसकी शान बड़ी है,
वो जाने और उसके बन्दे जाने तुम दरमियान में न पड़ो ये कहकर देग को उलट दिया,
नकल: है के एक दिन एक बरात अपनी पूरी आराइश के साथ आप के सामने से गुज़री, आप ने इस बरात पर जलाली नज़र डाली तमाम आदमी और घोड़े वहीँ पर जलकर खाक हो गए, थोड़ी देर के बाद जब आप को इफ़ाक़ा हुआ तो लोगों ने आप से ये वाक़िअ अर्ज़ किया आप ने दोबारा इस राख पर जमाली नज़र डाली तो सब उठ खड़े हुए और बदस्तूर चलने लगे,
नकल: है के शैख़ मुहिब्बुल्लाह इलाहबादी रहमतुल्लाह अलैह अपने तज़किरे में लिखते हैं के मख़्दूमे बर हक़ शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रहमतुल्लाह अलैह कई आदमियों को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से ज़िंदा कर दिया लोगों में शोहरा हो गया के अहमद मुर्दों को ज़िंदा करते हैं इस शोहरत की वजह से आप वहां से रूपोश होकर शहर भककर चले गए फिर इस फेल से तौबा करली,
नकल: है के ज़िला आसू मऊ रुदौली के क़रीब का जोलाहा शैख़ समाउद्दीन रुदौलवी रहमतुल्लाह अलैह का मुरीद था, वो आप की ख़ानक़ाह में भी आया करता था,
एक दिन उसने आप से मुरीद होने की गुज़ारिश की, आप ने फ़रमाया तुम पगड़ी शैख़ समाउद्दीन रुदौलवी रहमतुल्लाह अलैह को वापस कर दो,
उसने ऐसा ही किया उसके बाद आप के मुरीदों में शामिल हो गया, एक दिन कहने लगा पीर दस्तगीर इजाज़त मिले तो गुलाम ख़ानए काबा जाए, आप ने फ़रमाया चंद दिन रुको इंशा अल्लाह तआला हम तुम साथ चलेंगें, वो लोट गया, कुछ दिनों बाद फिर गुज़ारिश की आप ने यही जवाब दिया एक दिन साज़ो सामान के साथ आगया और इजाज़त के लिए इसरार करने लगा, आप ने फ़रमाया घर लोट जाओ सुबह को में आऊंगा और साथ चलेंगें आप के हुक्म के मुताबिक वापस घर चला गया, हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह आधी रात को आसू मऊ रुदौली के जंगल में “”हक़”” की आवाज़ बुलंद करने लगे,
जोलाहा आवाज़ सुनकर आ गया और साथ साथ चलने लगा, उसने देखा के हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के आगे तीन बुजरुग और भी हैं, उनके पीछे हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह और उनके पीछे वो खुद है गाँव अचूलिया के करीब सुबह ज़ाहिर होने लगी तो हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने जोलाहे को सब से आगे वाले पर जमाल बुज़रुग के क़दमों पर डाल कर अर्ज़ किया बेचारा ये ज़ईफ़ है वहां तक पहुंचने की ताक़त नहीं रखता,
थोड़ी देर बाद जब होश हवास ठीक हुए तो किसी को नहीं पाया और आपकी ख़ानक़ाह में आया, आप ने देखते ही फ़रमाया के तुम को सरकार दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत नसीब हुई सब से आगे सरकार दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम थे, आप के पीछे हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह और उनके पीछे हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह और उनके पीछे ये फ़क़ीर था, साहिबे मिरातुल असरार: हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैग फरमाते हैं के हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के इस्तिमाल में दो हुजरे थे, एक जलाली और जमाली, जलाली घर के कोठे पर था और जमाली उस के नीचे जब जलाली की कैफियत तारी होती तो आप जलाली में तशरीफ़ ले जाते थे और इज़्तिराबे अज़ीम पैदा होता था ऐसे आलम में नज़र क़हरो मादूम का असर रखती थी अगर किसी ज़ी रूह पर पड़ जाती थी तो हलाकत का बाइस हो जाती ऐसे नफ़्स को मारने वाले और तेज़ तासीर रखने वाले शैख़ बहुत कम देखे गए हैं,
विलायते अजुद्द्दिया (जिस को अयुद्धिया भी कहा जाता है) और हज़रत शैख़ जमालुद्दीन गूजर रहमतुल्लाह अलैह :- हज़रत शैख़ जमालुद्दीन गूजर रहमतुल्लाह अलैह आप हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह से फ़ैज़याब हुए आप के बारे में हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया था के मेने दयारे बक्र बक्कड़र से पंडवा तक सफर किया किसी मुस्लमान से मुलाकात न हुई, हाँ अजुद्द्दिया (जिस को अयुद्धिया भी कहा जाता है) में उस बच्चे को देखा शैख़ जमाल की तरफ इशारा करते हुए कहा,
नोट :-
“अनवारूर रहमान तन्वीरुल जिनान” मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान लखनवी में लिखा है के जहाँ पर हज़रत शैख़ जमालुद्दीन गूजर का मज़ार है इसी जगह पर हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने चिल्ला किया था,
साहिबे अख़बारूल अखियार: ने शैख़ जमालुद्दीन गूजर रहमतुल्लाह अलैह को शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का मुरीद तहरीर फ़रमाया है, मगर “साहिबे अनवारुल उयून” ने नहीं,
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शैख़ जमालुद्दीन गूजर रहमतुल्लाह अलैह कोन बुज़रुग हैं :- साहिबे मिरातुल असरार के मुताबिक़ शैख़ जमालुद्दीन गूजर रहमतुल्लाह अलैह को शैख़ मुज़फ्फर बल्खी के मुरीदों खलीफा थे, और वो हज़रत शैख़ शरफुद्दीन याहया मनीरी रहमतुल्लाह अलैह के, आप का तअल्लुक़ सिलसिलए फिरदोसिया से है, पीर के फरमान के मुताबिक़ अजुद्द्दिया (जिस को अयुद्धिया भी कहा जाता है) में सुकूनत रिहाइश इख्तियार की गूजर का लक़ब पाने की वजह ये है के घर से खिचड़ी का पतीला सर पे रखे हुए निकलते थे, और भूकों को खिलते थे एक बार शाह मूसा आशिकां की तरफ से गुज़रे उन के यहाँ तीन दिन से फ़ाक़ा था,
खाना उन की खिदमत में पेश किया उन्होंने फ़रमाया के दिल तुम्हारा इश्क से लबरेज़ है जो रवा दवां रखता है लेकिन सूरत गूजर की बनाए हो? उसी वक़्त से आप का लक़ब गूजर हुआ आप शैख़ फ़तेह उल्लाह ऊधी के हम असर थे उसी ज़माने में हज़रत शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए, आप उन के दामन से भी फ़ैज़याब हुए, साहिबे खज़ीनतुल असफिया के मुताबिक आप का विसाल 858, हिजरी में हुआ,
शैखुल आलम की दावत का वाक़िआ :- एक दिन हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने शहर अजुद्द्दिया (जिस को अयुद्धिया भी कहा जाता है) में बहुत बड़ी दावत की बड़े बड़े उमरा शहरो अवाम ने खाना खाया लेकिन शैख़ जमाल रहमतुल्लाह अलैह को नहीं बुलाया गया, उन्होंने मुलाकात होने पर शिकायत की के आप ने पूरे शहर को बुलाया और अपने मोनिस व महरमे राज़ को नहीं पूछा, तो शैखुल अमल रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया के सागाने दुनिया को बुलाया था, जमाल तुम तो इंसान हो तुम को कैसे बुलाता,
शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के हुक्म से दिवार चल पड़ी :- साहिबे मिरातुल असरार के मुताबिक एक दिन हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह अपने मुरीदों के साथ हुजरा बना रहे थे और खुद दिवार पर बैठे थे, शैख़ जमालुद्दीन घोड़ी पर सवार उधर से गुज़रे और आप से कहा क्या ये दिवार चल सकती है? आप ने दिवार से कहा के तू भी चल दिवार चलने लगी फिर आप ने शैख़ जमाल रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया के अब तुम अब अपनी घोड़ी चलाओ शैख़ जमाल ने बहुत कोशिश की मगर घोड़ी अपनी जगह से नहीं हिली उन्होंने शर्मिंदाह हो कर माफ़ी मांगी और सलामत रहे,
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शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के वक़्त में अजुद्द्दिया में किस की हुकूमत थी :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह जिस वक़्त अजुद्धिया में रहते थे उस वक़्त सुल्तान इब्राहीम शरकी जौनपुरी की हुकूमत थी अजुद्धिया अहले इस्लाम का मर्कज़ था, बड़े बड़े सूफ़िया औलिया अल्लाह बुज़रुग, व उलमा का फैज़ जारी था, खानकाहें क़ाइम थीं, मज़हबे इस्लाम की तालीम आम हो रही थी, “शैख़ फ़तेह उल्लाह ऊधी” शाह मूसा, आशिकां शैख़ जमाल गुजर और बहुत से मशहूर मुबल्लिग मुस्तकिल तौर से रहते थे,
मस्जिदें और मदरसे आबाद थे, अहले इस्लाम के मोहल्ले थे, और उनके मद्फ़न थे, अजुद्धिया में इस्लाम फ़ैल रहा था सूफ़ियाए किराम मुख्तलिफ सिसिलों से जोड़े हुए थे, मगर दीने मतीन के फरोग तरक़्क़ी में एक खानदान के अफ़राद की हैसियत खिदमात अंजाम दे रहे थे,
गोया अजुद्धिया उस वक़्त हैड क़्वार्टर था और वहीँ से गाँव दीहातों में पैगाम पहुंचने के लिए खुलफ़ा और मुरीदीन मुक़र्रर किये जाते थे,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह काफी अरसा तक रहे,
हालात से पता चलता है के वहां आप का मकान भी था, रुदौली में ख़ानक़ाह शरीफ क़ाइम करने से पहले खल्के खुदा की तरबियत के फ़राइज़ अंजाम देते रहे,
उस दौर के क़ुत्बे वक़्त हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह किछोछा शरीफ में 808, हिजरी में विसाल फ़रमाया, उन के बाद इस इलाके के चिश्ती मुबल्लिग आप हुए, शहर अजुद्धिया से अपने अज़ीज़ वतन रुदौली एक ज़माने के बाद तशरीफ़ लाए और खानकाहे आलिया सबिरिया क़ाइम कर के मसनदे रुश्दो हिदायत पर जलवा अफ़रोज़ हुए,
हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह की मुरीद की तरबियत फरमाना :- ख़ानक़ाहों में इस्लाहे नियत, इस्तिक़ामत, तवक़्क़ुल, अफू, ईसार, दियानतदारी, तहम्मुल, और खिदमते ख़ल्क़ की तालीम सुन्नते नबवी रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुताबिक दी जाती थी ताके तालिब में आला किरदार पैदा हो और वो एक नमूने की हैसियत से दुनिया के सामने आए जिससे इस्लाम दिलों में क़रार पकड़े,
हज़रत शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदौलवी रहमतुल्लाह अलैह का ये फ़र्ज़ था के इस्लाहे आगाज़ शरीअत की पाबन्दी से कराते,
आप ने अपनी ख़ानक़ाह का निज़ाम (सिस्टम) इन्ही उसूलों पर रखा था,
मुरीदी का इम्तिहान:
किसी शख्स को मुरीद करने से पहले अज़मते थे, के इस में गुरूर घमंड, गलत किस्म की खुदी, मेहनत से आर, और झूटी लगन तो नहीं है ये तरीका बना लिया था के इस्लाहे नफ़्स के लिए तालिब से आठ दिन ख़ानक़ाह का पानी भरवाते लकड़ियाँ ढुलवाते, जारूब कशी कराते और दूसरी खिदमात लेते मुरीद करने के बाद परखते जाचं करते के कोई लग़्ज़िश तो नहीं है,
शरई ज़िम्मेदारी मुरीद करने से पहले ये भी देखते के इस पर कोई शरई ज़िम्मेदारी तो नहीं है मसलन शैख़ बुख़्तियार जौनपुरी ने जब मुरीद होने के लिए अर्ज़ किया तो वो एक सौदागर के गुलाम थे, आप ने उन से फ़रमाया के जा कर अपने आक़ा की रज़ा हासिल करो,
इसी तरह मुख्लिस शाह से फ़रमाया के अपने लड़के, लड़की की शादी से फारिग होने के बाद आना वरना कोई ज़रूरत नहीं,
मुरीदीन शरई ज़िम्मेदारियों व फरमाबरदारी में मशगूल होते थे हर सेहत मंद मुरीद मेहनत और रोज़गार से अपने कुनबे परिवार की परवरिश करता था, और बाक़ी वक़्त ख़ानक़ाह शरीफ में गुज़ारता,
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हक़, हक़, हक़, :- शैखुल अमल रहमतुल्लाह अलैह की उल्फतो मुहब्बत का मब्दा “”हक़”” का इसमें आज़म था, आप जमाले खुदा वन्दी के मुशाहिदे में ग़र्क़ डूबे हुए रहते, “”हक़, हक़, हक़”” की बुलंद आवाज़ पर चश्मे हक़ीक़त नज़र खोलते जब पहली बार “हक़” लफ्ज़ कहा जाता तो आप रहमतुल्लाह अलैह, आलमे लाहूत से आलमे जबारूत में तशरीफ़ लाते, दूसरी बार आलमे जबारूत से आलमे मलकूत में नुज़ूल फरमाते और तीसरी बार आलमे मलकूत से आलमे नासूत की तरफ तवज्जुह फरमाते,
इसी निस्बत से आप के साहबज़ादों, मुरीदों और तालिबों की ज़बान पर लफ़्ज़े “हक़” जारी रहता इसमें “हक़” हमेशगी के बिनापर लोगों को “हक़ गो” और “हक़्क़ानी” कहा जाता था, और आप के मुरीदों की व तालिबों की ये खास अलामत है, उन लोगों को कहना भी हक़ देखना भी हक़ और सुन्ना भी हक़ था बल्के उनके जुमला अफआल व अक़वाल हक़ थे,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह:
की इबादतों रियाज़त में मक़ाम क़ुर्ब फ़राइज़ के आला दरजे पर था, मुशाहिदाए हक़ हमेशा ग़र्क़ रहते “”शरीअते मुताहरा में इसी को एहसान”” कहा गया है,
जैसा के मिश्कत शरीफ की हदीस है:
के एहसान ये है के तुम खुदा की इस तरह इबादत करो गोया के तुम उसे देख रहे हो और अगर तुम उसे नहीं देख सको तो ये यक़ीन हो के वो तुम्हे देख ही रहा है,
इबादत में “हक़” को देखने की सआदत सिर्फ मुन्तख़ब और यगानाए रोज़गार अल्लाह वालों के हिस्से में आती है जो हर ज़माने में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के तुफैल व सदक़े में दीन की तजदीद के लिए पैदा किए जाते हैं,
साहिबे मिरातुल असरार हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह मुतावफ़्फ़ा 165, हिजरी :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की सातवीं पुश्त में शैख़ हमीद (मुतावफ़्फ़ा 1032, हिजरी) इबने शैख़ क़ुतबुद्दीन इबने शैख़ पीर औलिया इबने शैख़ आरिफ अहमद इबने अशेखुल आलम अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी, साहब के सज्जादा के मुरीद और खलीफा “”साहिबे मिरातुल असरार हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती साबरी रहमतुल्लाह अलैह”” थे आप ने लिखा है के इस फ़क़ीर ने जब के हज़रत की वफ़ात पर दोसो साल गुज़र चुके हैं, आप के फैज़े रूहानियत से तरबियत हासिल की जब कोई सूरी व मअनवी तफरका पेश आता तो हज़रत क़िब्ला गाहि को बेदारी की हालत में अपनी तरफ मुतवज्जेह पाता, आप की विलायत और कमालात के तसर्रुफ़ात तक़रीरों तहरीर से बाहर हैं,
हज़रत शाह अब्दुर रज़्ज़ाक़ रहमतुल्लाह अलैह बांसा शरीफ बाराबंकी को आप ने खिलाफत दी :- आप की ज़ातो सिफ़ात मुहताजे तआरुफ़ नहीं, सिलसिलए क़दीरिया के मशहूर आलिमे दीन दुर्वेश फ़क़ीर हैं, आप ज़्यारत मज़ार के लिए रुदौली तशरीफ़ लाए दरगाह शरीफ के पूरबी हुजरे में चिल्ला कशी की और मुराकिबा किया, आलमे मुआमला में हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने आपको सिलसिलए साबिरिया चिश्तिया में बैअत किया और इज़ाज़ते बैअत अता फ़रमाई,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्र मुबारक का शक (खुलना) होना :- शैख़ अब्दुस्सत्तार रहमतुल्लाह अलैह मुरीद व खलीफा हज़रत शैखुल अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह अपने तज़किराह में लिखते हैं के जुमेरात का दिन था, एक जम्मे ग़फ़ीर (भीड़ भाड़) हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह की ज़्यारत के लिए जमा हुई थी, क़ुत्बे आलम शैखुल अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह मज़ारे मुबारक के चबूतरे के नीचे बैठे हुए थे के फ़ौरन मज़ारे मुबारक शक (खुलना) हुआ और आप माद्दी जिस्म के साथ मज़ारे मुबारक से बाहर निकल कर चबूतरे पर बैठ गए और क़ुत्बे आलम से मुखातिब हो कर फ़रमाया,
आप ने क़ुत्बे आलम रहमतुल्लाह अलैह का हाथ पकड़ कर फ़रमाया तुझको खुदा तक पंहुचा दिया जितने भी लोग मौजूद थे सभी ने अपनी आँखों से देखा,
हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा दर खुलफ़ा में बड़े बड़े जलीलुल क़दर औलिया अल्लाह सूफ़िया हुए और सब ने अपने अपने वक़्त में हुज़ूर शैखुल आलम के आस्ताने पर हाज़िर हो कर चिल्ला कशी और फ्यूज़ बातनि व बशारत उज़्मा से मुशर्रफ हुए,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के खुलफ़ा :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के वाहिद खलीफा आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह हुए, और आप के मुमताज़ खुलफ़ा में हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह हुए, और आप के साहबज़ादे हज़रत मखदूम शैखुल औलिया उर्फ़ शैख़ बुद्धा औलिया मशहूर ज़माना हुए, शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह से सिलसिलए चिश्तिया सबिरिया अहमदिया क़ुद्दूसीया चला और हज़रत शैख़ औलिया से सिलसिलए चिश्तिया सबिरिया अहमदिया, आप हुज़ूर शैखुल आलम के तीसरे सज्जादा नशीन थे, आप के बाद आप के फ़रज़न्द शैख़ पीर औलिया उनके बाद शैख़ क़ुतबुद्दीन उनके बाद शैख़ हमीद उनके बाद शैख़ सलीम उनके बाद शैख़ आरिफ सानी उनके बाद शैख़ मुहम्मद अशरफ उर्फ़ पीर अच्छे उनके बाद शैख़ बसावन उनके बाद शैख़ हाजी अहमद ज़मा उनके बाद शैख़ फ़क़ीर अहमद उनके शैख़ अली अहमद उनके बाद शाह दुर्वेश अहमद उनके बाद शैख़ इल्तिफ़ात अहमद उनके बाद शैख़ अहमद हयात अहमद उनके बाद शैख़ अफाक अहमद रहमतुल्लाह अलैहम ये सब हज़रात यके बाद दीगरे (एक के बाद दूसरा) अपने अपने वालिद के बाद हुज़ूर शैखुल आलम के सज्जादा नशीन होते रहे और सिलसिले को फरोग देते रहे,
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शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी बाराबंकवी को “तौशा” क्यों कहा जाता है? :- कहा जाता है के मज़ारे मुबारक हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर बानी सिलसिलाए आलिया सबिरिया एक ज़माने तक अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मख्लूक़ से पोशीदा (छुपना छुपाना) रहा हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह, मज़ारे मुबारक पर हाज़िर हुए और ख़ानक़ाह सबिरिया आबाद की इस हाज़री में दरगाह साबरे पाक से दो चीज़ें अता हुईं, एक तौशा और दूसरी जलाली व जमाल की शख्सियत,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह जब पहली बार हज़रत शैख़ जलालुद्दीन कबीरुल औलिया पानीपती रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए तो दस्तर ख्वान पर ममनू अशिया (चीज़ें) देख कर कुछ नहीं खाया और उठकर चले गए, जब दोबारा पिरो मुर्शिद की बारगाह में आए तो पिरो मुर्शिद ने “नान व हलवा” अता फ़रमाया,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का “तौशा” या तो पकाई हुई रोटियां हैं या हलवे पर मुश्तमिल होता है,
साहिबे मिरातुल असरार हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह :- हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा के जब शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने 6, महीने का अजुद्दिया में चिल्ला किया जब चिल्ला खत्म हो गया तो क़ब्र खुद बखुद खुल गई, मोतक़िदीन ने आप की खिदमत में पाकी हुई रोटी जिन पर घी शकर छिड़की हुई रोटी थी आप को पेश की आप ने कुछ चखी और हाज़रीन में तक़सीम फरमा दी,
“साहिबे अनवारुल उयून” ने लिखा है :- के हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह फरमाते हैं के शैख़ बख्तियार जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह मुरीद हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह तिजारत के लिए बाहर जाया करते थे उनकी बीवी को जब उनकी खैरियत न मालूम होती तो वो एक सेर रोटी पका कर और उसमे घी और शकर डालकर लातीं और हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह के सामने रखतीं और अपने शोहर का हाल पूछतीं आप हाल बताते, उस रोटी का नाम हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने “तौशा” रखा था,
“तौशा” बा हवाला “सैरुल अक़ताब” :-
हज़रत शैखुल हदिया चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के मुताबिक “तौशा” गेहूं की रोटी घी और शकर से मुराद है इस के पकाने का तरीका ये है के पाको साफ़ होकर एक सेर गेहूं के आटे की रोटियां पाको साफ़ जगह पकाई जाएं उनपर घी पाओ भर डाला जाए और उस पर पाओ भर शकर छिड़की जाए हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की रूहे पाक को फातिहा पढ़कर सवाब बख्शा जाए उसके अलावा हलवाई तर बनाकर भी हज़रत की रूहे पाक को फातिहा पढ़ कर सवाब बख्शा जाए जो निहायत मुजर्रब है,
तौशा की बरकत :-
हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह फरमाते हैं के “तौशा” मुसीबत गिरफ़्तारे बला को दूर करने के लिए मशहूर है, हर मुश्किल व परेशानी और ज़रुरत के लिए तौशा दिया जाता है बिला शको शोबा मुश्किल व परेशानी दूर हो जाती है,
“तौशा” की नियत :-
तौशे के लिए नियत कम से कम सच्चे दिल से नियत करना ज़रूरी है,
“सैरुल अक़ताब” फरमाते हैं के जब कोई भी शख्स रूऐ एतिक़ाद और खुलूस नियत के साथ किसी मुहिम किसी तमन्ना किसी मुश्किल और परेशानी के लिए “तौशा” नज़र कर सकता है, तोशाए शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह हिंदुस्तान में मशहूर है,
“तौशा” की माहियत किया है :-
“तौशा” की माहियत किया है और हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का तौशा से मकसद किया था? इस पर जुमला अहले नज़र सब खामोश हैं, हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह ने भी कोई वज़ाहत नहीं की सिर्फ इतना इशारा किया के मज़ीद हयात और तरक़्क़िए दरजात का बाइस होता है,
नामे मुबारक का वज़ीफ़ा :- आप के नामे मुबारक का वज़ीफ़ा भी परेशानियों से निजात का सबब होता है तरीका ये है वुज़ू कर के एक मुक़र्रर वक़्त पर तीन सौ साठ 360, बार “”अगिसननी व इम्ददनी या शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रहमतुल्लाह अलैह”” कम से कम एक हफ्ता पढ़ी जाए,
जारूब कशी :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह में जारूब कशी यानि झाड़ू देना भी दरजात में इज़ाफ़ा का सबब होता है और दिल की कुदूरत दूर करता है, अहले हक़ ने जारूब कशी की और कहते हैं के ये बात मरगूब खातिर होती, हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह ने सालों दरगाह व ख़ानक़ाह में झाड़ू दी है,
शाह अब्दुर रहमान लखनवी और उनके मुरीद मिर्ज़ा खुदा बख्श ने ज़्यारते मज़ार के ज़माने में जारूब कशी की है,
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आप की अज़वाज व औलाद :- आप रहमतुल्लाह अलैह ने एक शादी की थी आप की बीवी मुहतरमा मज़हबी शऊर रखती थीं, इनकी क़ब्र हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्र के पूरब की तरफ संगे मरर की है,
आप की कई औलादें हुईं फ़रज़न्द भी और और दुख्तर भी, “अनवारुल उयून” से पता चलता है के आप के दो बेटियां थीं एक के शोहर का नाम फरीद और दुसरे का जहाँ शाह था,
“बज़्मे सूफ़िया” में मियां फरीद और जहाँ शाह को एक ही शख्स लिखा गया है, मगर शजराए खानदान के मुताबिक मियां फरीद और जहाँ शाह दो अलग अलग शख्स थे, “अनवारुल उयून” में दो वाक़िए तहरीर हैं, एक तनहा मियां फरीद से, और दूसरा जहाँ शाह लिखा है,
बेटियों के अलावा आप के कई बेटे हुए मगर हज़रत शैख़ आरिफ अहमद रहमतुल्लाह अलैह के सिवा कोई ज़िंदा न रहा वही आप के खलीफा व सज्जादा नशीन हुए और उनके वाहिद खलीफा व सज्जादा नशीन साहबज़ादे हज़रत शैख़ मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह और उन के खलीफा हज़रत शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुल्लाह अलैह हुए हज़रत शैख़ मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह से सिलसिलाए खानदान व सज्जादगी तरीक़त जारी हुआ,
हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का शजराए तरीकत :-
- रहमतुल्लिल आलमीन हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम,
- हज़रत अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम रदियल्लाहु अन्हु,
- हज़रत ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ ख्वाजा फ़ुज़ैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा सुल्तान इब्राहिम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा हुज़ैफ़ा मरअशी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा हबीरा बसरी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा मुम्शाद अलू दिनोरि रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा अबू अहमद अब्दाल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा नासिरुद्दीन ख्वाजा अबू युसूफ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा मौदूद चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा हाजी शरीफ जंदनी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती हसन संजरी अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी ऊशी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत साबिरे पाक मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियारी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन तुर्क पानीपती रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत मख़्दूमुल मशाइख शैख़ मुहम्मद जलालुद्दीन कबिरुल औलिया उस्मानी पानीपति रहमतुल्लाह अलैह,
- दस्तगिरे बेकसां शैखुल आलम शैख़ अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी तौशा बाराबंकवी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ आरिफ रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत शैख़ बुद्धा औलिया // //
- हज़रत शैख़ पीर औलिया // //
- हज़रत शैख़ क़ुतबुद्दीन // //
- हज़रत शैख़ हमीद // //
- हज़रत शैख़ सलीम // //
- हज़रत शैख़ मुहम्मद आरिफ सानी // //
- हज़रत शैख़ मुहम्मद अशरफ उर्फ़ अच्छे पीर // //
- हज़रत शैख़ पीर बसावन // //
- हज़रत शैख़ हाजी अहमद ज़मान // //
- हज़रत शैख़ शाह फ़क़ीर अहमद // //
- हज़रत शैख़ शाह अली अहमद // /
- हज़रत शैख़ शाह दुर्वेश अहमद // //
- हज़रत शाह हाजी इल्तिफ़ात अहमद // //
- हज़रत शाह हयात अहमद // //
- हज़रत शाह आफ़ाक़ // //,
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आप का विसाले पुरमलाल :- हज़रत शैखुल आलम रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 15, जमादिउल उखरा 837, हिजरी असर व मगरिब के दरमियान रुदौली शरीफ में हुआ, “और आप का मज़ार शरीफ रुदौली ज़िला बाराबंकी में है जो लखनऊ से तक़रीबन 92, किलो मीटर इंडिया में है” आप का उर्स 11, 12, 13, जमादिउल उखरा को होता है, “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”,
मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- खज़ीनतुल असफिया, सैरुल अक़ताब, अनवारुल उयून, अख़बारूल अखियार, मिरातुल असरार, बज़्मे सूफ़िया, हयातुल शैखुल आलम, तारीखे मशाइखे चिश्त, तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, अनवारुल आशिक़ीन, तज़किराए औलियाए हिन्दो पाक,
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