एक जोगी की क़बीह (बुरी) हरकतों का आपने ख़ात्मा किया :- क़यामे अजूधन (पाक पतन शरीफ) के शुरू ही के दिनों का वाक़िअ है के आप रहमतुल्लाह अलैह जंगल में तशरीफ़ फरमा थे एक बूढ़ी औरत सर पर दूध की हांडी लिए गुज़री | आप रहमतुल्लाह अलैह ने पूछा अम्मा कहाँ से आ रही हो? कहाँ जारी हो? सर पर क्या है? उस ने रोते हुए कहा ऐ अल्लाह के नेक बन्दे इस क़स्बे में एक जोगी है जो गरीबों पर मुसीबत ढाता है | इस के हुक्म से कोई ज़र्रा भी सरताबी (नाफरमानी) करता तो वो उस पर बला नाज़िल करके तबाह कर देता है | जिससे जो चाहता है अपने चेलों से मंगवाता है कोई इंकार नहीं कर सकता | ये दूध उसी के हुक्म पर ले जा रही हूँ | इस गुफ़्तुग की वजह से जो देर हो गई है मालूम नहीं इसकी किया सज़ा मिलेगी? जोगी के ज़ुल्म की दासतान सुन कर आप रहमतुल्लाह अलैह ने अम्मा को तसल्ली देते हुए फ़रमाया बैठ जाईए घबराने की ज़रुरत नहीं, ये सारा दूध ख़ुशी से फ़क़ीरों में बाँट दीजिए आप का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता इसी दौरान जोगी का एक चेला वहां पहुंचा और उसने बूढ़ी औरत को डांटना चाहा आप रहमतुल्लाह अलैह |
ने उस की तरफ देखकर फ़रमाया ख़ामोशी से बैठजा |
जूहिं बैठा उसकी ज़बान बंद हो गई इतने में दूसरा चेला आ गया | वो भी खामोश बैठ गया | इसी तरह उसके सारे चेले आते गए और बैठ गए | अगर कोई उठना चाहता तो उठ ना पाता इतने में जोगी भी वहां पहुंच गया | अपने शागिर्दों की बे बसी देख कर आग बगुला हो गया और और जादू के ज़रिए उन्हें छुड़ाने की कोशिश करने लगा मगर बेसूद जब उसका कोई हरबा काम न आया तो बिला आखिर मजबूर हो कर आजिज़ी से कहने लगा हज़रत मेरे शागिर्दों को छोड़ दीजिए |
आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया एक शर्त पर रिहाई होगी, तो इस दयार से चला जा और कभी ऐसी ज़ालिमाना हरकतों का इरादा भी न करना | जोगी ने शर्त मान ली और उसी वक़्त सारा सामान लेकर अजूधन से चला गया | इस तरह जोगी के फ़ितने और ज़ुल्म से अजूधन के साधाह लोह इंसानो को निजात मिली |

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आप की अख़लाक़ो सिफ़ात :- हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने उलूमे मन्क़ूलात व माक़ूलात की आला तालीम पाई थी दीन के अख़लाक़ी उसूलों पर कामिल दस्तरस रखते थे और रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़े हसना से वाक़िफ़ थे घर के दीनी माहौल और अकाबिर उलमा व सुल्हा की सुहबत से उनकी ज़ात अख़लाक़े हसना और शाने सिफ़ाते कमालिआ की मज़हरे अतम बन गई थी | तवक्कुल व क़नाअत, सबरो रज़ा, इसारो अख़लाक़ो, इबादत व इस्तग़राक़, ज़ुहदो तक़वा, रियाज़त व मुजाहिदा, तरके दुनिया, खुश अख़लाक़ी शीरीं मक़ाली, खिदमते ख़ल्क़ अफ़ो दर गुज़र आप का शेवा बन गया था |

आप रहमतुल्लाह अलैह की सादगी :- हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह तवाज़ोह व इंकिसारी के पैकर थे अपने इरादत मंदों के हलकों में भी नुमाया मक़ाम पर बैठने से परहेज़ फरमाते मेहमान नवाज़ी के लिए बिला तअम्मुल ज़ेहमत उठाते | एक बार ख़ानक़ाह में कुछ दुर्वेश आए घर में जवार के सिवा कुछ और न था खुद ही ज्वार पीसा और रोटियां पकाकर दुरवेशों की ज़ियाफ़त फ़रमाई |
आप रहमतुल्लाह अलैह की सादगी :- आप रहमतुल्लाह अलैह की सादगी जिस कंबल पर दिन में बैठते थे इसी को रात के वक़्त अपना बिस्तरे इस्तिराहत बना लेते और तकिया की जगह सर के नीचे मुर्शिद का असा रख लेते |

आप रहमतुल्लाह अलैह की अफू दर गुज़र :- हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की बढ़ती हुई मक़बूलियत और फैली हुई शोहरत की वजह से अजूधन पाक पतन शरीफ का क़ाज़ी आप रहमतुल्लाह अलैह का दुश्मन बन चुका था आप रहमतुल्लाह अलैह और आप के मुतअल्लिक़ीन को रंज व तकलीफ पहुंचाने का कोई मौक़ा हाथ से जाने न देता नीज़ शहर भर के उमरा और रूऊसा को भी आप रहमतुल्लाह अलैह के खिलाफ भड़काता रहता लेकिन आप रहमतुल्लाह अलैह की बुर्दबारी और दरगुज़र का ये आलम था के दुश्मनो के ज़ुल्मो सितम बर्दाश्त करते रहे न कभी बदला लिया न ही कभी हर्फ़े शिकायत ज़बान पर लाए |

आप का मज़ारे पुर अनवार :- शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पुर अनवार पंजाब के शहर पाक पतन शरीफ पाकिस्तान में है |

एक ज़ालिम का अंजाम :- एक मर्तबा इसी क़ाज़ी ने आप रहमतुल्लाह अलैह के खिलाफ एक छोटा सवाल नामा तय्यार करके मदीनतुल औलिया मुल्तान के उलमा व मुफ्तियाने किराम से फतवा लेना चाहा और लिखा “ऐसे शख्स के बारे में किया हुक्म है जो अहले इल्म होने के बावजूद अपनी हालत दुरवेशों जैसी बना कर रखे हर वक़्त मस्जिद में रहे?” उल्माए किराम ने दरयाफ्त फ़रमाया उस शख्स का नाम क्या है? मजबूरन क़ाज़ी ने आप रहमतुल्लाह अलैह का नाम ज़ाहिर करना पढ़ा जिसे सुनते ही उल्माए किराम ने फ़रमाया ये सवाल नामा दुरुस्त नहीं तुम उस हस्ती पर इलज़ाम लगा रहे हो जिन पर उलमा और मुजतहिद भी ऊँगली नहीं उठा सकते क़ाज़ी अपनी इस हरकत पर बज़ाहिर शर्मिंदाह तो हुआ मगर मुखालिफत और इज़ा रसानी से बाज़ न आया उसके बुग्ज़ व इनाद की आग मुसलसल भड़कती रही मुरीदीन और मुतअल्लिक़ीन इस बात की शिकायत करते तो आप रहमतुल्लाह अलैह इरशाद फरमाते हैं सब्र करते हुए बर्दाश्त फरमाइए क़ाज़ी को ज़ुल्म व सितम करते 18 साल का तवील अरसा गुज़र गया बिला आखिर ज़ुल्म का सूरज यूं ग़ुरूब हुआ के एक दिन क़ाज़ी हस्बे मामूल आप रहमतुल्लाह अलैह की शान में नाज़ेबा कलमात कह रहा था अचानक उस पर फालिज और लकवा का हमला हुआ क़ाज़ी उसी वक़्त ज़मीन पर गिर गया लोगों ने देखा के उसका मूँह टेढ़ा हो चुका था ज़बान सूज चुकी थी और बिला आखिर वो मर गया |

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हर नेक बन्दे का एहतिराम कीजिए :- प्यारे इस्लामी भाइयों देखा आपने वाक़ई अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वालियों की बहुत बड़ी शान होती है शाने औलिया समझने के लिए ये हदीस शरीफ मुलाहिज़ा फरमाइए चुनाचे सय्यदुल अम्बिया वल मुर्सलीन रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने दिल नशीन है थोड़ा सा रिया भी शिर्क है और जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वली से दुश्मनी करे वो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से लड़ाई करता है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त नेकों, परहेज़ गारों, चुपे हुओं को दोस्त रखता है के ग़ालिब हों तो ढूंढे न जाएँ, हाज़िर हों तो बुलाएँ न जाएँ और उनको नज़दीक न किया जाए उन के दिल हिदायत के चिराग हों हर तारीक़ गर्द आलूद से निकलें हमें हर पाबंद शरीअत मुस्लमान का अदब व एहतिराम करना चाहिए क्यूंकि बाज़ लोग गुदड़ी पोश बुज़रुग होते हैं और हमें पता नहीं चलता और बसा औक़ात उनकी बेअदबी आदमी को बर्बादी के अमीक़ घड़े में गिरा देती है |

आप रहमतुल्लाह अलैह उलूम व फुनून के माहिर थे :- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप रहमतुल्लाह अलैह को बेशुमार उलूम व फुनून से नवाज़ा था विलायत के मुन्किरीन भी आप रहमतुल्लाह अलैह के अख़लाक़े हसना के गरवीदह हो जाया करते थे चुनाचे मौलाना बदरुद्दीन इस्हाक़ बिन मिन्हाजुद्दीन बुखारी जो माक़ूलात व मन्क़ूलात के बेनज़ीर फ़ाज़िल थे | शहर दिल्ली के मगरबी मदरसा में दरस दिया करते थे | वो इल्मे बातिन के शदीद मुनकिर और दुरवेशों से सूए बातिन रखते थे | इत्तिफ़ाक़न उन को चंद मुश्किल मसाइल पेश आए मुआसिर उलमा इन इल्मी मुश्किलात को हल करने से क़ासिर थे | इन मसाइल को लेकर मौलाना बदरुद्दीन बुखारा के लिए रवाना हुए दौराने सफर अजूधन में क़याम किया | उन के हम सफर रुफ्क़ा बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत के लिए आमादा हुए उन से भी बारगाहे आली में चलने का इसरार किया |
मौलाना ने जवाब दिया तुम जाओ मेने बहुत से ऐसे शैख़ देखे हैं उनकी सुहबत में वक़्त ज़ाए करने से क्या फाइदा? लेकिन रुफ्क़ा ने ज़्यादा इसरार किया तो मौलाना बदरुद्दीन हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के आस्तानए करम पर पहुंचे थोड़ी देर बाद बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने मौलाना की तरफ तवज्जु फ़रमाई दौराने गुफ्तुगू तमाम पेचीदा मसाइल हल और इल्मी दक़ाइक़ रौशन हो गए |
कश्फ़ और उलूम व फुनून की रज़्म शनासि मौलाना को इस क़द्र मुतअस्सिर किया के मशाइख से उन का इंकार जाता रहा और सच्ची तौबा करके हलक़ाए इरादत में दाखिल हो गए बुखारा का इरादा करके अजूधन में ही रहले लगे रात दिन बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में रहकर फैज़ हासिल करते रहे जंगल से लकड़ियों का गठ्ठा सर पर लादकर बावर्ची खाने के लिए लाते आप रहमतुल्लाह अलैह को बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह की दामादी और खिलाफत का शरफ़ मिला |

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दिल जोई ने दिल जीत लिया :- हज़रत सय्यदना फसीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को कई उलूम पर उबूर हासिल था बल्कि एक मौके पर आप रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी इल्मी सलाहियत का लोहा दिल्ली के उलमा से भी मनवा लिया था | इसी लिए पहले आप किसी और आलिम को खुद से बरतर न समझते थे एक दिन आप रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का इम्तिहान लेने पाक पतन आए और आप की बारगाह में आकर मुनाज़िराना अंदाज़ में सवालात करने लगे हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह मुनाज़िराना अंदाज़ पसंद नहीं फरमाते थे लिहाज़ा आप रहमतुल्लाह अलैह खामोश रहे लेकिन आप के मुरीदे कामिल “हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह” से रहा न गया उन्होंने तमाम सवालात के निहायत मुदल्लल जवाबात दिए जिससे हज़रत सय्यदना फसीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को सख्त शर्मिंदाह हो कर वापस लौटना पड़ा |
उनके जाने के बाद हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह “हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह” की जानिब मुतवज्जेह हुए और नाराज़ी से इरशाद फ़रमाया आप के इस तरह जवाब देने से उनकी दिल आज़ारी हुई है क्यूंकि मौलाना फसीहुद्दीन पिनदारे इल्म में मुब्तला थे और उसके टूटने से उन्हें सख्त तकलीफ हुई जाइए उनकी दिल जोई कीजिए “हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह” हुक्म पाते ही फ़ौरन हज़रत सय्यदना फसीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के पास तशरीफ़ लाए और माज़िरत की आप की माज़िरत पर हज़रत फसीहुद्दीन ने कहा मौलाना आप माज़िरत क्यों कर रहे हैं? आप ने तो बिलकुल दुरुस्त जवाब दिए थे “हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह” ने फ़रमाया दर अस्ल हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह आप की दिल जोई को मेरे जवाबात पर तरजीह देते थे इसी लिए मेरे जवाबात देने पर नाराज़ हुए और मुझे माज़िरत करने का हुक्म फ़रमाया ये सुनकर हज़रत सय्यदना फसीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह बहुत मुतअस्सिर हुए और “हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह” के साथ पाक पतन हाज़िर हुए और बैअत की इल्तिजा की |
हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया में इस शर्त पर मुरीद करता हूँ के आप अपना पिनदारे इल्मी बहार निकल दीजिए और आइंदा किसी से भी बहसों मुनाज़िरा न कीजिए |
क़ुरानी हुक्म के मुताबिक़ तबलीग़े हक़ हिकमत से होनी चाहिए न के दबाओ से बहसों मुनाज़िरे में शिकस्त खाने के बाद दिल में ज़िद व नफरत पैदा होती है और हक़ क़बूल करने की तौफ़ीक़ जाती रहती है फिर इस दरवाज़े को खोलने में बड़ी देर लगती है इस के बाद बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़ारसी अशआर में जो नसीहत फ़रमाई उस का तर्जुमा कुछ इस तरह है “माना के आप रात भर नमाज़े पढ़ते हैं और दिन को बीमारों की तीमारदारी करते हैं लेकिन याद रखिए जब तक आप अपने दिल को गुस्सा व कीने से खली नहीं करेंगें तो ये सब कुछ करना ऐसा ही होगा जैसे एक नए कांटे पर सैंकड़ों फूलों के टोकरे निछावर कर दिए जाएं ये सुनकर हज़रत सय्यदना फसीहुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने बहसों मुनाज़िरह से तौबा की फिर हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आप को मुरीद फरमा लिया |

आप का मज़ारे पुर अनवार :- शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पुर अनवार पंजाब के शहर पाक पतन शरीफ पाकिस्तान में है |

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हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह पर जादू :- हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन मेहमूद रौशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं एक जादूगर ने हज़रत सय्यदना बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह पर जादू कर दिया जिसकी वजह से आप रहमतुल्लाह अलैह सख्त बीमार हो गए न भूक लगती न प्यास और तबियत पर सख्त बूझ महसूस होता |
सुल्तानुल मशाइख हज़रत सय्यद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया और हज़रत मौलाना बदरुद्दीन इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैहिमा जादू का पता लगाने में मसरूफ हो गए आखिर कार एक क़ब्र से आटे का पुतला निकला जिसमे बहुत सी सूईंया चुभी हुईं थीं दोनों बुज़ुर्गों ने वो आटे का पुतला हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में लाए जूँ जूँ सूईंयां निकाली गईं वैसे ही आप रहमतुल्लाह अलैह की तबियत ठीक होती रही यहाँ तक के आखरी सुई निकलते ही आप रहमतुल्लाह अलैह तंदुरुस्त हो गए |
पाक पतन के हाकिम ने उस जादूगर को गिरफ्तार करके आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में रवाना कर दिया आप खुद ही इस के लिए सज़ा तजवीज़ फरमा दें आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे सेहत की नेमत अता फ़रमाई है लिहाज़ा में जादूगर को माफ़ करता हूँ जादूगर आप रहमतुल्लाह अलैह के हुसने अख़लाक़ से इस क़द्र मुतअस्सिर हुआ के फ़ौरन क़दमों में गिर पड़ा और तौबा ताइब हो कर आप रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों में शामिल हो गया |

नफ़्स की मुखालिफत :- हज़रत सय्यद ख़्वाजा मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को अंगूर बहुत पसंद थे एक बार नफ़्स ने मुतालबा किया के आज अंगूर ज़रूर खाने है आप रहमतुल्लाह अलैह ने गौर फ़िक्र करने के बाद क़सम खाई के आइन्दाह कभी अंगूर नहीं खाऊँगा और नफ़्स को मुखातिब करते हुए फ़रमाया ऐ नफ़्स अब तेरी ये आरज़ू कभी पूरी नहीं करूंगा | हज़रत मौलाना बदरुद्दीन इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैह जो दिन रात बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की सुहबत में रहते थे क़सम खाकर फरमाते हैं ख़्वाजा साहब रहमतुल्लाह अलैह ने बाक़ी सारी उमर कभी अंगूर नहीं खाए ताके नफ़्स ग़ालिब न आए |

हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह रमज़ान में दो क़ुरआन मजीद ख़त्म करते थे :- बाज़ औक़ात ऐसी कैफियत तारी होती के आप रहमतुल्लाह अलैह एक एक दिन में हज़ार हज़ार सजदे अदा फरमाते और ईशा की नमाज़ पढ़ कर पूरी रात इबादत और इस्तगराक़ में मशगूल रहते थे | रमज़ान में रोज़ाना रात को दो क़ुरआन मजीद ख़त्म करते थे इस सिलसिले में आप रहमतुल्लाह अलैह खुद इरशाद फरमाते हैं के में तीस साल तक इस क़द्र मुजाहिदात में मशगूल रहा के न दिन को दिन समझा न रात को रात दिन भर तिलावते क़ुरआन से अपनी ज़बान तर रखता जबकि रात भर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में मुनाजात करता और नवाफिल में मसरूफ रहता था |
बारगाहे फरीदी का जलाल :- जब हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह मुरीदों और खिदमत गारों के दरमियान जलवा फ़रमा होते रोअब व जलाल का ये आलम होता के लोग दोज़ानों और दस्त बस्ता बैठे रहते उनकी ऑंखें झुकी होतीं जबकि कभी कभार इस क़द्र ख़ामोशी तारी होती के लोगों के सांसों की आवाज़ साफ़ सुनाई देती |
तरीक़ए बैअत :- आप रहमतुल्लाह अलैह की इस्लाही जिद्दो जिहद का आगाज़ दीनी तरबियत से होता था शरीअत की खिलाफ वरज़ी ज़र्रा बराबर बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते अरकाने इस्लाम की पाबन्दी पर बहुत ज़ोर देते और मुरीद करते वक़्त हर एक से ये अहद लिया करते के “में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से अहद करता हूँ के अपने हाथ पाऊँ और आँखों को ख़िलाफ़े शरआ बातों से बचता रहूंगा और एहकामे शरीअत बजा लाऊँगा इंशा अल्लाह अज़्ज़ावजल |

आप रहमतुल्लाह अलैह की सूफियाना काविशें :- दीने इस्लाम की तरवीजो इशाअत के सिलसिले में सोफ़ियाए किराम रहीमा हुमुल्लाहु तआला के दो पहलु बड़े नुमाया होते हैं: एक ये के मुसलमान को पक्का दीनदार, मुत्तक़ी और परहेज़गार बनाना उनकी ज़ाहिरी व बातिनी इस्लाह करते हुए उन्हें राहे सुलूक के बुलंद मरातिब तय करवाना दूसरा गैर मुस्लिम को अपने अख़लाक़ व मुहब्बत की कशिश से कुफ्र व शिर्क के गहरे और तरीक गार से निकालकर इस्लाम की रौशनी में लाना जिस ज़माने में हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह पाक पतन शरीफ तशरीफ़ लाए तो शहर मुज़ाफ़ात में गैर मुस्लिम क़ौमे बहुत आबाद थीं ये लोग सख्त वहशी वहम परस्त जाहिल और छूत छात के मरीज़ थे आप रहमतुल्लाह अलैह ने उनको इस्लाम की हक़्क़ानियत से आगाह किया यहाँ तक के आप रहमतुल्लाह अलैह की ज़ाते गिरामी के फैज़ से हज़ारों आदमी हलका बगोशे इस्लाम हुए और सैंकड़ों ने विलायत के मदारिज तय किए आप रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे करम से गुमराह हादी और चोर वली बन गए |

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आप रहमतुल्लाह की मशहूर करमात :- एक मर्तबा एक खातून हाज़िर हुई के हज़रत मेरी तीन जवान बेटियां हैं जिनकी शादी करनी है आप मदद फरमाइए आप रहमतुल्लाह अलैह ने खादिम से फ़रमाया जो कुछ भी दरगाह पर मौजूद है वो खातून को दे दो खादिम ने अर्ज़ की हुज़ूर आज कुछ भी नहीं बाक़ी बचा ये सुनकर खातून रोने लगी के में बहुत मजबूर हूँ और आस लेकर आयी हूँ आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के जाओ बाहर से एक मिटटी का ढेला उठालाओ वो मिटटी का ढेला उठा लायी आप रहमतुल्लाह अलैह ने बुलंद आवाज़ से सूरह इखलास पढ़कर इस पर दम किया वो मिटटी का ढेला सोना बन गया ये देख कर सब हैरान हुए खातून सोना घर ले गई और घर जाकर उसने भी पाक साफ़ होकर सूरह इखलास पढ़ कर मिटटी के ढेले पर दम किया मगर वो सोना न बन सका आख़िरकार तीन दिन तक यही अम्ल करती रही मगर बेसूद |
नचार आप रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर हुई और कहने लगी हुज़ूर मेने भी सूरह इखलास पढ़ी लेकिन मिटटी सोना नहीं बनी आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया तूने अम्ल तो वही कुछ किया मगर तेरे मुँह में फरीद की ज़बान नहीं |

आप का मज़ारे पुर अनवार :- शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पुर अनवार पंजाब के शहर पाक पतन शरीफ पाकिस्तान में है |

पाक पतन में “जन्नती दरवाज़ा” :- हज़रत पीर सय्यद गुलाम हैदर अली शाह जलाल पूरी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक बार हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह की तबीयत नासाज़ थी हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हुक्म हुआ के अत्तार की दुकान से जाकर नुस्खा लाएं आप रहमतुल्लाह अलैह दुकान पर बैठे नुस्खा बंधवा रहे थे के शोर हुआ के एक बुज़रुग पालकी में सवार होकर आ रहे हैं और अवाज़ा देने वाला उनके आगे आगे आवाज़ दे रहा है जो इनकी ज़ियारत करेगा वो जन्नती होगा लोग जोक दर जोक ज़ियारत को जा रहे थे लेकिन हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने कोई तवज्जुह न दी बल्कि जब पालकी क़रीब आयी तो दुकान के अंदर के हिस्से में तशरीफ़ ले गए हर चंद लोगों ने इसरार किया मगर हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने तवज्जो न फ़रमाई जब पालकी गुज़र गई तो आप नुस्खा लेकर हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह ने देर से आने की वजह पूछी तो आप ने जवाब में पूरा वाक़िअ अर्ज़ कर दिया |
हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह अपने बा अदब मुरीद की ये बात सुन कर बहुत खुश हुए और जोश में आकर फ़रमाया “ऐ फरीद” उसकी ज़ियारत करने से लोग आज के दिन जन्नती होते हैं तो तुम्हारे दरवाज़े से क़यामत तक जो भी गुज़रेगा इंशा अल्लाह वो जन्नती होगा |
हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के सालाना उर्स के मौके पर लाखों अक़ीदत मंद दूर दराज़ मक़ामात से सफर कर के मज़ार मुबारक की ज़ियारत करते हैं और “बहिश्ती दरवाज़े” से गुज़रते हैं ये दरवाज़ा पांच से दस मुहर्रमुल हराम तक हर रात खोला जाता है |
इसे “बहिश्ती दरवाज़ा” कहने की एक वजह ये भी है के एक बार सुल्तानुल मशाइख हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे पुर अनवार पर हाज़िर हुए तो ख्वाब में देखा के रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दरवाज़े पर जलवा फरमा है और फरमा रहें है के निज़ामुद्दीन जो शख्स इस दरवाज़े में दाखिल होगा उसे अमान मिलेगी उस दिन से इस दरवाज़े का नाम “बहिश्ती दरवाज़ा” पढ़ गया |

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आप के मलफ़ूज़ाते शरीफा :- हर शख्स को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ही देता है और जब वो अता फरमाता है तो कोई छीन नहीं सकता, अपने आप से भागना गोया खुदा तआला तक पहुंचना है, जाहिल व नादान को ज़िंदह ख्याल न करो, जो शख्स नादान होकर अपने आप को दाना ज़ाहिर करे उससे हमेशा बच कर रहो, जो सच झूट के मुशाबे हो उसे ज़बान से न निकालो, हर शख्स की रोटी न खाओ हाँ आलिम लोगों को बगैर किसी तखसीस के खाना दो, जिस बात का यक़ीन न हो उसे अपने अटकल पच्चू से न कहो, दुश्मन से मेहफ़ूज़ रहने की हमेशा कोशिश करो, गुनाह कर के शेखी भगारना मायूब है, किसी पर एहसान न जटाओ, औरतों में गलियां देनी की आदत पैदा न करो, मुफ़लिसों और शिकिस्ता दिलों के पास बैठों, अपने ऐब को हमेशा ज़ेरे नज़र रखो |

हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की औलाद :- बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने चार शादियाँ की थीं | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप रहमतुल्लाह अलैह को पांच बेटे और तीन बेटियां अता फ़रमाई थीं | बेटों के नाम ये थे: (1) शैख़ नसीरुद्दीन नसरुल्लाह (2) शैख़ शहाबुद्दीन (3) शैख़ बदरुद्दीन सुलेमान (4) ख्वाजा निज़ामुद्दीन (5) शैख़ याक़ूब जबकि बेटियों के नाम ये थे (1) बीबी मस्तूराह (2) बीबी शरीफा (3) फातिमा |
आप रहमतुल्लाह अलैह की दूसरी बेटी हज़रत बीबी शरीफा रहमतुल्लाह अलैहा ज़ुहदो इबादत में अपने ज़माने की हज़रते सय्यदह राबिया बसरिया रहमतुल्लाह अलैहा थीं और हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह आप के बारे में अक्सर फ़रमाया करते थे के अगर औरतों को खलीफा करना जाइज़ होता में शरीफा को अपना खलीफा और सज्जादह नशीन कर देता |

आप का विसाले बा कमाल :- शाबानुल मुअज़्ज़म 663 हिजरी मुताबिक़ मई 1265 ईस्वी में हज़रत बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की बीमारी ने शिद्दत इख़्तियार की शदीद तकलीफ में भी आप रहमतुल्लाह अलैह नमाज़े बा जमाअत ही अदा करते रहे नीज़ औराद व वज़ाइफ़ और नवाफिल में कमी न आने दी यहाँ तक के मुहर्रमुल हराम 664 हिजरी का चाँद नज़र आ गया मुरीद हाज़िरे खिदमत हुए तो उन्हें दुआओं से नवाज़ा 4 मुहर्रमुल हराम को सुबह से ही क़ुरआने पाक की तिलावत शुरू फ़रमादि यहाँ तक के पांच मर्तबा खत्मे क़ुरआन फ़रमाया 5 मुहर्रमुल हराम 664 हिजरी मुताबिक़ 17 अक्टूबर 1265 ईस्वी को सुबह से दस बजे तक पांच मर्तबा क़ुरआने पाक की तिलावत फ़रमाई उस के बाद ज़िक्र व अज़कार में मशगूल हो गए जब ज़िक्र से फारिग हुए तो मुरीदीन क़रीब आकर बैठ गए आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया बाहर जाकर बैठ जाओ |
जब में बुलाऊँ तो अंदर आजाना कुछ देर के बाद आवाज़ आयी के अब दोस्त का दोस्त से मिलने का वक़्त क़रीब आ गया है सब लोग अंदर गए ईशा की नमाज़ बा जमात अदा करने के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह पर ग़शी तारी हो गई होश आया तो पूछा किया ईशा की नमाज़ पढ़ चुका हूँ अर्ज़ की गई जी हाँ फ़रमाया दोबारा पढ़ना चाहता हूँ ये कह कर वुज़ू किया और नमाज़ अदा की फिर दोबारा बेहोशी तारी हो गई होश आया तो तीसरी मर्तबा नमाज़ पढ़ने की ख्वाइश का इज़हार फ़रमाया और वुज़ू करके नमाज़ पढ़ी फिर दो नफ्ल की नियत बांधली जब पहली रकअत के सजदे में पहुचें तो बुलंद आवाज़ से “या हय्यू या क़य्यूम” कहा फिर आप का विसाल के हो गया |
इन्तिक़ाल की खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई एक कोहराम मच गया इतने लोग जमा हुए के नमाज़े जनाज़ा का इंतिज़ाम शहर से बाहर करना पड़ा आप रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा मौलाना बदरुद्दीन इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैह ने नमाज़े जनाज़ा पढाई फिर फिर जस्दे अक़दस को शहर में लाया गया क़बर के लिए कच्ची ईंटों की ज़रुरत पड़ी तो आप रहमतुल्लाह अलैह के घर का दरवाज़ा तोड़ कर ईटें निकली गईं | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो

फ़रीदुल हक़, हक़ से जामिले :- हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है जिस रात हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का विसाल हुआ हुआ एक बुज़रुग रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाब में देखा के आसमान के दरवाज़े खुले है और ये निदा आ रही है के ख्वाजा फ़रीदुल हक़ हक़ से जामिले और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त आप से खुश है |

आप का मज़ारे पुर अनवार :- शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का मज़ारे पुर अनवार पंजाब के शहर पाक पतन शरीफ पाकिस्तान में है |

माआख़िज़ व मराजे: हयाते गंजे शकर, सवानेह बाबा फरीद गंजे शकर, तज़किराए औलियाए पाकिस्तान, सैरुल अक़ताब, फवाइदुल फवाइद,अख़बारूल अखियार, खज़ीनतुल असफिया, गुलज़ार अबरार, मिरातुल असरार, अनवारुल फरीद, तज़किराए औलियाए सिंध, हश्त बहिश्त मुतर्जिम सैरुल औलिया, अल्लाह के सफीर, मक़ामाते गंजे शकर |

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