दो जहाँ में ख़ादिमें आले रसूलुल्लाह कर, हज़रते आले रसूले मुक़्तदा के वास्ते आपके

आपकी विलादत बा सआदत :- माहे रजाबुल मुरज्जब 1209 हिजरी मुताबिक़ 1795 ईस्वी मारहरा शरीफ ज़िला एटा उत्तर प्रदेश हिन्द (हिंदुस्तान) में हुई |

आपका इसमें गिरामी :- आपका नामे नामी “आले रसूल” है और लक़ब “ख़ातिमुल अकाबिर” है |

आपके वालिद माजिद :- आपके वालिद माजिद का नामे नामी इसमें गिरामी सय्यद शाह “आले आले बरकात सुथरे मियां” रहमतुल्लाह अलैह है |

आपकी तालीम व तरबियत :- आपकी तालीम व तरबियत वालिद माजिद की आग़ोशे शफ़क़त में हुई और इन्ही की निगरानी में आपकी नशो नुमा (परवरिश) हुई | आपकी शुरू की तालीम हज़रत ऐनुल हक़ शाह अब्दुल मजीद बदायूनी साहब, हज़रत मौलाना शाह सलामतुल्लाह कश्फी बदायूनी से खानकाहे बरकातिया में पढ़कर फिरंगी महल के उलमा मौलाना अनवार साहब फिरंगी महली, हज़रत मौलाना अब्दुल वासे और हज़रत मौलाना शाह नूरुल हक़ रज़ज़ाक़ि लखनवी उर्फ़ मुल्ला नूर से क़ुतुब माक़ूलात, मन्क़ूलात, इल्मे कलाम, इल्मे फ़िक़्ह व उसूल की तहसील व तकमील फ़रमाई |

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आपकी दस्तारे फ़ज़ीलत और आपको इल्मे हदीस की सनद किसने दी? :- सिलसिलाए रज़्ज़ाक़िया की सनद व इजाज़त हासिल फ़रमाई 1226 हिजरी में हज़रत मखदून शैखुल आलम अब्दुल हक़ रदोल्वी (विसाल 870 हिजरी) के उर्स मुबारक के मौके पर मशहूर उलमा, मशाइख की मौजूदगी में दस्तारे फ़ज़ीलत से सरफ़राज़ फ़रमाया गया और इसी सन पे हुज़ूर अच्छे मियां रहमतुल्लाह अलैह के इरशाद के बमूजिब हज़रत मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी के दरसे हदीस में शरीक हुए “सेहा सित्ता” का दौरा करने के बाद सलासिल हदीस व तरीक़त की सनादें अता फ़रमाई और सनादे इल्म हिंदसा दो मकाला अक़्लीदस सुना कर मौलाना शाह नियाज़ अहमद बरेलवी से हासिल की | (बरकाते मारहरा)

फ़न्ने तिब :- आपने फ़न्ने तिब में अपने वालिद माजिद सय्यद शाह “आले आले बरकात सुथरे मियां” रहमतुल्लाह अलैह से और हकीम फ़रज़न्द अली खान मोहानी से हासिल किया |

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बैअत व खिलाफत :- आपको खिलाफत व इजाज़त “हुज़ूर सय्यदी अच्छे मियां रहमतुल्लाह अलैह” से और वालिद माजिद ने भी इजाज़त अता फ़रमाई थी मगर आप मुरीद हज़रत अच्छे मियां रहमतुल्लाह अलैह के सिलसिले में फरमाते थे |
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आप सिलसिलाए आलिया क़दीरिया के सैंतीसवें इमाम हैं :- आपके फ़ज़ाइल व कमालात ख़ातिमुल अकाबिर अश्शाह आले रसूल मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह आप सिलसिलाए आलिया क़दीरिया के सैंतीसवें इमाम व शैख़े तरीक़त हैं आप तेहरवी सदी हिजरी के अकाबिर औलिया अल्लाह में से थे | आपकी वो अज़ीम शख्सियत थी जिसकी मसाई (कोशिश) से इस्लाम व मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत को इस्तेहकाम हासिल हुआ | बड़े निडर, बेबाक, शफ़ीक़, और महरबान थे | गरीब व मिस्कीन की ज़रूरतों को पूरी करते | उलूमे ज़ाहिर व बातिन में माहिर थे | आपके मुकाशिफ़ा में अजीब शान थी, आप अपने अस्लाफ (बुज़रुग) की ज़िंदह व ताबिंदाह यादगार थे | आप के दौर में सिलसिलाए बरकातिया की काफी इशाअत हुई | आपकी शान बड़ी अरफ़ा व आला है | चुनांचे इमाम अहले सुन्नत मुजद्दिदे आज़म फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने बा ज़बाने फ़ारसी 42 अशआर क़लमबन्द फरमाए हैं |

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आपके आदात व सिफ़ात :- आपके आदात व सिफ़ात में भी शरीअत की पूरी जलवागरी थी और शरीअते मुतहरा की गायत दर्जा पाबन्दी फरमाते नमाज़ बा जमाअत मस्जिद में अदा फरमाते और तहज्जुद की नमाज़ कभी क़ज़ा न होने देते निहायत करिमुन नफ़्स (दरिया दिल, नेक दिल) ऐब पोश और हाजत बर आरी में यगानाये असर थे जो अहादीसे नबवी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल हैं | वही दुआएं अता करते | हमेशा लिबास दुरवेश व उलमा में रहते तकल्लुफ़ात मशाइखाना से परहेज़ करते | आपकी महफ़िलो मजालिस में वाइज़, नअत ख्वानी, व मन्क़बत, व खत्मे क़ुरआन, व किरात, दलाइलुल खैरात, उर्स की मेहमानदारी बाक़ी रखी थी फ़ुज़ूलियात की हुज़ूर के दरबार में जगह न थी,ज़ाहिर शरीअत से एक ज़र्रा तजावुज़ गवारा नहीं करते |

आपकी जूदो सखावत :- आपकी सखावत का ये आलम था के लोग मसनूई ज़रूरियात बता कर जब चाहते रूपया मांग कर आप से ले जाते और चोर बद मआश मुसारीफ़ों की सूरत में आते और आपकी बारगाह से बामुराद लौट ते | आपकी अहलिया मुहतरमा अर्ज़ करती हैं के आप वली हैं तो सब को वली ही समझते हैं कुछ एहतियात फरमाएं मगर आप खुद घर में जाकर साइल के लिए ज़रूरी अशिया लाते और दे देते जो हाजत मंद आता उसकी हाजत पहले करते और अक्सर ऐसा होता अपने कपड़े तक उतार कर दे देते | हर खादिम व मुरीद से निहायत शफ़क़त महरबानी से मुआमला फरमाते उनकी पुरशिश हाल हवाइज इनसिराम ख़ता पर माफ़ी मुआविनात आदते करीमा थी | कसरे नफ़्स और कमाल और दुरवेशी ये है के हर क़िस्म के इस्तेहक़ाक़ फाइक के हुज़ूर नमाज़ जमाअत एक हाफ़िज़ से पढ़ वाते कभी इमाम न बनते एक बार मुफ़्ती ऐनुल हसन साहब बिलगीरामि ने जिनका मुकाशिफ़ा बहुत बड़ा हुआ था जमाअत में शरीक होकर नमाज़ तोड़ दी और सलाम के बाद हाफ़िज़ साहब से फ़रमाया के मर्दे खुदा नमाज़ में बाजार जाने और सौदा खरीद ने की ज़रुरत नहीं हम तुम्हारे साथ कहा कहा परेशान फिरें? हज़रत मुफ़्ती साहब का सवाल सुनकर उन पर सख्त बरहम हुए और इरशाद फ़रमाया बेहतर है के आप खुद नमाज़ पढ़ाएं वरना हाफ़िज़ साहब के साथ साथ फिरें और शरीअत का इस्तेहज़ा (मज़ाक़) न करें आपको नमाज़ में खुद हुज़ूर नहीं वरना दूसरों पर नज़र क्यों जाती |

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आपको उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी की सनद किस्से मिली? :- आपको उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी की इसनाद यानि सनद हज़रत “अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी क़ुद्दीसा रहमतुल्लाह अलैह ” से जो इसनाद हासिल फ़रमाई उसकी तफ्सील इस तरह है उलूविया, मुसाफहात, मुशाबिका, सनादे हदीस मुसलसल, बिल इज़ाफ़ा, चेहल अस्मा, हिज़्बुल बहर, सनादे क़ुरआने करीम दलाईलुल ख़ैरात, हिसने हसीन, सेहा सित्ता, और क़ुत्बे हदीस व फ़िक़्हा व तफ़्सीर की इसनाद यानि सनादें अता कीं |

आपका मिसालि कारनामा :- आप ने अपने दौर में खानकाहे बरकातिया की बड़ी खिदमात की हैं मदरसा व मुदर्रिसीन व मशाइख हुजरात व खल्वाते फुकरा तामीर कराए आलिम, हाफिज, कारी, तबीब दरगाह शरीफ में मुअय्यन किये एक मुहासिब मुक़र्रर फ़रमाया जो तमाम हिसाबात दरगाह शरीफ रखे खुद्दाम अस्ताना की खिदमात मुक़र्रर फ़रमाई मस्जिद में इमाम व मुअज़्ज़िन मुक़र्रर फ़रमाया | पहले अक्सर खिदमात दरगाह व ख़ानक़ाह व मस्जिद मुरीदीन व खुलफ़ा के सुपुर्द जो अक़ीदतन बिला मुआविज़ा करते थे मगर हज़रत ने वो तमाम काम अपने ज़िम्मे ले लिया और खुद ही अंजाम देते |

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फ़लसफ़ाए मेराज और आपकी करामत :- मन्क़ूल है के बदायूं शरीफ के एक साहब जो आप के मुरीदे ख़ास थे | वो एक मर्तबा सोचने लगे के मेराज शरीफ चंद लम्हों में किस तरह हो गई? आप उस वक़्त वुज़ू फरमा रहे थे और फ़ौरन उससे कहा के मियां अंदर से ज़रा तौलिया तो लाओ? वो जब अंदर गए तो खिड़की नज़र आयी उस जानिब निगाह की तो क्या देखते हैं के पुर फ़ज़ा बाग़ है यहाँ तक के उस में सैर करते हुए एक अज़ीमुश्शान शहर में पहुंच गए |वहां उन्होंने कारोबार शुरू कर दिया शादी भी की और औलाद भी हुई यहाँ तक के 20 साल का अरसा गुज़र गया | जब हज़रत ने आवाज़ दी तो वो घबरा कर खिड़की में आये और तौलिया लिए हुए दौड़े तो देखते क्या हैं के अभी वुज़ू के क़तरात हज़रत के चेहरे मुबारक पर मौजूद हैं और आप बैठे हुए हैं और दस्ते मुबारक भी गीला है वो इंतिहाई हैरान हुए तो हज़रत ने तबस्सुम यानि मुस्कुराकर फ़रमाया के मियां वहां 20 साल रहे और शादी भी की और यहाँ अभी तक वुज़ू खुश्क नहीं हुआ अब तो मेराज की हक़ीक़त को समझ गए होंगे?

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अय्यामे हज (हज के दिनों में) में मौजूद :- मन्क़ूल है के हाजी रज़ा खान साहब मारहरवी ने हज से फारिग होकर मौलाना मुहम्मद इस्माईल साहब मुहाजिर से बैअत करने की पेश कश की, मौलाना ने फ़रमाया के तुमने हज़रत शाह आले रसूल साहब मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह से ही बैअत क्यों न करली वो अब तक हमारे साथ थे? यहाँ तक के हाजी साहब मारहरा शरीफ जब लोटे तो हज़रत के सामने इस वाक़िए को बयान किया हज़रत ने इरशाद फ़रमाया की मियां उन्हें शुबाह हुआ होगा में तो अब तक ख़ानक़ाह शरीफ की सज्जादगी छोड़ कर कही नहीं गया |

आपका मज़ार मारहरा शरीफ दालान दरगाह गुम्बदे हुज़ूर साहिबुल बरकात में सरहाने की तरफ मज़ार शाह हम्ज़ा रहमतुल्लाह अलैह मरजए खलाइक़ है

आपकी औलादे किराम :- “आपका अक़्द शरीफ निसार फात्मा बिन्ते सय्यद मुन्तख़ब हुसैन साहब बिलगीरामि से हुआ” जिन से दो साहबज़ादे और तीन साहबज़ादियाँ हुईं (1) सय्यद ज़हूर हुसैन बड़े मियां (2) सय्यद शाह ज़हूर हुसैन छोटे मियां (3) अंसार फात्मा (4) ज़हूर फात्मा (5) रहमत फात्मा क़ुद्दीसा सिर्रहुमा | अंसार फात्मा और ज़हूर फात्मा को यके बाद दीगरे सय्यद हाफ़िज़ हसन साहब आपके भांजे के अक़्द में दिया गया जो ला वलद खत्म हो गईं तीसरी साहबज़ादी रहमत फात्मा जिनका अक़्द सय्यद मुहम्मद हैदर बिन दिलदार हैदर बिन सय्यद बिन मुन्तख़ब हुसैन से हुआ | उनका इन्तिक़ाल मक्का मुअज़्ज़मा में ब मकम मिना 8 वि ज़िल हिज्जा को बरोज़ जुमेरात 1310 हिजरी में हुआ और वहीँ दफन हुईं | ये साहिबे औलाद थीं इनकी औलाद मारहरा शरीफ में है | और सय्यद शाह ज़हूर हसन साहब की विलादत 1229 हिजरी में हुई | आपका अक़्दे अव्वल इकराम फात्मा बिन्ते सय्यद दिलदार हैदर बिन सय्यद मुन्तख़ब हुसैन से हुआ | उन से एक साहबज़ादे हुए जिनका नाम हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह और एक साहबज़ादी कुलसूम फातिमा जो सय्यद शाह नूरुल मुस्तफा बिन सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के निकाह में थीं जो साहिबे औलाद थी पैदा हुए |

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आपकी ज़ात मजमउल कमालात थी :- हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी महरहरवी रहमतुल्लाह अलैह आप का फैज़ान आम था बड़े बड़े फ़ाज़िल व उलमा अपने ज़ानूए अदब को आपकी बारगाह में तेह करने को अपनी सआदत समझते थे | मशहूर वाक़िया है के मौलाना सूफी अब्दुर रहमान साहब जो मुरीद व खलीफ़ा हज़रत हाफिज अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अपना हाल बयान फरमाते हैं के सुलूक व मारफ़त की तालीम हासिल करने के बाद मेरे पिरो मुर्शिद ने इरशाद फ़रमाया के मारहरा जाओ और हज़रत ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी महरहरवी रहमतुल्लाह अलैह से सनद तकमील लाओ? में हज़रत की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़े हाल क्या दुरूदे ओवैसिया की इजाज़त चाही हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के 40 दिन यहाँ रहो इसके बाद देखा जाएगा में हाज़िर रहा और हस्बे हिदायात हुज़ूर व विरदे अशग़ाल करता रहा 40 दिन के बाद सनादे तकमील व इजाज़त आम्मा व खिलाफत अता फ़रमाई |

आपके सब से मशहूर व मारूफ मुरीद कौन थे :- आपके सब से मशहूर व मारूफ मुरीद सय्यदी सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्ल्ह अलैह थे?

आपके सब से मशहूर व मारूफ मुरीद कौन थे बैअत करते ही खिलाफत अता फ़रमादि? आपके सब से मशहूर व मारूफ खलीफा सय्यदी सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्ल्ह अलैह थे |

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आपके खुलफ़ाए किराम :- हज़रत के खुलफ़ाए किराम में अपने वक़्त की नाबगाए रोज़गार हस्तियां हैं जिमे से चंद के नाम, ये हैं :-
1 हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हुसैन,
2 हज़रत सय्यद शाह मेहदी हसन मारहरवी,
3 हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हसन मारहरवी,
4 हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां मारहरवी,
5 हज़रत सय्यद शाह अबुल अबुल हसन ख़रक़ानी,
6 हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक़,
7 हज़रत सय्यद शाह अमीर हैदर,
8 हज़रत सय्यद शाह हुसैन हैदर,
9 आला हज़रत शाह इमाम अहमद रज़ा खान क़ादरी बरेलवी,
10 हज़रत सय्यद शाह अली हुसैन अशरफी मियां कि छौछावि,
11 हज़रत क़ाज़ी अब्दुस्सलाम अब्बासी बदायूनी,
12 हज़रत शाह एहसानुल्लाह फरशोरी बदायूनी,
13 हज़रत शुक्रुल्लाह खान फरशोरी बदायूनी,
14 हज़रत हाफ़िज़ हाजी मुहम्मद अहमद फरशोरी बदायूनी,
15 हज़रत हाजी फ़ज़ल रज़्ज़ाकि फरशोरी बदायूनी,
16 हज़रत हाफ़िज़ मज़हर हुसैन फरशोरी बदायूनी,
17 हज़रत हाफ़िज़ मुजाहीदुद्दीन सिद्दीक़ी बदायूनी,
18 हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद शरफ़ अली सिद्दीक़ी बदायूनी,
19 हज़रत शैख़ मुनव्वर अली,
20 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद हसन रज़ा खान बरेलवी,
21 हज़रत सय्यद शाह तजम्मुल हुसैन क़ादरी शाहजांहपुरी,
22 हज़रत मौलवी अब्दुर्रहमान साहब,
24 क़ाज़ी मौलवी शम्सुल इस्लाम अब्बासी बदायूनी,
25 हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खान बरेलवी,
26 हज़रत मौलवी जियाउल्लाह खान अब्बासी बदायूनी रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन, (नूर मदाहे हुज़ूर)

Aap Hi Sarkar Aala Hazrat Ke Piro Murshid Hain

आप के मलफ़ूज़ाते शरीफा :- राहे सुलूक में अदब व मोहब्बत और तर्क रऊनत एक लाज़मी अम्र है, उलमा व फुकरा और मसाकीन की ताज़ीम पूरी साई कोशिश से करते रहो और जो कुछ भी मुयस्सर हो तवाज़ोह के साथ सामने रख दो क़बूल करलें तो बेहतर न करें तो तुम पर कोई पकड़ नहीं, नियाज़ व फातिहा में तकल्लुफ न बरतें की शरीअत में तकल्लुफ रवा नहीं है, और सिर्फ सवा पाओ बताशो पर फातिहा दिलाने पर इक्तिफा (काफी होना, बस करना, पूरा होना,) दुर्वेश का ज़ाहिर तो इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के मानिंद होना चाहिए और बातिन हज़रत हुसैन बिन मंसूर हल्लाज रदियल्लाहु अन्हु जैसा होना चाहिए, हर हाल में दिल बुलंद व क़वी और उम्मीद सादिक़ रखनी चाहिए ताके ज़हूर दौलत उस जगह से हो अक़्ल की रू से अक़्लों की भी पहुंच नहीं |

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आपकी आखरी वसीयत :- वक़्ते रेहलत आप से लोगों ने इल्तिजा की के हुज़ूर कुछ वसीयत फरमा दीजिये? बहुत इसरार (ज़िद) पर फ़रमाया: मजबूर करते हो तो लिख लो ये हमारा वसीयत नामा है “अतिउल्लाहा व अतिउर रसूल” बस यही काफी है और इस में दीन व दुनिया की फलाह (कामयाबी) है |

आपका विसाले पुर मलाल :- आप ने 8 ज़िल हिज्जा 1296 हिजरी बरूज़ बुध के दिन को मारहरा शरीफ में विसाल फ़रमाया | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो अमीन |

आपका मज़ार शरीफ कहाँ है? :- आपका मज़ार मारहरा शरीफ दालान दरगाह गुम्बदे हुज़ूर साहिबुल बरकात में सरहाने की तरफ मज़ार शाह हम्ज़ा रहमतुल्लाह अलैह मरजए खलाइक़ है |

(तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया) (बरकाती कोइज़) (तज़किराए मशाइखे मारहरा) (नूर मदाहे हुज़ूर) (बरकाते मारहरा)

Share Zarur Karein – JazakAllah

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