क़ादरी कर क़ादरी रख क़दरियों में उठा
क़दरे अब्दुल क़ादिर क़ुदरत नुमा के वास्ते

सरदारे औलिया सरकार ग़ौसुल आज़म के वालिदैन का तक़द्दुस और पाकीज़गी :- एक बार हुज़ूर ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद हज़रत अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह मुजाहिदात व रियाज़ात करते हुए एक दरिया के किनारे जा रहे थे और कई दिनों से कुछ नहीं खाया था, दरिया के किनारे एक सेब पड़ा हुआ देखा तीन रोज़ से ज़्यादा फ़ाक़ा और शिद्दते भूक की बिना पर आप ने वो सेब खा लिया खाने के बाद ख्याल आया के इस का कोई मालिक तो होगा जिस की इजाज़त के बगैर ही मेने ये सेब खा लिया है लिहाज़ा आप सेब के मालिक की तलाश में दरिया के किनारे किनारे चल पढ़े अभी थोड़ी ही दूर गाये थे के दरिया के किनारे एक बाग़ नज़र आया जिसके दरख्तों से पके हुए सेब पानी पर लटके हुए थे, आप समझ गाये के वो सेब इसी बाग़ का था आप के पूछने पर मालूम हुआ के ये बाग़ हज़रत अब्दुल्लाह सूमयी रहमतुल्लाह अलैह का है आप लिहाज़ा उनकी खिदमत में हाज़िर हो कर बिला इजाज़त सेब खा लेने की माफ़ी चाहि हज़रत अब्दुल्लाह सूमयी रहमतुल्लाह अलैह आप खुद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वली थे समझ गए के ये इंतिहाई नेक नौजवान है लिहाज़ा कुछ अरसे बाग़ की रखवाली की शर्त पेश कर के कहा के कुछ अरसे ये खिदमत अंजाम दो उस के बाद माफ़ी के मुतअल्लिक़ गौर किया जाएगा, वक़्त मुक़र्ररा तक आप ने निहायत दियानत दारी से ये खिदमत अंजाम दी, और फिर आपने माफ़ी चाहि हज़रत अब्दुल्लाह सूमयी रहमतुल्लाह अलैह ने कहा अभी और एक शर्त बाक़ी है वो ये के मेरी एक लड़की आँखों से अंधी कानो से बेहरी, हाथों से लुन्जी और पाऊँ से लंगड़ी है, आप उसे निकाह में क़बूल करें तो माफ़ किया जाएगा, हज़रत अबू सालेह रहमतुल्लाह अलैह ने क़बूल किया लेकिन आप जब निकाह के बाद अपनी बीबी के पास गए तो आप ने दिखा के वो इन तमाम ऐबों से पाक साफ़ है और साथ साथ हुसने कमल भी पाया तो आप को ख्याल आया कोई और लड़की है और गलती के ख्याल से परेशान हाल हुजरे से बाहर निकल आये हज़रत अब्दुल्लाह सूमयी रहमतुल्लाह अलैह ने फिरासत से पहचान लिया और फ़रमाया ए शहज़ादे यही तुम्हारी बीवी है और मेने इसकी जो सिफ़ात तुम से बयान की थीं वो सब ठीक हैं, ये अंधी है के आज तक किसी गैर मेहरम मर्द की तरफ नज़र नहीं की, बेहरी है कभी शरीअत के खिलाफ कोई बात नहीं सुनी ये लुन्जी है के कभी हाथ से शरीअत के खिलाफ कोई काम नहीं किया और लगंड़ी है कभी शरीअत के खिलाफ घर से बाहर क़दम नहीं रखा हज़रत बू सालेह बहुत खुश हुए और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र अदा किया इन्ही दोनों पाकीज़ा हस्तियों का जब संगम होता है तभी वक़्त का गौसे आज़म पैदा होता है सरदारे औलिया सरकार ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह इन्ही दोनों हस्तियों की औलाद हैं

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आप के आने की औलियाए किराम की बशारतें :- अक्सर बड़े बड़े औलिया व मशाइख ज़ीवकार ने आप की विलादत बा सआदत से पहले आप की खबर बताई कुछ ने विलादत के थोड़े ही दिनों बाद और अकसर ने आप के मशहूर होने से पहले आप की अज़मत व जलालत की खबर दी है इन में से चंद के अक़वाल यहाँ पेश किए जाते हैं |
हज़रते जुनैद बगदादी की बशारत :- हज़रते जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह एक दिन वाइज़ यानि तक़रीर के दौरान फ़रमाया (क़दामुहू अला रक़ाबती) यानि उस का क़दम मेरी गर्दन पर है, आप से लोगों ने पुछा के आज आप ने तक़रीर के दौरान जो अल्फ़ाज़ फरमाए थे इन की हकीकत क्या है आप ने फ़रमाया के हालते कश्फ़ में मुझ पर ये ज़ाहिर हुआ के पांचवी सदी हिजरी के आखिर में एक अज़ीम बुजरुग अल्लाह के वली पैदा होंगें जिनका नाम अब्दुल क़ादिर और लक़ब मुहीयुद्दीन होगा उनकी पैदाइश जिलान में और मस्कन बग़दाद होगा और वो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से कहेंगें (قَدْ مِيْ هٰذِهِ عَلٰي رَقَبَةِ كُلِّ وَلِي اللّه, क़दमी हाज़िही अला रक़ाबती कुल्ली वलियल्लाह) यानि मेरा ये क़दम हर वली अल्लाह की गर्दन पर है मेने उनकी अज़मत को देख कर गर्दन झुका दी और ये अलफ़ाज़ कहे जो तुमने सुने इस लिए हाज़रीने मजलिस गवाह रहना में आज ही अपनी गर्दन झुकता हूँ,
और इसी तरह की बशारत “हज़रत शैख़ मंसूर बताही रहमतुल्लाह अलैह” जो इराक़ के बड़े बड़े मशाइख में से थे आप ने भी अपनी मजलिस में ग़ौसुल आज़म की बशारत दी,
और इसी तरह की बशारत “हज़रत खलील बल्खी रहमतुल्लाह अलैह” ने भी दी,
और इसी तरह की बशारत “हज़रत शैख़ अक़ील मुनजबी रहमतुल्लाह अलैह” ने भी दी जो मुल्के शाम के अकाबिर बड़े औलिया अल्लाह में से थे |

आप की विलादत शरीफ :- आप की पैदाइश मुबारक एक रमज़ानुल मुबारक जुमे के दिन चार सौ सत्तर 470, हिजरी 1075, एक हज़ार पिछत्तर ईस्वी को गीलान या जिलान में हुई |
क़ुतबुद्दीन यूनैनी रहमतुल्लाह अलैह ने बयान किया है के “सरदारे औलिया गौसे पाक अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु” 470, हिजरी में पैदा हुए आप के साहबज़ादे हज़रत अब्दुर रज़्ज़ाक़ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेने अपने वालिद माजिद से आप का मक़ामे पैदाइश पूछा: तो आप ने फ़रमाया मुझे इस का हाल सही से मालूम नहीं मगर हाँ मुझे अपना बग़दाद आना याद है के जिस साल तमीमी का इन्तिक़ाल हुआ इसी साल में बग़दाद आया उस वक़्त मेरी 18, अठ्ठारा साल की उमर थी और तमीमी ने 488, हिजरी में वफ़ात पाई |
अल्लामा शैख़ शमशुद्दीन बिन नासिरुद्दीन मुहद्दिसे दमिश्क़ी ने बयान किया है के “सरदारे औलिया गौसे पाक अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु” 470, हिजरी में गीलान में पैदा हुए |
“हयाते ग़ौसुल वरा” में है की “सरदारे औलिया गौसे पाक अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु” 470, हिजरी में ईरान के क़स्बा जिलान में पैदा हुए |

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सरदारे औलिया गौसे पाक का नाम क्या था :- हज़रत गौसुस सक़लैन क़ुत्बुल कौनैन शैखुल आलमीन पीरे पीरा मीरे मीरा हुज़ूर महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी क़िन्दीले नूरानी शाहबाज़े लामकानी पीरे लासानी गौसेआज़म बगदादी आप का नामे नामी व इसमें गिरामी “सय्यद अब्दुल क़ादिर” है

आप का लक़ब व कुन्नियत :- आप की कुन्नियत “अबू मुहम्मद और लक़ब मुहीयुद्दीन” महबूबे सुब्हानी है और पूरी दुनिया में बड़े पीर और गौसे आज़म व गौसे पाक के नाम से मशहूर व मारूफ हैं |

सरदारे औलिया गौसे पाक हुलिया मुबारिक :- आप नहीफुल बदन मियाना क़द, चौड़ा सीना, लम्बी चौड़ी दाढ़ी, गंदमी रंग, मिले हुए अबरू, बुलंद आवाज़ थे, पाकीज़ा सीरत, बुलंद मर्तबा और इल्मे कामिल के हामिल थे साहिबे शोहरत व सीरत और खामोश तबा थे आप के कलम की तेज़ी और बुलंद आवाज़ सुनने की दिल में रोअब व हैबत ज़्यादा करती थी और आप की ये खुसूसियत थी की मजलिस में क़रीब व दूर बैठने वाले आप की आवाज़ बा आसानी बराबर सुन लेते थे, जब आप कलाम करते तो हर शख्स पर ख़ामोशी छा जाती थी, जब आप कोई हुक्म देते तो इसकी तामील में जल्दी की सिवा और कोई सूरत न होती और बड़े बड़े सख्त दिल पर नज़रे जमाल पढ़ जाती तो वो ख़ुशू व ख़ुज़ू और आजिज़ी व इंकिसारी का मुरक़्क़ा बन जाता, |

आप के वालिदैन करीमैन :- हाफ़िज़ ज़हबी व हाफ़िज़ रजब ने बयान किया है के गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद का इसम शरीफ हज़रत “अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह” है जंगी दोस्त फ़ारसी लफ्ज़ है जिस के माने जंग से उन्सियत रखने वाले के हैं और आप की वालिदा माजिदा की कुन्नियत “उम्मुल खैर अमातुल जब्बार फातिमा” और नाम “फातिमा” था आप हज़रत अब्दुल्लाह सुमई अज़्ज़ाहिद हुसैनी की नेक दुख्तर सरापा खैरो बरकत बेटी थीं |

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह बगदाद शरीफ इल्म हासिल करने क्यों गए ? :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह खुद फरमाते है के में जब अपने क़स्बा जिलान में था तो अरफ़ा के दिन देहात की तरफ गया और एक खेत में बैल के पीछे पीछे हो लिया उसने मेरी तरफ देखा और कहा ऐ अब्दुल क़ादिर आप तो इसलिए पैदा नहीं हुए में घबराकर अपने घर लौट आया और घर की छत पर चढ़ गया और लोगो को मेने अरफ़ात के मैदान में खड़े हुए देखा फिर में अपनी वालिदा माजिदा उम्मुल खैर अमातुल जब्बार फातिमा के पास आया और उनसे कहा के आप मुझे खुदा की राह में वक्फ करदे और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त दे दें के मैं वहा जाकर इल्म हासिल करू आपकी अम्मी जान ने इसकी वजह पूछी तो मेने उन्हें वो वाक़िया सुनाया आप रोने लगी और 80 दीनार जो वालिद साहब ने आपके पास छोड़े थे मेरे पास लेकर आयी मेने उनमे से 40 दीनार ले लिए और 40 अपने भाई के लिए छोड़ दिए आप ने मेरे चालीस दीनार मेरी सदरी में सिल दिए और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त दे दी और आप ने मुझे ताकीद की के किसी भी हाल में हो सच बोलो और में रवाना हुआ और आप मुझे दरवाज़े तक रुखसत करने आयीं और फ़रमाया ए बेटा में तुम्हे अपने से जुदा करती हूँ और अब मुझे तुम्हारा मुँह क़यामत ही को देखना नसीब होगा |

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सरदार औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के हाथ पर साठ 60, डाकुओं ने तौबा की :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह अपनी वालीदह से रुखसत हो कर एक छोटे से काफिले के साथ जो बग़दाद जा रहा था उस के साथ रवाना हुए, आप ने फ़रमाया हम हमदान से गुज़र कर एक ऐसे मक़ाम पर पहुंचे जहाँ बहुत कीचड़ थी और काफिले पर साठ 60, डाकू टूट पड़े और काफिले को लूट लिया और मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा थोड़ी देर बाद एक शख्स मेरे पास आया और कहने लगा आप के पास भी कुछ है? मेने कहा हाँ मेरे पास 40, दीनार हैं, उस ने पुछा वो कहा हैं? मेने कहा मेरी सदरी में बगल के नीचे सिले हुए हैं उसने समझा के में मज़ाक़ कर रहा हूँ इस लिए वो मुझे छोड़ कर चला गया उस के बाद एक दुसरा शख्स आया और जो कुछ पहले ने पूछा वही इस ने भी पूछा मेने जो पहले शख्स को जवाब दिया था वही इस को भी दिया, इन दोनों ने जाकर अपने सरदार को ये खबर सुनाई तो उसने मुझे अपने पास बुलाया सरदार ने मुझ से पूछा क्या तुम्हारे पास वाक़ई 40, दीनार हैं मेने कहा हाँ मेरी सदरी में सिले हुए हैं उसने मेरी सदरी उधेड़ी और उस में से 40, दीनार निकले उसने हैरत से पूछा के इस को बताने के लिए आप को किस चीज़ ने मजबूर किया मेने कहा मेरी वालीदह माजिदह ने मुझे सच बोलने की ताकीद की थी में उनसे अहद शिकनी नहीं कर सकता डाकुओं का सरदार मेरी ये गुफ्तुगू सुन कर रोने लगा और कहने लगा के आप अपनी वालिदा माजिदा से अहद शिकनी नहीं कर सकते और मेरी उमर गुज़र गई है के में अब तक अपने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से बराबर अहद शिकनी कर रहा हूँ उसने मेरे हाथ पर तौबा की उसके बाद उसके सब साथियों ने कहा लूट मार में हम सब का सरदार था और अब तौबा करने में भी हमारा सरदार है फिर उन सब ने भी मेरे हाथ पर तौबा की और काफिले का सारा माल वापस कर दिया |

सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह तहसीले इल्म व तकमीले इल्म :- हुज़ूर ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह बग़दाद पहुंचने के बाद मदरसा निज़ामिया में दाखिल हो गाये ये मदरसा उन दिनों पूरी दुनिया का मशहूर व मारूफ इल्मी मरकज़ था बड़े बड़े क़ाबिल उल्माए किराम तलबा को तालीम दिया करते थे आप ने चंद साल में ही तमाम उलूम व फनून पर दस्तरस हासिल करली |

गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का इल्मो अमल :- हज़रत शैख़ इमाम मौक़िफुद्दीन बिन कुदामा रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हम 561, हिजरी में बग़दाद शरीफ गए तो हम ने देखा के हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह उन में से हैं के जिन को वहां पर इल्म अम्ल और हालो फतवा नवेसी की बादशाहत दी गयी है कोई तालिबे इल्म यहाँ के अलावा किसी और जगह का इरादा इस लिए नहीं करता था के आप में के आप में तमाम उलूम जमा थे और जो आप से इल्म हासिल करते थे आप उन तमाम तलबा के पढ़ने में सब्र फरमाते थे, आप का सीना फराख था और आप सैर चश्म थे अल्लाह पाक ने आप में औसाफ़ जमीला और अहवाल अज़ीज़ा जमा फ़रमा दिये,

आप तेरह 13, उलूम में तक़रीर फरमाते थे :- इमामे रब्बानी शैख़ अब्दुल वहाब शारानी और शैखुल मुहद्दिसीन शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी और अल्लामा मुहम्मद बिन याहया हल्बी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम तहरीर फरमाते हैं के “हज़रत सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह तेरह 13, उलूम में तक़रीर फरमाते थे”,
एक जगह अल्लामा शैख़ अब्दुल वहाब शारानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के मदरसा आलिया में लोग आप से तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़ाह, और इल्मे कलाम पढ़ते थे, दोपहर से पहले और बाद दोनों वक़्त लोगों को तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़हा, कलाम,उसूल और नहो पढ़ाते थे और जोहर के बाद किरात के साथ क़ुरआन मजीद पढ़ाते थे,
इल्म का समंदर :- शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह आप के इल्मी कमालात के मुतअल्लिक़ एक रिवायत नकल करते हैं के एक रोज़ किसी कारी ने आप रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस शरीफ में क़ुरआन मजीद की एक आयत तिलावत की तो आप ने इस आयात की तफ़्सीर में पहले एक माना फिर दो उसके बाद तीन यहाँ तक के हाज़रीन के इल्म के मुताबिक़ आप ने इस आयत के 11, ग्यारह माने बयान फरमा दिए और फिर दीगर दूसरी वुजूहात बयान फ़रमाई जिन की तादाद चालीस थीं और हर वजह की ताईद में इल्मी दलाइल बयान फरमाए और हर माना के साथ सनद बयान फ़रमाई आप के इल्मी दलाइल की तफ्सील से सब हाज़रीन मुतअज्जिब हुए,

सरदारे औलिया गौसे पाक के फ़ज़ाइलो कमालात :- सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह नजीबुत तरफ़ैन सय्यद हैं मक़बूल बारगाहे इलाही क़ुत्बुल अक़ताब मज़हरे विलायत वालिद की तरफ से हसनी वालिदा की तरफ से हुसैनी सय्यद हैं, आप के वालिद माजिद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह को हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत हुई आप की पैदाइश के वक़्त और आप ने फ़रमाया ए मेरे बेटे अबू सालेह तुझे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़तने वो बेटा दिया है के जो मेरा बेटा और मेहबूब और खुदा का भी मेहबूब है और उस का मर्तबा औलिया में ऐसा होगा जैसा मेरा मर्तबा अम्बिया में है, जब बग़दाद शरीफ में आप की पैदाइश हुई सब के सब लड़के पैदा हुए जिनकी तादाद ग्यारा सौ 1100, थी वो सब औलियाए कमिलीन हुए, आप ने तमाम रमज़ान सहरी से लेकर इफ्तार तक अपनी वालिदा माजिदा का दूध नहीं पिया आप की विलादत के वक़्त आप की वालिदा माजिदा की उमर 60, साठ साल की थी इस उमर में आप की पैदाइश भी करामत है, और आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के सत्तरवें 17, वे इमाम व शैख़े तरीक़त हैं, आप के फ़ज़ाइल का इहाता ताक़त बशरी से बाला तर है,

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सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह आप के इल्मे दीन हासिल करने के ज़माने में कैसी कैसी परेशानियाँ और मुश्किलें आयीं :- आप के इल्मे दीन हासिल करने के ज़माने में आप को बहुत मुश्किल हालात से दोचार होना पड़ा और सख्त मशक्क़तें उठानी पड़ीं लेकिन ये मुश्किलात आप की अच्छी राह में हाइल न हो सकीं वालिदा माजिदा के दिए हुए चालीस 40, दीनार खर्च हो गाये थे यहाँ तक के फाके तक की नौबत आ पहुंची, 20, दिन इसी तरह गुज़र गाये आखिर एक दिन किसी मुबाह चीज़ की तलाश में ऐवाने कसरा के खण्डरों की तरफ तशरीफ़ ले गाये वहां देखा के 70, औलिया किराम पहले ही से मुबाह चीज़ की तलाश में मसरूफ हैं, आप ने मुनासिब न समझा के इनकी राह में हाइल हूँ और वापस तशरीफ़ ले आये,
एक दिन का ज़िक्र है के आप भूक से निढाल होकर लड़खड़ाते हुए एक मस्जिद के कोने में बैठे थे अभी आप को थोड़ी देर हुई थी के एक अजमी जवान रोटी और भुना हुए गोश्त लेकर मस्जिद में दाखिल हुआ और एक तरफ बैठ कर खाने लगा, हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के भूक की शिद्दत से इस शख्स के हर लुक़मे के साथ बेइख्तियार मेरा मुँह खुल जाता था यहाँ तक के मेने अपने नफ़्स को इस हरकत पर मलामत की इतने में उस शख्स ने मेरी तरफ देखा और खाना लुक्मा पेश किया और उस ने मुझ से पूछा के आप कहा के बाशिंदे हैं और क्या काम करते हैं मेने कहा में जिलान का रहने वाला हूँ और तालिबे इल्म हूँ उसने पूछा क्या आप जिलान के एक नौजवान को जानते हो जिसका नाम “अब्दुल कादिर” है मेने कहा वो मेही हूँ ये सुनकर वो बहुत बेचैन हुए और कहने लगा की खुदा की क़सम में कई दिनों से तलाश कर रहा हूँ जब में बाग्दाद् में दाखिल हुआ तो उस वक़्त मेरे पास अपना ज़ाती खर्च मौजूद था मगर जब मेने आप को तलाश किया तो मुझे किसी ने तुम्हारा पता नहीं बताया इस बीच में मेरा सारा खर्च ख़त्म हो गया फिर मेने तीन रोज़ फ़ाक़े में गुज़ारे और आज मजबूर होकर आप की अमानत में से जो आप की वालिदा ने आप के लिए भेजा था एक वक़्त के खाने के लिए ये रोटी और गोश्त लाया हूँ अब आप खुशी से खाना खाओ क्यूंकि ये आप ही का है और अब में आप का मेहमान हूँ फिर मेने उसे तसल्ली दी और इस बात पर अपनी ख़ुशनूदी ज़ाहिर की और खाना खाया |

सरकारे बग़दाद सरदारे औलिया गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने पच्चीस 25, साल तक इराक़ के जंगलों बियाबानों में मुजाहिदात और रियाज़ात कीं :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह अपने मुजाहिदात और रियाज़ात के बारे में फ़रमाया के में पच्चीस 25, साल तक इराक़ के जंगलों बियाबानों में तनहा फिरता रहा और मुझे कोई भी पहचानता नहीं था अलबत्ता उस वक़्त मेरे पास जिन्नात आया करते थे और में उन्हें इल्मे तरीक़त और उसूल इलल्लाह की तालीम दिया करता था,
एक बार हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम मेरे साथ हुए लेकिन उस वक़्त में आप को पहचानता नहीं था,
पहले आप ने मुझ से अहद लिया के में आप की मुखालिफत नहीं करूंगा उस के बाद आप ने मुझ से फ़रमाया के मेरे आने तक यहीं पर रहो, आप हर साल आते और यही फरमा जाते के मेरे आने तक यही पर रहो, आप हर साल आते और यही फरमा जाते के मेरे आने तक यही पर रहो, में तीन साल तक इसी जगह पर रहा, इस बीच में दुनिया और दुनियावी ख़्वाहिशात अपनी अपनी शक्लों में मेरे पास आया करतीं मगर अल्लाह तआला ने उनकी तरफ तवज्जुह करने से मेहफ़ूज़ रखता मेंअपने नफ़्स को तरह तरह की मशक्कतों में डालता रहा चुनाचे एक साल तक साग वगैरह पर गुज़ारा करता रहा और साल भर तक पानी बिलकुल नहीं पिया फिर एक साल तक कुछ नहीं खाया सिर्फ पानी पिया करता और फिर एक साल तक खाना पानी और सोना बिलकुल छोड़ दिया,
एक मर्तबा का वाक़िआ है के बग़दाद के क़रीब एक वीराने ने में एक पुराना बुर्ज था वहां 11, ग्यारह साल तक ठहरा रहा,
मेरे इस लम्बे क़याम की वजह से लोग उसे बुर्जे अजमी कहने लगे में इस बुर्ज में हर वक़्त यादे इलाही में मशगूल रहता, मेने अल्लाह तआला से अहद किया था के में उस वक़्त तक नहीं खाऊंगा जब तक मुझे कोई मुँह में लुक़मा नहीं दे और उस वक़्त तक पानी नहीं पियूँगा जब तक मुझे कोई पानी नहीं पिलाये चुनाचे मुतावातिर चालीस दिनों तक मेने न कुछ खाया न पिया चालीस दिनों के बाद एक शख्स आया और रोटी सालन मेरे सामने रख कर चला गया भूक की शिद्दत की वजह से मेरे नफ़्स ने चाहा के रोटी खालूँ लेकिन मेरे दिल ने आवाज़ दी के अपना अहद न तोड़, फिर मेने अपने अंदर एक शोर सुना जिससे अलजू अलजू यानि भूक भूक की आवाज़ सुनाई दी मेने इस तरफ कुछ तवज्जुह न की इसी बीच में हज़रत शैख़ अबू सईद मख़्ज़ूमि रहमतुल्लाह अलैह का गुज़र इधर से हुआ उनकी फिरासत बातनि ने ये शोर सुना तो मेरे पास तशरीफ़ लाए और फ़रमाया अब्दुल क़ादिर ये शोर कैसा है?
मेने कहा नफ़्स की ख़्वाइश का इज़्तिराब है वरना रूह मुत्मइन है उन्होंने कहा बाबे अज़ज के पास आओ वहां मेरा घर है ये कह कर वो तशरीफ़ ले गाए अभी में सोच ही रहा था के खिज़र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और फ़रमाया उठिये और हज़रत अबू सईद मख़्ज़ूमि के घर तशरीफ़ ले जाईए चुनाचे में उठा और हज़रत शैख़ अबू सईद मख़्ज़ूमि के घर पंहुचा वो दरवाज़े पर खड़े होकर मेरा इन्तिज़ार कर रहे थे मुझे अंदर ले गाए और अपने दस्ते मुबारक से मुझे रोटी खिलाई यहाँ तक के में खूब सैर हो गया,
शयातीन का आप पर आग बरसाना आप खुद फरमाते हैं मुजाहिदे और रियाज़त के शुरू में बियाबानों में अजीबो गरीब हालात पेश आते थे जिन में एक ये था के में अपने वुजूद से गाइब हो जाता था अक्सर वक़्त दौड़ा करता था और मुझे खबर भी नहीं होती थी, एक बार में बे खबरि में दौड़ता रहा और जब मुझ से ये हालत जाती रही तो मेने अपने आप को शहर शुश्तर में पाया जो बग़दाद से 12, दिनों के फासले पर था,
इराक़ के बियाबानों में मुजाहिदे के दौरान शयातीन इकठ्ठे होकर आते थे और हैबतनाक सूरतों में सफ दर सफ मुझ से लड़ने की कोशिश करते और मुझे आग फेंक कर मारते मगर में अपने दिल में हिम्मत और उलुल अज़मी पाता और ग़ैब से आवाज़ आती के ए अब्दुल क़ादिर उठो और इनकी तरफ आओ हम इनके मुकाबले में तुम्हें साबित क़दम रखेंगे,
फिर में उठकर में उनकी तरफ दौड़ता तो वो भाग जाते एक बार इब्लीस आया और उसने कहा ए अब्दुल क़ादिर में आप से न उम्मीद हो चुका हूँ मेने कहा यहाँ से दफा हो जा में तेरी जानिब से किसी हालत में मुत्मइन नहीं उस ने कहा ये बात मेरे लिए अज़ाबे दोज़ख से भी बढ़ कर है फिर उसने बहुत से शिर्क वस्वसे के जाल बिछा दिए मेने पूछा ये जाल कैसे हैं तो मुझे बतलाया गया ये दुनियावी वसवसों के वो जाल हैं जिन से शैतान शिकार करता है तो मेने उस मरदूद को डांटा तो वो भाग गया और साल भर तक मेने तवज्जु की यहाँ तक के वो जाल टूट गये,
फिर उसने बहुत से असबाब ज़ाहिर किए मेने पूछा ये किया है तो मुझे बताया गया के ये ख़ल्क़ के असबाब हैं, साल भर तक मेने तवज्जु की यहाँ तक के ये असबाब ख़त्म हो गाए फिर मुझ पर मेरे बातिन का इंकिशाफ़ किया गया तो मेने अपने दिल को बहुत से अलाइक को वाबस्ता देखा मेने पूछा ये किया है? तो मुझे बताया गया के ये अलाइक तुम्हारे इरादे और तुम्हारे इख़्तियारात हैं फिर में एक साल तक उनकी तरफ तवज्जु करता रहा यहाँ तक के वो सब अलाइक मुझ से ख़त्म हो गाए, मुझ पर मेरा नफ़्स ज़ाहिर किया गया तो मेने देखा के इस के अमराज़ अभी बाक़ी हैं और इस की ख़्वाइश अभी ज़िंदह है तो साल भर तक मेने इस की तरफ तवज्जु की यहाँ तक के नफ़्स के कुल अमराज़ जड़ से जाते रहे और अब इस में अमरे इलाही के सिवा कुछ बाक़ी न रहा और में तनहा होकर अपनी हस्ती से जुदा हो गया और मेरी हस्ती मुझ से अलग हो गई तब भी में अपने मक़सूद को नहीं पंहुचा तो में तवक्कुल के दरवाज़े पर आया ताके इस दरवाज़े से में अपने मक़सूद को पहुँचूँ में और ये सब अल्लाह ही का फ़ज़ल है और वही निगेहबान है |

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

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सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के पीरो मुर्शिद कौन हैं? :- जब हुज़ूर ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह तहसीले इल्म व तकमीले इल्म और मुजाहिदात व रियाज़ात से फारिग हुए और मुकम्मल तज़कियाए नफ़्स कर लिया तो आप ने हज़रत शैख़ “अबू सईद मख़्ज़ूमि रहमतुल्लाह अलैह” के दस्ते मुबारक पर बैअत की और उनके हल्काए इरादत में दाखिल हो गाए हज़रत अबू सईद ने अपने मुबारक हाथों से खाना खिलाया, हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के जो लुक्मा हज़रत शैख़ मुझे खिलाते और वो मेरे शिकम में जाता मेरे बातिन में एक नूर भर देता फिर उन्होंने मुझे खिरकए खिलाफत अता फ़रमाई और फ़रमाया ए अब्दुल क़ादिर ये वो खिरका है जो जनाबे रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को अता फ़रमाया था और उन से हसन बसरी को मिला और उनसे दस्त बा दस्त मुझ तक पंहुचा, इस खिरके को पहिनते ही हुज़ूर ग़ौसुल आज़म सरदारे औलिया पर तजल्लियाते इलाही और बरकात का और भी ज़्यादा ज़हूर होने लगा,
“कलाइदुल जवाहिर” में है के हज़रत शैख़ अबू सईद मख़्ज़ूमि रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के एक दूसरे से तबर्रुक हासिल करने के लिए मेने शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह को और उन्होंने मुझ को खिरका पहनाया |

  • आप का शजराए तरीक़त इस तरह है :-
  • जनाबे अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम,
  • हज़रत अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम रदियल्लाहु अन्हु,
  • हज़रत ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत ख्वाजा हबीब अजमी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ सिर्री सक्ति रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ अबू बकर शिब्ली रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ अबुल फ़ज़ल अब्दुल वाहिद तमीमी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ अबुल फराह तरतूसी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ अबुल हसन हंकारी रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत शैख़ अबू सईद मख़्ज़ूमि रहमतुल्लाह अलैह,
  • सरदारे औलिया ग़ौसुल आज़म हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन,

सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह का क़दम हर वली की गर्दन पर है :- हाफ़िज़ अबुल अज़ अब्दुल मुगीस बिन हरब अल बग़दादी ने बयान किया के हम लोग हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में हाज़िर थे जो आप के मेहमान खाने में जो के बग़दाद के मोहल्ला हल्बा में हुई थी इस मजलिस में हमारे अलावा इराक के अक्सर मशाइख मौजूद थे जिन में से कुछ के नाम ये हैं हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ बक़ा बिन बतू रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू सईद कील्वी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू नजीब सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ उस्मान क़रशी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ मकारिम अल अकबर रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ मुतिर जागीर रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ सदक़ा बगदादी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ याहया मुरताअश रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ ज़ियाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ कुज़ीबुलबान मूसली रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल अब्बास यमानी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू बकर शिबानी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल बरकात इराक़ी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल क़ासिम उमर बज़ाज़ रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू उमर सुलतान बताही रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल मसऊद अबुल अत्तार रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल अब्बास अहमद इबने अली जूसकी सरसरी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ माजिद करदी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल अब्बास अहमद अल क़ज़वीनी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू हफ्स अल ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू मुहम्मद अल फारसी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू मुहम्मद याकूबी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू हफ्स अल कीमानी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू बकर अल मुज़ीन रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू अमर वल सरफिनि रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू मुहम्मद अल हरीमी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ क़ाज़ी अबू याला अल्फिरा रहमतुल्लाह अलैह,
मन्दरजा बाला मशाइख के अलावा और भी दुसरे मशाइख औलिया अल्लाह मौजूद थे, आप इन सब के रूबरू वाइज़ तक़रीर फरमा रहे थे उसी वक़्त आप ने ये फ़रमाया (قَدْ مِيْ هٰذِهِ عَلٰي رَقَبَةِ كُلِّ وَلِي اللّه, क़दमी हाज़िही अला रक़ाबती कुल्ली वलियल्लाह) यानि मेरा ये क़दम हर वली अल्लाह की गर्दन पर है, ये सुन कर हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह उठे और मिम्बर के पास जा कर आप का क़दम अपनी गर्दन पे रख लिया उस के बाद सब हाज़िरीन ने आगे बढ़ कर अपनी गर्दनें झुका दीं,

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सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के नाना जान की फ़ज़ीलत :- हज़रत सय्यदना अब्दुल्लाह सुमई रहमतुल्लाह अलैह आप सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह के नाना जान थे, हज़रत सय्यदना अब्दुल्लाह सुमई रहमतुल्लाह अलैह जिलान के मशाइख व सरदार में से एक निहायत परहेज़गार व साहिबे फ़ज़्लो कमाल शख्स थे, आप की करामातें लोगों में मशहूर थीं अजम के बड़े बड़े मशाईखों से आप ने मुलाक़ात कीं, शैख़ अबू अब्दुल्लाह क़ज़वीनी कहते हैं के शैख़ अब्दुल्लाह सुमई रहमतुल्लाह अलैह मुस्तजाबुद दावात शख्स थे, शैख़ अबू अब्दुल्लाह क़ज़वीनी कहते हैं के हमारे कुछ दोस्त एक काफिले के साथ तिजारत का माल लेकर समरक़ंद की तरफ गाये जब वो एक बियाबान में पहुंचे तो उनपर बहुत से सवार टूट पड़े, काफिले वाले कहते हैं के हम ने उस वक़्त शैख़ अब्दुल्लाह सूमयी को पुकारा तो हम ने देखा के हमारे बीच खड़े हुए कोई पढ़ रहा है के हमारा परवर दिगार पाक और बे ऐब है तुम ए सवारो हमारे पास से भाग कर मुन्तशिर (अलग अलग) हो जाओ आप का ये कहना था के सभी मुन्तशिर हो कर कुछ तो पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ गाये और कुछ भाग कर जंगल की तरफ चले गाये और हम सब उन से मेहफ़ूज़ हो गाये, उस के बाद हम ने आप को तलाश किया तो हम ने आप को नहीं पाया और हम ने ये देखा के आप कहाँ चले गाये? जब हम जिलान वापस आए तो हम ने लोगों से ये वाक़िआ बयान किया तो उन्होंने हम से क़सम खा कर कहा के शैख़ अब्दुल्लाह सूमयी इस बीच में हम से जुदा नहीं हुए |

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सरदारे औलिया गौसे पाक की फूफी जान की करामत :- शैख़ अबुल अब्बास अहमद और सालेह मुतबिक़ी बयान करते हैं के एक बार जिलान में खुश्क साली सूखा पड़ गया लोगों ने दुआएं मांगीं नमाज़े इसतस्का भी पढ़ी मगर बारिश नहीं हुई लोग आप की फूफी साहिबा की खिदमत में हाज़िर हो कर आप से दुआए इसतस्का की गुज़ारिश की आप आप नेक बख्त सालेह नेक बीबी थीं और आप की करामात सब पर ज़ाहिर थीं आप की कुन्नियत उम्मे मुहम्मद थी आप का नाम “आएशा” और आप के वालिद माजिद का नाम अब्दुल्लाह नाम था, आप ने लोगों की ख्वाइश के मुताबिक़ अपने आँगन दरवाज़े की चौखट से बाहर होकर ज़मीन पर झाड़ू दी और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ करने लगीं ए अल्लाह मेने ज़मीन को झाड़ कर साफ़ कर दिया तू इस पर छिड़काव कर दे यानि बारिश कर दे आप के इस कहने को थोड़ी भी देर नहीं गुज़री थी के आसमान से मूसलाधार पानी गिरने लगा और ये लोग पानी में भीगते हुए अपने घरों को वापस गाये,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- बहजातुल असरार, क़लाइदुल जवाहिर, हयाते ग़ौसुल वरा, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, तज़किराये मशाइखे क़दीरिया बरकातिया, गौसे जीलानी, अख़बारूल अखियार, गौसे पाक के हालात, सीरते गौसुस सक़लैन, अवारिफुल मआरिफ़, सीरते गौसे आज़म, बुज़ुर्गों के अक़ीदे,

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