आप तआरुफ़ :- बक़ीयतुस सलफ़ हुज्जतुल खलफ हज़रत सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” की विलादत 3 मुहर्रमुल हराम 1272 हिजरी को मारहरा मुक़द्दसा में हुई | बैअत व खिलाफत अपने नाना सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन अमीर रहमतुल्लाह अलैह से हासिल थी | वालिद माजिद “हज़रत शाह मुहम्मद सादिक़” ने भी अपनी खिलाफत से नवाज़ा था |
मुजद्दिदे बरकतियत की बिस्मिल्लाह ख्वानी की रस्म “ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी” ने अदा फ़रमाई | शुरूआती तालीम वालिद माजिद के साए में हुई आप के तमाम उस्ताज़ अपने वक़्त के बड़े बड़े आलिमे दीन और फकीहे वक़्त थे |
हुज़ूर ताजुल उलमा ने आप के आसातिज़ा के बारे में बयान फ़रमाया आपने हाफिज वली दाद खान साहब मारहरवी व हाफ़िज़ क़ादिर अली साहब लखनवी व हाफ़िज़ अब्दुल करीम साहब से क़ुरआन शरीफ हिफ़्ज़ किया | मौलवी अब्दुश्शकूर साहब, अब्दुल गनी साहब, मौलवी मुहम्मद अली साहब लखनवी, मुहम्मद, हसन साहब संभली, मौलवी फ़ज़्लुल्लाह साहब फिरंगी महिलली, हज़रत ताजुल फुहूल मौलाना अब्दुल क़ादिर साहब बदायूनी रहमतुल्लाह अलैहिम से दरसी उलूम पढ़े |
सुलूक व तरीक़त की हज़रत ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी सिराजुस सलीक़ीन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी, अपने वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक़ और हज़रत ताजुल फुहूल मौलाना अब्दुल क़ादिर साहब बदायूनी रहमतुल्लाह अलैहिम से हासिल फ़रमाई |

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क़ुरआने करीम 30 साल की उमर में अपने ज़ौक़ व शोक से हिफ़्ज़ किया इस की खुशी में आप के वालिद माजिद ने सीतापुर में मस्जिद तामीर फ़रमाई |
इन फुनून के अलावा हज़रत इस्माईल हसन शाह साहब इल्मे जफर, रम्ल, तकसीर में भी अपनी नज़ीर आप थे | शेरो सुखन से से भी दिल चस्पी थी |
हज़रत शाह क़ासिम बचपन से ही बुज़ुरगों के नक़्शे क़दम पर गामज़न थे वालिद माजिद की तरबियत और निगाहें करम ने ज़ाती जोहर को और चमकाया फिर आने वाले दिनों में ज़माने ने देखा के ये खानदाने नुबुव्वत का शाहज़ादा अपने बड़ों की शानदार रिवायतों का पासबान साबित हुआ और जो खानदानी क़द्रें ज़माने की मोती तहों में दब कर रह गई थीं उन्हें ज़िंदह कर के ज़माने के सामने पेश कर दिया |
सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” रहमतुल्लाह अलैह खानदाने बरकात सादा तबीअत, हौसला मंद, मुख्लिस और हमदर्द बुज़रुंग थे | फ़ितरी बुराई आप को छू कर भी नहीं गुज़री थी, दीन और सुन्नियत पर साबित क़दम रहे, बुज़ुर्गों की रिवायतों का एहतिराम और उन की हिफाज़त अच्छी सोच अमल की पाबन्दी आप की बुनियादी खूबियां थीं, हज़रत ताजुल उलमा के मुताबिक़ हज़रत सूरतो सीरत दोनों एतिबार से अपने अकाबिर का नमूना और उन की अच्छी खूबियों और पसन्दीदाह ख़ासाइल के मालिक और वारिस थे |
इल्म परवरी मुआमलात साफ़ रखना जुरअत मंदी कुनबा परवरी और खानदानी रिवायतों को बाद वालों तक पहुंचाने में खुसूसी दिल चस्पी रखते थे दुनियावी रोअब बिलकुल क़बूल नहीं करते थे लम्बा क़द गेहूंआ रंग, बारीक नाक, बारीक लब, खूसूरत छोटे दांत और कन्धा चौड़ा था तलवार चलाने घोड़ सवारी और तैराकी में माहिर थे ऐसे बेहतरीन तैराक थे यादगारों और तबर्रुकात से खुसूसी दिल चस्पी रखते थे 1300 हिजरी से बैतुल्लाह से मुशर्रफ होकर जब वापस तशरीफ़ लाये तो मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से अज्वा खजूर का बीज साथ लाए और हवेली के सेहन में लगाया खजूर का ये मुबारक दरख़्त आज भी घर में मौजूद है जिसकी उमर 138 बरस हो चुकी है |

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हज़रत शाह क़ासिम के खास मुरीद और खलीफा डाक्टर अय्यूब हसन क़ादरी अबुल क़ासमी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत क़ासिम से एक बार रोज़गार की तंगी का शिकवा किया, हज़रत ने फ़रमाया आप की रोज़ाना की ज़रूरतें कितने में पूरी हो जाती हैं उन्होंने अर्ज़ की दो रूपये में ये उस दौर के दो रूपये हैं जिस की हैसियत आज के दो सौ रुपये से ज़्यादा होती थी, हज़रत शाह क़ासिम ने फ़रमाया जाओ आप को रोज़ाना अल्लाह की जानिब से ग़ैब से दो रुपये मिलते रहेंगे | डाक्टर अय्यूब हसन रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी ज़बान से ख़ानदान के लोगों को बयान किया के उस के बाद मुझे हर सुबह तकिए के नीचे दो रूपये मिल जाते, ये वाक़िआ हज़रत की करामत हमदर्दाना शफ़क़त दोनों की आइनादारी करता है |
हज़रत शाह क़ासिम बहुत मज़बूती के साथ दीन व सुन्नियत और खानदानी मामूलात पर पाबन्दी रखते थे इस लिए अल्लाह तआला ने आप के काम और बात ईमान और अमल ज़बान और क़लम सब में बरकतें दे रखीं थीं, आप की दुआओं से न जाने कितने मरीज़ शिफा याब हुए, बेशुमार मुक़दमो के फैसले हुए बहुत सी गोदे हरि हुईं सैकड़ों मुसीबत ज़दों ने चैन की सांस ली हज़ारों गुनहगारों ने तौबा की कई एक सिर्फ आप के चेहरे को देख कर इस्लाम से मुशर्रफ हुए और बहुत ने सुलूक की मनाज़िल तय कीं |
इल्मी ज़ौक़ मशाइखे मारहरा की वरासत रहा है यही सबब है के इस ख़ानक़ाह आलिशान में बुज़ुगों की दूसरी नादिर व नायाब चीज़ों के साथ साथ एक अज़ीमुश्शान क़दीम क़ुतुब खाना भी है हज़रत शाह क़ासिम को भी इल्मी ज़ौक़ वरासत में मिला था आप ने न सिर्फ ये के खुद ही उलूम व फुनून हासिल किए बल्कि अज़ीज़ों की खास तादाद को इल्म के ज़ेवर से आरास्ता किया आप ने बुज़ुर्गों के जमा किये हुए नादिर और पुराने क़ुतुब खाने को सभांल कर रखा और उसे हिफाज़त के साथ अगली नस्लों के हवाले किया |
हज़रत शाह इस्माईल हसन शाह साहब का वो दौर था के जब खानकाहे बरकातिया की इल्मी पहचान और खानकाही रिवायतों को मज़बूत करने की बेहद ज़रुरत थी हज़रत शाह क़ासिम ने उस वक़्त बड़े तज्दीदी कारनामे अंजाम दिए, आप ने फ़रज़न्दान गिरामी ख़ास कर आप ने नवासों को इल्मे शरीअत और तरीक़त में मज़बूत किया यहाँ तक के अपने घर की बेटियों को भी हाफ़िज़ा कराया खानदानी इल्म को जमा किया उलमा व मशाइख की रसाई को ख़ानक़ाह में बढ़ाया गरज़ के कोई ऐसा अमल नहीं छोड़ा जो ख़ानक़ाह की पुरानी रिवायतों और क़द्रों को बहाल न करदे इस लिए आज उनको “मुजद्दिदे बरकतियत” के लक़ब से याद किया जाता है |
सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” रहमतुल्लाह अलैह का अक़्द मसनून मामूज़ाद बहन सय्यदह मंज़ूर फातिमा बिन्ते सय्यद नूरुल मुस्तफा इबने सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन अमीर आलम के साथ हुआ, जिन से दो साहबज़ादे सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन फ़क़ीर आलम, ताजुल उलमा सय्यद औलादे रसूल फखरे आलम मुहम्मद मियां और चार साहबज़ादियाँ पैदा हुईं, ज़ाहिदा फातिमा, ऐजाज़ फातिमा, हमीरा और इकराम फातिमा, छोटी साहबज़ादी इकराम फातिमा शहर बनो हज़रत सय्यदुल उलमा और हज़रत एहसानुल उलमा की वालीदह मजीदह हैं |
बड़े साहबज़ादे हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन फ़क़ीर आलम साबित हसन की विलादत 3 रबीउल आखिर 1320 हिजरी को मारहरा में हुई, बेहतरीन हाफ़िज़ क़ुरआन थे और ज़बरदस्त आलिमे दीन, अपने वालिद माजिद से बैअत थे खिलाफत व इजाज़त वालिद माजिद और सरकार नूरी अबुल हुसैन अहमदे नूरी रहमतुल्लाह अलैह से हासिल थी, निकाह हुआ लेकिन औलाद नहीं थी 1330 हिजरी को जवानी के आलम में इस रंगा रंग दुनिया को लख़नऊ में अलविदा कहा |
छोटे साहबज़ादे ताजुल उलमा सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां फखरे आलम 13 रमज़ानुल मुबारक 1309 हिजरी को सीतापुर में पैदा हुए |
आप ही का उर्से क़ासमी होता है यानि सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” बरकाती रहमतुल्लाह अलैह का विसाल एक सफारुल मुज़फ्फर 1347 हिजरी को मारहरा शरीफ में हुआ आप ने अपनी हयाते ज़ाहिरी में ही अपने हक़ीक़े नवासे हज़रत अहसनुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह को अपनी ज़ात का सज्जादा नशीन फरमा कर अपनी मसनद का जानशीन बनाया आज अल हम्दुलिल्लाह इस मसनद पर उन के फ़रज़न्द अकबर हज़रत अमीने मिल्लत जलवा अफ़रोज़ हैं और उर्से क़ासमी की रौनक उनके दम से दो चंद है |
आप के खुलफ़ा में हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन फ़क़ीर आलम, हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां, हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा सय्यद मियां और हुज़ूर अहसनुल उलमा हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां साहब वगैरह हैं |

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सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी एक नज़र में महीना और साल

सवाल :- सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश कब हुई?
जवाब :- आप की विलादत 3 मुहर्रमुल हराम 1272 हिजरी को मारहरा मुक़द्दसा में हुई |
सवाल :- आप ने क़ुरआन मजीद कब हिफ़्ज़ किया? वालिद माजिद (सय्यद शाह मुहम्मद सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह) ने ख़ुशी का इज़हार कैसे किया?
जवाब :- जवानी की तीस साल की उमर में अपने शोक से क़ुरआन मजीद हिफ़्ज़ किया आप के वालिद ने इस मौके पर सीतापुर में एक आलिशान मस्जिद की तामीर फरमा कर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया |
सवाल :- आप की ज़ौजा मुहतरमा (बीवी) का किया नाम था और उन से कितने बेटे पैदा हुए?
जवाब :- आप की ज़ौजा मुहतरमा (बीवी) का नाम “मंज़ूर फात्मा” था, और आप से दो बेटे एक हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, दूसरे ताजुल उलमा हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां पैदा हुए |
सवाल :- आप हज पर कब तशरीफ़ ले गए?
जवाब :- 1300, हिजरी में |
सवाल :- आप को मुजद्दिदे बरकातियत क्यों कहा जाता है?
जवाब :- खानवादए बरकात पर एक ऐसा भी ज़माना आया था जब इल्म व अमल से दूरी होने लगी थी उस वक़्त आप ने अपनी कोशिशों से खुद अपने शोक से इल्म दीन पढ़ा और अपनी आल व औलाद और अइज़्ज़ा व अक़रबा को इल्मे दीन सीख कर तज्दीदे कार नामा अंजाम दिया इस लिए आप को मुजद्दिदे बरकातियत कहा जाता है, इस के अलावा आप ने बेश अज़ बेश क़ीमत अदा करके अपने बुज़ुर्गों की किताबें जमा फ़रमाई और अपने ख़ानदान की क़ुतुब खाने को मेहफ़ूज़ किया और खानदानी रिवायात की हिफाज़त की |
सवाल :- आप का सब से नोमाया “वस्फ़” क्या है?
जवाब :- तसल्लुब फिद्दीन यानि अगर आप किसी को भी राहे हक़ से ज़र्रा बराबर भी अलग थलग देखते तो उसकी इस्लाह करने से बिलकुल न झिझकते खवाह कितना ही क़रीबी क्यों न हो |
सवाल :- आप की चंद मशहूर तसानीफ़ के नाम बताएं?
जवाब :- मजमूआ सलासिल मन्ज़ूम, मजमूआ कलाम, रिसाला अमाल व तकसीर, करामात सुथरे मियां |
सवाल :- आप का तखल्लुस क्या है?
जवाब :- आप “वक़ार” तखल्लुस फरमाते थे |
सवाल :- आप के खुलफ़ा के असमाए गिरामी क्या हैं?
जवाब :- आप ने बेशुमार उलमा व मशाइख को खिलाफत से नवाज़ा था जिन में से चंद मशहूर खुलफ़ा ये हैं?
जवाब :- हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन फ़क़ीर आलम, हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां, हज़रत सय्यद शाह आले अबा क़ादरी, सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद आले मुस्तफा, अहसनुल उलमा हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां |
सवाल :- आप के कुछ अहम कारनामो को बयान कीजिये?
जवाब :- तहरीके आज़ादी, तरके मवालात और खिलाफत मूमेंट में अपने साहबज़ादे ताजुल उलमा और दोनों हमशीर ज़ादों हज़रत सय्यदुल उलमा और हज़रत अहसनुल उलमा के साथ तंज़ीम क़ाइम करके खानकाहे बरकातिया का मौक़िफ़ ज़माने को बताया, शहज़ादगान को ज़ेवरे तालीम से आरास्ता किया, तबर्रुकात खानदानी को इकठ्ठा क्या, अपने खानदानी क़ुतुब खाने को अज़ सरे नो क़ाइम किया और तमाम मखतूतात को मेहफ़ूज़ किया |

सवाल :- आप को बैअत व खिलाफत किस ने अता फ़रमाई?
जवाब :- अपने नाना सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन अमीर रहमतुल्लाह अलैह से हासिल थी | वालिद माजिद “हज़रत शाह मुहम्मद सादिक़ हुसैन” ने भी अपनी खिलाफत से नवाज़ा था |


सवाल :- आप का विसाल कब हुआ?
जवाब :- सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” बरकाती रहमतुल्लाह अलैह का विसाल एक सफारुल मुज़फ्फर 1347 या 1367 हिजरी को मारहरा शरीफ में हुआ | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |


सवाल :- आप का विसाल कब हुआ?
जवाब :- सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” बरकाती रहमतुल्लाह अलैह का विसाल एक सफारुल मुज़फ्फर 1347 या 1367 हिजरी को मारहरा शरीफ में हुआ | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |

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सवाल :- मारहरा शरीफ में उर्से क़ासमी किस बुजरुग का होता है?
जवाब :- आप ही का उर्से क़ासमी होता है यानि सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन अल मारूफ “शाह जी मियाँ” बरकाती रहमतुल्लाह अलैह |

मआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे मारहरा, बरकाती कोइज़,

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