कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौला हज़रते अहमद रज़ा के वास्ते

आप की विलादत शरीफ :- 10 शव्वाल 1272 हिजरी मुताबिक़ 14 जून 1856 ईस्वी बरोज़ हफ्ता ज़ुहर के वक़्त बरेली शरीफ उत्तर प्रदेश हिंदुस्तान में हुई |

आप का नामे नामी इस्मे गिरामि :- मेरे आक़ा आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, वलीए नेमत, अज़ीमुल बरकत, परवानए शामए रिसालत, मुजद्दिदे दिनों मिल्लत, हामिए सुन्नत, माहिए बिदअत,आलिमे शरीअत पिरे तरीक़त, इमामे इश्क़ो मुहब्बत, बाइसे खैरो बरकत, हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहद्दिस अल्हाज अल हाफिज़ अल कारी अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान रदियल्लाहु अन्हु का का नाम “मुहम्मद” है तारीखी नाम “अलमुख्तार” और जद्दे अमजद ने “अहमद रज़ा” तजवीज़ फ़रमाया बाद में आप ने खुद इस इस्म शरीफ के साथ “अब्दुल मुस्तफा” का इज़ाफ़ा फ़रमाया, जैसा के अपने नातिया दीवान में एक जगह फरमाते हैं |

खौफ न रख ज़रा रज़ा तू तो है अब्दे मुस्तफा
तेरे लिए अमान है तेरे लिए अमान है तेरे लिए

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सरकार आला हज़रत का नसब शरीफ :- आप का नसब नामा अक्सर क़ुतुब में मुस्तनद रिवायतों के साथ दर्ज, इमाम अहमद रज़ा खान, बिन मौलाना नक़ी अली खान, बिन मौलाना रज़ा अली खान, बिन मौलाना हाफिज मुहम्मद काज़िम अली खान, इबने मौलाना मुहम्मद आज़म खान, बिन मुहम्मद सआदत यार खान, बिन मुहम्मद सईदुल्लाह खान, रहिमाहु मुल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन |

सरकार आला हज़रत के खानदानी हालात :- आप के आबाओ अजदाद (बाप दादा) कंधार अफगानिस्तान के मुअककर क़बीला बढ़ हेच के पठान थे, जिसे अफगान भी कहा जाता है, मुहम्मद सईदुल्लाह खान साहब जो आली जाह शुजाअत जंग बहादुर के लक़ब से मशहूर थे, और कंधार से मुग़ल बादशाहों के एहिद में सुल्तान मुहम्मद नादिर शाह के साथ लाहौर तशरीफ़ लाए आला इन्तिज़ामी सलाहियतों की वजह से हुकूमते वक़्त ने उन्हें “शश हज़ारी” मंसबे जलीला से सरफ़राज़ किया था, लाहौर के शीश महल आप की जागीर में था कुछ दिनों के बाद दिल्ली पहुंचे तो उस वक़्त आप शश हज़ारी के उहदे पर फ़ाइज़ थे और शुजाते जंग का हुकूमत की जानिब से एक अज़ीम तमगा और ख़िताब दिया गया |
हज़रत सईदुल्लाह के साहबज़ादे हज़रत सआदत यार खान सुल्ताने वक़्त की हुकूमत के वज़ीर मालियात थे उन की अमानत दारी और दियानतदारी का ये आलम था के सुल्तान मुहम्मद शाह ने बदायूं के कई मक़ाम पर जगहें अता फ़रमाई जो आज भी इस खानदान के हिस्से में है, उनके साहबज़ादे मुहम्मद आज़म खान साहब भी वज़ारत आला के उहदे पर फ़ाइज़ थे मगर कुछ सालों के बाद सल्तनत की ज़िम्मेदारियों से सबक दोशी इख़्तियार कर के ज़ुहदो तक़वा और रियाज़त व रूहानियत की तरफ मुकम्मल पौर पर माइल हो गए, और हज़रत मुहम्मद आज़म ही की ज़ात से कंधार के खनवादों में इल्मो फ़ज़ल विरद वज़ाइफ़ ज़ुहदो तक़वा का बोल बाला शुरू हुआ और यही वो अज़ीम खानदान है जिनकी रोहानी किरनों से पूरे आलम को इल्मो हिकमत का दरस देकर तारीख साज़ कारनामा अंजाम दिया |

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सरकार आला हज़रत का हुलिया मुबारिका :- आँखें मोज़ो और ख़ूबसूरत, निगाह में क़द्रे तेज़ी जो हक़ाइक़ की तह तक पहुंचने में बेमिसाल और मशहूर रोज़गार थी, पेशानी कुशादा, बुलदं और दमकती हुई, जिस पर अज़मते इस्लाम की लकीरें ज़ाहिर थीं, मुख़ालिफ़तों के तूफ़ान पैहम यलगार में भी जिस पर कभी बल नहीं आया, चेहरा मालीह, शगुफताओ शादाब जलाल व जमाल की खुली तफ़्सीर जिस पर प्यारो मुहब्बत और ख़ुलूस की वफ़ा की चमकती थीं, और अगर कभी तेवर बिगड़ जाते तो दैहिकता हुआ शोला और बरसता हुआ अंगारा, नाक जो हमेशा ऊंची और सर बुलंद रही जिस ने ख़ारजी और दाखली हर महाज़ पर इस्लाम दुश्मन ताक़तों की नाकें ख़ाक आलूद कर दीं, आवाज़ निकलती तो मुँह से फूल झड़ते,
सीना, उलूमे मआरिफ़ का गन्जीना, हामीले शरीअत व तरीक़त, दिल आईने की तरह साफ़ शफ़्फ़ाफ़ ख़ौफ़े खुदा फिकरे आख़िरत फरोगे दीन, |
ज़हनो दिमाग आलिमाना व मुजतहिदाना, बारीक बीनी व नुक्ता रस ज़कावतो फतानत जिस की बेनज़ीर दीनी व इल्मी मिसाल नहीं |
पंजा फौलादी असदुल्लाही जिससे गुस्तख़ाने रसूल का खून हमेशा टपकता रहा, जिस ने बड़े बड़े सूरमाओ की कलाइयां मरोड़ कर रख दीं |
क़लम, रवां दवां सय्याल लेकिन मुहतात और ज़िम्मेदार निडर और बेबाक शारेह दीने मतीन मुहाफ़िज़ नामूसे रिसालत जो दुनिया के हर हर्बे का जवाब अपनी तहरीर से दे सकता था और जो सीनए बातिल में नश्तर बनकर चुभ जाता गोया |

किलके रज़ा है खंजरे खूंख्वार बरकबार
आदा से कह दो खैर मनाए न शर करें

आप की तालीम व तरबियत :- आप की तालीम व तरबियत जद्दे अमजद हज़रत मौलाना शाह रज़ा अली खान साहब और वालिद गिरामी हज़रत मौलाना शाह नक़ी अली खान साहब क़ुद्दीसा सिर्राहुमा की आग़ोशे तरबियत व मुहब्बत में हुई और बाक़ायदा 1275 हिजरी के शुरू में ही आप की तालीम का आगाज़ हुआ
आप के बचपन का हैरत अंगेज़ “वाक़िआ” जो इस तरह है के बिस्मिल्लाह शुरू करने के बाद उस्ताज़े मुहतरम के कहने के मुताबिक़ आप अब्जादि तमाम हुरूफ़ को पढ़ते रहे और जब ला की बारी आयी तो खामोश रहे उस्ताद ने कहा पढ़ो मियां? तो आप ने फ़रमाया के अगल अगल तो दोनों हर्फों को पढ़ चुका हूँ दोबारा क्यों जद्दे अमजद हज़रत मौलाना शाह रज़ा अली खान साहब रहमतुल्लाह अलैह मौजूद थे आपने फ़रमाया के बेटा उस्ताद का कहना मानो आपने पढ़ तो लिया मगर चेहरे से उलझन दूर करने के लिए फ़रमाया तुम्हारा ख्याल दुरुस्त है और तुम्हारा समझना बेजा है मगर बात ये है के शुरू में जिस को तुमने अलिफ़ पढ़ा था हकीकत में वो हमजा है और लाम के साथ अलिफ़ है चूंकि अलिफ़ हमेशा साकिन होता है इस लिए लाम के साथ मिला दिया गया तो आप ने फिर एतिराज़ किया |
के उस को किसी भी हर्फ़ के साथ मिला देना काफी था लाम ही के साथ क्यों मिलाया गया जद्दे अमजद हज़रत मौलाना शाह रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह ने निहायत मुहब्बत के साथ गले से लगा लिया और फ़रमाया बेटा दरअसल लाम और अलिफ़ में सूरतन और सीरतन दोनों एतिबार से मुनासिबत है ज़ाहिरन लिखने में दोनों की सूरत एक सी होती है | और सीरत इस वजह से के लाम का क़ल्ब अलिफ़ है और अलिफ़ का क़ल्ब लाम है यानि वो इस के बीच है और वो इस के दरमियान तब आप मुत्मइन होकर उस्ताद के मुताबिक़ पढ़ते हुए रहे |
आप की उमर शरीफ “अभी चार साल की थी के आप ने क़ुरआने पाक का नाज़िरह खम्त कर लिया”, “6 छह साल की उमर शरीफ रबीउल अव्वल की महफ़िल मिम्बर पर रौनक अफ़रोज़ हो कर बहुत बड़े मजमे में मिलाद शरीफ पढ़ा” |
आठ साल की उमर में फन्ने नहो की मशहूर किताब “हिदायतुन नहो” पढ़ी और खुदा दादा इल्म के ज़ोर के ये आलम था के इस छोटी सी उमर में “हिदायतुन नहो” की शरह अरबी में लिखी नीज़ किताब के चौथाई हिस्सा उस्ताद से पढ़ते और बाक़ी खुद सुना देते, उर्दू फ़ारसी की शुरू की किताबें आपने “जनाब मिर्ज़ा गुलाम क़ादिर बेग बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ी” (बाद में मिर्ज़ा साहब ने आप से हिदाया पढ़ी) “फिर तमाम दीनियात की तालीम व जुमला उलूम व फुनून अपने वालिद माजिद इमामुल मुतकल्लिमीन हज़रत मौलाना शाह नक़ी अली खान साहब रहमतुल्लाह अलैह से मुकम्मल फ़रमाया, 13 तेरह साल की छोटी से उमर में 1282 हिजरी में वालिद माजिद से दरसियात की तकमील की, बाद थोड़े दिनों रामपुर में क़याम कर के मौलाना अब्दुल अली रियाज़ी दान से शरह चिगमिनी के चंद सबक़ पढ़े |

मज़ारे मुक़द्दस :- आप का मज़ारे पुर अनवार खानकाहे रज़विया क़दीरिया बरेली शरीफ इंडिया में है मुहल्लाह सौदागिरान रज़ा नगर में ज़ियारत गाह खलाइक़ है |

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आप के उस्तादे किराम :- वालिदे मुहतरम रईसुल अतक़िया हज़रत अल्लामा नक़ी अली, अपने जद्दे अमजद हज़रत मौलाना रज़ा अली खान, हज़रत मौलाना गुलाम अब्दुल क़ादिर बेग से उलूमे दिनिया की तालीम हासिल कर के सिर्फ 14 चौदह साल की उम्र में यानि 1286 में उलूमे दिनिया की तकमील करली और इसी साल 1286 हिजरी में ही आप मसनदे इफ्ता पर जलवागर हुए |

आप ने अपनी फरागत का ज़िक्र खुद ही इस तरह फ़रमाया है :- शाबान 1286 हिजरी 1869 ईस्वी में उलूमे दरसिया से फरागत हासिल की और उस वक़्त में 13 साल 10 महीने और पांच दिन की उम्र थी,
उलूमे अरबिया से फरागत के बाद ही वालिद माजिद शाह मौलाना नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह ने इफ्ता की ज़िम्मा दारियाँ भी सौंप दीं और इस छोटी सी उम्र में फतवा नवेसी का आगाज़ फ़रमाया जैसा के एक बार आप की खिदमत में एक सवाल आया के बच्चे की नाक में दूध चढ़ कर हलक़ में उतर जाए तो “रज़ाअत” साबित होगी या नहीं?
आप ने इरशाद फ़रमाया मुँह या नाक से औरत का दूध जो बच्चे के पेट में पहुंचेगा हुरमत रज़ाअत लाएगा और फ़रमाया ये वही फतवा है जो 14 शाबान 1286 हिजरी 1869 ईस्वी में सब से पहले लिखा और इसी 14 शाबान 1286 हिजरी में मंसबे इफ्ता अता हुआ |

आप सिलसिलए आलिया क़ादरिया रज़विया के 39, उन्तालीस वे इमाम व शैख़े तरीक़त हैं :- शैखुल इस्लाम वल मुस्लिमीन, हुमामुल अस्र, आयतिम मिन आयतिल्लाह, हस्सानुज़ ज़मा, बुरहानुल औलिया, मुजद्दिदे ज़माना, हामिये सुन्नत माहिए बिदअत, आला हज़रत अज़ीमुल बरकत अश्शाह हाफिज कारी मुफ़्ती इमाम अहमद रज़ा खान क़ादरी बरकाती रहमतुल्लाह अलैह आप “सिलसिलए आलिया क़ादरिया रज़विया के 39, उन्तालीस वे इमाम व शैख़े तरीक़त हैं” |

आप के फ़ज़ाइलो कमाल बेशुमार हैं ज़ैल में सिर्फ चंद अकाबिर उल्माए किराम के अक़वाल पेश किए जाते हैं, तफ्सील के लिए “हस्सामुल हरमैन, अद्दौलतुल मक्किया” का मुतालआ करें :- हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद सदक़ा बिन ज़ैनी दहलान जिलानी मस्जिदे हराम मक्का मुअज़्ज़मा आप फरमाते हैं: पाक हैं वो ज़ात जिस ने इस के मुअल्लिफ़ मौलाना अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह को फ़ज़ाइल व कमालात से मुशर्रफ व मुख़तस फ़रमाया और उसे इस ज़माने के लिए छुपा के रखा और बिला आखिर वक़्त आने पर ज़ाहिर फरमा दिया |
हज़रत शैख़ मूसा अली शामी अज़हरी अहमदी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं |
इमामुल अइम्मा मिल्लते इस्लामिया के मुजद्दिद नूरे यक़ीन और नूरे क़ल्ब को तक़वियत यानि ताक़त देने वाले यानि शैख़ अहमद रज़ा खान अल्लाह तआला दोनों जहान में उनको क़बूल व रिज़वान अता फरमाए |
हज़रत शैख़ इस्माईल बिन सय्यद खलील हाफिज कुतुबुल हरमैन मक्का मुअज़्ज़मा फरमाते हैं: में अल्लाह तआला का शुक्र अदा करता हूँ के उस ने इस आलिमे बा अमल आलिम फ़ाज़िल साहिबे मनाक़िब व मफाखिर, जिस को देख कर ये कहा जाए के अगले पिछलों के लिए बहुत कुछ छोड़ गए यकताए रोज़गार वहीदे अस्र इस मौलाना शैख़ अहमद रज़ा खान को मुक़र्रर फ़रमाया और वो क्यों ऐसा न हो के उल्माए मक्का मुअज़्ज़मा उस के लिए इन फ़ज़ाइल की गवाही दे रहे हैं अगर वो इस मक़ाम रफ़ी पर मुतमक़्क़िन न होता तो उल्माए मक्का मुअज़्ज़मा उसके लिए ये गवाही न देते, हाँ हाँ “में कहता हूँ के उस के हक़ में ये कहा जाए के वो इस सदी का “मुजद्दिद” हैं तो हक़ व सही हैं” |
हज़रत शैख़ मुहम्मद करीमुल्लाह मुहाजिर मदनी फरमाते हैं |
के में कई साल से मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में मुक़ीम हों हिंदुस्तान से हज़ारों साहिबे इल्म आते हैं उन में उलमा सुल्हा और अतक़िया सब ही होते हैं मेने देखा के वो शहर के गली कूचों में मारे मारे फिरते में कोई भी उनको मुड़ कर नहीं देखता लेकिन फाज़ले बरेलवी की अजीब शान है यहाँ के उलमा और बुज़रुग सब ही उनकी तरफ जोक दर जोक चले आ रहे हैं और उनकी ताज़ीम व तक़रीम में सबक़त ले जाने की कोशिश करते हैं ये अल्लाह का फ़ज़ल ख़ास है जिसे चाहता है नवाज़ता है |

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आप के ख़ासाइल मुबारिक :- आप हसंते वक़्त कभी क़हक़हा न लगाते, जमाही आने पर ऊँगली दानतों में दबा लेते जिसकी वजह से कोई आवाज़ न होती, क़िब्ले की तरफ मुहं करके कभी न थूकते, न क़िब्ले की तरफ कभी पाऊँ फैलाते, खत बनवाते वक़्त अपना कंगा शीसा इस्तेमाल करते, हमेशा नमाज़ बा जमाअत अदा करते, 24 घंटे में सिर्फ डेढ़ दो घंटे आराम फरमाते, बाक़ी तमाम वक़्त तसनीफ़ व क़ुतुब बिनि और दूसरी खिदमाते दिनिया में सर्फ़ फरमाते और हमेशा तसनीफ़ व तालीफ़, क़ुतुब बीनी फतवा नवेसी में वक़्त गुज़रता औराद व वज़ईफ़ व अशग़ाल के लिए ख़लवत में तशरीफ़ ले जाते, आप हमेशा बशक्ल नामे अक़दस रसूले करीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सोया करते इस तरह के दोनों हाथ मिला कर सर के नीचे रखते और पाऊँ समेट लेते जिससे मीम कुहनिया “हे” मीम पाऊँ दाल बनकर गोया नामे पाक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नक़्शा बन जाता, आप का ज़ाहिर व बातिन एक था जो कुछ आप के दिल में होता वही ज़बाने मुबारक से अदा फरमाते और जो कुछ ज़बान से फरमाते तो उस पर अमल होता |

आप के अख़लाक़े हमीदह :- आप अल हुब्बु लिल्लाह वल बुज़ग फिल्लाह की ज़िंदह तस्वीर थे और अशिद्दाओ अलल कुफ्फार व रोहमाओ बइना के मुताबिक़ बद दीनो मुलहिदों, मुर्तदों और कुफ्फार पर चट्टान की तरह सख्त थे अपनों के लिए आग़ोशे मादर और बाज़ूए बिरादर थे और गरीबों के लिए एक ग़ज़बनाक और बिफरा हुआ शेर जिस में नरमी व मुरव्वत भी थी और सख्ती व हलावत भी, रिक़्क़त व लताफत भी थी और शिद्दत सलाबत भी जब किसी सुन्नी आलिम से मुलाक़ात होती तो दिल बाग़ बाग़ हो जाता इस की इतनी इज़्ज़त करते जिस के लाइक वो अपने को न समझता जब हाजी बैतुल्लाह करके आप की खिदमत में हाज़िर होते तो उन से पहले यही पूछते के रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में भी हाज़िरी दी? अगर वो हाँ कहते तो फ़ौरन उन के क़दम चूम लेते और अगर कहते के नहीं तो फिर उन की जानिब बिलकुल तवज्जु न फरमाते |

आप से एक राफ्ज़ी यानि शीआ मिलने आया तो आपने उसकी तरफ कोई तव्वजो नहीं दी :- एक बार हज़रत नन्नेह मियां मौलाना मुहम्मह रज़ा ने असर के बाद आप की खिदमत में अर्ज़ किया के हैदराबाद दक्कन से एक राफ्ज़ी सिर्फ आप की ज़ियारत के लिए आया है और अभी हाज़िरे खिदमत होगा, तकलीफे क़ल्ब के लिए इससे बात चीत कर लीजिये गा दौरान गुफ्तुगू ही वो राफ्ज़ी भी आ गया, हाजिरीने मजलिस का बयान है के आला हज़रत उस की तरफ बिलकुल मुतावज्जेह न हुए यहाँ तक के नन्नेह मियां साहब ने उस को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया वो बैठा गया, आला हज़रत के गुफ्तुगू न फरमाने से उस को भी कुछ बोलने की जुरअत न हुई थोड़ी देर बैठ कर वो चला गया, उस के जाने के बाद नंन्हे मियां ने आला हज़रत को सुना कर ये कहा के वो इतनी दूर से सिर्फ मुलाक़ात के लिए आया था अख़लाक़न तवज्जुह फ़रमा लेते क्या हर्ज था?
हुज़ूर आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह जलाल में आकर फ़रमाया मेरे अकाबिर पेशवाओं ने मुझे यही अख़लाक़ बताये” फिर इस पर कई आहादीसें बयान कीं |

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आप की जूदू सखावत :- आप की मुकम्मल ज़िन्दगी सल्फ़ सवालिहीन के तरीके पर गुज़री, अख़लाक़ व आदात, इबादत व रियाज़त के अलावा बख़िशश व अता के मैदान में भी आप की ज़िन्दगी तक़लीदी ज़िन्दगी है, जैसा के शानए अक़दस से कोई साइल ख़ाली वापस न होता, बेवगान की इमदाद और ज़रुरत मंदों की हाजत रवाई के लिए आप की जानिब से माहवार रक़मे थीं और ये इमदाद सिर्फ मक़ामी लोगों के लिए ही न थीं बल्कि बज़रिये मनी ऑडर इमदादी रक़में रवाना फ़रमाया करते थे |

बैअत व खिलाफत :- आप 1294, हिजरी 1877, ईस्वी में अपने वालिद माजिद शाह मौलाना मुहम्मद नक़ी अली खान हज़रत ताजुल फुहूल मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर मुहिब्बे रसूल बदायूनी के साथ हज़रत शाह आले रसूल मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए और सिलसिलए आलिया क़दीरिया में बैअत से मुशर्रफ हुए और इज़ाज़तों खिलाफत से भी नवाज़े गए आप को जिन सलासिल इज़ाज़तों खिलाफत हासिल थी उस की तफ्सील इस तरह थी |
क़दीरिया बरकातिया जदीदा, क़दीरिया आबाईया क़दीमा, क़दीरिया हिदाया, क़दीरिया रज़्ज़ाक़िया, क़दीरिया मंसूरिया, चिश्तिया निज़ामिया क़दीमा, चिश्तिया महबूबिया जदीदह, सुहरवर्दिया वाहिदिया, सुहरवर्दिया फ़ज़ीलिया, नक्शबंदिया अलाईया सिद्दीक़िया, नक्शबंदिया अलाईया अल्विया, बदिया, अल्विया मनामीया वगैरह वगैरह |

शैख़ की अक़ीदत यानि आप के पिरो मुर्शिद की आप से मुहब्बत :- आप को आप के शैख़े तरीक़त ने उसी वक़्त बैअत के साथ ही खिलाफत व इजाज़त से नवाज़ दिया जिस का इज़हार हज़रत शाह मौलाना अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां रहमतुल्लाह अलैह आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह शैख़े तरीक़त से इस तरह फ़रमाया |
हुज़ूर आप के यहाँ तो काफी अरसे बा मुशक़्क़त मुजाहिदात व रियाज़त के बाद खिलाफत व इजाज़त दी जाती है, तो फिर उस की क्या वजह है के इन दोनों (आला हज़रत और आप के वालिद माजिद) को बैअत करते ही खिलाफत दे दी गई? तो हज़रत ने इरशाद फ़रमाया मियां साहब और लोग जंग आलूद मैला कुचैला दिल लेकर आते हैं इस की सफाई और पाकीज़गी के लिए मुजाहिदाते तवीला रियाज़ाते शाक़्क़ा की ज़रुरत पढ़ती है, ये दोनों हज़रात साफ़ सुथरा दिल लेकर हमारे पास आये उनको सिर्फ इत्तिसाले निस्बत की ज़रुरत थी और वो मुरीद होते ही हासिल हो गई फिर आप के मुर्शिदे गिरामी ने ये भी फ़रमाया के,
मुझे इस बात की बहुत फ़िक्र थी के जब क़यामत के दिन अल्लाह तआला फरमाएगा ऐ आले रसूल तू मेरे लिए दुनिया से क्या लाया है? तो में बारगाहे इलाही में कौनसी चीज़ पेश करूंगा लेकिन वो आज फ़िक्र मेरे दिल से दूर हो गई क्यों के जब अल्लाह पाक पूछेगा के ऐ आले रसूल तू मेरे लिए क्या लाया है तो में अर्ज़ करूंगा इलाही तेरे लिए “अहमद रज़ा लाया” हूँ |

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मज़ारे मुक़द्दस :- आप का मज़ारे पुर अनवार खानकाहे रज़विया क़दीरिया बरेली शरीफ इंडिया में है मुहल्लाह सौदागिरान रज़ा नगर में ज़ियारत गाह खलाइक़ है |

ताजदारे किशवरे उलूम व फुनून :- आप हैरत अंगेज़ ज़हानत व फतानत के मालिक थे, जैसा के आप चौदवी सदी का बे मिसाल अबक़री शख्स कहा जाए तो बेजा ना होगा, आप ने उलूमे दरसिया के अलावा दीगर उलूम व फुनून की भी तहसील की और बाज़ उलूम व फुनून में खुद आप की तबा सलीम ने रहनुमाई की ऐसे तमाम उलूम व फुनून की तादाद 45 है जिस की तफ्सील ये है,
इल्मे क़ुरआन, इल्मे हदीस, उसूले हदीस, फ़िक़्ह जुमला मज़ाहिब, उसूले फ़िक़्ह, जिदल, तफ़्सीर, अक़ाइद, कलाम, नहो, सर्फ़, बयान, बदी, मंतिक, मुनाज़िरह फलसफा, तकसीर हय्यात, हिसाब हिन्दीसा, किरात तजवीद, तसव्वुफ़ सुलूक, अख़लाक़ अस्मा उर्रिजाल, सैर तारीख लुग़त अदब, तौकीत हय्यात जदीदा,
मन्दर्जा बाला उलूम के इल्मुल फ़राइज़, उरूज़ो कवाफ़ी, नुजूम, औकाफ, फन्ने तारीख (आदाद) नज़्मों नसर फ़ारसी, नज़्म हिंदी खत नस्ख़ और खत नस्तालीक़ वगैरह में भी कमाल हासिल किया, इस तरह आप ने जिन उलूम व फुनून पर दस्तरस हासिल की उन की तादाद 54 से मुताजाविर हो जाती है हमारे ख्याल में आलमे इस्लाम में मुश्किल ही से कोई ऐसा आलिम नज़र आएगा जो इस क़दर उलूम व फुनून पर दस्तगाह रखता हो |

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आप का पहला हज :- आप पहली बार 1295 हिजरी 1878 में अपने वालिद माजिद मौलाना नक़ी अली खान के साथ में ज़्यारते हरमैन शरीफ़ैन के लिए तशरीफ़ लेगए, इस सफर मुबारक में मक्का शरीफ से मदीना शरीफ से रवानगी के वक़्त एक नज़्म तहरीर फ़रमाई जो वारदात व कैफियात क़ल्बीया की आईनादार है और जिस के हर्फ़ हर्फ़ से बूए मुहब्बत फुट रही है इस नज़्म का मतला है

हाजिओ आओ शहंशाह का रोज़ा देखो
काबा तो देख चुके काबे का काबा देखो

इस सफर मुक़द्दस में हरमैन शरीफ़ैन के अकाबिर उलमा मुफ्तिए शाफ़ईया अहमद दहलान और मफ़्तिये हनफ़िया शैख़ अब्दुर रहमान सिराज वगैरा से इल्मे हदीस, तफ़्सीरे, फ़िक़्हा और उसूले फ़िक़्ह में सनदें हासिल कीं और इसी सफर मुबारक में हरम शरीफ में नमाज़े मगरिब के बाद एक और इमाम शाफ़ईया शैख़ हुसैन बिन सालेह बगैर किसी साबिक़ा तआरुफ़ के आगे बढ़ कर फ़ाज़ली बरेलवी का हाथ पकड़कर अपने साथ घर लेगए फरते मुहब्बत से देर तक आप की नूरानी पेशानी देखते रहे और जोशे अक़ीदत में फ़रमाया “बेशक में इस पेशानी में अल्लाह का नूर महसूस कर रहा हूँ शैख़ हुसैन बिन सालेह मौसूफ़ ने आप को सेहा सित्ता की सनद और सिलसिलए आलिया क़दीरिया की इजाज़त अपने दस्त खत से इनायत फ़रमाई और आप का नाम ज़ियाउद्दीन अहमद रखा” |
आप का दूसरा हज :- दूसरी बार 1323 हिजरी मुताबिक़ 1905 ईस्वी में आप हज्जे बैतुल्लाह और ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन के लिए गए इस मौके पर भी एक नज़्म लिखी थी जिस का मलता ये है |

शुकरे खुदा की आज घड़ी इस सफर की है
जिस पर निसार जान फलाहो ज़फर की है

इस मुबारक सफर में उल्माए हिजाज़ ने आप की बड़ी क़दरो मन्ज़िलत की, जिस का बखूबी अंदाज़ा आप की शोहरए आफ़ाक़ किताब “हस्सामुल हरमैन अद्दौलतुल मक्किया, और किफ़्लुल फकीहिल फाहिम” वगैरा के मुताला से होता है |
मौलाना हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह इस सफर में आप के साथ थे, आप फरमाते हैं इजाज़त तलबी के लिए सब से पहले मौलाना सय्यद अब्दुल हई मक्की तशरीफ़ लाए, उन के साथ एक जवान सेलाह शैख़ हुसैन जमाल बिन अब्दुर रहीम भी थे दोनों हज़रात को सनादें इजाज़त अता फ़रमाई, उनके बाद मौलाना शैख़ सेलाह कमाल और बाज़ दुसरे अहले इल्म आए और इजाज़त से मुशर्रफ हुए यहाँ तक के उलमा का आप के पास हुजूम रहता था, मुलाक़ात व ज़ियारत करने वालों की भीड़ 12 बजे रात से पहले हटने का नाम नहीं लेती, यहाँ तक के अगर किसी को तन्हाई में आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से मिलना होता तो वो आधी रात के बाद ही मिल सकता था आप साथ ख़ुलूस व अक़ीदत में मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के हज़रात किराम ने बाशिंदगान मक्का शरीफ से ज़्यादा हिस्सा लिया और आप कसीर उल्माए किराम को सनादें और इज़ाज़तें और खिलाफ़तें अता फ़रमाई |

मआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया, फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में, तज़किराये उल्माए अहले सुन्नत, हयाते आला हज़रत |

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शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी (Part-1)

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