हामिदो मेहमूद और हम्माद अहमद कर मुझे
मेरे मौला सय्यदी हामिद रज़ाए मुस्तफा के वास्ते

आप का फन्ने तारिख गोई (हिस्ट्री) में कमाल :- वालिद माजिद सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह की तरह हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह को फन्ने तारिख गोई (हिस्ट्री) में भी कमाल हासिल था, हज़रत मौलाना अब्दुल करीम दरस रहमतुल्लाह अलैह के विसाल पर (मुताफ़व्वा 1344,) हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने तवील यानि लम्बी तारीख लिखी हैं, यूँही बुनियादी मस्जिद पर भी आप ने बेहतीरीन तारीखें लिखी हैं,

आप के तसनीफी व इल्मी कारनामे :- हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह साहिबे तसनीफ़ बुज़रुग थे, आप की इल्मी जलालत का सही पता और इल्म तो आप की तसानीफ़ से ज़्यादा मुमकिन है, ज़ेल में आप की क़लमी यादगार की निशान दही की जाती है कराईंन अस्ल किताब की तरफ मुराजिअत करें,
अस्सारीमुर रब्बानी, तर्जुमा अद्दौलतुल मक्किया बिल माद तिल गैबिया, तर्जुमा हस्सामुल हरमैन मजमूआ फ़तावा,

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आप की कशफो करामात

आप की कशफो करामात में सब से बड़ी करामत ये है के आप मज़हबे अहले सुन्नत पर बड़ी मज़बूती के साथ क़ाइम रहे और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत आप के हर अमल से ज़ाहिर थी, आप की चंद करामात मन्दर्जा ज़ेल हैं,

बा करामत मुदर्रिस :- हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह एक तजुर्बा कार मुदर्रिस और तदरीसी उमूर में महारत रखते थे, चुनाचे एक बार दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम के चंद अहम मुदर्रिसीन मदरसा छोड़ कर चले गए, तो हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह ने उलूम व फुनून की तमाम किताबें खुद पढ़ानी शुरू कर दीं और इस तरह पढ़ायीं के इन मुदर्रिसीन का वो ख्याल गलत साबित हुआ जो ये कहते थे, के हमारे बगैर तलबा मदरसा छोड़ देंगें, बल्कि आप की तदरीसी महारत और इल्मी क़ाबिलियत का शोहरा सुन कर बहुत से दूसरे तलबा दारुल उलूम में मज़ीद दाखिल हुए,

कब्र असली जगह पर नहीं है :- बयान किया जाता है के जनाब हाजी मुहम्मद इस्माईल बिन हाजी अब्दुल गफूर साहब मदनपुरा बनारस ने बयान किया के एक मर्तबा हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह मदनपुरा बनारस तशरीफ़ लाए, नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद बरतला में तशरीफ़ ले गए, बाद नमाज़े मस्जिदे मज़कूरा में वाक़े मज़ार शरीफ पर फातिहा पढ़ने लगे, चंद ही लम्हो के बाद अचानक आप ने क़दम को पीछे हटा लिया, और इरशाद फ़रमाया ये क़बर अपनी असली जगह पर नहीं है? लोगों ने जब इस बात को सुना कहा के हुज़ूर सफ़ में दुशवारी हो रही थी जिस की वजह से ताबूत को ज़रा खिसका हटा दिया गया है आप ने फ़रमाया के ऐसा करना ठीक नहीं है, इस ताबूत को इस के असल जगह पर रखा जाए,

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जिन व आसेब को भगाने में शाने मसीहाई :- एक बार आप मदनपुरा बनारस तशरीफ़ लाए, लोगों को जब इल्म हुआ के हज़रत आसेब ज़दह को फिल्फोर सेहत याब फरमा देते हैं, तो लोगों की भीड़ जमा हो गई और कई लोगों ने अपनी हाजत बयान की हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के मरीज़ के कपड़े को सामने लाओ, फ़ौरन कपड़ों का अम्बर ढेर लग गया,
आप ने इन तमाम कपड़ों को बा नज़र गौर से देखा और इस में से चंद कड़पों को अलग कर के इरशाद फ़रमाया के यही लोग असली मरीज़ हैं, बाक़ी सब यूँही हैं, उन को आसेब का कोई आरिज़ा नहीं है, इन कपड़ों पर आप ने कुछ पढ़ा, चंद ही दिनों में वो तमाम मरीज़ सेहत याब हो गए और फिर कभी आसेबी खलल में गिरफ्तार न हुए, उन्हीं में से एक शख्स पर इतना खतरनाक किसम का जिन था जो रात में छतों की मुंडेर पर खूब दौड़ता था, घर वाले इस की हरकत से काफी परेशान थे, और हर वक़्त खतरा रहता था, के कहीं छत से नीचे गिर कर हलाक न हो जाए, हज़रत की दुआ से वो खबीस जिन भी ताइब हुआ और इस मज़कूरा शख्स को छोड़ दिया जिससे वो सेहत याब हो गया,

देओबंदी गुस्ताख़ पर गैबी अज़ाब :- हज़रत अल्लामा शैख़ अब्दुल माबूद जिलानी मक्की रिवायत करते हैं के में जब बरैली शरीफ गया तो आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर नात वो कमाले हुसने हुज़ूर है के गुमाने नक्से जहाँ नहीं का 11, ग्यारवा शेर लिख रहे थे, चूंकि में ग्यारवी वाले सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की औलाद से हूँ इस लिए उस को में ने अप ने लिए नेक फाल समझा, बेहरे हाल इन चंद दिनों में हुज्जतुल इस्लाम से भी बहुत क़रीब रहे मुझे यक़ीन करना पढ़ा के हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम साहिबे करामत बुज़रुग हैं, इन की करामत का अंदाज़ा मुझे इस वाक़िए से हुआ के जब में बरेली शरीफ से दिल्ली आया तो दिल्ली में जिस मकान में मेरा क़याम था इसी से मुत्तसिल देओबंदीओं का जलसा हो रहा था, दौराने तक़रीर करते हुए कहा “ये मौलाना हामिद रज़ा नहीं हैं बल्के जामिद हैं” मअज़ल्लाह इस मौलवी देओबंदी नजदी ने सरकार हुज्जतुल इस्लाम का नामे नामी बे अदबी गुस्ताखी से लिया और हामिद के बजाए जामिद कहा थोड़ी ही देर बाद लोगों ने देखा के इस बे अदब गुस्ताख़ मुक़र्रर की ज़बान जामिद (बे हिस जमा हुआ पथ्थर) और वो खुद जामिद हो गया, और चंद ही लम्हे के बाद मौत ने उस को हमेशा के लिए जामिद कर दिया, इस वाक़िए से जलसे में कोहराम मच गया यहाँ तक के उस ने कुछ बोलना चाहा मगर बोल ना सका तो इशारे से क़लम दवात तलब किया और एक कागज़ पर मरने से पहले ये लिख कर मरा में मौलाना हामिद रज़ा खान साहब की बे अदबी से तौबा करता हूँ,

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आप के मुरीदीन खुल्फ़ए किराम शागिर्द :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदीन की तादाद यूं तो लाखों में थी, लेकिन अब भी हज़ारों की तादाद में उन के मुरीदीन मौजूद हैं चित्तोड़ गढ़, जयपुर उदय पुर, जोधपुर, सुल्तानपुर, बरैली व अतराफ़ चारों तरफ कानपूर, फतेहपुर, बनारस और सूबा बिहार वगैरह में उन के मुरीदीन ज़्यादा हैं, कराची पाकिस्तान में भी हमीदियों की अच्छी खासी तादाद पायी जाती है, आप के खुलफ़ा में “मुहद्दिदे आज़म पाकिस्तान हज़रत अल्लामा सरदार अहमद साहब रहमतुल्लाह अलैह” सिरे फेहरिस्त हैं,

  • आप के मश्हूरो मारूफ खुल्फ़ए किराम :-
  • हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत मौलाना शाह हबीबुर रहमान, ओड़िसा इंडिया,
  • हज़रत मौलाना शाह रफ़ाक़त हुसैन साहब,
  • हज़रत मौलना शेर बेशाए अहले सुन्नत हशमत अली खान, पीलीभीत इंडिया,
  • हज़रत मौलाना शाह इब्राहीम रज़ा खान जिलानी मियां साहब खलफ़े अकबर हज़रत हम्माद रज़ा साहब,
  • हज़रत मौलना एहसान अली साहब फैज़ पूरी साबिक शैखुल हदीस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम बरेली,
  • हज़रत मौलाना अब्दुल मुस्तफा साहब अज़हरी,
  • हज़रत मुफ़्ती तक़द्दुस अली खान साहब,
  • हज़रत मौलाना इनायत मुहम्मद खान साहब गोरी,
  • हज़रत मौलाना अब्दुल गफूर साहब हज़ारवी,
  • हज़रत मौलाना मुहम्मद सईद शिब्ली साहब फरीद कोटि,
  • हज़रत मौलाना वलीउर रहमान साहब पोखेरवी,
  • हज़रत मौलाना हाफिज मुहम्मद मियां साहब अशरफी रज़वी,
  • हज़रत मौलाना अबुल खलील अनीस आलम साहब सिवान,
  • हज़रत मौलाना क़ाज़ी फ़ज़ल करीम बिहारी,
  • हज़रत मौलाना रज़ि अहमद साहब,
  • पाकिस्तान के मशहूर शायर हस्सानुल असर जनाब अख्तर हमीदी साहब,
  • हज़रत मौलाना ज़हूर हस्साम मानक पूरी,
  • हज़रत मौलाना अब्दुल वहीद उड़ीसा,
  • हज़रत मौलाना अब्दुर रब मुरादाबादी,
  • हज़रत निज़ामुद्दीन बलयावी,
  • हज़रत नईमुल्लाह खान,
  • हज़रत सय्यद अब्बास अल्वी मक्की,
  • हज़रत कारी मकबूल हुसैन इलाहबाद,
  • हज़रत अब्दुल क़ुद्दूस,
  • हज़रत अल हाज आशिकुर रहमान इलाहबाद,
  • हज़रत सय्यद शाह फज़लुर रहमान,
  • हज़रत शमश आलम,
  • हज़रत मौलाना करि अबदुत्त तौवाब उड़ीसा,
  • हज़रत कारी सिराज अहमद,
  • हज़रत शाह नूर मुहम्मद,
  • हज़रत मुदस्सिर हुसैन नाज़िमे तब्लीग सीरत मगरिबी बंगगाल, हज़रत सय्यद सदरे आलम रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत मुहम्मद सलीम सुल्तानपुरी,
  • हज़रत सय्यद काज़िम पाशा हैदराबाद,
  • हज़रत अल हाज मुहम्मद अली जिनाह इलाहाबादी,
  • हज़रत उबैदुल्लाह खान आज़मी,
  • हज़रत गुलाम अब्दुल क़ादिर भदोही,
  • हज़रत अरशद अली अजमेरी,
  • हज़रत डॉक्टर मौलाना सय्यद शमीम गोहर इलाहबाद,
  • हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहसिन रहमतुल्लाह अलैह
  • हज़रत मुश्ताक़ अहमद निज़ामी,

आप की औलादे अमजद :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह के दो बेटे और चार बेटियां थीं, बेटे के नाम ये हैं,1, “मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां” 👈 आप ही सरकार ताजुश्शरिया के वालिद हैं, 2, हज़रत मौलाना हम्माद रज़ा खान नोमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह,

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आप का विसाल :- आप 17, जमादिउल ऊला 1362, हिजरी मुताबिक 23, मई 1943, ईस्वी बा उमर सत्तर 70, साल खास नमाज़ की हालत में दौरान तशाह्हुद दस बज कर 45, मिनट पर अपने खालिके हकीकी से जा मिले,

आप की नमाज़े जनाज़ा :- जनाज़े की नमाज़ आप के ख़लीफ़ए खास “हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान मौलाना सरदार अहमद रहमतुल्लाह अलैह” ने कसीर मजमे में पढ़ाई, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो,

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आप का मज़ारे मुबारक :- ख़ानक़ाए रज़विया बरेली शरीफ में वालिद माजिद के पहलू में है हर साल उर्स की तारीख में बेशुमार उलमा व मशाइख के साथ शरीक होते हैं, और अपने अपने दामनो को गोहरे मुराद से भरते हैं, बरैली शरीफ की ख़ानक़ाह के अलावा भी बार्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान में आप के बेशुमार मुतावस्सिलीन मज़्कूरह तारीख पर आप की रूहानी फैज़ से मुस्तफ़ीज़ होते हैं, और मैकाले (आर्टिक्ल) व तक़रीर से आप की इल्मी दीनी व तसफ्फुफ़ाना कारनामे को पेश करते हैं,

मआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे क़ादिरया बरकातिया रज़विया, तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत, फकीहे इस्लाम सफा नंबर 237, फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में सफा नंबर 82, माह नामा आला हज़रत जून 1963, सफा नंबर 18, दावते फ़िक्र सफा नंबर 35, खुत्बा हुज्जतुल इस्लाम सफा नंबर 51, 52, माह नामा आला हज़रत अप्रेल 1986, ईस्वी सफा नंबर 25, माह नामा हिजाज़ जदीद दिल्ली अप्रेल 1989, ईस्वी सफा नंबर 52,

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