हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकने आलम मुल्तानी सोहरवर्दी :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन ख़ित्तए मुल्तान के औलियाए मशाइख में से हैं, और आप शैख़ सदरुद्दीन के बेटे हैं, और शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी के पोते और हज़रत मखदूम जहानियां जहाँ गश्त के पिरो मुर्शिद हैं,

आप की विलादत बा सआदत :- हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की विलादत ब सआदत 9, रमज़ानुल मुबारक 649, हिजरी बा मुताबिक 1251, ईस्वी बरोज़ जुमा को हुई,
आप की पैदाइश पर आप रहमतुल्लाह अलैह के “दादा शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह” ने मुल्तान (पाकिस्तान का शहर है) के गरीब और फ़क़ीर मिस्कीन के दामन ज़र्द जवाहर से भर दिए,
अक़ीक़े के मोके पर अप रहमतुल्लाह अलैह के सर के बाल तराशे गए जो आज भी तबर्रुक के तौर पर मेहफ़ूज़ हैं, बालों को मेहफ़ूज़ करने से मालूम होता है के आप की पैदाइश की तारीख में कितनी खास अहमियत थी,
“शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह” ने अपने पोते का नाम “रुकनुद्दीन” रखा जो बाद में तारीख में “रुकनुद्दीन वल आलम और रुकने आलम रहमतुल्लाह अलैह” के नाम से मशहूर हुआ,

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खानदान का चिराग :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अभी माँ के शिकम (पेट) में ही थे, के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ईद का चाँद देख कर आप रहमतुल्लाह अलैह की वालीदह को सलाम करने के लिए खड़े हो गए,
आप रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा ने जब इस पर तअज्जुब का इज़हार किया तो शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया “बेटी ये ताज़ीम तेरी नहीं बल्के उस बच्चे की ताज़ीम है जो इस वक़्त तेरे बतन (पेट) में मौजूद है और जो जवान हो कर मेरे खानदान का “चिराग” होगा, आप रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा मुहतरमा “हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाह अलैहा ये बात सुन कर खुश हुईं, और शर्माकर बाहर चली गयीं,

आप की वालिदा का दूध पिलाने का निराला तरीका :- हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा जब क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को दूध पिलाने लगती तो पहले वुज़ू कर लेती थीं, हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा चूंकि हाफिज़े क़ुरआन थीं, इस लिए दूध पिलाने के दौरान लोरी देने के बजाए क़ुरआन शरीफ की तिलावत करती थीं, तिलावत के दौरान अगर अज़ान की आवाज़ सुनाई देती तो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन दूध पीना छोड़ देते और गौर से अज़ान की आवाज़ सुनने लगते,
हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा को चूंकि आदत थी के वो तहज्जुद के वक़्त बेदार होतीं और शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के लिए वुज़ू का पानी लातीं और खुद भी तहज्जुद की नमाज़ बाक़ाएदे के साथ अदा करती थीं, जब आप रहमतुल्लाह अलैहा तहज्जुद के वक़्त उठती तो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जो महिज़ नोमोलूद बच्चे थे वो भी बेदार हो जाते और अशराक़ के वक़्त तक जागते रहते,

इसमें ज़ात अल्लाह :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जब पैदा हुए थे तो तब ही से हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा ने घर में मौजूद तमाम खादमाओं को कह दिया था, के नोमोलूद बच्चे के सामने “इसमें ज़ात अल्लाह” के सिवा कोई लफ्ज़ न बुला करें, जब आप रहमतुल्लाह अलैह बोलने के क़ाबिल हुए तो सब से पहले ज़बाने मुबारक से जो लफ्ज़ निकला वो “अल्लाह” था,

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आप को “वल आलम” का ख़िताब :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह अभी छोटे ही थे के एक दिन हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन सब्ज़ वारी रहमतुल्लाह अलैह, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात के लिए हाज़िर हुए, हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह को गोद में लेकर तशरीफ़ फरमा थे, हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन सब्ज़ वारी रहमतुल्लाह अलैह ने जब उन से आप रहमतुल्लाह अलैह का नाम पूछा तो उन्होंने फ़रमाया के इस का नाम “रुकनुद्दीन” है हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन सब्ज़ वारी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के ये बच्चा तो दीनो दुनिया का “रुक्न” है इस लिए इस का नाम आज से “रुकनुद्दीन वल आलम” है, चुनाचे उस दिन से ही आप का नाम “रुकनुद्दीन वल आलम” मशहूर हो गया,

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ताजे ग़ौसियत को उठा कर अपने सर पर रख लिया :- क़ुतुब सेर में मज़कूर है के एक बार शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह आराम की गरज़ से पलंग (चार पायी) पर तशरीफ़ फरमा हुए, आरिफ़े बिल्लाह हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह पलंग (चार पायी) के पास ही में बैठे थे, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी दस्तार मुबारक सर से उतार कर पलंग (चार पायी) के सिरहाने रख दी, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जो के अभी उस वक़्त चार बरस के थे, खेलते खेलते पलंग के पास आये और दस्तार मुबारक को उठा कर अपने सर पर रख लिया,
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने जब ये माजिरा देखा तो बेटे को मुखातिब होते हुए फ़रमाया “रुकनुद्दीन” बे अदबी न करो और दस्तार उतार कर रख दो”
शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने ये सब देखा तो मुस्कुरा कर कहने लगे, बेटा सदरुद्दीन उसे मना न करो ये दस्तार इसी का हक़ है और मेने ये दस्तार इसे ही इनायत की है, सुनने वालों ने जब ये सुना तो वो हैरान हुए के एक चार साल का बच्चा कैसे इस दस्तार का हक़दार हो सकता है जिस तक पहुंचने के लिए मरदाने हक़ सालो साल रियाज़तों और इबादतों में मशगूल रहते हैं तब कहीं जा कर ये फ़ज़ीलत हासिल होती है, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने जब शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह का ये फरमान सुना तो उन्होंने वो दस्तारे मुबारक अमानत के तौर पर सभांल कर रखली,
चुनाचे जब हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह मसनद नशीन हुए तो “शैखुल इस्लाम हज़रत ग़ौस बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह” की यही दस्तार मुबारक अपने सर पर रखी, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के इस फरमान के “ये दस्तार मेने इसे ही इनायत की है” को वक़्त ने साबित कर दिया के उनकी इस दस्तार का हक़ सिर्फ “हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह” को ही हासिल था जो के अपने दौर के नामवर नाबगाए रोज़गार वलियुल्लाह हुए और लोग उन्हें क़ुत्बुल अक़ताब के लक़ब से पुकार ते थे,

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अर्श की अज़ान :- बचपन में एक बार क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के पलंग चार पायी के पास खेल रहे थे, मौलाना मुहम्मद जो के हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह से इजाज़त लेकर उठे ताके वो अज़ान पढ़ें,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने मौलाना मुहम्मद का दामन पकड़ लिया और उनको अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया, मौलाना मुहम्मद ने दो तीन बार कोशिश की के आप रहमतुल्लाह अलैह उनका दामन छोड़ दें,
आखिर कार तंग आ कर मौलाना मुहम्मद ने शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ की के हुज़ूर नमाज़ का वक़्त हो रहा है और में अज़ान के लिए उठाना चाहता हूँ मगर मखदूम दामन नहीं छोड़ रहे हैं, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने मौलाना मुहम्मद की बात सुन कर फ़रमाया मखदूम तुम्हें क्यूँकर छोड़े अभी तो अर्श के मुअज़्ज़िन ने अज़ान नहीं दी तो तुम्हे किस चीज़ की जल्दी है,

राज़ की बात :- सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत के लिए अक्सर आया करते थे, आप अभी उस वक़्त बच्चे ही थे, जब सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन ज़्यारत के लिए तशरीफ़ लाते तो खादिम आप रहमतुल्लाह अलैह को गोद में उठा कर ले आतीं, सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन आप को रहमतुल्लाह अलैह को गोद में उठा कर उन के क़दमों को आँखों से लगाते और एक खूब सूरत पीढ़ी (चबूतरा) पर बिठा कर डियोढ़ी का दरवाज़ा बंद कर देते कुछ देर तक दोनों में तन्हाई में रहते और फिर दरवाज़ा खोल देते, और ख़ादिमा आ कर हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह को ले जाती एक बार आपने आने की कोशिश की के वो देखें तो सही के सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन दरवाज़ा बंद कर के किया करते हैं, उस ने दरवाज़े में से झांक कर देखने की कोशिश की तो ये देख कर हैरान रह गयी के अंदर हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह मौजूद नहीं हैं और सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन से कोई सफ़ेद दाढ़ी वाले बुज़रुग गुफ्तुगू कर रहे हैं, खदिमा घबरा गई और उसने जा कर सारी बात हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा को बता दी, हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा ने उस खादिमा को मना किया के वो ये राज़ की बात किसी को न बताए, इस दौरान सुल्तानुत्तरीकीन हमीदुद्दीन रुखसत हुए और दरवाज़ा खुल गया, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह दौड़ते हुए आये और हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा के गले से लग गए,

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बचपन में जन्नती और दोज़खी की पहचान :- क़ुतुब सेर में मज़कूर है के बचपन में शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब भी नमाज़ का वक़्त आता तो अपने पोते
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह को अपने साथ मस्जिद में ले जाते, जब नमाज़ शुरू होती तो आप रहमतुल्लाह अलैह दरवाज़े पे खेलते रहते और जब शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ से फारिग होते तो अपने साथ वापस ले जाते,
एक बार शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ से फारिग होकर बाहर आये तो देखा और पूछा बेटा ये क्या कर रहे हो? आप रहमतुल्लाह अलैह ने कहा नमाज़ियों के जूते जन्नती और दोज़खी के लिहाज़ से अलग अलग रख दिए थे, लोगों ने इस नुक्ते को समझने की कोशिश की और हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह से पूछा, तो हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़ौरन ही जूते मिला दिए और आप रहमतुल्लाह अलैह को सीने से लगा लिया,
हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब घर वापस आये तो आप रहमतुल्लाह अलैह को समझते हुए बोले बेटा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के राज़ को ज़ाहिर करना बहुत बड़ा गुनाह है,

मुरदा बच्चे को ज़िंदह करना :- एक बार एक बुढ़िया आपने बीमार बेटे को लेकर शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुई और दुआ की दरख्वास्त की, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने जब उस बच्चे को देखा तो फ़रमाया जो खुदा को मंज़ूर होगा वही होगा,
बुढ़िया ने इस बीच आपने बच्चे पर नज़र डाली तो वो बच्चा ख़त्म हो चुका था, वो बुढ़िया रोती हुई घर को रवाना हुई, रास्ते में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह अपने कुछ दोस्तों के साथ खेल रहे थे, उन्होंने जब बुढ़िया को रोते हुए देखा तो पूछा माई साहिबा क्यों रोती हो? बुढ़िया बोली में तो इस बच्चे को आप रहमतुल्लाह अलैह के दादा के पास लेकर गई थी के वो दुआ करें के उस को शिफ़ा मिल जाए लेकिन ये वहां जाते ही ख़त्म हो गया, अब में मायूस हो कर घर वापस जा रही हूँ, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया ज़रा इस बच्चे के मुँह से कपड़ा तो हटाओ हम भी तो देखें?
उस बुढ़िया ने जब चेहरे से कपड़ा हटाया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने एक नज़र देखते हुए फ़रमाया “तुम कहती हो के ये मर गया है मगर ये तो ज़िंदह”
उस बुढ़िया ने जैसे ही बच्चे पर नज़र डाली तो बच्चा हाथ पैर चलाने लगा, वो बुढ़िया उसी वक़्त आप रहमतुल्लाह अलैह के क़दमों में गिर पड़ी, जब ये सारा माजिरा शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के पता चला तो आपने फ़ौरन हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह के अपने पास बुलाया और फ़रमाया,
बेटा तुम के ऐसा नहीं करना चाहिए था, ये सुलूके तरीकत में मना है, वो लड़का जो आप रहमतुल्लाह अलैह की करामत से ज़िंदह हुआ था जब बड़ा हुआ तो उस के सारी बात का पता हुआ, वो लड़का आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर आप रहमतुल्लाह अलैह के इरादत मंदो (मुरीदों) में दाखिल हो गया,

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हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह की तालीमों व तरबियत :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की उमर मुबारक जब चार साल की हुई तो शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने बिस्मिल्लाह शुरू की और हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने क़ुरआन शरीफ हिफ़्ज़ कराना शुरू किया, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह का मामूल था के तीन पाओ पारा पढ़ते थे और वो हिफ़्ज़ हो जाता था, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह को अपने बड़े बेटे से बहुत मुहब्बत थी, आप अपने बेटे “शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह” के आशिक थे और एक लम्हे के लिए भी खुद से जूदा करना गवारा न समझते थे,
एक बार हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह अपने कुछ साथियों और कम सिन बेटे हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के साथ दरिया के किनारे पर गए, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह बेटे को और अपने साथियों को एक जगह बिठा कर खुद दरिया पर वुज़ू करने लगे, वुज़ू करने के बाद आप ने हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को बुलाया और क़ुरआन मजीद पढ़ना शुरू कर दिया, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह सबक़ दुहरा रहे थे, के वहां से एक हिरनों का रेवड़ (बकरियों का गोल) गुज़रा, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह उस रेवड़ में मौजूद हिरनी एक बच्चे की तरफ मुतावज्जेह हो गए, और इसी दौरान सबक़ दस मर्तबा दुहराने के बावजूद याद न हुआ,
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने बेटे से सवाल किया के वो रेवड़ किस तरफ गया है, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने उस समत इशारा कर दिया जिस तरफ वो रेवड़ गया था, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने वो बच्चा हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को दे दिया जिन्होंने वालिहाना उसे प्यार करना शुरू कर दिया,
उस दिन हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने पूरा सिपारा हिफ़्ज़ कर के अपने वालिद मुहतरम को सुना दिया, इस हिरनी को हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह आपने साथ ले आए, क़ुतुब सेर में मज़कूर है के ये बच्चा लम्बे अरसे तक आप की ख़ानक़ाह में मौजूद रहा,
शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह जब मुल्तान वापस तशरीफ़ लाए थे तो उन्होंने एक मदरसे और मस्जिद की बुनियाद रखी,
शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने इस मदरसे में क़ाबिल असातिज़ा को माकूल तनख्वाह पर रखा हुआ था और मुख्तलिफ तक़रीबात में इन उलमा को नवाज़ते भी रहते थे,
शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की शख्सियत और ख़ानक़ाह के पाकीज़ा माहौल को देख कर बड़े बड़े उलमा इस मदरसे में पढ़ाना आपने लिए एजाज़ समझते थे, यही वजह है के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह का ये मदरसा मुल्तान से लेकर दिल्ली तक अपनी तदरीसी खिदमत की बदौलत नोमाया मक़ाम रखता था,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह इस बारे में फरमाते हैं के मेरे ज़माने में सिर्फ दो ही दरस गाहें अपनी दीनी ख़िदमात की बदौलत मशहूर थीं, जिन में एक मुल्तान और दूसरी पाक पटन में थी,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने जब क़ुरआन मजीद हिफ़्ज़ कर लिया तो मदरसा में मीर हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह और सय्यद बिलाल बुखारी रहमतुल्लाह अलैह जैसे नामवर उलमा और मशाइख से कसबे फैज़ हासिल किया, ये इस घराने की इल्मी और रोहानी खिदमात का सिला था के तमाम उलमा ने आप रहमतुल्लाह अलैह की तरबियत में कोई कमी न आने दी,
सात साल की उमर में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ बा जमाअत पढ़ने लगे, शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह इस दौरान आप को अपने साथ साथ रखते थे, तहज्जुद व अशराक़, चाशत व अव्वाबीन और दीगर दूसरे नवाफिल आप को पढ़ने की तरग़ीब देते थे,
ये शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की नज़रे किमीया ही का असर था के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जल्द ही मुराकिबा, मुकाशिफ़ा मुजादिला, मुहासिबा, मुकालिमा और मुआमिला में ख़ानक़ाह में दूसरे सूफ़िया दुरवेशों पर सबक़त ले गए,
शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की चाहत थी के आप उन की ज़िन्दगी में ही उन उमूर पर दस्तरस हासिल करलें, इसी लिए उन्होंने आप की तालीमों तरबियत पर ख़ास तवज्जुह दी,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की इन तालीमी सरगर्मियों में मौलाना इराक़ी रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे और शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के नवासे शैख़ कबीरुद्दीन इराक़ी रहमतुल्लाह अलैह भी साथ शामिल रहते थे, दोनों साहबज़ादों का जोहर उम्दह था इस लिए दोनों ही ने कम उमर में कश्फ़ व क़ुबूर, कश्फ़ क़ुलूब तये अर्ज़ और तये लिसानी जैसे मरातिब हासिल कर लिए,
जो शख्स भी हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से किसी भी किस्म का सवाल करता तो आप उस का खातिर ख़्वाह जवाब देते थे,
लेकिन जब आप लोगों से तसव्वुफ़ और सुलूक के मुतअल्लिक़ सवालात करते तो वो जवाब देने से क़ासिर रहते थे, आप शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह से उलूम की सनद सही हासिल करते थे, कम उमर होने के बावजूद तौहीद के असरारो रुमूज़ को दूसरों पर ज़ाहिर नहीं फरमाते थे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उन्हें माँ के शिकम (पेट) में ही ग़ौसियात और क़ुतबियत के मरातिब अता कर दिए थे,
साहिबे बज़्मे सूफ़िया लिखते हैं के आप रहमतुल्लाह अलैह ने मुकशिफ़ा व मुहासिबा इतने मदारिज तय कर लिए थे के उन को मख़्ज़ने शहूदे इलाही व मम्बा जूदे ला मुतनाही, इदरिसे खल्वते वहदत बिर जीस बुरजे मार्फ़त, गोहरे मदान सिफ़ाते लारेब, ज़ुब्दतुल मशाइख और हक़्क़ुल यक़ीन जैसे अल्काबात से याद किया जाने लगा,
“साहिबे मिरातुल मनाक़िब”
बयान करते के अभी हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह कम उमर ही थे के लोग दूर दूर से आप की खिदमत में दुआ कराने के लिए हाज़िर होते थे, जब भी नियाज़ तक़सीम करने का वक़्त होता था तो आप सब कुछ गरीब फ़क़ीरों में बाँट देते थे, और अपने लिए कुछ भी नहीं बचाते थे,
क़ुतुब सेर में मज़कूर है: के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत लाल शाहबाज़ क़लन्दर रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत जलालुद्दीन सुर्ख बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने कई तब्लीगी दौरे इकठ्ठे किए और फिर एक वक़्त ऐसा भी आया कम उमर में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह भी इन शख्सियत के साथ होते थे,

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आप के दादा जान हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह का विसाल :- खानदाने सोहरवर्दिया का ये फ़रज़न्द अभी परवान चढ़ ही रहा था, के एक सदमए अज़ीम इस खानदान पर आया और शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह इस जहाने फानी से कूच कर गए यानि आप का इन्तिकाल हो गया, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त 12, साल के थे, खानदाने सोहरवर्दिया के दूसरे बुज़ुर्गों की तरह आप भी सायाए शफ़क़त उठ जाने से बहुत मगमूम थे,
आप अभी इस सदमे की कैफियत से बाहर नहीं आये थे, इसी वजह से अक्सर दादा की क़ब्र पर हाज़िर रहते और फातिहा ख्वानी व क़ुरआन ख्वानी करते रहते ये सिलसिला कई साल जारी रहा काफी अरसा गुजरने के बाद जब हुज़नो मलाल गम में कुछ कम हुआ तो दोबारा तालीम की तरफ माइल हुए और थोड़े ही अरसे में तमाम मुरव्वजा क़ुतुब पर दस्तरस हासिल करली,

फ़ज़ाए ला मकानी की सेर करना :- शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह मसनद नशीन हुए,
वो तमाम खुलफ़ा और नामवर मुरीद जो शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के आगे ज़ानूए इरादत तय कर के मदारिज आलिया हासिल किए थे, अभी भी इस आस्ताने पर इस उम्मीद से मौजूद थे, के अगरचे बहुत कुछ इनायत हुआ है लेकिन अभी बहुत कुछ और मिल सकता,
कहते हैं के मजमे में हज़रत सय्यद जलालुद्दीन सुर्ख बुखारी रहमतुल्लाह अलैह, मीर हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ इराकी रहमतुल्लाह अलैह, हसन अफगान रहमतुल्लाह अलैहऔर शैख़ इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह जैसे नाबगाए रोज़गार भी मौजूद होते थे, इस मजलिस में हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह भी मौजूद होते थे, कई बार देखने में आया के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद मुहतरम हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह के सामने मौजूद होते लेकिन वो पुकारते “रुकनुद्दीन” तुम कहाँ हो?
आखिर कार मुरीदीन से रहा न गया और उन में से एक मुरीद ने अर्ज़ किया हुज़ूर किया राज़ है महफिले ज़िक्र में कई बार होता है के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह आप के सामने होते हैं लेकिन आप फरमाते हैं के “रुकनुद्दीन” तुम कहाँ हो? हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने मुस्कुराकर फ़रमाया मुराकिबा की हालत में कभी ऐसा होता है के “रुकनुद्दीन” का जिस्म तो हलक़ाए ज़िक्र में मौजूद होता है मगर उस की रूह मलाए आला की तरफ ऊपर जा रही होती है यहाँ तक के मेरी नज़र से गायब हो जाती है जिस पर में बे इख़्तियार पुकार उठता हूँ “रुकनुद्दीन” तुम कहाँ हो? बिला शुबाह ये शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के फैजाने खुसूसी ने “हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह” को रूहानियत की उन बुलंदियों पर पंहुचा दिया और जब हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह खुसूसी तवज्जुह फरमाते तो हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की रूह पुर फुतूह फ़ज़ाए ला मकानी की तरफ परवाज़ कर जाती और इतनी बुलंद परवाज़ होती के सब की नज़रों से गायब हो जाती,

हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल रहमतुल्लाह अलैह की इबादतों रियाज़त :- हज़रत मखदूम जलालुद्दीन जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल रहमतुल्लाह अलैह का मामूल था के वो रात के पिछले पहर बेदार हो कर तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते थे, तहज्जुद की नमाज़ पढ़ने के बाद ज़िक्र व अज़कार में मसरूफ हो जाते और फजर की नमाज़ तक ज़िक्र व अज़कार में मसरूफ रहते थे,
फजर की नमाज़ बा जमाअत पढ़ने के बाद ज़ोहर की नमाज़ तक इबादत व रियाज़त में मशगूल रहते थे, और आप का ये मामूल सारी ज़िन्दगी क़ाइम रहा,
हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा अपने बेटे के मक़ाम को देखतीं तो बहुत खुश होती थीं, वो अपने नुरुल ऐन की ग़िज़ा का एहतिमाम खुद करती थीं, और रोज़ाना दूध से भरा हुआ पियाला जिस में कुछ मगज़ और मेवों को डाल कर गरम कर के तब खाने को देती थीं,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह इस में से चंद खा लेते और फिर उस के बाद सारा दिन कुछ भी खाने की तलब नहीं रहती, हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह इबादत व रियाज़त में इतने कामिल थे के तहज्जुद के वक़्त से लेकर ज़ोहर की नमाज़ तक मुसलसल बराबर ज़िक्र व अज़कार इबादतों रियाज़त में मसरूफ रहते थे और थकते नहीं थे,

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आप ने खिरकाए खिलाफत किस से पहना और आप के पिरो मुर्शिद कौन हैं? :- हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने अपने वालिद मुहतरम “आरिफे बिल्लाह हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह” के दस्ते हक़ पर बैअत हुए और सुलूक की मनाज़िल तय कीं, और आप को खिरकाए खिलाफत से नवाज़ा,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन वल आलम रहमतुल्लाह अलैह का शजराए तरीक़त हस्बे ज़ैल है:

  1. हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह,
  2. हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह,
  3. शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह,
  4. शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह,
  5. हज़रत शैख़ ज़ियाउद्दीन अबू नजीब सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह,
  6. हज़रत अहमद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह,
  7. हज़रत अबू बकर नस्साज रहमतुल्लाह अलैह,
  8. हज़रत अबुल क़ासिम गुरगानी रहमतुल्लाह अलैह,
  9. हज़रत अबू उस्मान मगरिबी रहमतुल्लाह अलैह,
  10. हज़रत अली रूद बारी रहमतुल्लाह अलैह,
  11. हज़रत जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह,
  12. हज़रत सीरी सकती रहमतुल्लाह अलैह,
  13. हज़रत मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह,
  14. हज़रत दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह,
  15. हज़रत हबीब अजमी रहमतुल्लाह अलैह,
  16. हज़रत ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह,
  17. हज़रत अली कर्रामल्लाहू तआला वजहहुल करीम रदियल्लाहु अन्हु,
  18. हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम,
  19. इस तरह आप रहमतुल्लाह अलैह का शजराए तरीकत सतरह वास्तों से हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, तक पहुँचता है,

आप को सज्जादा नशीन का मनसब अता किया :- हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को नाइब सज्जादह की हैसियत देते हुए वालिद माजिद शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह का खिरका अता फ़रमाया जो उन्हें “शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह” से अता हुआ था,
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह ने ख़ानक़ाह का इंतिज़ाम आप को सौंप दिया, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अपनी नेक सीरत और इबादत व रियाज़त की वजह से मशहूर थे, आप रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद मुहतरम की तरह मम्बए जूदू सखा थे, हज़ारों लोग अपनी दुनियावी हाजात के लिए हाज़िर होते और आप उन को अता करते,

आप के वालिदैन का विसाल :- 695, हिजरी में आप की वालिदा माजिदह हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा विसाल फ़रमागयीं, हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के लिए ये बहुत ही मुश्किल लम्हात थे के वो खातून जिन्होंने उन की तरबियत में कोई कसर नहीं छोड़ी और जिस की बदोलत वो “क़ुत्बुल अक़ताब” के मर्तबे पर पहुंचे, वो इस जहांने फानी से रुखसत हो गयीं,
आप ने ये सदमा बड़े हौसले से बर्दाश्त किया,
हज़रत बीबी रास्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहा को उन की वसीयत के मुताबिक उन के महिल में ही दफ़न किया गया, जो के उन के वालिद माजिद ने जब वो हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह से उन के निकाह के बाद मुल्तान आयीं थीं,तब तामीर करवाया था, अब ये महिल मक़बरा बीबी पाक दामन रहमतुल्लाहि तआला अलैहा के नाम से मशहूर है और मुल्तान स्टेशन से जुनूब (दख्खिन) की समत है,
709, हिजरी में आप के वालिद मुहतरम आरिफ़े बिल्लाह “हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह” इस जहां फानी से कूच कर गए, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह गोशा नशीन बुज़रुग थे, और उन्होंने अपनी सारी उमर मुल्तान में ही गुज़ार दी और कभी किसी बादशाह के दरबार में नहीं गए,
आप अपने वालिद बुज़रुग वार शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद ख़ानक़ाह के मुआमले को और मुरीदीन की इस्लाह को इस तरीके से जारी रखा के ये महसूस नहीं होता था के शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह इस दुनिया से विसाल फरमा चुके हैं
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह के ज़माने में सोहरवर्दिया की ये ख़ानक़ाह मुल्तान से बग़दाद तक मशहूर थी और दरवाज़े से लोग कसबे फैज़ के लिए इस ख़ानक़ाह में तशरीफ़ लाते थे, हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह को वालिद माजिद शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के पहलू में दफ़न किया गया, आप रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के वक़्त हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह मुल्तान में मोजूद नहीं थे,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अपने भाइयों में सब से ज़्यादा खुश नसीब थे, के उन्हें वालिद माजिद के पहलू में जगह मिली,

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आप का मसनद नशीन होना :- हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आरिफ रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह “मसनद नशीन पर जलवा अफ़रोज़ हुए” और शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की अता की हुई दस्तार मुबारक सर पर रखी और हज़रत अली कर्रामल्लाहू तआला वजहहुल करीम रदियल्लाहु अन्हु का वो खिरका ज़ेबे तन किया जो के शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के तवस्सुल से उनके आबाओ अजदाद और फिर उन तक पहुँचता था,
ये ख़ानक़ाए सोहरवर्दिया जिस की बुनियाद “शैखुल इस्लाम हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह” पर मसनद नशीन होने वाला तीसरा चमकता हुआ सितारा था, जिस ने अपने बाप और दादा की शमा को रोशन रखा और जिससे लाखों लोगों ने कसबे फैज़ हासिल किया,
हज़रत शैख़ अबुल फ़तह रुकनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जब मसनद नशीन हुए तो उस वक़्त पाक पटन में “शैख़ अलाउद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह” ने पाक पटन की सर ज़मीन को रश्के फिरदोस बना रखा था,
मशहूर मुअर्रिख़ ज़ियाउद्दीन बरनी उस दौर के हालात और इन बुज़ुर्गों के फ्यूज़ व बरकात का ज़िक्र करते हुए लिखता है, के उस वक़्त बर्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान पर अलाउद्दीन खिलजी की हुकूमत थी,
और दिल्ली में “सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह मसनद नशीन थे” जो के रूहानी तौर पर दिल्ली के ताजदार थे,
बिला शुबाह इन तीनो हज़रात की मेहनतों और काविशों का नतीजा था के जिस की वजह से बर्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान में कुफ्र के अँधेरे को रोशनियों में बदलना शुरू हुईं, और उन्होंने अपने अस्लाफ की नेमतों की क़द्र करते हुए इन लोगों को राहे रास्त पर लाने में दिलो जान से खिदमत की,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- तज़किराए औलियाए मुल्तान, तज़किराए औलियाए हिन्द, तारीखे हिन्द, सेरुल अक़ताब, सीरते पाक हज़रत शाह रुकने आलम, तज़किराए सूफ़ियाए सिंध, तज़किराए हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह, ख्वाजगानें चिश्ती, हयाते अमीर खुसरू, करामाते औलिया, औलियाए पाकिस्तान जिल्द अव्वल, खज़ीनतुल असफिया जिल्द पांच,

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