पेशे लफ्ज़ :- पांचवी सदी हिजरी में जो बा कमाल मशाहीर आसमाने इल्मों फ़ज़ल के रौशन सितारे बनकर चमके उनमे “हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्य्दना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह” बहुत नुमाया और मुमताज़ हैसियत रखते थे, आप को मुख्तलिफ उलूमो फुनून में महारते ताम्मा हासिल थी, तसव्वुफ़ व तरीकत की जामिईयत, नुक्ता संजी व दक़ीक़ा रसी में अपनी मिसाल आप थे वाइज़ व बयान का ऐसा मलका रखते थे, के बड़े बड़े नामवर उलमा और जय्यद उलमा आप का बयान सुन कर हैरान रह जाते और आप की जलालते इल्मी के मौतरिफ थे,

आप पांचवी सदी के मुजद्दिद हैं :– हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह पांचवी सदी हिजरी की वो मशहूर शख्सियत हैं जिन्होंने अपने मुआसिरीन में एक शानदार हैसियत हासिल है, बल्के हाफ़िज़ अबुल फ़ज़ल अब्दुर रहीम इराक़ी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 608, हिजरी) फरमाते हैं के उल्माए किराम के नज़दीक हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह पांचवी सदी हिजरी के “मुजद्दिद” हैं,

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आप की विलादत बसआदत :- आप का नामे नामी इसमें गिरामी “मुहम्मद बिन मुहम्मद अहमद तूसी ग़ज़ाली, है और आप की कुन्नियत अबू हामिद और लक़ब “हुज्जतुल इस्लाम” है, आप की पैदाइश चार सौ पचास 450, हिजरी ताबरान, ज़िला तूस खुरासान में हुई, खुरासान पूरब में एक बड़ा सूबा था, अब उस का एक बड़ा हिस्सा तकसीम हो कर कुछ अफगानिस्तान और कुछ दूसरे मुल्को में शामिल हो चुका है,

हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के इब्तिदाई हालात :- आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यदना मुहम्मद बिन मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह धागे का कारोबार करते थे, इसी निस्बत से आप का खानदान “ग़ज़ाली” कहलाता है, हज़रत अल्लामा ताजुद्दीन सुबकी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद बड़े नेक इंसान थे, फुक़हाए किराम रहिमाहुमुल्लाहु तआला अलैह से उन्हें बहुत मुहब्बत थी लिहाज़ा उनकी बड़ी ताज़ीम व तौक़ीर फरमाते और उन पर खर्च करते, उनकी मजलिसों में हाज़िर होते और वहां ख़ौफ़े खुदा से रोते और अक्सर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ करते के मुझे बेटा अता फ़रमा और उसे फ़क़ीह बना, जब मजालिस वाइज़ में हाज़िर होते तो वहां भी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ गुज़ार होते के मुझे बेटा अता फरमा और उसे वाइज़ बना अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उनकी ये दोनों दुआएं क़बूल फ़रमाई,

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हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की तालीमों तरबियत :- इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने इब्तिदाई का आगाज़ अपने शहर से किया जहाँ क़ुतुब फ़िक़ह हज़रत सय्यदना अहमद बिन राज़ कानि रहमतुल्लाह अलैह से पड़ीं, तक़रीबन बीस साल की उमर में इल्मे दीन हासिल करने के लिए ईरान के शहर जुरजान तशरीफ़ ले गए वहां हज़रत सय्यदना इमाम अबू नसर इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते बा बरकत में रह कर इक्तिसाबे इल्म किया,
फिर अपने शहर तूस लोट आए, 473, हिजरी में ईरान के क़दीम (पुराना) शहर निशापुर तशरीफ़ ले गए और वहां हज़रत सय्यदना इमामुल हरमैन इमाम अब्दुल मालिक बिन अब्दुल्लाह जुवैनी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 478, हिजरी) आप की बारगाह से उसूले दीन, इख़्तिलाफ़ी मसाइल, मुनाज़िरा, मांटिक, और हिकमत वगैरह में खूब महारत हासिल की और उन के विसाल के बाद उन के मनसब पर फ़ाइज़ हुए,
474, हिजरी में वज़ीर निज़ामुल मुल्क ने मदरसा निज़ामिया बग़दाद के शैख़े जामिआ (वाइस चांसलर) का उहदा (पोस्ट) आप को पेश किया जिसे आप ने क़बूल किया,
बग़दाद शरीफ में चार साल तदरीस व तसनीफ़ में मशगूल रहने के बाद हज के इरादे से मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा तशरीफ़ ले गए, अल्लामा इबने जोज़ी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 597, हिजरी) के क़ौल के मुताबिक़ आप की मजलिसे दरस में बड़े बड़े उल्माए किराम हाज़िर होते, इमामे हनाबिला हज़रत सय्यदना अबुल खत्ताब मेहफ़ूज़ बिन अहमद (मुतवफ़्फ़ा 510, हिजरी) और शैख़े हनाबिला अली बिन अक़ील बगदादी (मुतवफ़्फ़ा 513, हिजरी) रहमतुल्लाहि तआला अलैहिमा जैसे जय्यद उलमा आप से इक्तिसाबे फैज़ करते, आप के बयानात सुन कर बड़े बड़े उलमा की अक़्लें दंग रह जातीं,
489, हिजरी में आप दमिश्क पहुंचे और कुछ दिन वहां क़याम फ़रमाया एक अरसा तक बैतुल मुक़द्दस में गुज़ारा, फिर दुबारा दमिश्क तशरीफ़ लाए और जामा मस्जिद दमिश्क के पच्छमी मिनारे पर ज़िक्रो फ़िक्र और मुराक़बे में मशग़ूलियत इख़्तियार की, दमिश्क में आप का ज़्यादा वक़्त हज़रत सय्यदना शैख़ नसर मक़दमी रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में गुज़रता था,
मुल्के शाम में दस साल क़याम फ़रमाया, इसी दौरान “अहया उल उलूम” चार जिल्दें, “जवाहिरुल क़ुरआन” याकूतुत तवील चालीस जिल्दें” मिश्क़ातुल अनवार” वगैरह मशहूर क़ुतुब तसनीफ़ फर्माईन, और इनके अलावा कई उलूम व फुनून में आप की तसानीफ़ की तादाद सैंकड़ों में है,
फिर हिजाज़, बग़दाद शरीफ और निशापुर के दरमियान सफर जारी रहा और बिला आखिर अपने आबाई शहर तूस वापस आ कर इबादत व रियाज़त में मसरूफ हो गए और ता दमे आखिर वाइज़ो नसीहत, इबादत और दरस तसव्वुफ़ में मशगूल रहे,

सबक़ प्यारे इलमी भाइयों :- देखा आप ने के हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने कैसी सऊबातें तकलीफ परेशानी) उठा कर इल्मे दीन हासिल करने के लिए सफर इख़्तियार फ़रमाया जब आप ने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की रज़ा की खातिर राहे इल्म में तकलीफें बर्दाश्त कीं तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने भी आप को उलमा, और औलिया में ऐसा बुलंद मर्तबा अता फ़रमाया के लोग आज भी “हुज्जतुल इस्लाम” के लक़ब से याद करते हैं और आप की लिखी हुई किताबों से फायदा हासिल करते हैं,

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आप के असातिज़ाए किराम जिन से आपने इल्मे दीन सीखा उनके नाम क्या हैं? :- “इल्मे फ़िक़ाह” में हज़रत सय्यदना अल्लामा अहमद बिन राज़ कानि, हज़रत सय्यदना इमाम अबू नस्र इस्माईल, हज़रत सय्यदना इमामुल हरमैन अबुल मुआली इमाम जोवेनी,,,,, “तसव्वुफ़ में” हज़रत सय्यदना इमाम अबू अली फ़ज़ल बिन मुहम्मद बिन अली फ़रमाज़ी तूसी,,,,,हज़रत सय्यदना युसूफ सज्जाज,,,”इल्मे हदीस में” हज़रत सय्यदना इमाम अबू सुहिल मुहम्मद बिन अहमद हफसि मरवज़ी,,,,हज़रत सय्यदना हाकिम अबुल फतह नस्र बिन अली बिन अहमद हाकमी तूसी,,,,,हज़रत सय्यदना अबू मुहम्मद अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन अहमद खुवारी,,,,हज़रत सय्यदना मुहम्मद बिन याहया सुज्जाई ज़ौज़नी,,,,,हज़रत सय्यदना हाफ़िज़ अबू फितयांन उमर बिन अबुल हसन रवासी दाहिस्तानी,,,, मुहम्मद बिन अहमद और हज़रत सय्यदना नस्र बिन इब्राहीम मक़्दसी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन,
हज़रत सय्यदना अल्लामा मुर्तज़ा ज़ाबेदी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 1205, हिजरी) “इत्तिहाफुस सादतिल मुत्तक़ीन” के मुक़द्दमे में लिखते हैं के इल्मे कलाम व जदल में हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के मशाइख के बारे में इल्म नहीं हो सका और फलसफा में आप का कोई उस्ताद नहीं था जैसा के अपनी किताब “अल मुंक़ज़ मिनद दलाल” में खुद इस की सराहत फ़रमाई है,

हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के पिरो मुर्शिद कौन हैं? :- हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह दौरान तालिबे इल्मी में हज़रत सय्यदना शैख़ अबू अली फ़ज़्ल बिन मुहम्मद बिन अली फारमज़ी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 477, हिजरी) के हाथ पर 27, साल की उमर में मुरीद हुए, आप के पिरोमुर्शिद बहुत आला मरतबत फ़िक़ाह शफाई के ज़बरदस्त आलिम और मज़ाहिबे सल्फ़ सालिहीन सूफ़िया से बा खबर थे, और “हज़रत सय्यदना इमाम अबुल क़ासिम कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 417, हिजरी) के जलीलुल क़द्र शागिर्दों में से हैं,

सबक़ प्यारे इलमी भाइयों :- मुर्शिदे कामिल की बैअत करना और उन से फैज़ पाना, ये हमारे बुज़ुर्गाने दीन का सदियों से राइज शुदा तरीक़ा है जभी तो पांचवी सदी के मुजद्दिद हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना शैख़ अबू अली फारमदी के दस्ते अक़दस पर बैअत से मुशर्रफ हुए अपने ज़ाहिर व बातिन इस्लाह के लिए किसी तरबियत करने वाले का होना इंतिहाई ज़रूरी है,
हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं तरबियत की मिसाल बिकुल इसी तरह है, जिस तरह एक किसान खेती बड़ी के दौरान अपनी फसल से गैर ज़रूरी घास और जड़ी बूटियां निकाल देता है ताके फसल की हरयाली और नशो नुमा में कमी ना आये,
इसी तरह सालिक रहे हक़ (मुरीद) के लिए शैख़ यानी मुर्शिदे कामिल होना बहुत ज़रूरी है जो इस की अहसन तरीके से तरबियत करे और अल्लाह पाक तक पहुंचे खुदा की पहचान हासिल करने के लिए पीर इस की रहनुमाई करे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अम्बिया व रसूलों को लोगों की तरफ इस लिए मबऊस फ़रमाया ताके वो लोगों को उस तक पहुंचने का रास्ता बताएं,
मगर जब आखरी रसूल नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस दुनिया से पर्दा फ़रमाया और नुबुव्वत व रिसालत का सिलसिला ख़त्म हुआ तो इस मंसबे जलील को खुलफाए राशिदीन ने बतौरे नाइब सभांल लिया और लोगों को रहे हक़ पर लाने की सई व कोशिश फरमाते रहे सहाबए किराम के बाद उन के नाइबीन औलिया अल्लाह सूफ़िया सल्फ सालिहीन बुज़ुर्गाने दीन व उलमा ये फ़रीज़ा सर अंजाम दे रहे हैं और क़यामत तक देते रहेगें,
इसी लिए उल्माए किराम फरमाते हैं के ईमान की हिफाज़त का एक ज़रिया “पिरो मुर्शिद पीरे कामिल” से मुरीद होना भी है,

“आप का मज़ार शरीफ इराक की राजधानी बगदाद शरीफ में है”

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हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की सादगी और आख़िरत की याद :- हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह एक बार मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा में थे, हज़रत सय्यदना अब्दुर रहमान तूसी रहमतुल्लाह अलैह की आप से मुलाक़ात हुई, उन्होंने आप के निहायत सदाह और मामूली लिबास को देख कर कहा आप के पास इस के अलावा और कोई लिबास नहीं है आप इमामे वक़्त और पेशवाए कोमो वक़्त हैं हज़ारों लोग आप के मुरीद हैं, हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया ऐसे शख्स का लिबास किया देखते हो जो इस दुनिया में एक मुसाफिर की तरह मुक़ीम हुआ और जो इस काइनात की रंगीनियों को फानी और वक़्ती जनता हो, जब वालिए दोजहाँ रहमतें आलम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दुनिया में मुसाफिर की तरह रहे और कुछ मालो ज़र इकठ्ठा नहीं किया तो मेरी क्या हैसियत और हक़ीक़त है,

हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की शोहरत और नामवरी से दूरी :- एक बार आप जामा मस्जिद उमवि के सेहन में तशरीफ़ फरमा थे मुफ्तियाने किराम की एक जमाअत भी वहां मोजूद थी,
एक दिहाती आया और इन मुफ्तियाने किराम की बारगाह में एक मसला अर्ज़ किया जिस के जवाब में सब ने खामोशी इख़्तियार फ़रमाई, हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह इस मसले में गौर फरमाने लगे, जब किसी ने भी जवाब नहीं दिया तो दिहाती पर ये बात बहुत गिरां गुज़री ये देख कर उसे आप ने अपने पास बुलाया और उस के मसले का जवाब इरशाद फरमा दिया लेकिन वो बजाए शुक्रिया अदा करने के आप का मज़ाक उड़ाने लगा और बोला जलीलुल क़दर मुफ्तियाने किराम ने जिस मसले का जवाब नहीं दिया एक आम फ़क़ीर इस मसले का जवाब कैसे दे सकता है, जब वो वापस आया तो इन मुफ्तियाने किराम ने उससे पूछा के किया जवाब दिया है उस ने अर्ज़ कर दिया, ये सब इमाम साहब के पास आ गए और जब तआरुफ हुआ तो आप से दरख्वास्त की एक आप हमारे लिए एक इल्मी नशिश्त मुनअकिद फरमाएं आप ने अगले दिन का फरमा दिया मगर इसी रात वहां से सफर पर रवाना हुए,

हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह को दुनिया से बे रगबती :- “शाज़ारतुज़ ज़हब” में “ज़ादुस्सालीकीन” के हवाले से लिखा है के हज़रत सय्यदना क़ाज़ी अबू बकर बिन अरबी रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के में ने हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह को लोगों के दरमियान इस हाल में पाया के आप के हाथ में लाठी थी, पेवंद दार लिबास ज़ेबे तन था और कंधे से पानी का बर्तन लटक रहा था में देखा करता के बग़दाद में आप के बेहरे इल्म से मुस्तफ़ीज़ होने के लिए बड़े बड़े जय्यद उलमा व फुज़्ला आलिमे दीन आप की मजलिस में हाज़िर होते जिन की तादाद चार सौ 400, तक पहुंच जाती है,

हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ख़ुद पसन्दी का खौफ :- एक बार इत्तिफ़ाक़ से हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह दमिश्क के मदरसा “अमीनीयह” तशरीफ़ लेगए, वहां देखा के एक उस्ताद कह रहे थे (कालल ग़ज़ाली यानी इमाम ग़ज़ाली फरमाते हैं) यानि वो आप के कलम के साथ तदरीस कर रहे थे ये देख कर आप पर खुद पसंदी में गिरफ्तार होने का खौफ तारी हुआ लिहाज़ा आप ने दमिश्क छोड़ दिया,
हज़रत सय्यदना अबू मंसूर सईद बिन मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के जब पहली बार हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह आलिमाना शानो शौकत के साथ बग़दाद में दाखिल हुए तो हम ने उनकी सवारी की कीमत लगाई तो वो 500, दीनार बनी फिर जब हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने ज़ुहदो तक़वा इख़्तियार किया और बग़दाद छोर दिया, मुख्तलिफ मक़ामात का सफर करते रहे और दोबारा जब बग़दाद में दखल हुए तो हम ने उनके लिबास की क़ीमत लगाई तो वो पन्दरह 15, किरात यानि चंद मामूली सिक्के बनी,

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दरसे इबरत सबक़ है प्यारे इस्लामी भाइयों :- देखा आप ने के हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने तमाम मरतबों को छोड़ कर इल्मे तसव्वुफ़ से मानूस हो कर इस की चाशनी हासिल करने के लिए राहे खुदा में सफर इख़्तियार किया और तमाम तर आसाइश व सहूलत को छोड़ दिया, इस के बाद पूरी ज़िन्दगी इसी तरज़े सूफियाना में गुज़ारी, अगर हम अपनी हालत पर गौर करें तो हमारी अक्सरियत आज दुनिया की मतवाली और फिकरे आख़िरत से खाली है,
हम्मे से कुछ तो वो हैं जो फानी दुनिया की लज़्ज़तों की वजह से मसरूर खुश ज़वालो फना से बेखौफ मोत के तसव्वुर से कुछ मतलब नहीं बस दुनिया की लज़्ज़त में बद मस्त हैं, कुछ तो वो हैं जो इस दारे नापायेदार में अचानक मोत से हमकिनार होने के अंदेशे से भी अनजान हैं सहूलतों और असाइशों के हासिल करने में इस क़दर मगन हैं,
के क़ब्र के अंधेरों, वहशतों और तन्हाइयों को भूल गए, आह आज हमारी सारी ताक़तें सिर्फ और सिर्फ दुनिया की ज़िंदगी ही बेहतर बनाने में खर्च हो रही है आख़िरत की बेहतिरि की हुसूल की फ़िक्र बहुत कम दिखाई देती है ज़रा गौर तो कीजिए की इस दुनिया में कैसे कैसे मालदार गुज़रे हैं, जो दौलत व हुकूमत जाहो हशमत, अहलो अयाल की आरज़ी उन्सियत व मुहब्बत दोस्तों की वक़्ती मुहब्बत और खादिमो की खुशमिदाना खिदमत की भरम में क़ब्र की तन्हाई को भूले हुए थे,
मगर आह यकायक फना का बदल गरजा मोत की आंधी चली और दुनिया में ता देर रहने की उनकी उम्मीदें मिटटी में मिल कर रह गईं, उनके मसर्रतों और शादमनियों से हँसते बस्ते घर मोत ने वीरान कर दिए, रोशनियों से जगमगाते हुए महलों से उठा कर उन्हें घुप अँधेरी क़ुबूर में पंहुचा दिया,
आह वो लोग कल तक बहुत मसरूर खुश थे और आज क़ुबूर की वहशतों और तन्हाइयों में मगमूम व रंजूर हैं,
होश में आइए और मरने से पहले संभल जाइए यक़ीन मानिये आज हमारे मुआशरे में गुनाहों की वजह से होने वाली सारी तबाही दुनिया की मुहब्बत ही ने मचाई है दुनिया की मुहब्बत की सबब आज लोग सुन्नतों से दूर हैं रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं की दुनिया की मुहब्बत तमाम गुनाहों की जड़ है, इस लिए आज अभी सच्चे दिल से तौबा करलो और अपनी आख़िरत को बर्बाद मत करो और अपनी ज़िन्दगी को सल्फ़ सालिहीन सूफ़िये किराम की ज़िन्दगी को अपनाओ इसी में भलाई और कामयाबी और कामरानी है,

अजल ने ना किसरा ही छोड़ा ना दारा
हर इक लेके ना हसरत सिधारा

इसी से सिकंदर सा फातेह भी हारा
पड़ा रह गया सब यूं ही ठाठ सारा

जगह जी लगाने की दुनिया नहीं है
ये इबरत की जा है तमशा नहीं है

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रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की मक़बूलियत :- हज़रत सय्यदना अल्लामा इस्माईल हक़्क़ी रहमतुल्लाह अलैह तफ़्सीर रुहुल बयान, जिल्द 5, सफ़ा नंबर 374, सूरह ताहा, आयत नंबर अठ्ठारह 18, के तहत फरमाते हैं: हज़रत सय्यदना इमाम रागिब अस्फहानी रहमतुल्लाह अलैह ने मुहाज़रात में ज़िक्र फ़रमाया के साहिबे हिज़्बुल बहर, आरिफ़े बिल्लाह हज़रत सय्यदना इमाम शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,
के में मस्जिदे अक़्सा में मेहवे ख्वाब था मेने देखा के मस्जिदे अक़्सा के सहन में एक तख़्त बिछा हुआ है और लोगों का एक जम्मे ग़फ़ीर है, मेरे पूछने पर बताया गया के ये हज़रात अम्बियाए किराम व रसूल इज़ाम अलैहिमुस्सलातुवस्सलाम हैं जो हज़रते सय्यदना हुसैन हल्लाज रहमतुल्लाह अलैह से ज़ाहिर होने वाली एक बात पर उन की सिफारिश के लिए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए हैं, फिर मेने तख़्त की तरफ देखा तो हुज़ूर नबी करीम रऊफ़ुर रहीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम इस पर जलवागर हैं और अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलातुवस्सलाम सामने तशरीफ़ फरमा हैं जिनमे हज़रत सय्यदना इब्राहीम खलीलुल्लाह, हज़रत सय्यदना मूसा कलीमुल्लाह, हज़रत सय्यदना ईसा रूहुल्लाह और हज़रत सय्यदना नूह नजी उल्लाह अलैहिमुस्सलातुवस्सलाम भी हैं,
मेने उन की ज़्यारत करने और उनका कलाम सुनने लगा इसी दौरान हज़रत सय्यदना मूसा कलीमुल्लाह अलैहिस्सलाम ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की आप का फरमान है “मेरी उम्मत के उलमा बनी इस्राईल के अम्बिया की तरह हैं” लिहाज़ा मुझे इन में से कोई दिखाएँ, रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह” की तरफ इशारा फ़रमाया, हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम ने आप से एक सवाल किया, आप ने उस के दस जवाब दिए, हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया के सवाल एक किया गया और तुम ने दस जवाब दिए, तो हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया जब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप से पूछा था,
तर्जुमा कंज़ुल ईमान: और तेरे दाहिने हाथ में किया है ऐ मूसा, तो इतना अर्ज़ कर देना काफी था के मेरा असा है, मगर आप ने इस की कई खूबियां बयान फर्माइ,
हज़रात उल्माए किराम फरमाते हैं के गोया इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में अर्ज़ कर रहे हैं के आप का हम कलाम बारी तआला था वुफुरे मुहब्बत और गलबाए शोक में अपने कलाम को तूल दिया ताके ज़्यादा से ज़्यादा हम कलामी का शरफ़ हासिल हो सके और इस वक़्त मुझे आप से हम कलाम होने का मौक़ा मिला है और कलीम खुदा से गुफ्तुगू का शरफ़ हासिल हुआ है इस लिए में ने भी शोको मुहब्बत में कलाम को तवील किया है,

क़ाबिले फख्र हस्ती :- हज़रत सय्यदना इमाम अबुल हसन शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं में ख्वाब में ज़्यारते रसूल से मुशर्रफ हुआ तो देखा के हुज़ूर रहमतें आलम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत सय्यदना मूसा और हज़रत सय्यदना ईसा अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम के सामने हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह पर फख्र करते हुए फरमा रहे हैं क्या तुम्हारी उम्मतों में “ग़ज़ाली” जैसा आलिम है दोनों ने अर्ज़ की नहीं,

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आप का सफरे आख़िरत यानि आप का विसाल :- उमर के आखरी हिस्से में अगरचे हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह का ज़्यादातर वक़्त इबादत में गुज़रता और दिनों रात मुजाहिदात व रियाज़ात में बसर करते थे मगर तसनीफ़ व तालीफ़ का मश्ग़ला (काम) बिलकुल नहीं छोड़ा था, उसूले फ़िक़ाह में आप की आला दरजे की तसनीफ़ “अल मुस्तसफा” 504, हिजरी की तसनीफ़ है,
इस के एक साल के बाद आप ने पचपन 55, साल की उमर में पीर के दिन 14, जमादिउल आखिर 505, हिजरी में ताबरांन तूस में इन्तिक़ा हुआ,
“आप का मज़ार शरीफ इराक की राजधानी बगदाद शरीफ में है”
वरासत में इस क़द्र माल छोड़ा जो आप के अहलो अयाल (बाल बच्चों) के लिए काफी था हालांके आप को बहुत ज़्यादा माल व ज़र पेश किया गया मगर आप ने क़बूल नहीं किया और कभी किसी के आगे दस्ते सवाल दराज़ न किया, आप ने औलाद में सिर्फ बेटियां ही सोगवार छोड़ीं, हज़रत सय्यदना इमाम इबने जौज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने “अस्सुबातू इंदल ममातू” में आप के विसाल का वाक़िया हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 505, हिजरी) की ज़बानी ये लिखा है के पीर के दिन हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह सुबह के वक़्त बिस्तर से उठे, वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ी फिर कफ़न मंगवाया और आखों से लगा कर फ़रमाया मेरे रब अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का हुक्म सर आँखों पर इतना कहा और चेहरा क़िब्ले की तरफ करके पाऊं फैला दिए, लोगों ने देखा तो रुह क़फसे उन्सुरी से परवाज़ कर चुकी थी, “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”

विसाल के बाद आप की करामत :- हज़रत सय्यदना शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इबने अरबी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 638, हिजरी) अपनी किताब “रुहुल क़ुद्स मुनासाहातिन नुफुस” में हज़रत सय्यदना अबू अब्दुल्लाह बिन ज़ैन याबुरी इशबीली रहमतुल्लाह अलैह के हालात लिखते हुए बयान फरमाते हैं के आप का शुमार औलिया अल्लाह में होता है एक रात हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के रद में अबुल कासिम बिन हमदीन की लिखी हुई किताब पढ़ रहे थे के बिनाई चली गई,
आप ने इसी वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बार गाह में सजदाह रेज़ हो कर गिरियाओ ज़ारी की और क़सम खाई के आइन्दाह कभी भी इस किताब को न पढूंगा उसे अपने आप से दूर रखूंगा उसी वक़्त बिनाई वापस लोट आयी, ये हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की करामत है जो उन के इन्तिकाल के बाद हज़रत सय्यदना अबू अब्दुल्लाह बिन ज़ैन याबुरी इशबीली रहमतुल्लाह अलैह के ज़रिये ज़ाहिर हुई,

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हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के गुस्ताख़ का अंजाम :- हज़रत सय्यदना ताजुद्दीन अब्दुल वहाब बिन अली सुबकी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 771, हिजरी) फरमाते हैं एक फ़क़ीह ने मुझे बताया के एक शख्स ने फ़िक़ाह शाफ़ई के दरस में हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह को बुरा भला कहा तो में बड़ा ग़मगीन हुआ, रात को इसी गम की हालत में नींद आ गई ख्वाब में हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत हुई, मेने बुरा भला कहने वाले शख्स का तज़किराह किया तो फ़रमाया फ़िक्र न करो वो कल मर जाएगा, चुनाचे सुबह जब में हल्काए दरस में हाज़िर हुआ तो इस शख्स को हश्शाश बश्शाश देखा मगर जब वो वहां से निकला तो घर जाते हुए रास्ते से गिर गया और ज़ख़्मी हालत में घर पंहुचा और सूरज ग़ुरूब होने से पहले ही मर गया,

सत्तर हिजाबात उबूर कर लिए :- हज़रत सय्यदना आरिफ कबीर क़ुत्बे रब्बानी अहमद सय्याद यमनी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेने ख्वाब में आसमान के दरवाज़े खुले देखे आसमान से फरिश्तों की एक जमाअत सब्ज़ हुल्ले यानि जन्नती लिबास और सवारी लेकर उतरी वो एक क़ब्र के सिरहाने आ कर खड़े हो गए, इस क़ब्र वाले को बाहर निकाल कर हुल्ला पहनाया, सवारी पर सवार किया और एक एक कर के तमाम आसमानो से गुज़रते गए यहाँ तक के उस शख्स ने सत्तर हिजाबात को भी उबूर कर लिया, में इन हिजाबात तक तो इन्हें देख सका मगर इन की इंतिहाई कहाँ तक थी ये न जान सका, पस जब उन के मुतअल्लिक़ पूछा तो बताया गया, “ये इमाम ग़ज़ाली हैं”

आप के शागिर्दों के असमाए गिरामी :- हुज्जतुल इस्लाम हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के बेशुमार शागिर्द थे जिन में से अक्सर मुताबहहिर आलिम, फक़ीह, मुहद्दिस, मुफ़स्सिर, और मुसन्निफ़ की हैसियत से हैं कुछ के असमाए गिरामी ये हैं:
क़ाज़ी अबू नस्र अहमद बिन अब्दुल्लाह खमकरी (मुतावफ़्फ़ा 554, हिजरी),,,, अबुल फतह अहमद बिन हंबली (मुतावफ़्फ़ा 518, हिजरी),,,, मदरसा निज़ामिया में कई उलूम के मुदर्रिस थे,,,,अबू मंसूर मुहम्मद बिन इस्माईल अत्तारी तूसी (मुतवफ़्फ़ा 486, हिजरी),,,, अबू सईद मुहम्मद बिन सअद नौकानी (मुतावफ़्फ़ा 554, हिजरी),,,, अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन तू मरत (आप ने इस्पीन में एक अज़ीमुश्शान सल्तनत की बुनियाद रखी,,,,अबू हामिद मुहम्मद बिन अब्दुल मलिक जौ ज़कानी इसफिराईनी,,,,,अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अली इराक़ी बगदादी (मुतावफ़्फ़ा 540, हिजरी),,,, अबू सईद मुहम्मद बिन अली जावानी कुरदी,,,,इमाम अबू सईद मुहम्मद बिन याहया निशापुरी (मुतावफ़्फ़ा 548, हिजरी),,,, अबू ताहिर इब्राहीम बिन मूतहिर शैबानी (मुतावफ़्फ़ा 513, हिजरी),,,, इमाम साहब ने एक खत में लिखा है के मेरे शागिर्दों में सब से मुमताज़ हैं, अबुल फतह नस्र बिन मुहम्मद मरागि सूफी,,,,,अबू अब्दुल्लाह हुसैन बिन नस्र मूसली (मुतावफ़्फ़ा 552, हिजरी),,,,, अबुल हसन सअद अल खैर बिन मुहम्मद अंसारी (मुतावफ़्फ़ा 541, हिजरी),,,, (ये अल्लामा इबने जौज़ी और इमाम समआनी के शैख़ हैं),,,,,,,अबू अब्दुल्लाह शाफ़े बिन अब्दुर रशीद जीली (मुतावफ़्फ़ा 541, हिजरी),,,, (ये इमाम इबने समआनी के शैख़ हैं),,,, अबू आमिर दगिश बिन अली नईमी (मुतावफ़्फ़ा 542, हिजरी),,,,अबू तालिब अब्दुल करीम बिन अली राज़ी (मुतावफ़्फ़ा 528, हिजरी),,,, (ये अह युल उलूम के हाफ़िज़ थे) अबू मंसूर सईद बिन मुहम्मद रज़्ज़ाज़ (मुतावफ़्फ़ा 503, हिजरी),,,,अबुल हसन अली बिन मुहम्मद जुवेनि सूफी,,,,,अबू मुहम्मद सालेह बिन मुहम्मद,,,,,अबुल हसन अली बिन मुतहिर दिनावरी (मुतावफ़्फ़ा 533, हिजरी),,,,(आप 80, जिल्दों पर मुश्तमिल किताब “तारीखे दमिश्क” के अज़ीम मुसन्निफ़ इमाम इबने असाकिर के उस्ताद व शैख़ हैं) मरवान बिन अली तन्ज़ी (मुतावफ़्फ़ा 540, हिजरी),,,,जमालुल इस्लाम अबुल हसन अली बिन मुस्लिम सुलामी (ये दोनों हज़रात भी इमाम इबने असाकिर के शीयूख में से हैं, रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम,

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“औलिया अल्लाह के तारीफी कलमात आप के बारे में”

  • हज़रत सय्यदना मुहम्मद बिन याहया निशापुरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेरे उस्ताज़े मुहतरम हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के मकामो मर्तबा को सिर्फ कामिल अक़्ल वाला ही पहचान सकता है,
  • हज़रत सय्यदना इमाम अबुल हसन शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द आरिफ़े बिल्लाह अबुल अब्बास मरसी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह सिद्दिक़ियते उज़्मा के मक़ाम पर फ़ाइज़ थे,
  • हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के उस्तादे मुहतरम इमामुल हरमैन अब्दुल मलिक बिन अब्दुल्लाह जुवैनी रहमतुल्लाह अलैह ने एक मोके पर इरशाद फ़रमाया: ग़ज़ाली इल्म के बहरे ज़ख़्ख़ार यानि इल्म का मोजे मरता हुआ समंदर हैं,
  • खतीबे निशापुर इमाम अबुल हसन हज़रत सय्यदना अब्दुल ग़ाफ़िर बिन इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 529, हिजरी) फरमाते हैं के हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह इस्लाम और मुसलमानो के लिए हुज्जत और दीन इस्लाम के इमामो के पेशवा हैं फ़साहतो बलाग़त अंदाज़े बयान व तरज़े गुफ्तुगू और तेज़ फहमी, ज़हानत में उन जैसा आँखों ने नहीं देखा,
  • हज़रत सय्यदना इमाम इबने असाकर रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 571, हिजरी) फरमाते हैं हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह जैसा ज़हीन व फित्तीन आँखों ने न देखा न कानो ने सुना,
  • हज़रत सय्यदना हाफिज अबुल फ़ज़ल अब्दुर रहीम इराक़ी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 608, हिजरी) फरमाते हैं उल्माए किराम के नज़दीक हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह पांचवी सदी हिजरी के “मुजद्दिद” हैं,
  • हज़रत सय्यदना इमाम अबुल हसन शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है के जिसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से कोई हाजत हो वो इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह के वसीले से दुआ करे,
  • हज़रत सय्यदना ताजुद्दीन अब्दुल वहाब बिन अली सुबकी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 771, हिजरी) इन अल्काबात के साथ ज़िक्र फरमाते “इमामुल जलील अबू हामिद हुज्जतुल इस्लाम व मुहज्जतुद्दीन जामे अश तातुल उलूम,
  • हज़रत सय्यदना हाफ़िज़ इमाम जलालुद्दीन सीयूती शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 911, हिजरी) आप का कोल नकल करते हुए इन अलफ़ाज़ से ज़िक्र करते हैं “अल इमाम हुज्जतुल इस्लाम वलियुल्लाह अबी हामिद अल ग़ज़ाली रदियल्लाहु अन्हु,
  • मुजद्दिदे आज़म फ़क़ीहै आज़म इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 1340, हिजरी) आप का कोल नकल करते हुए इन अलफ़ाज़ से ज़िक्र करते हैं अल इमामुल हुज्जतुल इस्लाम हकीमुल उम्माह काशिफ़ुल गुम्मह अबू हामिद मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह,

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आप की किताब “अह याउल उलूम” का तआरुफ़ :- हज़रत सय्यदना इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह की हर तसनीफ़ ही इल्मों इरफ़ान का पेश बहा खज़ाना है आह याउल उलूम ऐसी किताब है जिस की मिसाल दुनिया की अख़लाक़ी किताबों में मिलना मुश्किल है, अख़लाक़ीयात के मोज़ो पर ये एक बेमिसाल किताब है बाद के मुसन्निफीन न जो कुछ लिखा है उस का माख़्ज़ आह याउल उलूम है इस का गहरा मुतालआ और बयान करदा बातों पर अमल तज़कियाए नफ़्स के लिए अक्सीर यानि मुआस्सिर दवा है,
इस में रोज़ मर्रा के ज़िन्दगी के कमो बेश तमाम ही मुआमलात पर सैर हासिल गुफ्तुगू की गई है और ज़ाहिरी उलूम के साथ साथ बातनि उलूम को भी बयान किया गया है, ये किताब इंसान को “कामिल इंसान” बनाने में बे हद मददगार है, हर दौर में मशाइख व आरफीन अक़ताब व औलिया और सूफ़िया की तवज्जुह का मरकज़ रही है और ये मोतबर हस्तियां इस की क़सीदा ख्वानी में रतबुल लिसान नज़र आती हैं हर किसी ने अपने अपने ज़माने में इस की तारीफो तौसीफ फ़रमाई है, इस “अह याउल उलूम” के अलावा आपने “किमीयाए सआदत” “मिनहाजुल आबिदीन” “मुकाशिफ़तुल क़ुलूब” और इन के अलावा सैंकड़ों किताबे लिखी हैं,हमने यहाँ पर सिर्फ चंद किताबों का ज़िक्र किया है, “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो” ।

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- मुकाशिफ़तुल क़ुलूब, फैजाने इमाम ग़ज़ाली, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, अह याउल उलूम, जिल्द अव्वल, खज़ीनतुल असफिया,

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