आपके खानदानी हालात :- आप सादाते हुसैनी से हैं बुखारा के एक मुअज़्ज़ज़ खदान से थे आपके दादा शैख़ जलालुद्दीन सुर्ख बुखारी अपने वतन बुखारा से हिजरत करके मुल्तान आए | और आप के दादा “हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह” से मुरीद हुए और उन से ही खिरकाए खिलाफत हासिल किया | आप अपने पिरो मुर्शिद के हुक्म से ऊच शरीफ (पाकिस्तान में है) सुकूनत इख़्तियार करली उनके तीन लड़के थे, सबसे बड़े लड़के का नाम “सय्यद अहमद कबीर है” और दुसरे लड़के का नाम सय्यद बहाउद्दीन उनके सब से छोटे लड़के सय्यद सदरुद्दीन महम्मद ग़ौस हैं |

आपके वालिद माजिद :- आपके वालिद माजिद का नाम हज़रत सय्यद अहमद कबीर है

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आपकी पैदाइश :- हज़रत ख़्वाजा “जलालुद्दीन” मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश 14 या 15 शाबानुल मुअज़्ज़म 707 हिजरी मुताबिक़ 19 जनवरी 1308 ईस्वी बरोज़ जुमेरात ऊच शरीफ (बहावलपुर पाकिस्तान) में हुई | आपका नाम “सय्यद जलालुद्दीन हुसैन” और आपकी कुन्नियत “अबू अब्दुल्लाह” है और आपका लक़ब “मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त” है कुछ हज़रात आप को “मखदूम जहानियाँ” लक़ब से भी पुकारते हैं|

आपको जहानियाँ जहाँ गश्त क्यों कहा जाता हैं :- एक मर्तबा आप ईद की रात को हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ारे मुबारक पर यादे इलाही में मशगूल रहे फिर इसके बाद सदरुद्दीन आरिफ और रुकनुद्दीन अबुल फताह रहमतुल्लाह अलैहिम के मज़ारात पर हाज़िर हुए और हर जगह आपने “ईदी मांगी” हर जगह से आप को “मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त” का ख़िताब आता हुआ | जब आप वापस आए तो जो शख्स देखता यही कहता था “मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त” आ रहे हैं और आपने सैरो सियाहत खूब फ़रमाई थी इस लिए भी “मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त” के नाम से ,मशहूर हुए |

आपके बचपन का वाक़िया :- हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश के बाद आपके वालिद माजिद हज़रत सय्यद अहमद कबीर हज़रत को शैख़ जमाल ख़नदारु की खिदमत में ले गए हज़रत शैख़ जमाल ख़नदारु ने फ़रमाया के इस फ़रज़न्द की बुज़ुर्गी व अज़मत ऐसी होगी जैसी आज की रात यानि शबे बारात उस रोज़ शबे बरात थी हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह की परवरिश बहुत नाज़ो नेअम के साथ हुई थी आपके बचपन का वाक़िया ख़ास तौर से क़ाबिले ज़िक़्र हैं | जिससे अंदाज़ा होता हैं की आपके मिजाज़ में अदब व साईस्तगी किस क़द्र थी हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह की उमर 7 साल की थी के आपके वालिद सय्यद अहमद कबीर ऊच शरीफ के मशहूर आलिम व शैख़ जमाल ख़नदारु की खिदमत में ले गए हज़रत की बारगाह में कुछ खजूर पेश की गईं उस में से कुछ खजूरें आपको भी दी गईं आपने वो खजूरें गुठलियों के साथ खली हज़रत शैख़ जमाल ख़नदारु ने इसकी वजह पूछी तो आपने जवाब दिया “इस में भी बरकत हैं और फेंकना बेअदबी हैं” ये सुनकर हज़रत शैख़ जमाल ख़नदारु खुश हुए और आपको दुआएं दीं |

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आपकी तालीम व तरबियत :- हज़रत मखदूम जहानियाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह का खदान दो पुश्त से हिंदुस्तान व पाकिस्तान में रुश्दो हिदायत का मरकज़ बना हुआ था आपके दादा “सोहरवर्दी सिलसिले के मशाइख” में से थे और आपकी ख़ानक़ाह ऊच शरीफ (पाकिस्तान में हैं) खास तौर से मशहूर थी आपकी इब्तिदाई तालीम व तरबियत ऊच शरीफ में हुई | ऊच शरीफ के दो उस्ताद हज़रत शैख़ जमाल ख़नदारु और हज़रत शैख़ बहाउद्दीन हैं हज़रत शैख़ जमाल ख़नदारु ऊच शरीफ के बड़े आलिम और शैख़ थे उनके दरस में हिदाया, मशरिक़ुल अनवार, मिश्क़ातुल मासबीह, और अवारिफुल मआरिफ़,का दौराह था क़ाज़ी बहाउद्दीन के इन्तिक़ाल के बाद हज़रत मखदूम मुल्तान पहुंचे मुल्तान के मशहूर सोहरवर्दी सिलसिले में हज़रत मखदूम के जद्दे अमजद और वालिद बुज़ुर्गवार मुनसलिक थे और उस वक़्त शैख़ रुकनुद्दीन अबुल फतह सज्जादह नशीन ख़ानक़ाह से एक आलम फैज़ पा रहा था | हज़रत मादूम फरमाते हैं की जब में ऊच से मुल्तान पंहुचा तो हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन ने ख़ानक़ाह के बजाए मदरसे में मेरे क़याम का इंतिज़ाम किया और उनके खाने का इंतिज़ाम भी ख़ानक़ाह के बजाए घर से किया गया | हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन ने हाज़रीन से तआरुफ़ कराया के हज़रत जलालुद्दीन का पोता हमसे मुलाक़ात के लिए नहीं आया हैं बल्कि इल्म हासिल करने के लिए आया हैं हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन ने आपकी तालीम के लिए “शैख़ मूसा और मौलाना मुजद्दिदीन” को मुक़र्रर किया आपकी तालीम का सिलसिला मुल्तान में एक साल तक रहा | फिर इसके बाद सैरो सियाहत के दौरान बड़े बड़े शैख़ और नामवर उल्माए किराम से इक्तिसाबे फैज़ किया और मुख्तलिफ ज़ाहिरी और बातिनी उलूम हासिल किए और मदीना तय्यबा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा हाज़िर हुए और आपने वहाँ के मशाइख में शैख़ अब्दुल्लाह याफई, और शैख़ अब्दुल्लाह मितरी से फैज़ हासिल किया |

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बैअत व खिलाफत सोहरवर्दिया सिलसिला :- हज़रत मखदूम जहानियाँ ने उलूमे ज़ाहिरी की तहसील के बाद राहे सुलूक में क़दम रखा आपके दादा और वालिद सोहरवर्दिया सिलसिले में मुनसलिक (नथ्थी करना शामिल होना पिरोना) थे और मुल्तान (पाकिस्तान में हैं) की मशहूर ख़ानक़ाह सोहरवर्दिया के नुमाइन्दहे और वकील थे खुद हज़रत मखदूम ने भी ज़ाहिरी उलूम की तकमील हज़रत शैख़ अबुल फतह के मदरसा में जाकर मुल्तान में की थी “हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन अबुल फतह मुल्तानी अपने दौर के नामवर मशाइख में दसे थे” आपके फ़ैज़ा बरकात से मुल्तान मरकज़े हिदायत बना हुआ था “हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन अबुल फतह मुल्तानी” की खिदमत में पहुंचे आपने आपको खिरकाए खिलाफत अता फ़रमाई वैसे तो आपको अपने वालिद से भी सोहरवर्दी में बैअत हुए फिर अपने चचा सय्यद सदरुद्दीन मुहम्मद ग़ौस से भी खिरकाए खिलाफत पहना |

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सिलसिलाए चिश्तिया :- हज़रत मखदूम जहानियाँ को चिश्तिया सिलसिले में खिरकाए खिलाफत “हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन मेहमूद चिराग” दिल्ली से हासिल था साहिबे सैरुल आरिफीन लिखते हैं के एक रोज़ शैख़े मक्का अब्दुल्लाह याफ़ई ने फ़रमाया की दिल्ली से बड़े बड़े मशाइख उठ गए और उनकी निशानी हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन मह्मूमद ज़िंदाह हैं की इस शहर में अपने मशाइख का चिराग रोशन किए हुए हैं हज़रत मखदूम जहानियाँ ये सुनकर मुश्ताक़ (मुहब्बत करना चाहना) हो गए और दिल्ली पहुंच कर हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन मह्मूमद की खिदमत में हाज़िर हुए हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन मह्मूमद चिराग देहलवी ने खिरकाए खिलाफत मशाइखे चिश्तियत से सरफ़राज़ किया और उसी दिन से हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन मह्मूमद चिराग देहलवी “नसीरुद्दीन मह्मूमद चिराग देहलवी” के लक़ब से मशहूर हुए |

महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी गौसे आज़म से अक़ीदत :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त को शैख़ अबुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह से निहायत ही अक़ीदत थी आपने अपने “मलफ़ूज़ात” में क़ुत्बे रब्बानी शैख़ अबुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह का अक्सर ज़िक़्र किया हैं शैखुश शीयूख शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी (आप ही सोहरवर्दी सिलसिले के बनी हैं) के उनकी खिदमत में हाज़िर होने और फैज़ हासिल करने और दुसरे मौके अदब व एहतिरामे नबवी का ज़िक्र किया है |

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आपकी सैरो सियाहत (सफर करना सैर करना) :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने सैरो सियाहत बहुत फ़रमाई, तमाम ममालिक इस्लामी में घूम फिर कर उल्माए इज़ाम और सूफिए किराम से फ्यूज़ व बरकात हासिल किए दुनिया की सैरो सियाहत की और “जहाँ गश्त” के लक़ब से मशहूर हुए | हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह फरमाते हैं के बहुत से औलिया अल्लाहने मारीफो हक़ाइक़ की तलाश में सियाहत की है लेकिन हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त की तरह किसी ने सफर नहीं किया

मक्का मुअज़्ज़मा :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह का क़याम मक्का मुअज़्ज़मा में 7 साल रहा आप ने इस मुद्दत में उलूमे मुरव्वजा की तहसील में पूरी कोशिश की और ख़ास तवज्जुह इल्मे हदीस की जानिब फ़रमाई और उस ज़माने के अजिल्ला (बड़ा बुजरुग) मशाइख और मुहद्दिसीन से फैज़ हासिल किया मक्का मुअज़्ज़मा में किताबत के ज़रिये खर्च चलाते थे बाज़ औक़ात फ़ाक़ा कशी की नौबत पहुँचती थी आप ज़म ज़म पीलिया करते थे हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त ने अपने उस्तादे शैख़े मक्का अब्दुल्लाह याफ़ई का बड़े ख़ुलूस और मुहब्बत से ज़िक्र किया है |

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मदीना तय्यबा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा :- में आपका क़याम दो साल रहा मदीना तय्यबा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में “अब्दुल्लाह मितरी” से अवारिफुल मआरिफ़ का वो नुस्खा पढ़ा जो शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी के मुताले में रहा | एक बार मस्जिदे नबवी में इमामत के फ़राइज़ भी अंजाम दिए |

यमन व अदन :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने यमन व अदन की भी सियाहत की यमन में एक पहाड़ पर पहुंचे और वहां एक गार में एक अल्लामा दानिश मंद से मिले और उनसे आरफना गुफ्तुगू हुई |

दमिश्क़ व लबनान :- दमिश्क़ निहायत खूबसूरत शहर है | अक्सर शोरा ने इसकी तारीफ में क़सीदे लिखे हैं हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह दमिश्क़ भी गए एक मर्तबा आपने ज़िक्र किया के दमिश्क़ के कंबल निहायत सख्त होते हैं आपने शाम में कोहे लबनान भी देखा था |

मदाइन :- मुसलमानो ने जब इस शहर को फ़तेह किया तो बहुत बारौनक था | चौथी सदी हिजरी में सिमिट सिमटाकर एक छोटा सा शहर रह गया था मगर रौनक उस वक़्त भी बाक़ी थी वहां मुसलमानो की फ़तेह के वक़्त एक खूसूरत जामा मस्जिद भी थी की 8 वि सदी हिजरी में मदाइन बिलकुल गैर आबाद और शिकिस्ता हो चुका था आपने मदाइन को देखा था एक बार आपने ज़िक्र फ़रमाया के इस शहर की मस्जिद में दरख़्त लगा हुआ है |

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शौकारा :- फारस का एक क़स्बा है जहाँ शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के एक खलीफा शैख़ शरफुद्दीन मेहमूद तस्तरी रहते थे हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह उनकी खिदमत में पहुंचे और उनसे अवारिफुल मआरिफ़ पढ़ी और सनद हासिल की उस वक़्त शैख़ शरफुद्दीन मेहमूद तस्तरी रहमतुल्लाह अलैह की उमर 130 साल थी और जुमे के दिन असा लेकर पैदल मस्जिद जाते थे इराक़ व अरब में उन का चर्चा था हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने उनसे इजाज़त नामा भी हासिल किया आप उनकी खिदमत में 748 हिजरी में हाजी हुए |

बसरा व कूफ़ा और तबरेज़ :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने बसरा और कूफ़ा की भी सियाहत की मस्जिद के मुतअल्लिक़ बयान किया की वहां की मस्जिद में दरख्त लगा हुआ है |और हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने तबरेज़ की भी सियाहत की है और एक मौके पर खान आज़म ज़फर खान ने मस्जिद में दरख्त लगाने के मुतअल्लिक़ सवाल किया तो आप ने फ़रमाया के मेने तबरेज़ वगैरह की मस्जिद में दरख्त लगे देखे हैं |

शीराज़ :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह शीराज़ पहुंचे तो बाज़ तालिबे इल्म आपकी खिदमत में इल्म हासिल करने के लिए आए एक साहब मासबीह का सबक़ पढ़ा करते थे क़ाज़ी शीराज़ ने मखदूम से मुलाक़ात की क़ाज़ी बड़े आलिम बुजरुग थे उन्होंने मखदूम को नज़र भी पेश की एक मौके पर मखदूम ने तक़रीर की जिससे हाकिमे शीराज़ बहुत खुश हुआ और दो तशत चांदी के नज़र किए आपने उनको क़बूल किया और वो तमाम माल एक हाजत मंद को बख्श दिया |

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बल्ख, निशापुर, खुरासान, :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने खुरासान की सियाहत की और अपने मलफ़ूज़ में अक्सर ज़िक्र किया है के फुलां बात मेने मक्का, मदीना, और खुरासान के उलमा और मशाइख से हासिल की खुरासान वगैरह के मशाइख का तरीक़ा है जब तक कोई शख्स इल्मे ज़ाहिरी हासिल नहीं कर लेता उसको ज़िक्र वगैरह की तलकीन नहीं करते | इसके अलावा आपने समर कन्द, गाज़रुन, लैहसा, बेहरीन व क़तीफ ये भी बहुत खूबसूरत शहर है आपने इसकी भी सियाहत की इसमें खूबसूरत बाग़ इसी तरह क़तीफ में भी खजूर के दरख्त थे | हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने लैहसा के ब्यान के साथ साथ इन दोनों शहर का भी ज़िक्र किया है की “क़तीफ” समंदर के किनारे है और बेहरीन समंदर के दरमियान खूबसूरत जज़ीरा (टापू) है और तीनो शहर का बाद शाह हरमुज़ बाद शाह है और बाद शाह सुन्नी है |

आपका मज़ार शरीफ बहावलपुर ऊच शरीफ पाकिस्तान में है

गज़नी :- गज़नी आज कल अफगानिस्तान का एक तारीखी (ऐतिहासिक) शहर है और क़ाबुल से 92 मील दूर है इस शहर को सब से ज़्यादा तरक़्क़ी मह्मूमद ग़ज़नवी के ज़माने में हुई मह्मूमद ग़ज़नवी ने मस्जिदों क़ुतुब खानो और मदरसों से इस शहर को ज़ीनत दी मगर गौरी ख़ानदान के नुमाइंदे अलाउद्दीन जहाँ सोज़ ने इस शहर को जलाकर ख़ाक कर दिया 8 वि सदी हिजरी में इबने बतूता ने लिखा है के गज़नी का एक बड़ा हिस्सा वीरान है उसका हम असर भी लिखता है की ये एक छोटा सा शहर है हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने गज़नी की भी सियाहत की है | दिल्ली हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह कई बार तशरीफ़ ले गए बक़ौल मुअल्लिफ़ जामिउल उलूम के मुताबिक़ | मुल्तान हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह के पिरो का वतन है शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी के ख़ानदान से तीन पुश्त का वास्ता है आपने तालीम भी मुल्तान में मुकम्मल की और यहीं “हज़रत शैख़ रुकनुद्दीन अबुल फतह” मुल्तानी से बैअत व खिलाफत हासिल की मलफ़ूज़ से अंदाज़ा होता है की आप कई बार मुल्तान तशरीफ़ ले गए | आपके बारे में कहा जाता है की आप जब भी किसी से मुआनका फरमाते तो जो नेमत उसके पास होती उसी वक़्त जज़्ब कर लेते यानि आप इस क़द्र तवज्जो और खिदमत से काम लेते के वो शख्स बे इख्तियार हो कर अपनी हर नेमत दे देता |

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हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने दिल्ली के 7 बाद शाहों का दौरे हुकूमत देखा :-

  • अलाउद्दीन ख़िलजी
  • शहाबुद्दीन ख़िलजी
  • क़ुतबुद्दीन मुबारक शाह
  • नासिरुद्दीन खुसरू
  • गयासुद्दीन तुग़लक़
  • मुहम्मद तुग़लक़
  • फ़िरोज़ शाह तुग़लक़

अलाउद्दीन ख़िलजी :- के एहदे हुकूमत में आप पैदा हुए आठ बरस की उमर थी ख़िलजी का इन्तिक़ाल हो गया इसके बाद खिलजियों में कोई मज़बूत निज़ाम क़ाइम न हो सका आखिर में नासिरुद्दीन खुसरू ने मुसलमानो की कराइ मेहनत ही का खात्मा करना चाहा की गयासुद्दीन तुग़लक़ ने उसको ठिकाने लगा कर सल्तनत दिल्ली की हिफाज़त की उसका दौरे हुकूमत सिर्फ 5 साल रहा जब मुहम्मद तुग़लक़ ने ज़मामे हुकूमत संभांली तो उस वक़्त आपकी उमर 17,18, साल थी ख्याल रहे उस ज़माने में आपकी पूरी तवज्जो तालीम हासिल करने की तरफ रही होगी |

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इबने बतूता आपकी खिदमत में :- 724 हिजरी में मशहूर सय्याह “इबने बतूता” सियाहत सिंध के दौरान ऊच शरीफ पंहुचा तो आपकी खिदमत में भी हाज़िर हुआ और खिरका हासिल किया बतूता लिखता है के भकर से चलकर हम ऊच के शहर में पहुंचे ये शहर दरियाए सिंध के किनारे मौजूद है बड़ा शहर है बाजार बहुत उम्दा है इमारतें मज़बूत हैं उस ज़माने में ऊच का हाकिम जलालुद्दीन था इबने बतूता की हाकिमे शहर से दोस्ती हो गई इबने बतूता हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ हज़रत ने उसको अपना खिरका अता फ़रमाया |

हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त और हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ के तअल्लुक़ात :- हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ अकाबिर औलिया हिंदुस्तान में शुमार होता है दिल्ली में आपकी पैदाइश हुई और आपको हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन मेहमूद चिराग देहलवी ने आपको खिलाफत और जानशिनी से सरफ़राज़ किया था | हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ दिल्ली में मुक़ीम रहे इसके बाद दक्कन तशरीफ़ ले गए हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त के चिश्तिया सिलसिले में पीर भाई हैं हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त अक्सर दिल्ली तशरीफ़ ले जाते थे इन दोनों बुज़ुगों में ख़ास रवाबित तअल्लुक़ात थे और अक्सर मुलाकात होती थीं | हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ का मज़ारे पुर अनवार सूबा कनाटक के ज़िला गुलबर्गा शरीफ में है |

शरीअत व तरीक़त :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह शरीअत व तरीक़त को कभी जुदा नहीं करते थे बगैर शरीअत के तरीक़त कोई चीज़ नहीं है आप फरमाते हैं की तरीक़त सालिक के वास्ते एक सीधी राह (रास्ता) है शरीअत से निकाली गई है जैसे किसी चीज़ का मगज़ और खुलासा खींच लेते हैं मसलन गेहूं से मैदा निकालते हैं के मैदा की असल वही गेहूं है शरीअत तौहीद मुआमलात का बयान है और तरीक़त मुआमलात का तालाब करना है तरीक़त साफ़ बातिन यानि सफाई ज़मीर व तहज़ीब अख़लाक़ के साथ आमाल ज़ाहिर का आरास्ता करना है जिसमे शरीअत, तरीक़त, हक़ीक़त न हो वो हरगिज़ मशाइखे कामिल नहीं होता एक मक़ाम पर इरशाद फरमाते हैं जब तक खुद न जानेगें दूसरों को क्या बताएंगें अगर कोई नेक शख्स हो और इसमें से तीनो उलूम मौजूद न हों तो वो वली नहीं हो सकता |

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आपका विसाल :- हज़रत मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह उमर शरीफ 73, 76, साल हुई और आपका साले वफ़ात 785 हिजरी मुताबिक़ 1384 ईस्वी है 10 ज़िल हिज्जा बकरा ईद के दिन ग़ुरूब आफताब के वक़्त यानि सूरज डूबते वक़्त आपका विसाले मुबारक हुआ | आपका मज़ार शरीफ बहावलपुर ऊच शरीफ पाकिस्तान में है | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो अमीन |

(अख़बारूल अखियार) (ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल) (तारीखे ऊच) (मनाक़िबुल असफिया) (सफर नामा इबने बतूता जिल्द दो) (सैरुल आरिफीन) (लताइफे अशरफी) (सफिनतुल औलिया) (सालिकुस सलीक़ीन जिल्द दो) (तारीखे फरिश्ता)(मिरातुल असरार)

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