तूर इरफानो उलू हम्दो हुसनो बहा दे अली मूसा हसन अहमद बहा के वास्ते
आपकी विलादत बा सआदत :- आपकी विलादत बा सआदत सरहिंद पंजाब हिन्दुस्तान में जुनैद नामी शहर में हुई और वहीं आपकी नशो नुमा (परवरिश) हुई |
आपका इस्म (नाम) शरीफ :- आपका नामे नामी व इसमें गिरामी “बहाउद्दीन” रदियल्लाहु अन्हु है |
आपके वालिद माजिद :- आपके वालिद माजिद का नाम “हज़रत इब्राहीम बिन अताउल्लाह अंसारी शत्तारी जुनैदी रदियल्लाहु अन्हु |
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तहसीले इल्म :- आपने उलूमे दीनिया को पूरे तौर पर हासिल फ़रमाया और उलूमे अरबिया व इल्मे फ़िक़्हा व उसूल में आपने कमाल का हासिल किया |
शरफ़े बैअत :- आपके पिरो मुर्शिद शैख़े तरीक़त “हज़रत शैख़ अहमद जीलानी रदियल्लाहु अन्हु हैं” आप ज़्यारते हरमैन तय्येबैन मदीना तय्यबा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा को तशरीफ़ ले गए इसी दौरान में ख़ास हरम शरीफ ही में “बैअत का शरफ” हासिल फ़रमाया और जुमला तमाम सब औराद व वजाइफ और अशग़ाल की इजाज़त अता फ़रमाई और खिलाफत के साथ खिरका से भी नवाज़ा |
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आपके फ़ज़ाइल व कमालात :- कुदवतुस्सा लीकीन, नूरुल इरफ़ान, मिनहाजुल अबिदीन फिल हिन्द,रहबरे उलूमे सुन्नत, मज़हरे मज़हबे अहले सुनत, अश्शेख बहाउद्दीन बिन इब्राहीम बिन अताउल्लाह अंसारी शत्तारी क़ादरी रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन, साहिबे हालात व जामे करामात व बरकात थे |
आप क़ादरी सिलसिले के 25 वे इमाम हैं :- आप सिलसिलाए आलिया क़ादरिया रज़विया के 25 वे इमाम व शैख़े तरीक़त हैं | आप सुल्तान गयासुद्दीन बिन सुल्तान मुहम्मद खिल्जी के एहदे हुकूमत में मंदो में तशरीफ़ लाए और आप की ज़ाते मुक़द्दस से हिंदुस्तान में क़ादिरिया सिलसिले की तरवीज (सिक्का चलाना) फ़रमाई जोक दर जोक यानि भीड़ की भीड़ लोग आप के दरस में शामिल हुए और आपके फैज़ सोबत से बेशुमार लोगों को सिलसिलाए इरादत में शामिल हो कर हिंदुस्तान के कोने कोने में फ़ैल गए यही वजह है के आज भी हिंदुस्तान में सिलसिलाए क़ादिरिया से करोड़ों लोग मुनसलिक (शामिल होना जुड़ना जोड़ना नथ्थी करना) हैं | और आप का फैज़े रूहानी अहले हिंदुस्तान वालों पर जारी व सारी है दुसरे तमाम सिलसिल से सिलसिलाए क़ादिरिया के मानने वाले बड़ी कसरत से पाए जाते हैं |
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आपकी तसानीफ़ :- आप साहिबे तसनीफ़ बुजरुग थे आपकी तसनीफ़ में उलूम व मआरिफ़ भरे हुए हैं जैसा की एक रिसाला आपकी यादगार है जिसको आपने अपने मुरीद व खलीफा हज़रत शैख़ इब्राहीम बिन मुईन ईयरजी रदियल्लाहु अन्हुमा के वास्ते लिखा है जिसकी तफ्सील शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी शोहर आफ़ाक़ किताब “अख़बारूल आखिर” में लिखा है इसी से यहाँ वो तरिकाए सुलूक नक़ल किए जाते हैं जो फायदे से खली नहीं है हज़रत शैख़ बहाउद्दीन क़ादरी शत्तारी रदियल्लाहु अन्हु “रिसालाए शत्तारिया” में लिखते हैं के अल्लाह तबारक व तआला तक पहुंचने के रस्ते मख्लूक़ के मुताबिक़ हैं |
हज़रत शैख़ बहाउद्दीन रिसालाए शत्तारिया में फरमाते हैं :- के खुदा वन्दे कुद्दूस तक पहुंचने के तरीके मख्लूक़ के अनफास के बराबर हैं | इन सारे तरीकों में 3 तरीके ज़्यादा मशहूर व मअरूफ़ हैं:
पहला तरीक़ा :- अखियार है और वो नमाज़, रोज़ा, तिलावत क़ुरआन मजीद, हज और जिहाद है इस तरीके पर चनले वाले लम्बा सफर करने के बावजूद बहुत कम ही मंज़िले मक़सूद तक पहुंचते हैं |
दूसरा तरीक़ा :- इस में अख़लाक़ी ज़मीमा की तब्दीली, तज़कियाए नफ़्स, तसफ़िया दिल और जिलाए रूह के लिए मुजहिदात व रियाज़त किए जाते हैं इस रास्ते से मंज़िले मक़सूद तक पहुंचने वालों की तादाद पहले तरीके की बनिस्बत ज़्यादा है |
तीसरा तरीक़ा :- “शत्तारिया है” इस तरीके पर चलने वाले शुरू ही में उन मंज़िलों से आगे निकल जाते हैं जिन पर दूसरी तरीकों की बनिस्बत ज़्यादा उम्दा और नज़दीकी इलल्लाह के एतिबार से ज़्यादा क़रीब है तरीक़ए शत्तारिया के 10 उसूल हैं:
- तौबा :- अल्लाह के अलावा हर चीज़ से ख़ुरूज का नाम तौबा है |
- ज़ाहिद :- नाम है दुनिया इसकी मुहब्बत इसके सामान और इसकी ख्वाइशात को तर्क यानि छोड़ने का |
- तवक्कुल :- तवक्कुल असबाबे दुनिया से किनारा कशी को कहते हैं |
- क़नाअत :- ख्वाइशाते नफ़सानिया के तर्क यानि छोड़ने कोकहते हैं |
- उज़लत :- ख़ल्क़ के मेल झोल के तर्क को कहते हैं |
- तवज्जो इलल हक़ :- ये हर उस चीज़ के छोड़ने का नाम है जो गैरे हक़ की तरफ दाई हो ये वो मंज़िल है जहाँ खुदा वन्दे कुद्दूस के अलावा कोई मतलूब, मेहबूब और मक़सूद बाक़ी नहीं रहता |
- सब्र :- ये इंसान का मुजाहिदा के ज़रिया लज़्ज़तों को छोड़ना है |
- रज़ा :- अल्लाह की रज़ा में दाखिल होकर नफ़्स की रज़ा से निकलने का नाम है इस तरह के एहकामे अज़लिया को तस्लीम करे और खुद को बगैर किसी आराज़ के मस्लिहते खुदावन्दी के हवाले करदे |
- ज़िक्र :- ये अल्लाह के ज़िक्र के अलावा तमाम मख्लूक़ के ज़िक्र का तर्क है |
- मुराकीबा :- ये अपने वुजूद और क़ुव्वत से निकलने का नाम है
ज़ाकिर व सालिक के मरातिब के बारे में हज़रत शैख़ फरमाते हैं :- अल्लाह तआला के 99 नाम ज़िक्र का “मक़ामे तलवीन” हैं और दसवे नाम के ज़िक्र का मक़ाम “मक़ामे तमकीन है” असमाए बारी तआला में “अल्लाह” इसमें ज़ात है बाक़ी 99 नाम असमाए सिफ़ात हैं | जब तक ज़ाकिर असमाए सिफ़ात के ज़िक्र में मशगूल रहता है मक़ामे तलवीन में रहता है और इसम ज़ात के ज़िक्र से मक़ामे तमकीन में आ जाता है “लफ़्ज़े अल्लाह अल्लाह अल्लाह” की ताबिश से फानी वुजूद मिट जाता है और मुज़महिल हो जाता है और यही वो मक़ाम है जहाँ मरतबए फना हासिल हो जाता है | वुजूद फानी के महो व मादूम होने का यही मतलब है और जब खुद से फानी हो जाता है तो मरतबए बक़ा हासिल हो जाता है लिहाज़ा मुरीद सादिक़ का दिल बगैर ज़िक्र के हरगिज़ कुशादा नहीं हो सकता और जब दिल कुशादा मुनव्वर हो जाता है तो उस पर तमाम अशिया यानि चीज़ों की हक़ीक़तें ज़ाहिर हो जाती है और आलमे अरवाह से मुलाक़ात हो जाती है |
हज़रत ने कश्फ़ के दो तरीके बताएं हैं :- एक तरीक़ा ये है की “या अहमद” को दाएं जानिब कहे और “या मुहम्मद” को बाएं जाबिन कहे और दिल पर या रसूलल्लाह की ज़र्ब लगाएं | दूसरा तरीक़ा ये है के “या अहमद” को अपने दाएं जानिब कहे और “या मुहम्मद” को बाएं जानिब और दिल में या मुस्तफा का ख्याल करे तमाम अरवाह का कश्फ़ हो जाएगा | असमाए मलाइका मुक़र्रबीन भी यही तासीर रखते हैं | ज़िक्र इसमें शैख़ के बारे में फरमाते हैं के “या शैख़ या शैख़” हज़ार बार इस तरह कहे के हरफ़े निदा यानि “या” को दिल से खींच कर अपने दाएं तरफ लेजाए और लफ़्ज़े “शैख़” की ज़र्ब दिल पर लगाए | ज़िक्र दराज़ी उम्र के बारे में फरमाते हैं फज्र की नमाज़ के बाद सूरज निकलने तक एक हज़ार मर्तबा “हुवल हय्युल क़य्यूम” पढ़े और दाब नमाज़े ज़ुहर एक हज़ार बार “हुवल अलियूल अज़ीम” पढ़े और बड़े असर “हूवर रहमानुर रहीम” पढ़े एक हज़ार बार बादे मगरिब “हुवल गनियुल हमीद” एक हज़ार बार और बादे इशा “हुवल लतीफुल खबीर” एक हज़ार बार पढ़े इंशा अल्लाह उम्र में बरकत होगी
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आपके खुलफाए किराम :- आपके खुलफाए किराम की मुकम्मल फहरिस्त कहीं दस्तियाब नहीं हो सकी कुछ मशहूर नाम ये हैं :-
1 हज़रत मुहम्मद बिन शैख़ इब्रमीम मुल्तानी रदियल्लाहु अन्हु |
2 हज़रत सय्यद इब्राहीम ईयरजी रदियल्लाहु अन्हु |
3 हज़रत मौलाना अलीमुद्दीन उस्ताद हज़रत सय्यद इब्राहीम ईयरजी रदियल्लाहु अन्हुमा |
सबब विसाल :- आपको अच्छी खुशबू सूंघते ही ऐसा ज़ौक़ व हाल तारी होता था मसलन ज़ाहिरी सबब आपके विसाल का यही हुआ के एक मर्तबा एक शख्स हालत नक़ाहत में आप की खिदमत में गालिया (एक खुशबू मुश्क वगैरह) लाया तो इसी अच्छी खुशबू के असर से आपकी रूह परवाज़ कर गई | अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो |
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तारीखे विसाल :- आपका विसाल 11 ज़िल हिज्जा 921 हिजरी में हुआ | और आपका मज़ार मुबारक इंडिया के सूबा महराष्ट्र के जिला औरंगा बाद के क़स्बा दौलत आबाद हाइवे रोड पर है
(तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया रज़विया बरकातिया)
(अख़बारूल अखियार) ख़ज़ीनतुल असफिया)
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