आपकी पैदाइश व तालीमों तरबियत :- आपकी विलादत जमादिउल आखिर या रजाबुल मुरज्जब 1246 हिजरी मुताबिक़ 1830 ईस्वी को बरेली शरीफ के मोहल्ला ज़खीराः में हुई, रईसुल अतक़िया मुफ़्ती नक़ी अली खां ने जुमला तमाम उलूम व फनून की तालीम अपने वालिद माजिद इमामुल उलमा मौलाना “रज़ा अली खां” से हासिल की आप अय्यामे तफूलियत (बचपन से) से ही परहेज़गार और मुत्तक़ी थे, क्यूंकि आप इमामुल उलमा मौलाना “रज़ा अली खां” के ज़ेरे तरबियत रहे जो नामवर आलिम और आरिफ़े बिल्लाह बुजरुग थे | जिनकी परहेज़गारी का जौहर मौलाना को वुरसा में मिला था | फिर बा फ़ज़्ले ईज़दी मिलाने तबअ नेकी की तरफ था आप इल्मो अमल का बेहरे ज़ख़्ख़ार थे | आपकी ज़ात मरजए उलमा व खलाइक़ थी | आपकी राए व अक़वाल को उल्माए असर तरजीह देते थे | कसीर उलूम में तस्नीफ़ात मतबूआ व गैर मतबूआ आपके इल्म व फ़ज़ल की शाहिद हैं |
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फरमाने आला हज़रत :- इमामुल मुताकल्लिमीन ख़ातिमुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नक़ी अली खां रहमतुल्लाह अलैह का इल्मी मक़ाम व मर्तबा किस क़द्र बुलंद था इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की सय्यदना सरकार आला हज़रत मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह आप ही का इल्मे फैज़ पाकर दुनियाए सुन्नियत के इमाम और दिनों मिल्लत के मुजद्दिदे आज़म कहलाए | इस का तज़किराह खुद इमाम अहमद रज़ा ने अपनी तसानीफ़ में कई मक़ामात पर इस तरह लिखते हैं की आह हिंदुस्तान में मेरे ज़मानाए होश में दो बन्दए खुदा थे जिन पर उसूल व फिरो और अक़ाइद व फ़िक़ाह सब में एतिमाद कुल्ली की इजाज़त थी एक मक़ाम पे और आप इरशाद फरमाते हैं के “फताफा रजविया” की तदवीन व तरतीब का सबब ये हुआ के मेरे आक़ा वालिद सायाए रहमते इलाही, ख़ातिमुल मुहक़्क़िक़ीन, इमामुल मुदककिक़ीन, फ़ितनो को मिटाने वाले, सुन्नतों की हिमायत फरमाने वाले, हमारे सरदार व मौला मुहम्मद नक़ी अली ख़ान साहब क़ादरी बरकाती (के अल्लाह उनकी मरक़दे अनवर पर अपनी करम की बारिश बरसाए) मुझे 14 शाबनुल मुअज़्ज़म को फतवा लिखने पर मामूर फ़रमाया जब के सय्यदे आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिजरत से 1286 हिजरी साल थे उस वक़्त मेरी उम्र पूरे 14 साल नहीं थी क्यूंकि मेरी विलादत 10 शव्वाल 1272 हिजरी कोई हुई, तो मेने फतवा देना शुरू किया और जहाँ में गलती करता हज़रत वालिदे मुहतरम इस्लाह फरमाते (अल्लाह अज़्ज़ावजल उनकी मरक़दे पाकीज़ा बुलंद को बुलंद फरमाए) 7 बरस के बाद मुझे इजाज़त अता फ़रमाई के अब फतवा लिखो और बगैर हुज़ूर को को सुनाए साईलों (पूछने वाले) को भेज दिया करो, मगर मेने इस पर जुरअत न की यहाँ तक के अल्लाह पाक ने हज़रत वालिद को ज़िलकादा 1297 हिजरी में अपने पास बुला लिया |
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हज़रत अल्लामा शाह मुहम्मद हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं :- मौलान नक़ी अली खान साहब रहमतुल्लाह अलैह का शुमार शहर के सरदार रईस लोगों में होता था | और हिंदुस्तान के बड़े उलमा में गिने जाते थे | उनका इस दुनिया में सबसे बड़ा शाह कार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह जैसे जलीलुल क़द्र फ़ाज़िल की तालीम व तरबियत है | जो सदियों उनका नामे नामी ज़िंदह रखने के लिए काफी है मौलाना नक़ी अली खान साहब अपने वक़्त में मरजए फ़तावा थे | आला हज़रत के वालिद माजिद मौलाना नक़ी अली खान साहब रहमतुल्लाह अलैह 7 गाँव के ज़मीनदार और मआफ़ी दार मशहूर थे उन्हें हर क़िस्म की आसानियाँ अता कीं | वो बढ़हेच क़बीला के पठान थे | वो सारे रोहेलखण्ड के वाहिद (तनहा एक) मुफ़्ती थे शहर के सरदार रईसों में उनका शोमार था | उनके वालिदे माजिद मौलाना रज़ा अली खान साहब से अहले शहर को वालिहाना अक़ीदत थी | वो मादरज़ाद वली मशहूर थे | वही इस ख़ानदान में दीनी दौलत लाए | मौलाना नक़ी अली खान अपने खानदान और एहबाब में सुल्ताने अक़्ल मशहूर थे | आला हज़रत की वलिदाह ज़ेरे अक़्ल कहलाईं |
अख़लाक़ व आदात :- आपके अख़लाक़ निहायत आला थे | पूरी ज़िन्दगी इत्तिबाए रसूल और इश्क़े रसूल में गुज़री अपनी ज़ात के लिए कभी किसी से इंतिकाम नहीं लिया | दूसरों को भी यही हुक्म देते | सलाम में पहिल करते कभी क़िब्ले की तरफ पाऊँ नहीं करते और एहतिराम की वजह से कभी क़िब्ले की तरफ नहीं थूकते गरीब व मिस्कीन मुहताज और तलबा के साथ इंतिहाई शफ़क़त से पेश आते थे गुरूर तकब्बुर घमंड नहीं करते थे खुदा की रज़ा के लिए खिदमते दीन आपका मश्ग़ला (काम) था किसी मक़सद या ज़ाती फायदे का मामूली शाइबा भी नहीं था |
इश्क़े रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम :- इमामुल अतक़िया सच्चे आशिक़े रसूल थे क्यूंकि इश्क़े रसूल ही इताअते इलाही का जरिया है | इश्क़े रसूल के बगैर बंदा मुहब्बते इलाही से महरूम रहता है | इमामुल अतक़िया को सरवरे दो जहां सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्चा इश्क़ था | आपके हर क़ौल व अलम से इश्क़े रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की झलकियां दिखती थीं | आपको हुज़ूरे अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़बरदस्त मुहब्बत लगाओ वारफतगी थी | आप तमाम उमर पूरे आलम को इत्तिबाए नबवी में ढालने की कोशिश करते रहें | अवाम, व ख्वास, उलमा, व दानिशवर, गरीब व सरमाया दार , गरज़ के सब के सामने आपकी गुफ्तुगू का मौज़ो हुज़ूर अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का इश्क़ो मुहब्बत होता और इत्तिबा की तलक़ीन होती | एक बार आप बीमार होगए जिसकी वजह से काफी नक़ाहत हो गई | महबूबे रब्बुल आलामीन ने अपने फिदाई के जज़्बए मुहब्बत की लाज रखी और ख्वाब ही में एक पियाले में दवा इनायत फ़रमाई जिसके पीने से इफ़ाक़ा हुआ और वो जल्द ही बा सेहत हो गए |
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बैअत और खिलाफत :- आप अपने खलफ़े अकबर इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह और ताजुल फुहूल अल्लामा अब्दुलक़ादिर बदायूनी के साथ 5 जमादिउल आखिर 1294 हिजरी को खानकाहे बरकातिया मरेहरा शरीफ हाज़िर हुए | और ख़ातिमुल अकाबिर सय्यदना शाह आले रसूल क़ादरी बरकाती रहमतुल्लाह अलैह से शरफ़े बैअत हासिल किया | इमाम अहमद रज़ा भी इसी मजिसल में सय्यदना शाह आले रसूल क़ादरी बरकाती रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत हुए | इसी मजलिस में आपने दोनों को खिलाफत व इजाज़त से सरफ़राज़ फ़रमाया |
इज़ाज़ते हदीस :- इमामुल अतक़िया मौलाना नक़ी अली खान को सनादे हदीस 4 सिलसिलों से हासिल थी:
(1) सय्यदना शाह आले रसूल मरेहरवी से, और वो अपने मशाइख से बयान करते हैं, जिन में शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी भी हैं | और वो अपने वालिद शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी से |
(2) अपने वादिल इमामुल उलमा मौलाना रज़ा अली खान से, वो मौलाना ख़लीलुर रहमान मुहम्मदाबादी से, वो फ़ाज़िल मुहम्मद से संदेलवी से, वो अबुल अयाश बेहरुल उलूम अल्लामा मुहम्मद अब्दुल अली से |
(3) सय्यद अहमद बिन ज़ैनी दहलान मक्की से, और वो शैख़ उस्मान दंयाती से |
(4) आपको शैख़ मुहक़िक़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी की तरफ से भी हदीस मुसलल बिल अफ्फालियत की सनद हासिल थी |
हज व ज़ियारत :- आप 26 शव्वालूल मुकर्रम 1295 हिजरी को हज व ज़्यारत के लिए रवाना हुए | ये वो दौर था के आप शदीद अलील (बीमार) थे और इंतिहाई कमज़ोरी |
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फतवा नवेसी (फतवा लिखना) :- 13 वि सदी हिजरी में इमामुल अतकिया के वालिदे माजिद इमामुल उलमा मौलाना रज़ा अली खान ने 1246 हिजरी में मुताबिक़ 1831 ईस्वी में सर ज़मीने बरेली पर मसनदे इफ्ता की बुनियाद रखी, और 34 साल तक फतवा नवेसी (फतवा लिखना) का काम बहुसने खूबी अंजाम दिया | इमामुल उलमा ने अपने फ़रज़न्दे सईद मौलाना नक़ी अली खान को खुसूसी तालीम देकर मसनदे इफ्ता पर क़ाइम किया | आपने मसनदे इफ्ता पर रौकन अफ़रोज़ होने के बाद से 1297 हिजरी तक न सिर्फ फतवा नवेसी का फ़रीज़ा अंजाम दिया | मुआसिर उलमाओं फुक़्हा से अपनी इल्मी बसीरत का लोहा मनवा लिया | मौलाना ने तवील अरसे तक मुल्क व बैरूनी मुल्क से आने वाले सवालात के जवाबात इंतिहाई फकीहाना बसीरत के साथ फिसबिलिल्लाह तहरीर किए | मौलाना के फतावा का मजमूआ तय्यार न हो सके इस लिए उनकी फतवा नवेसी पर सैर हासिल गुफ्तुगू नहीं की जा सकती लेकिन मुख्तलिफ उलूम पर आपकी तसानीफ़ इल्मों फ़ज़ल की शाहिद हैं आपकी आरा को उल्माए असर बतौर सनद तस्लीम करते थे और अपने फतवों पर इमामुल अतकिया की तस्दीक़ लाज़मी व ज़रूरी समझते थे | आपके पास आम तौर पर फतावा तासीक़ात के लिए आते थे | आप इंतिहाई एहतियात से काम लेते थे | अगर जवाब सही होते दस्तखत फरमा देते थे और अगर जवाब गलत होते तो अलैहदा कागज़ परजवाब लिख देते थे किसी की तहरीर से तआरुज़ (रोक मुखालिफत टकराओ ) नहीं फरमाते |
दरस और तदरीस :- आप एक बुलंद पाया आलिम और अपने वक़्त के बेमिसाल फ़क़ीह थे | आपने तसनीफ़ के साथ साथ दरस और तदरीस की तरफ भी तवज्जो दी | आपका दरस मशहूर था, तलबा दूर दूर से आपके पास इल्म की प्यास बुझाने आते थे आप बहुत ज़ौक़ शोक के लिए तलबा को तअलीम देते | मौलाना नक़ी अली खान क़ौम की फलाहो बेहबूदगी के लिए दीनी तालीम को लाज़मी क़रार देते थे आपने इस मक़सद के हुसूल के लिए बरेली में “मदरसा अहले सुन्नत” क़ाइम किया |
मुजाहिदे आज़ादी :- आपको मुल्क में अगंरेजी इक़्तिदार से सख्त नफरत थी | आपने ता हयात अंग्रेज़ों की मुखालिफत की और अंग्रेजी इक़्तिदार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए हमेशा लगे रहे | वतने अज़ीज़ को जबरो इस्तिब्दाद से निजात दिलाने के लिए आपने ज़बरदस्त क़लमी व लिसानी जिहाद किया | इस बारे में चन्दा शाह हुसैनी लिखते हैं: “मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह अगंरेज़ों के खिलाफ लिसानी व क़लमी जिहाद में मशहूर हो चुके थे | अंग्रेज़ मौलाना की इल्मी वजाहत व दबदबा से बहुत घबराता था, आपके साहबज़ादे मौलाना नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह भी अंग्रेज़ों के खिलाफ जिहाद में मसरूफ थे | मौलाना नक़ी अली खान हिंदुस्तान के उलमा में ऊंचा मक़ाम था | अंग्रेज़ों के खिलाफ आपकी अज़ीम क़ुर्बानियां हैं” |
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जिहाद कमेटी :- मुल्क से अंग्रेज़ों को बाहर करने के लिए हिन्दुस्तान के उलमा ने एक “जिहाद कमेटी” बनाई अंग्रेज़ों के खिलाफ जिहाद का आगाज़ करने के लिए “जिहाद कमेटी” ने जिहाद का फतवा सादिर किया जिसमे सिरे फेहरिस्त मौलाना रज़ा अली खान, अल्लामा फैले हक़ खैराबादी, मुफ़्ती इनायत अहमद काकोरी, मौलाना नक़ी अली खान बरेलवी, मौलाना अहमदुल्लाह शहीद, मौलाना सय्यद अहमद मशहदी बदायूनी सुम्मा बरेलवी, जज़ल बख्त खान वगैराह के असमाए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं | मौलाना नक़ी अली खान अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग करने के लिए मुजाहिदीन को मुनासिब मक़ामात पर घोड़े पहुंचाते थे | आपने अपनी अंग्रेज़ मुखालिफ तकारीर से मुसलमानो में जिहाद का जोश वलवला पैदा किया | बरेली का जिहाद कामयाब हुआ अंग्रेज़ों को मुसलमानो ने शिकस्त देकर बरेली छोड़ने पर मजबूर कर दिया |
आपके मशहूर व मारूफ शागिर्द :-
1 सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान
2 मौलाना हसन रज़ा बरेलवी
3 मौलाना बरकात अहमद
4 मौलाना हिदायत रसूल नखलावी
5 मुफ़्ती हाफ़िज़ अहमद बख्श अंलावी
6 मौलाना हश्मतुल्लाह खान
7 मौलाना सय्यद अमीर अहमद
8 मौलाना हकीम अब्दुस्समद साहब
आपका अक़्द (निकाह) और औलाद :- मौलाना नक़ी अली खान की शादी मिरज़ा असफ़ंद यार बेग लखनवी की दुख्तर हुसैनी खानम के साथ हुई थी | मिरज़ा असफ़ंद यार बेग का आबाई मकान लखनऊ में था मगर आप ने अहलो अयाल यानि अपने बाल बच्चों के साथ बरेली में सुकूनत (रिहाइश) इख़्तियार करली आप मस्लकन सुन्नी सहीहुल अक़ीदह थे |
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मौलाना नक़ी अली खान की औलादें :-
1 अहमदी बेगम ज़ौजा गुलाम दस्तगीर उर्फ़ मुहम्मद शेर खान, खल्फ मुहम्मद इमरान खान
2 आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान
3 उस्ताज़े ज़मन अल्लामा हसन रज़ा खान
4 हिजाब बेगम ज़ौजा वारिस अली खान
5 मौलाना मुहम्मद रज़ा खान
6 मुहम्मदी बेगम ज़ौजा किफ़ायतुल्लाह खान खल्फ अता उल्लाह खान
मुरीद की लाज रखली :- बयान किया जाता है के एक मर्तबा एक शख्स मौलाना नक़ी अली खान अलयहिर्रेह्मा की बारगाह में मुरीद होने की गरज़ से हाज़िर हुआ बैत होने के बाद उसने इल्तिजा की के हुज़ूर मुझे बाज़ारी औरतो के पास जाने की एक गन्दी आदत पद गई है आप मेरे लिए दुआ कीजियेगा आपने फ़रमाया के अब तू हमारा मुरीद हो गया है आइंदा अब वह न जाना इसके बाद वो शख्स वह से रुखसत हुआ अब उसकी आदत उसको उन बाज़ारी औरतो के पास जाने के लिए उभार रही है लेकिन ये अपने आप पर काबू रखे रहा कुछ ही दिनों में उसका सब्र टूटा और मुर्शिद की नसीहत को भुला कर वो उस बाज़ार में जा पहुंचा एक फाहिशा औरत के मकान में दाखिल होना ही चाहा के देखा के उसके पिरो मुर्शिद मौलाना नक़ी अली खान अलयहिर्रेह्मा का मुबारक असा दरवाज़े पर रखा हुआ है उसने दिल में सोचा के अरे मुझे तो बड़ी नसीहत कर रहे थे के ऐसी जगह पर मत जाना और खुद अंदर है? अब वो वहाँ से रुखसत हो कर दूसरी औरत के मकान पर पहुंचा जब अंदर जाना चाहा तो देखा के वही मुबारक असा इस दरवाज़े पर भी है वो बड़ा मुतअज्जिब हुआ और वह से भी निकला जब तीसरी बार किसी औरत के मकान पर गया तो वह भी दरवाज़े पर ये मुबारक असा को पाया अब उसकी समझ में सारी बात आ गई रोता हुआ दौड़ कर अपने पिरो मुर्शिद मौलाना नक़ी अली खान अलयहिर्रेह्मा की बारगाह में पहुंचा हज़रात ख़ानक़ाह में तशरीफ़ फरमा थे और वो मुबारक असा आपके हाथ में था उस शख्स को देख कर आप मुस्कुराए उस शख्स ने रोते हुए आपकी बारगाह में तौबा की इस तरह आपने अपने मुरीद को ज़िना जैसे अज़ीम गुनाह से बचा लिया..सुब्हान अल्लाह …
आपकी तसानीफ़ (किताब लिखना) और तालीफ़ :- आप तसनीफ़ और तालीफ़ के मैदान में भी मौलाना नक़ी अली खान अपने दौर में नादिरे रोज़गार मुसन्निफ़ थे | और तमाम उलूम में अपने हम असर उलमा पर फ़ौक़ियत रखते थे आपको मुतअद्दिद उलूम पर दस्तरस हासिल थी | आपने उर्दू, अरबी, फ़ारसी, में कई किताबें लिखीं हैं | आपने मुतअद्दिद उलूमो फुनून और मौज़ूआत पर किताबें लिखीं ख़ास तौर पर सिरते नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तालीम व ताअल्लुम मुआशिरत इल्मे तसव्वुफ़ वगैरह मौज़ूआत व मसाइल पर निहायत जामे और बुलंद 40 किताबें तसनीफ़ (लिखना) कीं आला हज़रत ने 26 किताबों का ज़िक्र किया है |
आपका विसाले पुरमलाल :- इमामुल अतकिया मुफ़्ती नक़ी अली खान 29 ज़िलकादा 1297 हिजरी को विसाल हुआ, अपने वालिदे माजिद इमामुल उलमा मौलाना रज़ा अली खान बरेलवी के पहलु में मेहवे इस्तिराहत हुए | आपका मज़ारे पुर अनवार मोहल्ला जसोली बरेली शरीफ में है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो अमीन |
(उसूलुर राशाद लिकमआ मबानिल फसाद)
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