अल्लाह अज़्ज़ावजल इरशाद फरमाता है

إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِى بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِّلْعَٰلَمِينَ
فِيهِ ءَايَٰتٌۢ بَيِّنَٰتٌ مَّقَامُ إِبْرَٰهِيمَ ۖ وَمَن دَخَلَهُۥ كَانَ ءَامِنًا ۗ وَلِلَّهِ عَلَى ٱلنَّاسِ حِجُّ ٱلْبَيْتِ مَنِ ٱسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِىٌّ عَنِ ٱلْعَٰلَمِينَ

Para No. 4 Surah Aale Imran Ayat 96.97

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- बेशक पहला घर जो लोगों के लिए बनाया गया वो है जो मक्का में है बरकत वाला और हिदायत तमाम जहान के लिए उसमे खुली हुईं निशानियां हैं मक़ामे इब्राहीम और जो शख्स उसमे दाखिल हो बा अमन है और अल्लाह के लिए लोगों पर बैतुल्लाह का हज है जो शख्स रास्ते के एतिबार से उसकी ताक़त रखे और जो कुफ्र करे तो अल्लाह सारे जहान से बेनियाज़ है |
और फरमाता है :-

وَأَتِمُّوا۟ ٱلْحَجَّ وَٱلْعُمْرَةَ لِلَّهِ ۚ 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- हज व उमराह को अल्लाह के लिए पूरा करो |

हदीस न. 1 :- सही मुस्लिम शरीफ में अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से मरवी, रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुत्बा पढ़ा और फ़रमाया ऐ लोगों तुम पर हज फ़र्ज़ किया गया लिहाज़ा हज करो | एक शख्स ने अर्ज़ की क्या हर साल या रसूलुल्लाह हुज़ूर ने सुकूत फ़रमाया यानि खामोश रहे | उन्होंने तीन बार यही कलमा कहा इरशाद फ़रमाया अगर में हाँ कह देता तो तुम पे वाजिब हो जाता और तुम से न हो सकता फिर फ़रमाया जब तक में किसी बात को बयान न करूँ तुम मुझ से सवाल न करो अगले लोग सवाल की ज़्यादती और फिर अम्बिया की मुखालिफत से हलाक हुए लिहाज़ा जब में किसी बात का हुक्म दूँ तो जहा तक हो सके उसे करो और जब में किसी बात से मना करूँ तो उसे छोड़ दो |

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हदीस न. 2 :- सही हैन में उन्ही से मरवी हुज़ूरे अक़दस सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ की गई कौन अमल अफ़ज़ल है फ़रमाया अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान, अर्ज़ की गई की फिर क्या? फ़रमाया हज्जे मबरूर यानि मक़बूल हज |

हदीस न. 3 :- बुखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसाई व इबने माजा उन्ही से मरवी रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाते हैं जिसने हज किया और रफ़्स यानि फाहिश कलाम न किया और फ़िस्क़ न किया तो गुनाहों से पाक होकर ऐसा लौटा जैसे उस दिन की माँ के पेट से पैदा हुआ

हदीस न. 4 :- बुखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसाई व इबने माजा उन्ही से रावी उमराह से उमराह तक उन गुनाहों का कफ़्फ़ारा है जो दरमियान में हुए और हज्जे मबरूर का वासब जन्नत ही है |

हदीस न. 5 :- मुस्लिम व इबने ख़ुज़ैमा वगैरह हुमा अम्र इबने आस रदियल्लाहु अन्हु से रावी रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हज उन गुनाहों को दफा कर देता है जो पहले हुए हैं |

हदीस न.6 व 7 :- इबने माजा उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा से रावी के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हज कमज़ोरों के लिए जिहाद है, और उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रदियल्लाहु अन्हा से इबने माजा ने रिवायत की कि मेने अर्ज़ की या रसूलल्लाह औरतों पर जिहाद? फ़रमाया उनके ज़िम्मे वो जिहाद है जिसमे लड़ना नहीं | हज व उमरा सही हैन में उन्ही से मरवी के फ़रमाया की तुम्हारा जिहाद हज है |

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हदीस न. 8 :- तिर्मिज़ी व इबने ख़ुज़ैमा व इबने हिब्बान अब्दुल्लाह इबने मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से रावी हुज़ूरे अक़दस सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं हज व उमराह मुहताजी और गुनाहों को ऐसे दूर करते हैं जैसे भट्टी लोहे को और चांदी और सोने के मैल को दूर करती है और हज्जे मबरूर का सवाब जन्नत ही है |

हदीस न. 9 :- बुखारी व मुस्लिम व अबू दाऊद व नसाई व इबने माजा वगैरा हुमा इबने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रावी की हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रमज़ान में उमरा मेरे साथ हज के बराबर है |

हदीस न. 10 :- बज़्ज़ार ने अबू मूसा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हाजी अपने घर वालों में से चार सौ की शफ़ाअत करेगा और गुनाहों से ऐसा निकल जाएगा जैसे उस दिन की माँ के पेट से पैदा हुआ |

हदीस न. 11 व 12 :- बेहकी अबू हुरैरह रदियल्लाहु अन्हु से रावी के मेने अबुल क़ासिम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते सुना जो खानए काबा के क़स्द से आया और ऊँट पर सवार हुआ तो ऊँट जो क़दम उठाता और रखता है अल्लाह तआला उसके बदले उसके लिए नेकी लिखता है और ख़ता को मिटाता है और दर्जे बुलंद फरमाता है | यहाँ तक की जब काबा मुअज़्ज़मा के पास पहुंचा और तवाफ़ किया और सफ़ा और मरवा के दरमियान सई की फिर सर मुंडाया या बाल कटवाए तो गुनाहों से ऐसा निकल गया जैसे उस दिन की माँ के पेट से पैदा हुआ | और इसी के मिस्ल अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लो अन्हु से मरवी |

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हदीस न. 13 :- इबने ख़ुज़ैमा व हाकिम इबने अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत करते हैं के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जो मक्का से पैदल हज को जाए यहाँ तक की मक्का वापस आए उसके लिए हर क़दम पर सात सौ नेकियां हरम शरीफ की नेकियों के मिस्ल लिखी जाएंगीं, कहा गया हरम की नेकियों की क्या मिक़्दार है फ़रमाया हर नेकी लाख नेकी है तो इस हिसाब से हर क़दम पर सात करोड़ नेकियां हुईं और अल्लाह अज़्ज़ावजल बड़े फ़ज़ल वाला है |

हदीस न. 14 से 16 :- बज़्ज़ार ने जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की के हुज़ूरे अक़दस रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हज व उमरा करने वाले अल्लाह के वफ्द हैं अल्लाह अज़्ज़ावजल ने उन्हें बुलाया ये हाज़िर हुए उन्होंने सवाल किया उसने इन्हें दिया | इसी के मिस्ल इबने उमर व अबू हुरैरा रदी यल्लाहु अन्हु से मरवी |

हदीस न. 17 :- बज़्ज़ार व तबरानी अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रावी के हुज़ूर ने फ़रमाया की हाजी की मगफिरत हो जाती है और हाजी जिस के लिए अस्तगफार करे उसके लिए भी |

हदीस न. 18 :- अस्बाहानी इबने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रावी के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं हज्ज फ़र्ज़ जल्द अदा करो के क्या मअलूम क्या पेश आए और अबू दाऊद व दारमी की रिवायत में यूं है जिसका हज का इरादा हो तो जल्दी करे |

हदीस न. 19 :- तबरानी औसत में अबूज़र रदियल्लाहु अन्हु से रावी के नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की दाऊद अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह !जब तेरे बन्दे तेरे घर की ज़्यारत को आयें तो उन्हें तू क्या अता फरमाएगा | हर ज़ाइर का उस पर हक़ है जिसकी ज़्यारत को जाए उनका मुझ पर ये हक़ है की दुनिया में उन्हें आफ़ियत दूंगा और जब मुझसे मिलेगें तो उनकी मगफिरत फरमा दूंगा |

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हदीस न. 20 :- तबरानी कबीर में और बज़्ज़ार इबने उमर रदियल्लाहु अन्हुमा से रावी कहते हैं में मस्जिदे मिना नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर था एक अंसारी और एक सक़फ़ी ने हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो कर सलाम अर्ज़ किया फिर कहा या रसूलल्लाह हम कुछ पूछने के लिए हुज़ूर की खिदमत में हाज़िर हुए हैं | हुज़ूर ने फ़रमाया अगर तुम चाहो तो में बता दूँ की क्या पूछने आए हो और अगर तुम चाहो तो में कुछ न कहूँ तुम्ही सवाल करो, अर्ज़ की या रसूलल्लाह हमे बता दीजिए, हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया तू इस लिए हाज़िर हुआ है की घर से निकल कर बैतुल हराम (काबा शरीफ) के इरादे से जाने को मुझ से पूछे और ये की उसमे तेरे लिए क्या सवाब है और तवाफ़ के बाद दो रकअतें पढ़ने को और यह की उसमे तेरे लिए क्या सवाब है और सफा व मरवा के दरमियान सई को और अरफ़ा की शाम के वुक़ूफ़ को और तेरे लिए उसमे क्या सवाब है और जिमार की रमी को और उसमे तेरे लिए क्या सवाब है और क़ुरबानी करने को और उसमे तेरे लिए क्या सवाब है और उसके साथ तवाफ़े ज़्यारत को | उस शख्स ने अर्ज़ की क़सम है उस ज़ात की जिसने हुज़ूर को हक़ के साथ भेजा इसी लिए हाज़िर हुआ था की इन बातों को हुज़ूर से दरयाफ्त करूँ, इरशाद फ़रमाया जब तो बैतुल हराम के क़स्द से घर से निकलेगा तो ऊँट के हर क़दम रखने और हर क़दम उठाने पर तेरे लिए नेकी लिखी जाएगी और तेरी खता मिटा दी जाएगी और तवाफ़ के बाद की दो रकअतें ऐसी हैं जैसे औलादे इस्माईल में कोई गुलाम हो उसके आज़ाद करने का सवाब और सफा व मरवा के दरमियान सई सत्तर गुलाम आज़ाद करने की मिस्ल है और अरफ़ा के दिन वुक़ूफ़ करने का हाल ये है की अल्लाह तआला आसमाने दुनिया की तरफ ख़ास तजल्ली फरमाता है और तुम्हे साथ मलाइका पर मुबाहात फरमाता है इरशाद फरमाता है मेरे बन्दे दूर – दूर से परागन्दा सर (बिखरे हुए बाल के साथ) मेरी रहमत के उम्मीदवार हो कर हाज़िर हुए अगर तुम्हारे गुनाह रेते की गिनती और बारिश के क़तरों और समंदर के झाग बराबर हों तो में सब को बख्श दूंगा | मेरे बन्दों वापस जाओ तुम्हारी मगफिरत हो गई और उसकी जिसकी तुम शफ़ाअत करो और जमरों पर रमी करने में हर कंकरी पर एक ऐसा कबीरा मिटा दिया जाएगा जो हलाक करने वाला है और क़ुरबानी करना तेरे रब के हुज़ूर तेरे लिए ज़खीरा है और सर मुंडाने में हर बाल के बदले में हसना लिखा जाएगा और एक गुनाह मिटाया जाएगा, उसके बाद खानए काबा के तवाफ़ का ये हाल है के तो तवाफ़ कर रहा है और तेरे लिए कुछ गुनाह नहीं एक फरिश्ता आएगा और तेरे शानो के दरमियान हाथ रखकर कहेगा के ज़मानाए आइंदा में अमल कर और ज़मानाए गुज़श्ता में जो कुछ था माफ़ कर दिया गया |

हदीस न. 21 :- अबू याला अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं के रसूलल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जो हज के लिए निकला और मर गया क़यामत तक उसके लिए हज करने वाले का सवाब लिखा जाएगा और जो उमरा के लिए निकला और मर गया उसके लिए क़यामत तक उमरा करने वाले का सवाब लिखा जाएगा और जो जिहाद में गया और मर गया उसके लिए क़यामत तक गाज़ी का सवाब लिखा जाएगा |

हदीस न. 22 :- तबरानी व अबू याला व दार क़ुतनी व बेहकी उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रदियल्लाहु अन्हा से रावी के रसूलल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं के जो इस राह में हज या उमरा के लिए निकला और मर गया उसकी पेशी नहीं होगी, न हिसाब होगा और उससे कहा जाएगा तू जन्नत में दाखिल हो जा |

हदीस न. 23 :- तबरानी जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रावी, नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये घर इस्लाम के सुतूनों में से एक सुतून है, फिर जिसने हज किया या उमरा वो अल्लाह के ज़िम्मे में है अगर मर जाएगा तो अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल फरमाएगा और घर को वापस करदे तो अज्र (सवाब) व गनीमत के साथ वापस करेगा |

हदीस न. 24 व 25 :- दारमी अबू उमामा रदियल्लाहु अन्हु से रावी के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसे हज करने से न ज़ाहिरी हाजत रुकावट बनी, न बादशाहे ज़ालिम न कोई ऐसा मर्ज़ जो हज के लिए रोक दे फिर बगैर हज के मर गया तो चाहे यहूदी होकर मरे या नसरानी होकर इसी की मिस्ल तिर्मिज़ी ने हज़रत रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की |

हदीस न. 26 :- तिर्मिज़ी व इबने माजा इबने उमर रदियल्लाहु अन्हु से रावी एक शख्स ने अर्ज़ की क्या चीज़ हज को वाजिब करती है फ़रमाया तोशा सवारी |

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हदीस न. 27 :- शरह सुन्नत उन्हीं से मरवी, किसी ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह हाजी को कैसा होना चाहिए? फ़रमाया: परागन्दा सर, मैला कुचैला | दुसरे ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह हज का कोन सा अमल अफ़ज़ल है? फ़रमाया बुलंद आवाज़ से लब्बैक कहना और क़ुरबानी करना किसी और ने अर्ज़ की सबील किया है? फ़रमाया तोशा और सवारी |

हदीस न. 28 :- अबू दाऊद व इनबे माजा उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा से रावी के मेने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते सुना जो मस्जिदे अक़्सा से मस्जिद हराम तक हज या उमरा का एहराम बांधकर आया, उसके अगले और पिछले गुनाह सब बख्श दिए जाएंगे या उसके लिए जन्नत वाजिब होगी |

मसाइले फ़िक़हीया :- हज नाम है एहराम बांधकर नवी ज़िल्हिज्जा को अरफ़ात में ठहरने और काबा मुअज़्ज़मा के तवाफ़ का और उसके लिए एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है के उसमे ये अफआल किए जाएं तो हज है | “सन 9 हिजरी में फ़र्ज़ हुआ” उसकी फ़र्ज़ियत क़तई है जो उसकी फ़र्ज़ियत का इंकार करे काफिर है मगर उमर भर में सिर्फ एक बार फ़र्ज़ है |
(आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार)

मसअला :- दिखावे के लिए हज करना और माले हराम से हज को जाना हराम है हज को जाने के लिए जिससे इजाज़त लेना वाजिब है बगैर उसकी इजाज़त के जाना मकरूह है मसलन माँ बाप अगर उसकी खिदमत के मुहताज हों और माँ बाप न हों तो दादा दादी का भी यही हुक्म है ये हज फ़र्ज़ का हुक्म है और नफ़्ल हो तो मुतलक़न वालिदैन की इताअत करे |
(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतर)

मसअला :- लड़का खूबसूरत अमरद हो तो जब तक दाढ़ी न निकले, बाप उसे जाने से मना कर सकता है | (दुर्रे मुख़्तार)

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मसअला :- जब हज के लिए जाने पर क़ादिर हो हज फ़ौरन फ़र्ज़ हो गया यानि उसी साल में और अब ताख़ीर गुनाह है और चंद साल तक न किया तो फ़ासिक़ है और उसकी गवाही मरदूद मगर जब करेगा अदा ही होगा क़ज़ा नहीं | (दुर्रे मुख़्तार)

मसअला :- माल मौजूद था और हज न किया फिर वो माल बर्बाद हो गया, तो क़र्ज़ लेकर जाए अगरचे जानता हो के ये क़र्ज़ अदा न होगा नियत ये हो के अल्लाह तआला क़ुदरत देगा तो अदा कर दूँ गा | फिर अगर अदा न हो सका और नियत अदा की थी तो उम्मीद है के मौला अज़्ज़ावजल इस पर पकड़ न फरमाए | (दुर्रे मुख़्तार)

मसअला :- हज का वक़्त शव्वाल से दसवीं ज़िल्हिज्जा तक है के इससे पेश्तर हज के अफआल नहीं हो सकते सिवा एहराम के की एहराम उससे पहले भी हो सकता अगरचे मकरूह है |
(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतर)

(बहारे शरीअत जिल्द अव्वल छटा हिस्सा)

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