“इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का अख़लाक़ो किरदार”

सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु दरमियाना क़द :- खूबसूरत, खुश गुफ्तार और शीरीं लहजे वाले थे, आप की गुफ्तुगू (बात चीत) फसीह व बलीग़ होती,
हज़रत अबू नोएम रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का चेहरा अच्छा, कपड़े अच्छे खुशबू अच्छी और मजलिस अच्छी होती, आप बहुत करम करने वाले और रफ़ीक़ों (दोस्त, साथी) बड़े गमख्वार थे,
उमर बिन हम्माद रहिमाहुल्लाह कहते हैं, आप खूब सूरत और खुश लिबास थे, कसरत से खुशबू इस्तिमाल करते थे, जब सामने से आते या घर से निकलते तो आप के पहुंचने से पहले आप की खुशबू पहुंच जाती, (खतीब बगदादी जिल्द 13)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमाहुल्लाह ने हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह से कहा, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ग़ीबत करने से कोसों दूर थे, मेने कभी नहीं सुना के उन्होंने अपने किसी मुखालिफ की ग़ीबत की हो, हज़रत सुफियान सौरी रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया, अल्लाह की क़सम! वो बहुत अक़्लमंद थे, वो अपनी नेकियों पर कोई ऐसा अमल मुसल्लत नहीं करना चाहते थे, जो उनकी नेकियों को ज़ाए कर दे,
हज़रत शरीक रहिमाहुल्लाह ने कहा, इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु निहायत खामोश तबअ, बहुत अक़्लमंद ज़हीन, लोगों से कम बहस करने वाले और कम बोलने वाले थे,
हज़रत ज़मरा रहिमाहुल्लाह के बक़ौल लोगों का इत्तिफ़ाक़ है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु दुरुस्तक (ठीक, सही) ज़बान थे, उन्होंने कभी किसी का ज़िक्र बुराई से न किया और जब उन से कहा गया, लोग आप पर एतिराज़ करते हैं? तो आपने फ़रमाया “ये अल्लाह पाक का फ़ज़ल है” जिस को चाहे अता करे,
हज़रत बोकेर बिन मअरूफ़ रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया: उम्मते मुहम्मदी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में कोई शख्स, मेने “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु” से बेहतर नहीं देखा,
एक बार खलीफा हारुन रशीद ने इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह से कहा, “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु” के अख़लाक़ बयान करो, उन्होंने फ़रमाया: “इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु हराम चीज़ों से खुद भी बचते और दूसरों को भी बचाने की बहुत कोशिश करते, बगैर इल्म के दीन में कोई बात कहने से बहुत डरते थे, वो अल्लाह पाक की इबादत में मुजाहिदा करते, वो दुनियादारों से दूर रहते और कभी किसी की खुशामद न करते वो अक्सर खामोश रहते और दीनी मसाइल में ग़ौरो फ़िक्र करते, इल्मों अमल में बुलंद रुतबा होने के बावजूद आजिज़ी व इंकिसारी का पैकर थे,
जब उन से कोई मसला पूछा जाता तो क़ुरआनो सुन्नत की तरफ रुजू करते अगर क़ुरआनो सुन्नत में उसकी नज़ीर न मिलती हक़ तरीक़े पर क़यास करते, आपने नफ़्स और दीन की हिफाज़त करते और राहे खुदा में इल्म और माल व दौलत खूब खर्च करते, उनका नफ़्स तमाम लोगों से बेनियाज़ था, लालच और हिर्स की तरफ उनका मैलान न था, वो ग़ीबत करने से बहुत दूर थे, अगर किसी का ज़िक्र करते तो भलाई से करते”,
ये सुन कर खलीफा ने कहा “सावलिहीन के अख़लाक़ ऐसे ही होते हैं” फिर उसने कातिब को ये औसाफ़ लिखने का हुक्म दिया और आपने बेटे से कहा, इन औसाफ़ को याद कर लो,

बीस 20, साल तक इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में :- इमामे ज़ुफर रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं: मुझे इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की खिदमत में बीस 20, साल से ज़्यादा मुद्दत गुज़ारने की सआदत मिली, मेने आप से ज़्यादा लोगों का खेर ख़्वाह हमदर्द और शफ़क़त करने वाला नहीं देखा, आप इल्म वालों को दिलों जान से चाहते, आप की दिनों रात अल्लाह पाक की याद के लिए वक़्फ़ थे, सारा दिन तालीमों दतरीस में गुज़रता, बाहर से आने वाले मसाइल का जवाब लिखते, बिलमुशफा मसाइल पूछने वालों की रहनुमाई फरमाते, मजलिस में बैठते तो वो दरसो तदरीस की महफ़िल होती और बाहर निकलते तो मरीज़ों की ईयादत, जनाज़ों में शिरकत, फ़क़ीरों मसाकीन की खिदमत,
रिश्तेदारों की खबर गिरी और आने वालों की हाजत रवाई में मशगूल हो जाते, रात इबादत में गुज़ारते और क़ुरआन मजीद की बहतीरीन अंदाज़ में तिलावत करते, यही मामूलात ज़िन्दगी भर क़ाइम रहे यहाँ तक के आप का विसाल हो गया,
मुआनी बिन इमरान अल मूसली रहिमाहुल्लाह कहते हैं:
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु में दस सिफ़ात ऐसी थीं के अगर उन में से एक भी अगर किसी में मौजूद हो तो वो अपनी कोम का सरदार बन जाता है, परहेज़गारी सच्चाई, फ़िक़्ही महारत, अवाम की खातिर मदारात और सखावत, पुर ख़ुलूस हमदर्दी लोगों को नफ़ा पहुंचाने में सबक़त, तवील ख़ामोशी फ़ुज़ूल गुफ्तुगू से परहेज़, गुफ्तुगू में हक़ बात कहना और मज़लूम की मुआविनत ख़्वाह वो दुश्मन हो या दोस्त,

हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु अन्हु इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में :- हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: में बीस साल तक इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में रहा, इस मुद्दत में मेने उन्हें ख़ल्वत और जल्वत में नग्गे सर और पाऊं फैलाए हुए नहीं देखा, एक बार मेने उन से अर्ज़ की उस्तादे मुहतरम अगर आप ख़ल्वत में पाऊं फैला लिया करें तो इसमें क्या मुज़ाइक़ा है? फ़रमाया ख़ल्वत में अदब मलहूज़ रखना जल्वत के बनिस्बत बेहतर और ज़्यादा ओला है,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु इल्मों फ़ज़ल की दुनिया में फ़िक़ाह पर बड़ी गहरी नज़र रखते थे, आप आपने अहबाब के लिए बेपनाह फ़िक्र मंद रहते, इल्मी हाजात पूरी करने में बड़ी तवज्जुह और क़ाबिलियत से हिस्सा लेते, जिसे पढ़ाते उसके दुःख दर्द में शरीक होते, गरीब और मसाकीन शागिर्दों का ख़ास ख़याल करते, आप बाज़ औक़ात लोगों को इतना देते के वो खुशहाल हो जाते, आप के पास अक़्ल व बसीरत के ख़ज़ाने थे,
इस के बावजूद आप मुनाज़िरों से इज्तिनाब फरमाते आप लोगों से बहुत कम गुफ्तुगू फरमाते, और उन से मसाइल में उलझते नहीं थे, बल्के ख़ामोशी इख़्तियार करते,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के हुस्ने अख़लाक़ के बारे में बेशुमार वाक़िआत क़ुत्बे कसीरा में मौजूद हैं, सच तो ये है के जिस तरह इल्मों अमल में बे मिस्ल व बे मिसाल शान रखते हैं, इसी तरह हुस्ने अख़लाक़ और सीरत व किरदार में भी उनका कोई सानी नहीं, इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह ने तो गोया समंदर को कूज़े में समो कर रख दिया,आप ने फ़रमाया:
अल्लाह पाक ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह को इल्मों अमल, सखावत व ईसार और दीगर क़ुरआनी अख़लाक़ से मुज़य्यन कर दिया था,

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इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह तिजारत (बिजनिस) का कारोबार करते थे :- रेशमी कपड़े के ताजिर (बिजनिस मेन) को अरबी ज़बान में अल खिज़ाज़ कहते हैं, इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह रेशमी कपड़े की तिजारत किया करते थे, आप की तिजारत बहुत बड़ी थी, लाखों का लेन देन था, अक्सर शहरों में कारिंदे मुक़र्रर थे, बड़े बड़े सौदागरों से मुआमला रहता था इतने बड़े कारोबार के बावजूद दियानत और एहतियात का इस क़द्र खयाल रखते थे के नाजाइज़ तौर पर एक आना भी उनकी आमदनी में दाखिल नहीं हो सकता था,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह चार सिफ़ात की वजह से एक कामिल और माहिर ताजिर (बिजनिस मेन) हुए,
1, आप का नफ़्स गनी था, लालच का असर किसी वक़्त भी आप पर ज़ाहिर न हुआ,
2, आप निहायत दर्जा अमानत दार थे,
3, आप माफ़ और दरगुज़र करने वाले थे,
4, आप शरीअत के एहकाम पर सख्ती से अमल पैरा थे,
इन औसाफ़े आलिया का इज्तिमाई तौर पर जो असर आप के तिजारती मुआमलात पर हुआ,
उसकी वजह से आप ताजिरों के तबके में अनोखे ताजिर हुए और बेश्तर अफ़राद ने आप की तिजारत को हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहू अन्हु की तिजारत से तश्बीह दी है, गोया आप हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहू अन्हु की तिजारत की एक मिसाल पेश कर रहे हैं, और आप उन तरीकों पर चल रहे हैं जिन पर सल्फ सावलिहीन का अमल था, आप माल खरीदते वक़्त भी इसी तरह अमानत दारी के तरीके पर आमिल रहते थे जिस तरह बेचने के वक़्त आमिल रहा करते थे,

इमामे आज़म रहिमाहुल्लह का तिजारत में तक़वा :- एक दिन एक औरत आप के पास रेशमी कपड़े का थान बेचने के लिए लाइ, आपने उससे दाम पूछे, उसने एक सौ बताए आप ने फ़रमाया ये कम हैं, कपड़ा ज़्यादा क़ीमती है उस औरत ने दो सौ बताए, आप ने फिर कहा ये दाम कम हैं, उसने फिर सौ और बढ़ाए यहाँ तक के चार सौ तक पहुंच गई, आप ने फ़रमाया ये चार सौ से ज़्यादा का है वो बोली तुम मुझ से मज़ाक़ करते हो? आप ने उससे पांच सौ देकर वो कपड़ा खरीद लिया, इस तक़वा और दियानत ने आप के कारोबार को बजाए नुकसान पहुंचाने के और चमका दिया,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कभी किसी बेचने वाली की गफलत और ला इल्मी से फाइदा नहीं उठाया, बल्के आप उनकी भलाई के लिए उनकी बेहतीरीन रहनुमाई फरमाते थे, आप आपने अहबाब से या किसी गरीब खरीदार से नफ़ा भी नहीं लिया करते थे, बल्के आपने नफ़ा में से भी उस को दे दिया करते,
एक बूढ़ी औरत आप के पास आई और उसने कहा मेरी ज़्यादा इस्तिाअत नहीं इस लिए ये कपड़ा जितने में आप को पड़ा है उस दाम पर मेरे हाथ बेच दें, आप ने फ़रमाया तुम चार दिरहम में ले लो, वो बोली में एक बूढ़ी औरत हूँ मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हो क्यों के ये क़ीमत बहुत कम है? आप ने फ़रमाया:
मेने दो कपड़े खरीदे थे और उन में से एक कपड़े को दोनों की क़ीमत खरीद से चार दिरहम कम पर बेचा चुका हूँ, अब ये दूसरा कपड़ा है जो मुझे चार दिरहम में पड़ा है, तुम चार दिरहम में इसे ले लो,
एक बार आप ने अपने कारोबारी शरीक को बेचने के लिए कपड़े के थान भेजे जिन में से एक थान में कोई नुक़्स और ऐब था, उससे फ़रमाया जब इस थान को बेचो तो इस का ऐब भी बता देना, उसने थान बेच दिया, गाहिक (कस्टूमर) से इस थान का ऐब बयान करना भूल गए, और ये भी याद न रहा के वो ऐब दार थान गाहिक (कस्टूमर) को बेचा था,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लह को जब इस बात का इल्म हुआ तो आप ने इन ताम थानों की क़ीमत तीस हज़ार दिरहम सदक़ा करदी और इस शरीक को अलग कर दिया,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह की ज़िन्दगी भर ये कोशिश रही के वो सय्यदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहू अन्हु के नक़्शे क़दम पर ज़िन्दगी बसर करें और आप के अक़वाल, अफआल, और खसाइल की पैरवी करें, क्यूंकि सय्यदना हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहू अन्हु तमाम सहाबाए किराम से अफ़ज़ल हैं,
हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से क़ुरबत इस लिए थी के वो मिज़ाज शनास आदाते रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे,
सहाबए किराम में सब से बढ़ कर आलिम, फ़क़ीह, मुत्तक़ी, परहेज़गार, इबादत गुज़र सखी, और जांनिसार आप ही थे, इसी तरह इमामे आज़म रहिमाहुल्लह “ताबईन में सब से ज़्यादा इल्म वाले सब से ज़्यादा मुत्तक़ी, सब से ज़्यादा सखी और सब से ज़्यादा जव्वाद थे,
हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहू अन्हु मक्का शरीफ में दुकानदारी करते थे कपड़े का कारोबार था, इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने कूफ़ा में कपड़े की हुज़ूर रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों की मारफअत और दीन की समझ भी हासिल की, इस तरह हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहू अन्हु का एक एक लम्हा आप ने अपनी ज़िन्दगी में शामिल कर लिया,

इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की सखावत :- इमामे आज़म रहिमाहुल्लह की बड़ी तिजारत का मक़सद सिर्फ दौलत कमाना नहीं था बल्के आप का मक़सद लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा पहुंचना था, जितने अहबाब मिलने वाले थे सब के वज़ीफ़े मुक़र्रर कर रखे थे, शीयूख और मुहद्दिसीन के लिए तिजारत के एक हिस्सा मख़सूस कर दिया था के उससे जो नफा होता था, साल के साल उन लोगों को पंहुचा दिया जाता था,
आप का आम मामूल था के घर वालों के लिए कोई चीज़ खरीदते तो उसी क़द्र मुहद्दिसीन, और उलमा, के पास भिजवाते, अगर कोई शख्स मिलने आता तो उसका हाल पूछते और हाजत मंद होता तो हाजत रवाई करते, शागिर्दों में जिस को तंग दस्त देखते उसकी घरेलू ज़रूरियात की किफ़ालत करते ताके वो इत्मीनान से इल्म की तकमील कर सके, बहुत से लोग जो मुफलिसी की वजह से इल्म हासिल नहीं कर सकते थे, आप ही की दस्तगीरी की बदौलत बड़े बड़े रुत्बों पर पहुंचे, उनमे,
“हज़रत इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह”,
बहुत मशहूर हैं,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लह तिजारत के नफ़ा को साल भर जमा करते और फिर उससे असातिज़ा और मुहद्दिसीने किराम की ज़रूरियात मसलन खुराक और लिबास वगैरह खरीद कर उन की खिदमत में पेश कर दिया करते, और जो रूपया नक़द बाक़ी रह जाता वो उन हज़रात की खिदमत में बतौर नज़राना पेश फरमाते, मेने अपने माल में से कुछ नहीं दिया, ये सब अल्लाह पाक का है, और उसने अपने फ़ज़्लो करम से आप हज़रात के लिए ये माल मुझे आता फ़रमाया है जो में आप की खिदमत में पेश कर रहा हूँ,
हज़रत सुफियान बिन उईना रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं: इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह बहुत ज़्यादा सदक़ा किया करते थे,
उनको जो भी नफ़ा होता वो दे दिया करते थे, मुझ को इस कसरत से तोहफे भेजते के मुझ को वहशत होने लगी, मेने उनके कुछ असहाब से इस का शिकवा किया तो उन्होंने कहा अगर तुम इन तुह्फ़ों को देखते हो जो उन्होंने ने सईद बिन अबी अरवाह रहिमाहुल्लह को भेजे हैं तो हैरान रह जाते हैं,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुहद्दिसीन में से किसी को भी नहीं छोड़ा के जिस के साथ भलाई न की हो,
हज़रत इमाम मुसइर रहिमाहुल्लह कहते हैं: जब भी अपने लिए या अपने घर वालों के लिए कपड़ा या मेवा खरीदते तो इसी मिक़्दार में कपड़ा या मेवा उलमा व मशाइख के लिए खरीदते,
हज़रत शरीक रहिमाहुल्लह ने कहा: जो शख्स आप से पढ़ता तो आप उस को नानो नफ़्क़ा की तरफ से बेनियाज़ कर दिया करते बल्के उस के घर वालों पर भी खर्च करते थे, और जब वो इल्म पढ़ लेता तो उससे फरमाते,
“अब तुम को बहुत बड़ी दौलत मिल गई है क्यूंकि तुम को हलालो हराम की पहचान हो गई है”
इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लह ने बयान क्या “आपने बीस साल तक मेरा और मेरे घर वालों का खर्च बर्दाश्त किया और में जब भी आप से कहता के मेने आप से ज़्यादा देने वाला नहीं देखा तो आप फरमाते हैं, अगर तुम मेरे उस्ताद इमाम हम्माद रहिमाहुल्लह को देख लेते तो ऐसा न कहते,
आप ने ये भी फ़रमाया अगर आप किसी को कुछ दिया करते थे अगर वो आप का शुक्रिया अदा करता तो आप को बड़ा मलाल होता था, आप उससे फरमाते शुक्र अल्लाह पाक का अदा करो के उसने ये रोज़ी तुम को दी है,
हज़रत अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहिमाहुल्लह फरमाते हैं: इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु सब से ज़्यादा अपने असहाब और हम नशीनो की ग़मख़्वारी और उनका इकराम करने वाले थे, इसी लिए आप मुहताजों का निकाह करा देते और तमाम इख़राजात खुद बर्दाश्त करते थे, आप हर शख्स की तरफ उसके मर्तबे के मुताबिक़ खर्च भेजते थे,
एक बार आप ने एक शख्स को अपनी मजलिस में फाटे पुराने कपड़े पहने देखा तो जब लोग जाने लगे आप ने उससे फ़रमाया तुम ज़रा ठहर जाओ फिर फ़रमाया मेरे जानमाज़ के नीचे जो कुछ है वो लेलो और उससे अपनी हालत सवांरो, उसने जानमाज़ उठा कर देखा तो वहां हज़ार दिरहम थे, उसने अर्ज़ की में दौलत मंद हूँ मुझे इस की ज़रुरत नहीं, तो आप ने फ़रमाया तुमने ये हदीस नहीं सुनी के अल्लाह पाक अपने बन्दों पर अपनी नेमतों का असर देखना चाहता है लेहाज़ा तुम अपनी हालत बदलो के तुम्हे देख कर किसी को तुम्हारे मुहताज होने का शुबह (शक) न हो और तुम्हारे दोस्त तुम्हारी खुशहाली से खुश हों,

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इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने दस हज़ार का क़र्ज़ माफ़ कर दिया :- एक बार आप किसी बीमार की इयादत को जा रहे थे, के रास्ते में एक शख्स आता दिखाई दिया जो आप का मक़रूज़ था, उसने दूर से आप को देख लिया और मुँह छुपा कर दूसरी तरफ जाने लगा, आप ने उसे देख लिया और नाम लेकर उस को पुकारा वो खड़ा हो गया आप ने क़रीब पहुंच कर फ़रमाया तुमने मुझ से रास्ता क्यों बदला?
उसने अर्ज़ की मेने आप का दस हज़ार दिरहम क़र्ज़ अदा करना है, इस शर्मिंदगी की वजह से आप का सामना नहीं करना चाहता था, आप ने फ़रमाया सुब्हानल्लाह: में खुदा को गवाह बना कर कहता हूँ मेने सारा क़र्ज़ माफ़ कर दिया तुम आइंदा मुझ से मुँह न छुपाना और मेरी वजह से जो तुम्हे निदामत और परेशानी हुई उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ,
ये रिवायत बयान कर के शफ़ीक़ रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं आप का ये हुस्ने सुलूक देख कर मुझे यक़ीन हो गया आप से बढ़ कर शायद ही कोई ज़ाहिद दरया दिल महिर्बान सखी हो,
एक बार हज के सफर में अब्दुल्लाह बिन बिक्र सहमी रहिमाहुल्लह का किसी आराबी से झगड़ा हो गया, वो इन्हें इमाम साहब की खिदमत में ले आया के ये मेरी रक़म अदा नहीं कर रहा है, उन्होंने इंकार किया आप ने आराबी से फ़रमाया तुम मुझे बताओ तुम्हारे कितने दिरहम बनते हैं? उसने कहा चालीस दिरहम बनते हैं, आप ने फ़रमाया के तअज्जुब है के लोगों के दिलों से अख़लाक़ो हमीयत का ज़ज्बा ख़त्म हो गया,
इतनी सी रक़म पर झगड़ा मुझे तो शर्म महसूस होती है फिर आपने अपने पास से चालीस दिरहम उस आराबी को दे दिए,
जब आप के साहबज़ादे हम्माद रहिमाहुल्लह ने उस्ताद से सूरह फातिहा पढ़ी तो आप ने उनके उस्ताद को एक हज़ार दिरहम नज़राना पेश किया वो कहने लगे हुज़ूर में ने कोनसा इतना बड़ा कारनामा सर अंजाम दिया है के आप इतनी ज़्यादा रक़म नज़राना दे रहे हैं, आप ने फ़रमाया मेरे बेटे को जो दौलत इनायत की है उसके सामने तो ये नज़राना बहुत हक़ीर है बखुद अगर मेरे पास इससे ज़्यादा होता तो वो भी पेश कर देता,
हज़रत वकी रहिमाहुल्लह कहते हैं: के इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने मुझ से फ़रमाया हज़रत अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का इरशादे गिरामी है चार हज़ार या इससे कुछ कम नफ़्क़ा है यानि साल भर के लिए इतना खर्च काफी है,
इस इरशादे गिरामी की वजह से चालीस साल में कभी चार हज़ार दिरहम का मालिक नहीं हुआ, जब भी मेरे पास चार हज़ार दिरहम से ज़्यादा माल आता है, में वो ज़्यादा माल राहे खुदा में खर्च कर देता हूँ और अगर मुझे ये डर न होता के में लोगों का मुहताज हो जाऊँगा तो एक दिरहम भी अपने पास न रखता,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने जिस ख़ुलूस के साथ अवाम और उल्माए किराम की खिदमत की, उसकी मिसाल नहीं मिलती जो लोग आप की मजलिस में यूं ही चंद लम्हे ससताने के लिए बैठ जाते वो भी आप की सखावत से फ़ैज़याब होते आप उनसे भी उनकी ज़रूरियात पूछते अगर कोई भूका होता तो उसे खाना खिलाते बीमार होता तो इलाज के लिए रक़म देते कोई हाजत मंद होता तो उसकी हाजत रवाई करते अगर कोई ज़बान से हाजत बयान न करता तो उसके कहे बगैर फरासते बातनि से उसका मक़सद जान लेते,

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इमामे आज़म रहिमाहुल्लह गरीब मुहताजों की बहुत मदद करते थे :- हज़रत अल्लामा मोफिक बिन अहमद मक्की रहिमाहुल्लह लिखते हैं: के कूफ़ा में एक माल दार शख्स था बड़ा खुद्दार और हया दार था, एक वक़्त ऐसा आया के वो गरीब और मुहताज हो गया, वो बाज़ार जा कर मज़दूरी करता, मशक़्क़त उठाता और सब्र करता, एक दिन उसकी बच्ची ने बाज़ार में ककड़ी देखि घर आ कर माँ से ककड़ी लेने के लिए पैसे मांगें मगर माँ उसकी ख्वाइश पूरी न कर सकी घर का सामान पहले ही बिक चुका था बच्ची रोने लगी,
उस शख्स ने इमामे आज़म रहिमाहुल्लह से मदद लेने का इरादा किया वो आप की मजलिस में आ कर बैठा मगर शर्मों हया की वजह से उसकी ज़बान न खुली,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह ने अपनी फिरासत से भांप लिया के इस शख्स को कोई हाजत है मगर हया की बिना पर ये सवाल नहीं कर रहा, जब वो शख्स वहां से उठ कर जाने लगा तो आप ने एक आदमी उसके पीछे रवाना कर दिया उस शख्स ने घर जा कर अपनी बीवी को बताया के में शर्मों हया की वजह से उस बाबरकत मजलिस में कुछ न मांग सका इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह के भेजे हुए आदमी ने वापस जा कर सब अहवाल इमाम साहब से बयान कर दिया,
जब रात का एक हिस्सा गुज़र गया तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह पांच हज़ार दिरहम की थैली लेकर उस शख्स के घर पहुंच गए और दरवाज़ा खटखटा कर फ़रमाया “में तुम्हारे दरवाज़े पर एक चीज़ रखे जा रहा हूँ इसे लेलो” ये फरमा कर आप वापस आ गए, उसके घर वालों ने थैली खोली तो उसमे पांच हज़ार दिरहम थे, और एक कागज़ के पुर्ज़े पर लिखा था तुम्हारे दरवाज़े पर अबू हनीफा ये थोड़ी सी रक़म लेकर आया था ये उसकी हलाल कमाई से है इसे इस्तिमाल में लाओ और वापस न करना,

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इमामे आज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे :- हमक बिन हिशाम रहिमाहुल्लह फरमाते हैं: इमामेआज़म रहिमाहुल्लह अपने वक़्त में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे, जब खलीफा ने उन को हुक्म दिया के वो उसके ख़ज़ाने के मतवल्ली और देखरेख करने वाले बन जाएं वरना वो उन्हें सज़ा देगा तो आप ने अल्लाह पाक के अज़ाब के बजाए खलीफा की इज़ा रसानी को क़बूल फरमा लिया,
क्यूंकि अक्सर बादशाह और हुक्काम सरकारी ख़ज़ाने का बेजा इस्तिमाल करते हैं और आप उनके इस नाजाइज़ काम में हिस्सेदार नहीं बनना चाहते थे,
हज़रत वकी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं: खुदा की क़सम इमामे आज़म रहिमाहुल्लह में बहुत बड़े अमीन व दियानत दार थे, उनके दिल में अल्लाह पाक की शान और उस का खौफ जलवागर था, और उसकी रज़ा पर किसी चीज़ को तरजीह नहीं देते थे,
हज़रत अब्दुल अज़ीज़ सनआनी रहिमाहुल्लह फरमाते हैं: जिन्होंने आप से फ़िक़्हा पढ़ी थी, फरमाते हैं, जब में हज पर गया तो अपनी एक हसीन कनीज़ इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास बतौरे अमानत छोड़ गए,
एक अरसे बाद जब में आप के पास हाज़िर हुआ तो मेने मालूम किया, हुज़ूर मेरी कनीज़ ने आप की कैसी खिदमत की? आप ने फ़रमाया मेने उससे कभी कोई काम न लिया और न ही उसे आँख उठा कर देखा क्यूंकि ये आप की अमानत थी,
एक दिहाती ने आप के पास एक लाख सत्तर हज़ार दिरहम बतौरे अमानत रखे मगर उसका इन्तिक़ाल हो गए, उसने किसी को बताया भी न था के मेने इस क़द्र रक़म इमामे आज़म के पास बतौरे अमानत रखवाई है,
उस के छोटे छोटे बच्चे थे, जब वो बालिग़ हुए तो इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनके वालिद की सारी रक़म लोटा दी और फ़रमाया के ये तुम्हारे वालिद की अमानत थी, आप ने ये अमानत ख़ुफ़िया (छुपाना) तौर पर लौटाई ताके इतनी बड़ी रक़म का लोगों को इल्म न हो और वो इन्हें तंग न करें,
इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह का तक़वा और अमानत व दियानत के बाइस उलमा और अवाम आप की बे हद इज़्ज़त किया करते थे जब के मुख़ालिफ़ीन व हसीदीन हसद की आग में जलते रहते और मुख्तलिफ हरबे इस्तिमाल कर के आप के मक़ाम व रुतबे को घटाने की मज़मूम कोशिश करते,

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एक बार एक शख्स के ज़रिए आप के पास एक थैली अमानत रखवाई गई जिस पर सरकारी मुहर भी लगी हुई थी, हासिदों की बदगुमानी ये थी के इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह कुछ अरसा बाद यक़ीनन इस रक़म का कारोबार में इस्तिमाल करलें और इसी में गिरफ्त की जाएगी,
चुनाचे इस मंसूबा बंदी के साथ एक शख्स ने कूफ़ा के क़ाज़ी इब्ने अबी लैला के पास दावा दाइर किया के इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने फुलां शख्स का माले तिजारत के लिए अपने बेटे को दे दिया है हालांके ये माले अमानत के तौर पर रखवाया था,
चुनाचे इमाम साहब को तलब किया गाया और बताया गाया के आप पर इलज़ाम है के आप ने फुलां शख्स की अमानत अपने कारोबार में लगा दी है, आप ने फ़रमाया ये इलज़ाम बिलकुल गलत है, इस की अमानत जूँ की तूँ मेरे पास मेहफ़ूज़ है अगर आप चाहें तो सरकारी नुमाइंदा भेज कर तस्दीक़ करलें, जब वो लोग आए तो आप के माल खाने में वो अमानत वैसी ही मौजूद पाई जिस पर सरकारी मुहर लगी हुई थी ये देख कर सब को निदामत हुई,
उन के लिए निदामत और हैरत की वजह ये भी थी के इमामे आज़म रहिमाहुल्लह के पास इतनी कसीर अमानतें जमा थीं जो उनके वह्मो गुमान में भी नहीं थी मुहम्मद बिन फ़ज़्ल रहिमाहुल्लह फरमाते हैं: जब इमामे आज़म का विसाल हुआ तो आप के पास लोगों की पांच करोड़ 50000000, की अमानते थीं जिन्हें आप के बेटे हज़रते हम्माद रहिमाहुल्लह ने लोगों को लौटाया,
ये बात गौर तलब है के ये वो रक़म है जो आप के विसाल के बाद मौजूद थी जब के आखरी उम्र में खलीफा की मुखालिफत के बाइस आप के लिए जेल की क़ैद और दूसरी सज़ाओं का इमकान बहुत बढ़ चुका था,
लिहाज़ा आप के तक़वा और बसीरत के बाइस ये बात यक़ीन से कही जा सकती है के आप ने उस ज़माने में इन अमानतों की ज़िम्मेदारियों से सबकदोश होने की कोशिस में कोई कसर न छोड़ी होगी लेकिन लोगों की अमानतों का सिलसिला इस क़द्र वसी था के उसे समेटते समेटते भी पांच करोड़ 50000000, की अमानते बच गईं जो बाद में आप के सबज़ादे ने उन लोगों तक पहुचाईं,
इससे ये अंदाज़ा होता है के इमामे आज़म रहिमाहुल्लह ने लोगों की अमानतों की हिफाज़त की हिफाज़त का एक अज़ीम निज़ाम काइम किया हुआ था,
दफ्तर, माल खाना, मुलाज़िम, खाता, रजिस्टर और हिसाब किताब करने वाले हिसाब जानने वाले यक़ीनन इस निज़ाम का हिस्सा होंगें, इस बिना पर ये कहा जा सकता है के लोगों के अमवाल और क़ौम की हिफाज़त और उनकी अस्ल मालिकों को वापसी यक़ीनी बनाने के लिए इमामे आज़म रहिमाहुल्लह मंसूबा बंदी और अमली इक़दामात कर के सूद से पाक खालिस इस्लामी बैंक का वाज़ेह तसव्वुर पेश कर चुके हैं,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- अल खैरातुल हिसान, तबीज़ुस सहीफ़ा फी मनाक़िबुल इमाम अबी हनीफा, इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु, सवानेह इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामुल अइम्मा अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, इमामे आज़म हज़रत मुजद्दिदे अल्फिसानी की नज़र में, इमामे आज़म और इल्मे हदीस, शाने इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह, सवानेह बे बहाए इमामे आज़म अबू हनीफा, अनवारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, हयाते इमाम अबू हनीफा, तज़किरातुल औलिया, ख़ज़ीनतुल असफिया, बुज़ुरगों के अक़ीदे, मिरातुल असरार, मनाक़िबुल इमामे आज़म,

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