इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की इल्मी अज़मतो रिफ़अत :- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु को जो इल्मी अज़मतो रिफ़अत बुलंदी अता फ़रमाई है वो बहुत कम लोगों के हिस्से में आई है:
हैरान कुन ख़्वाब: इमामे आज़म ने एक रात ख़्वाब देखा के आप नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र मुबारक खोल कर आप के जिसमे अक़दस की हड्डियां अपने सीने से लगा रहे हैं, ये ख्वाब देख कर आप पर सख्त घबराहट तारी हुई, ख़्वाबों के बहुत बड़े आलिम ज़लीलुलक़द्र ताबई इमाम मुहम्मद बिन सीरीन रदियल्लाहु अन्हु से इस ख़्वाब की ताबीर पूछी गई तो उन्होंने फ़रमाया:
“इस ख़्वाब का देखने वाला हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की अहादीस और सुन्नतों को दुनिया में फैलाएगा और उनसे ऐसे मसाइल बयान करेगा जिनकी तरफ किसी का ज़हन मुन्तक़िल नहीं हुआ” इस इशाराए गैबी से इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु को इत्मीनान और ख़ुशी हासिल हुई और इस ख़्वाब की ताबीर इस तरह अमली तौर पर सामने आई के आपने आलमे इस्लाम को अहादीसे नबवी से मआरिफ़ (आगाह, बा खबर) किया और ऐसे मसाइल बयान किए जिससे अक़्ल हैरान हुई,
(मनाक़िबुल इमामे आज़म)
अल्लामा हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने “अल खैरातुल हिसान” में ख़तीब के हवाले से नकल किया है: के हज़रत इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया: हदीस की तफ़्सीर और हदीस में जहाँ जहाँ फ़िक़्ही निकात हैं उनका जानने वाला मेने इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से ज़्यादा किसी को नहीं देखा,
मेने जब कभी उन का खिलाफ किया फिर गौर किया तो उनका मज़हब आख़िरत में ज़्यादा निजात देने वाला नज़र आया, एक बार हज़रत इमामे आज़म, हज़रत सुलेमान आमश के यहाँ थे, किसी ने कुछ मसाइल पूछे, उन्होंने इमामे आज़म से पूछा, आप क्या कहते हैं? हज़रत इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने उन सब के हुक्म बयान फरमाए, हज़रत सुलेमान आमश ने पूछा, कहाँ से ये कहते हो फ़रमाया आप ही की बयान की हुई उन अहादीस से और इन अहादीस को सनादों के साथ बयान कर दिया, इमाम आमश ने फ़रमाया:
बस बस मेने आप से जितनी अहदीसें सौ 100, दिन में बयान कीं आप ने वो सब एक दिन में सुना डालीं, में नहीं जनता के आप इन अहादीस पर अमल करते हैं,
“ए फुक़्हा की जमाअत आप लोग अत्तार हैं और हम दवाफरोश मगर ए अबू हनीफा तुम ने तो दोनों किनारे घेर लिए”
(मुक़द्दिमा नुज़हतुल कारी जिल 1)
हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: हज़रत याहया बिन मुआज़ राज़ी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख़्वाब में देखा तो अर्ज़ किया ए अल्लाह के रसूल आप को क़यामत के दिन कहाँ तलाश करूँ? फ़रमाया अबू हनीफा के इल्म में या उनके झंडे के पास, हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में मुल्के शाम में मस्जिदे नबवी शरीफ के मुअज़्ज़िन हज़रत बिलाल हब्शी रदियल्लाहु अन्हु के रौज़ए मुबारक के सिरहाने सोया हुआ था, ख़्वाब में देखा के में मक्का शरीफ में हूँ और हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बुज़रुग को आगोश में बच्चे की तरह लिए हुए बाबे शैबा से दाखिल हो रहे हैं मेने मुहब्बत में दौड़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दम मुबारक को बोसा दिया,
में इस हैरतो तअज्जुब में था के ये बुाज़रुग कौन हैं? हुज़ूर को अपनी मोजिज़ाना शान से मेरी बातनि हालत का अंदाज़ा हुआ तो हुज़ूर ने फ़रमाया ये तुम्हारे इमाम हैं जो तुम्हारी ही विलायत के हैं, यानि इमामे आज़म अबू हनीफा, इस ख़्वाब से ये बात मुन्कशिफ़ हुई के आप का इज्तिहाद हुज़ूरे अकरम की मुताबिअत में बे खता है, इस लिए के वो हुज़ूर के पीछे खुद नहीं जा रहे थे बल्के हुज़ूर खुद उन्हें उठाए लिए जा रहे थे,
क्यूंकि वो बाक़ीयुस सिफ़त यानी तकल्लुफ व कोशिश से चलने वाले नहीं थे बल्के फानियुस सिफ़त और शरई एहकाम में बाक़ी व क़ाइम थे, जिस की हालत बाक़ीयुस सिफ़त होती है वो ख़ताकार होता है या राहे याब, लेकिन जब उन्हें ले जाने वाले हुज़ूर खुद हैं तो वो फानियुस सिफ़त हो कर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिफ़त बक़ा के साथ क़ाइम हुए चूंकि हुज़ूर से खता का सुदूर का इमकान ही नहीं इस लिए जो हुज़ूर के साथ क़ाइम हो उससे खता का इमकान ही नहीं ये एक लतीफ़ इशारा है,

इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं : – इमामे मुजतहिद मुतलक़ आलम क़ुरैश सय्यदना इमाम शाफ़ई रदियल्लाहु अन्हु ने जब मज़ारे मुबारक सय्यदना इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के हुज़ूर नमाज़ सुबह पढ़ाई, दुआए क़ुनूत न पढ़ी, न बिस्मिल्लाह व अमीन जिहर से कहे न गैर तहरीमा में रफायदैन फ़रमाया, उन्होंने खुद अपना मज़हब तर्क किया और उज़्र भी बयान फ़रमाया के मुझे इमामे अजल इतने बड़े इमाम से शर्म आती है के उनके सामने उनका खिलाफ करूँ, (फतावा रज़विया जिल्द तीन)
इसी में है:
इमाम अब्दुल वहाब शुआरानी अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सय्यदी अली ख्वास शाफ़ई से रवि के इमामे आज़म अबू हनीफा के मदारिक इतने दक़ीक़ हैं के अकाबिर औलिया के कश्फ़ के सिवा किसी के इल्म की वहां तक पहुंच मालूम नहीं होती,

इमामे आज़म अबू हनीफा का इल्मे कश्फ़ व मुशाहिदा :- औलियाए किराम का एक रूहानी वस्फ़ “कश्फ़ व मुशाहिदा” है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने हबीब के सदक़े व तुफ़ैल हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु को इस वस्फ़ से भी वाफिर हिस्सा अता फ़रमाया है, आप जिस के लिए जो बात इरशाद फ़रमा देते वो हो कर रहती क़ुतुब तवारीख में इस के बेशुमार शवाहिद मौजूद हैं, तारीखे बग़दाद में है:
इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह बहुत गरीब घराने से ताअल्लुक़ रखते थे, उनकी वालिदा अक्सर उन्हें दर्स (सबक़) से उठा कर ले जाती थीं ताके कुछ कमाकर लाएं, एक दिन इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने उनकी वालिदा से फ़रमाया: “तुम इसे इल्म सीखने दो में देख रहा हूँ के एक दिन ये रोगने पिस्ता के साथ फालूदा खाएगा” ये सुन कर वो बड़बड़ाती हुई चली गईं, एक अरसे के बाद एक दिन खलीफा हारुन रशीद के दस्तर ख्वान पर फालूदा पेश हुआ, खलीफा ने इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह की खिदमत में पेश किया, पूछा ये किया हैं? खलीफा ने कहा फालूदा और रोगने पिस्ता, ये सुन कर आप हंस पड़े, हसने की वजह पूछी, तो मज़कूरा वाकिया बयान फ़रमाया, खलीफा ने कहा इल्मे दीन दुनिया में इज़्ज़त देता हैं अल्लाह पाक “इमामे आज़म” पर रहमत फरमाए वो बातिन की आँखों से वो कुछ देखते थे जो ज़ाहिरी आँखों से नज़र नहीं आता, सय्यदी अली ख्वास रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु जब वुज़ू का पानी देखते, लोगों के वुज़ू करने में गुनाहे सगीरा व कबीरा और मकरूह जो कुछ धुल कर इस में गिरा सब पहचान लेते, इसी लिए इमामे आज़म ने माए मुस्तामल के तीन हुक रखे, एक ये के निजासते ग़लीज़ा है, ये उस सूरत में है के इस्तिमाल करने वाले ने कोई गुनाहे कबीरा किया हो, दोम निजासते ख़फ़ीफ़ा है, ये उस सूरत में है के गुनाहे सगीरा का धोवन हो, तीसरा पाक है मगर पाक नहीं कर सकता, ये उस सूरत में है के मकरूह का धोवन हो, इमामे आज़म के मुक़ल्लिदीन ने इससे ये समझा के ये तीनो हुक्म हर हाल में हैं, हालांके के वो मुख्तलिफ अहवाल पर हैं, मीज़ानुश शरीअतुल कुबरा में है:
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इमामे आज़म और उनके मानने वालों से राज़ी हो और उनपर अपनी रहमत नाज़िल फरमाए के उन्होंने निजासत की दो किस्मे कीं, “ग़लीज़ा और ख़फ़ीफ़ा” क्यूंकि गुनाह दो ही किस्म के हैं, कबीरा हुए सगीरा, इमाम अब्दुल वहाब शोआरानी रहमतुल्लाह अलैह “मीज़ान” में फरमाते हैं: के मेने अपने सरदार अली ख्वास रदियल्लाहु अन्हु को फरमाते हुए सुना, आदमी को कश्फ़ हासिल हो तो लोगों के वुज़ू और ग़ुस्ल के पानी को निहायत घिनोना और बदबूदार पाए तो कभी उससे तहारत हासिल करने को उस का दिल न चाहे, जैसे थोड़े पानी में कुत्ता या बिल्ली मर जाए तो इंसान का दिल हरगिज़ उससे तहारत हासिल करने को न चाहे, इमाम अब्दुल वहाब शोआरानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के इस पर मेने उन से अर्ज़ की के उससे तो मालूम होता हैं के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु व इमाम अबू युसूफ माए मुस्तामल को नाजिस व नापाक मानते हैं क्यूंकि वो कश्फ़ वाले थे, फ़रमाया हाँ दोनों आज़म अहले कश्फ़ से थे,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु जब लोगों के वुज़ू का पानी देखते तो बे ऐनी ही उनके गुनाहों को पहचान लेते जो धुल कर पानी में गिरे और जुदा जुदा जान लेते के ये धोवन गुनाहे कबीरा के हैं, ये सगीरा के, ये मकरूह का ये ख़िलाफ़े औला का, बिला तफ़ावुत इसी तरह जैसे कोई अजसाम को देखे, एक रिवायत में हैं: के इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु जामा मस्जिद कूफ़ा के हौज़ पर तशरीफ़ ले गए, एक शख्स वुज़ू कर रहा था, उसका पानी जो टपका, इमामे आज़म ने उस पर नज़र फ़रमाई और उससे फ़रमाया ए मेरे बेटे माँ बाप को तकलीफ देने से तौबा कर, उसने फ़ौरन कहा में अल्लाह पाक से तौबा करता हूँ, एक और शख्स का धोवन देख कर आपने फ़रमाया ए भाई ज़िना से तौबा कर उसने कहा मेने तौबा की, एक और शख्स का धोवन देख कर आप ने फ़रमाया शराब पीने और मज़ा मीर सुनने से तौबा कर, उसने कहा में ताइब हुआ, (फतावा रज़विया जिल्द अव्वल 245)

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का ज़ुहदो तक़वा और परहेज़गारी :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबरक रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मेने इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से ज़्यादा मुत्तक़ी (परहेज़गार) किसी को न देखा, तुम ऐसे शख्स की क्या बात करते हो जिस के सामने कसीर माल पेश किया गया और उसने इस माल को निगाह उठा कर भी नहीं देखा, इस पर उसे कोड़ों से मारा गया मगर उसने सब्र किया और जिसने अल्लाह पाक की रज़ा की खातिर मुसीबतों को बर्दाश्त किया मगर मालो दौलत क़बूल न किया बल्के दूसरों की तरह जाह व माले दुनिया की कभी तमन्ना और आरज़ू भी न की हालांके लोग इन चीज़ो के लिए सौ सौ जतन हीले बहाने करते हैं, बखुदा आप इन तमाम उलमा के बर अक्स थे जिन्हें हम माल व इनाम के लिए दौड़ता देखते हैं, ये लोग दुनिया के तालिब हैं और दुनिया इन से भागती है जब के इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह वो थे के दुनिया उनके पीछे आती थी और आप इससे दूर भागते थे, (मनाक़िबुल इमामे आज़म साफा 228)
यज़ीद बिन हारुन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:
के मेने एक हज़ार 1000, “शीयूख” से इल्म हासिल किया मगर मेने उनमे “इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह” से ज़्यादा न तो किसी को मुत्तक़ी पाया और न अपनी ज़बान का हिफाज़त करने वाला,
(अल खैरातुल हिसान)
हज़रत शफ़ीक़ बिन इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: हम एक दिन इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के पास मस्जिद में बैठे हुए थे के अचानक छत से एक सांप आप के सर पर लटकता दिखाई दिया, सांप देख कर लोगों में भगदड़ मच गई,
सांप सांप कह कर सब लोग भागे, मगर इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु न तो अपनी जगह से उठे और न ही उनके चेहरे पर कोई परेशानी के आसार नज़र आए, इधर सांप सीधा इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की गोद में आ गिरा, अपने हाथ से झटक कर उसे एक तरफ फेंक दिया मगर खुद अपनी जगह से न हिले, उस दिन से मुझे यक़ीन हो गया के आप को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की ज़ात पर कामिल यक़ीन और पुख्ता (पक्का) एतिमाद भरोसा है,

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु 30, साल तक एक रकअत में पूरा क़ुरआन पढ़ते रहे :- अल्लामा इब्ने हजर रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का पूरी रात इबादत करना और तहज्जुद पढ़ना तवातुर से साबित है, और यही वजह है के कसरते क़याम की वजह से आप को विद यानि कील कहा जाता था,
“आप 30, साल तक एक रकअत में पूरा क़ुरआन पढ़ते रहे” और आपके बारे में मरवी है के,
आप ने 40, चालीस साल तक ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ी,
इमामे आज़म रदियल्लाहू अन्हु के तमाम रात इबादत करने का बाइस ये वाक़िआ हुआ: के एक बार आप कहीं तशरीफ़ ले जा रहे थे के रास्ते में आप ने किसी शख्स को ये कहते सुना “ये इमाम अबू हनीफा हैं जो पूरी रात अल्लाह की इबादत करते हैं और सोते नहीं”
आप ने इमाम अबू युसूफ रहमतुल्लाह अलैह से फ़रमाया, सुब्हानल्लाह! क्या तुम खुदा की शान नहीं देखते के उसने हमारे लिए इस किस्म का चर्चा कर दिया और ये क्या बुरी बात नहीं के लोग हमारे मुतअल्लिक़ वो बात कहें जो हम्मे न हो, लिहाज़ा हमें लोगों के गुमान के मुताबिक बनना चाहिए खुदा की कसम! मेरे बारे में लोग वो बात नहीं कहेंगें जो में नहीं करता, चुनाचे आप पूरी रात इबादत व दुआ और आहो ज़ारी में गुज़ारने लगे,

इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु रमज़ानुल मुबारक में 62, क़ुरआन शरीफ पढ़ते थे :- इमाम अबू युसूफ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु रात के वक़्त एक क़ुरआने पाक नवाफिल में ख़त्म किया करते थे, “रमज़ानुल मुबारक में एक क़ुरआन सुबह और एक क़ुरआन असर के वक़्त ख़त्म करते थे” और आम तौर पर रमज़ान के दौरान “62, क़ुरआन शरीफ ख़त्म कर लेते थे”
“इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने 55, हज किए”

आखरी हज काबे शरीफ के मुजाविरों से इजाज़त लेकर काबे के अंदर चले गए और वहां आप ने दो रकअत में पूरा क़ुरआन शरीफ इस तरह पढ़ा के पहली रकअत में सीधे पाऊँ पर ज़ोर रखा और उलटे पैर को दबने नहीं दिया, इसी तरह आप ने इस हाल में आधा क़ुरआन तिलावत किया फिर दूसरी रकअत में उलटे पाऊँ पर ज़ोर रखा अगरचे दूसरा पैर भी ज़मीन पर था मगर इस पर वज़न नहीं दिया, इस तरह आप ने बाक़ी आधे क़ुरआन की तिलावत (पढ़ना) पूरी की,
नमाज़ के बाद रोते हुए अल्लाह रब्बुल इज़्जत की बारगाह में अर्ज़ की, “ए मेरे रब मेने तुझे पहचाना है जैसा के पहचानने का हक़ है लेकिन में तेरी ऐसी इबादत न कर सका जैसा के इबादत का हक़ था, मौला तू मेरी खिदमत की कमी को मारफअत के कमाल की वजह से बख्श दे, “तो ग़ैब से आवाज़ आई” “ए अबू हनीफा! तुमने हमारी मारफअत हासिल की और खिदमत में ख़ुलूस का मुज़ाहिरा किया इस लिए हम ने तुम्हे बख्श दिया और क़यामत तक तुम्हारे मज़हब पर चलने वालों को भी बख्श दिया”, सुब्हानल्लाह!

इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु सूफ़िया व औलियाए किराम की नज़र में :- इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के इल्मों फ़ज़्ल, अक़्लो ज़हानत, ज़ुहदो तक़वा, मुहद्दिसाना अज़मत और आप की बेमिसाल फ़क़ाहत के बारे में ज़लीलुलक़द्र अइम्मए दीन व मुहद्दिसीने किराम और औलियाए इज़ाम के इरशादात मुलाहिज़ा करें,
हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं इमामे तरीक़त इमामुल अइम्मा, मुक़्तदाए अहले सुन्नत, शरफ़े फुक़्हा, उलमा की इज़्ज़त, सय्यदना इमामे आज़म नोमान बिन साबित खज़ाज़ी रदियल्लाहु अन्हु इबादात व मुजाहिदात और तरीक़त के उसूल में अज़ीमुश्शान मर्तबे पर फ़ाइज़ हैं,
अला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं: इमामे अजल सुफियान सौरी ने हमारे इमाम से कहा, आप को वो इल्म खुलता है जिससे हम सब गाफिल होते हैं और फ़रमाया, अबू हनीफा का खिलाफ करने वाला इस का मुहताज है के उन से मर्तबे में बड़ा और इल्म में ज़्यादा हो और ऐसा होना नामुमकिन है,

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पूरी दुनिया में इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की अक़्ल की तरह किसी की अक़्ल नहीं :- इमामे शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, पूरी दुनिया में किसी की अक़्ल, अबू हनीफा की तरह नहीं, इमाम अली बिन आसिम रहमतुल्लाह अलैह ने कहा, अगर अबू हनीफा की अक़्ल तमाम रूए ज़मीन के निस्फ़ यानि आधे आदमियों की अक़्लों से तौली जाए, अबू हनीफा की अक़्ल ग़ालिब आएगी,
इमाम अबू बकर बिन हबीश ने कहा, अगर इनके तमाम अहले ज़माना की इकठ्ठी अक़्लों के साथ वज़न करें तो एक अबू हनीफा की अक़्ल इन तमाम अइम्मा बड़े बड़े मुज्तहदीन व मुहद्दिसीन व अरिफीन में सब की अक़्ल पर ग़ालिब आए,
इमाम अब्दुल वहाब शारानी शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह अपने पिरो मुर्शिद सय्यदी अली ख्वास शाफ़ई से रावी के इमामे आज़म के मदारिक इतने दक़ीक़ हैं के बड़े बड़े औलिया के कश्फ़ के सिवा किसी के इल्म की वहां तक पहुंच मालूम नहीं होती, (फतावा रज़विया जिल्द 1)
इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु एक मुलाकात में इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की गुफ्तुगू से खुश हुए,
आप की पेशानी को चूमा और आप को अपने सीने से लगा लिया, दूसरे मौके पर फ़रमाया अबू हनीफा के पास ज़ाहिरी उलूम के ख़ज़ाने हैं और हमारे पास बातनि और रूहानी उलूम के ज़खाईर हैं,
हज़रत सय्यदना इमाम जाफर सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: ए अबू हनीफा! में देख रहा हूँ के तुम मेरे नाना जान रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नते ज़िंदा करोगे, तुम्हारी रहनुमाई लोगों को सही रास्ता मिलेगा, तुम्हे अल्लाह पाक की तरफ से ये तौफ़ीक़ हासिल होगी के ज़माने भर के उल्माए रब्बानी तुम्हारी वजह से सही मसलक इख़्तियार करेंगें,
इमाम मालिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ऐसे ज़हीन आलिम थे के अगर वो ये दावा करते के ये सुतून सोने का बना हुआ है तो वो दलाइल से साबित कर सकते थे के वाक़ई सोने का है, वो फ़िक़ह में निहायत बुलंद मक़ाम पर फ़ाइज़ थे, इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, जो शख्स दीन की समझ हासिल करना चाहे उसे चाहिए के इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह और उन के शागिर्दों से फ़िक़्हा सीखे क्यूंकि तमाम लोग फ़िक़्हा में इमामे आज़म के बच्चे हैं,
लोग फ़िक़्हा में इमामे आज़म के मुहताज हैं, मेने उन से ज़्यादा फ़क़ीह कोई नहीं देखा, जिस ने इमामे आज़म की क़ुतुब में ग़ौरो फ़िक्र न की, न वो इल्म में माहिर हो सकता है और नहीं फ़क़ीह बन सकता है, इमाम अहमद बिन हम्बल रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, अल्लाह पाक इमाम अबू हनीफा पर रहिम फरमाए वो बेपनाह परहेज़गार थे, उन्हें मंसबे क़ज़ा क़बूल न करने पर हुक्मरानो ने कोड़े लगाए मगर वो सब्रो इस्तक़लाल के साथ इंकार करते रहे,
हज़रत मुहम्मद बिन बिशर लिखते हैं: के में सुफियान सौरी के पास हाज़िर हुआ, उन्होंने पूछा कहा से आ रहे हो? में अर्ज़ की, इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के पास से, फ़रमाया यक़ीनन तुम ऐसे शख्श के पास से आ रहे हो जो रूए ज़मीन पर “सब से बड़ा फ़क़ीह है”
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: के किसी के लिए मुनासिब नहीं के वो ये कहे की ये मेरी राए है लेकिन इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु को ज़ेबा है के वो ये कहें के ये मेरी राए है,
इमाम ओज़ाई रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु मुश्किल से मुश्किल तर मसाइल को सब से ज़्यादा जानने वाले थे,
इमाम शोआबा रदियल्लाहु अन्हु फरमाते है: जिस तरह में जनता हूँ के आफताब रौशन है इसी यक़ीन के साथ में कह सकता हूँ के इल्म और अबू हनीफा हम नशीन और साथी हैं, (सीरते नोमान) आप को इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के विसाल की खबर मिली तो फ़रमाया: “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” अफ़सोस! कूफ़ा से इल्म की रौशनी बुझ गई, अब इन जैसा कोई पैदा नहीं होगा,
इमाम अबू युसूफ रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: मेरा तमाम इल्मे फ़िक़हा, इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के इल्मे फ़िक़हा के मुक़ाबले में ऐसे है जैसे दरियाए फुरात की मोजों के मुकाबले में एक छोटी सी नहर हो, मेने अहादीस की तफ़्सीर करने में इमामे आज़म से बढ़ कर किसी को नहीं देखा,
इमाम इब्ने खल्दून रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:
इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु इल्मे हदीस के बड़े मुज्तहदीन में से हैं, इस की एक दलील ये है के उनके मज़हब पर एतिमाद किया जाता है और रद्दो क़बूल में उन पर एतिबार किया जाता है,
इमाम ज़हबी शाफ़ई रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
इमाम अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु “इमामे आज़म” हैं, फकीहे इराक हैं,

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इमामे आज़म का विसाले पुरमलाल :- इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का विसाल दो 2, शबानुल मुअज़्ज़म एक सौ पचास 150, हिजरी में हुआ, शरह बुखारी मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के विसाल की तारिख इस तरह बयान की है 146, हिजरी में बगदाद को दारुस सल्तनत बनाने के बाद मंसूर ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु को बग़दाद बुल वाया, मंसूर उन्हें शहीद करना चाहता था, मगर जवाज़ क़त्ल के लिए एक बहाने की तलाश थी, उसे मालूम था के इमामे आज़म मेरी हुकूमत के किसी उहदे को क़बूल न करेंगें, उसने इमामे आज़म की खिदमत में उहदाए क़ज़ा पेश किया इमाम साहब ने ये कह कर इंकार कर दिया के में इस के लाइक नहीं, मंसूर ने झुंझला कर कहा तुम झूठे हो इमामे आज़म ने कहा, के अगर में सच्चा हूँ तो साबित के में उहदाए क़ज़ा के लाइक नहीं झूठा हूँ तो भी उहदाए क़ज़ा के लाइक नहीं, इस लिए के झूठे को क़ाज़ी बनाना जाइज़ नहीं,
इस पर भी मंसूर नहीं माना और क़सम खा कर कहा के तुम को क़बूल करना पड़ेगा, इमामे आज़म ने भी क़सम खाई के हरगिज़ नहीं क़बूल करूंगा, रबी ने गुस्से से कहा के इमामे आज़म तुम अमीरुल मोमिनीन के मुकाबले में क़सम खाते हो, इमामे आज़म ने कहा हाँ ये इस लिए के अमीरुल मोमिनीन को कसम का कफ़्फ़ारा अदा करना बा निस्बत मेरे ज़्यादा आसान है, इस पर मंसूर ने गुस्सा हो कर इमामे आज़म को क़ैद खाने में भेज दिया,
इस मुद्दत में मंसूर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु को बुला कर अक्सर इल्मी मुज़किरात करता रहता था, बग़दाद शरीफ चूँकि दारुस सलतन था, इस लिए तमाम दुनियाए इस्लाम के उलमा, फुक़्हा, उमरा, तुज्जार, आवाम ख्वास,बगदाद आते थे इमामे आज़म का गलगला चर्चा पूरी दुनिया में घर घर पहुंच चूका था, क़ैद खाने ने उनकी अज़मत और असर को बजाए कम करने के और ज़्यादा बढ़ा दिया, जेल खाने ही में लोग जाते और उन से फैज़ हासिल करते,
हज़रत इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह आखिर वक़्त तक क़ैद खाने में तालीम हासिल करते रहे, मंसूर ने जब देखा के इस तरह काम नहीं बना तो ख़ुफ़िया यानि छुप के से ज़हिर दिलवा दिया, जब इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु को ज़हिर का एहसास असर महसूस हुआ तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में सजदा किया, सजदे ही की हालत में आप की रूह परवाज़ कर गई और आप का विसाल हो गया, जितनी हों क़ज़ा एक ही सजदे में अदा हों,
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो”

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इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की नमाज़े जनाज़ा छेह 6, बार हुई :- विसाल की खबर बिजली की तरह पूरे बगदाद में फ़ैल गई, जो भी सुनता भागा हुआ चला आता काज़िए बगदाद अम्मारा बिन हसन ने गुसल दिया, गुसल देते जाते और ये कहते जाते वल्लाह तुम! सब से बड़े फ़क़ीह सब से बड़े आबिद सब से बड़े ज़ाहिद थे, तुम में सब खूबियां जमा थीं,
तुमने अपने जनशीनो को मायूस कर दिया है, के वो तुम्हारे मर्तबे को पहुंच सकें, ग़ुस्ल से फारिग होते हुए जम्मे ग़फ़ीर यानि भीड़ इकठ्ठा हो गई, पहली बार नमाज़े जनाज़ा में “पचास हज़ार” का मजमा शरीक था, इस पर भी आने वालों का तानता बंधा हुआ था,
आप की नमाज़ी जनाज़ा छेह 6, बार हुई, आखिर में इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे, हज़रत हम्माद ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई, असर के वक़्त दफ़न की नौबत आई, इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने वसीयत की थी के उन्हें ख़ेज़रान के क़ब्रिस्तान में दफ़न किया जाए, इस लिए के वो जगह ग़सब की हुई नहीं थी, इसी के मुताबिक उस के पूरबी हिस्से में मदफ़ून हुए, दफ़न के बाद बीस दिन तक लोग इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की नमाज़ी जनाज़ा पढ़ते रहे, ऐसे क़बूले आम की मिसाल पेश करने से दुनिया आजिज़ है, हज़रत इमामे शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,
में इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के तवस्सुल से बरकत हासिल करता हूँ, रोज़ाना उनके मज़ार की ज़्यारत को जाता हूँ, जब कोई हाजत पेश आती है तो उनके मज़ार के पास दो रकअत नमाज़ पढ़ कर दुआ करता हूँ तो मुराद पूरी होने में कोई देर नहीं लगती, इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का विसाल अस्सी 80, साल की उम्र में शअबान की दूसरी तारिख को एक सौ पचास 150, हिजरी में हुआ,
वाज़ेह हो के आप की उमर मुबारक, 80, साल इस सूरत में होगी जब आप की तारीखे विलादत, 70, हिजरी मानी जाए वरना मशहूर क़ौल में आप की उमर मुबारक 70, साल है,

आप का मज़ार शरीफ :- मुल्के इराक़ की राजधानी बगदाद शरीफ में है हर साल आप का उर्स होता है और हज़ारों अकीदतमंद हाज़िर हो कर फ़ैज़याब होते हैं,

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- अल खैरातुल हिसान, तबीज़ुस सहीफ़ा फी मनाक़िबुल इमाम अबी हनीफा, इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु, सवानेह इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामुल अइम्मा अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, इमामे आज़म हज़रत मुजद्दिदे अल्फिसानी की नज़र में, इमामे आज़म और इल्मे हदीस, शाने इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह, सवानेह बे बहाए इमामे आज़म अबू हनीफा, अनवारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, हयाते इमाम अबू हनीफा, तज़किरातुल औलिया, ख़ज़ीनतुल असफिया, बुज़ुरगों के अक़ीदे, मिरातुल असरार, मनाक़िबुल इमामे आज़म,

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