Iftar Ke Waqt Dua Qabool Hoti Hai

Iftar Ke Waqt Dua Qabool Hoti Hai – Iftar के वक़्त दुआ क़बूल होती है :- दो फ़रामीने मुस्तफा सलल्लाहो अलैहि वसल्लम बेशक रोज़ादार केलिए Iftar के वक़्त एक ऐसी दुआ होती है जो रद्द नहीं की जाती | (इबने मजा)
तीन शख्सों की दुआ रद्द नहीं की जाती एक बादशाहे आदिल की और दूसरा रोज़ादार की Iftar के वक़्त तीसरे मज़लूम की इन तीनो की दुआ अल्लाह तआला बादलों से भी ऊपर उठा लेता है और आसमान के दरवाज़े उसके लिए खुल जाते हैं और अल्लाह तआला फरमाता है मुझे मेरी इज़्ज़त की क़सम में तेरी ज़रूर मदद फ़रमाऊँगा अगरचे कुछ देर बाद |

हम खाने पिने में रह जाते हैं :- प्यारे रोज़ादारों अल्हम्दुलिल्लाह Iftar के वक़्त दुआ क़बूल होती है आह इस क़बूलियत की घडी में हमारा नफ़्स इस मौके पर सख्त आज़माइश में पढ़ जाता है क्योंकि उस वक़्त अक्सर हमारे आगे क़िस्म क़िस्म के फलों, कबाब, समोसो, पकौड़ी के साथ साथ गर्मी का मौसम हो तो ठन्डे ठन्डे शरबत के जाम भी मौजूद होते हैं, इधर सूरज डूब गया उधर खानो और शर्बतों पर हम ऐसे टूट पड़ते हैं के दुआ याद ही नहीं रहती दुआ तो दुआ हमारे कुछ इस्लामी भाई Iftar के दौरान खाने पीने में इसक़द्र मशगूल हो जाते हैं के उनको नमाज़े मगरिब की पूरी नमाज़ तक नहीं मिलती बल्कि मआज़ अल्लाह बाज़ तो इसक़द्र सुस्ती करते हैंके घर ही में Iftar करके वहीँ पर बगैर जमाअत नमाज़ पढ़लेते हैं तौबा तौबा |

Muslim TTS - Iftar Dua

ग़िज़ा सिफ्तार के बाद नमाज़ केलिए मुँह साफ करना ज़रूरी है :- बेहतर ये हैं के एक आध खजूर से Iftar करके फ़ौरन अच्छी तरह मुँह साफ़ करले और नमाज़े बा जमाअत में शरीक हो जाएँ आज कल मस्जिद में लोग फल पकौड़ी वगैरह खाने के बाद अच्छी तरह मुँह साफ़ नहीं करते यूं ही जमाअत में शरीक हो जाते हैं हालांकी ग़िज़ा का मामूली ज़र्रा या ज़ाइक़ा भी मुँह में नहीं होना चाहिए के मेरे आक़ा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं मुताअद्दिद आहादीस में इरशाद हुआ है के जब बंदह नमाज़ को खड़ा होता है

फरिश्ता उसके मुँह पर अपना मुँह रखता है ये जो पढता है उसके मुँह से निकल कर फरिश्ते के मुँह में जाता है उस वक़्त अगर खाने की कोई चीज़ उसके दांतों में होती है मलाइका को उससे ऐसी सख्त इज़ा होती है के और चीज़ से नहीं होती हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुममे से कोई रात को नमाज़ को खड़ा हो तो चाहिए के मिस्वाक करले क्योंकि जब वो अपनी नमाज़ में किरात करता है तो फरिशता अपना मुँह इसके मुँह पर रख लेता है और जो चीज़ इसके मुँह से निकलती है वो फ़रिश्ते के मुँह में दाखिल हो जाती है |

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दुआ के तीन फाइदे :- सरवरे मासूम हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम से रिवायत है: दुआ बन्दे की तीन बातो से खाली नहीं होती या उसका गुनाह बख्शा जाता है या दुनिया में उसे फाइदा हासिल होता है या उसके लिए आख़िरत में भलाई जमा की जाती है के जब बंदह आख़िरत में अपनी दुआओं का सवाब देखेगा जो दुनिया में मुस्तजाब यानि मक़बूल न हुई थीं तमन्ना करेगा काश दुनिया में मेरी कोई दुआ क़बूल न होती और सब यहीं यानि आख़िरत के वास्ते जमा रहतीं | (अल मुसतदरक जिल्द दो)

प्यारे इस्लामी भाइयों :- देखा अपने दुआ राइगा तो जाती ही नहीं इसका दुनिया में अगर असर ज़ाहिर न भी हो तब भी आख़िरत में अजर व सवाब मिल ही जाएगा लिहाज़ा दुआ में सुस्ती करना मुनासिब नहीं |
पहला फ़ायदाः ये है के अल्लाह तआला के हुक्म की पैरवी होती है के उसका हुक्म है मुझ से दुआ मांगा करो जैसा के पारा 24 सूरह मोमिन आयत नंबर 60 में इरशाद है:

ادعوني أَستَجِب لَكُم

  1. तर्जुमा कंज़ुल ईमान: मुझ से दुआ करो में क़बूल करूंगा |
  2. दुआ मांगना सुननत है के हमारे प्यारे आक़ा मुस्तफा जाने रहमत हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अक्सर औक़ात दुआ मांगते लिहाज़ा दुआ मांगने में इत्तिबाए सुननत का भी शरफ़ हासिल होगा |
  3. दुआ मांगने में इताअते रसूल हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम दुआ की अपने गुलामो को ताकीद फरमाते रहते |
  4. दुआ मांगने वाला आबिदों के ज़ुमरे यानि गिरोह में दाखिल होता है के दुआ बज़ाते खुद एक इबादत बल्कि इबादत का भी मगज़ है जैसा के हमारे आक़ा हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमान है दुआ इबादत का मगज़ है | (तिर्मिज़ी शरीफ)
  5. दुआ मांगने से या तो उसका गुनाह मुआफ किया जाता है या दुनिया ही में उसके मसाइल हल होते हैं या फिर वो दुआ उस केलिए आख़िरत का ज़खीराः बन जाती है |

न जाने कोनसा गुनाह हो गया है :- प्यारे इस्लामी भाइयों देखा आपने दुआ मांगने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उसके प्यारे हबीब माहे नुबुव्वत हुज़ूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम की इताअत भी है, दुआ मांगना सुननत भी है, दुआ मांगने से इबादत का सवाब भी मिलता है नीज़ दुनिया व आख़िरत के मुतअद्दिद फाइदे हासिल होते हैं बाज़ लोगों को देखा गया है के वो दुआ की क़बूलियत के लिए बहुत जल्दी मचाते बल्कि माज़ अल्लाह बातें बनातें हैं के हम तो इतने आरसे से दुआएं मांग रहे हैं बुज़ुर्गों से भी दुआएं करवाते रहे हैं कोई पीर फ़क़ीर नहीं छोड़ा ये वज़ाइफ़ पढ़ते हैं वो औराद पढ़ते हैं फुलां फुलां मज़ार पर भी गए मगर हमारी हाजत पूरी होती ही नहीं |

नामज़न न पढ़ना तो खता ही नहीं :- हैरत अंगेज़ तो ये है के इस तरह की “भड़ास” निकालने वाले बसा औक़ात बेनमाजी होते हैं नमाज़ न पढ़ना तो माज़ अल्लाह कोई गुनाह ही नहीं है चेहरा देखो तो दुश्मने मुसतफ़ा आतिश परस्तों जैसा यानि ताजदारे रिसालत सलल्लाहो अलैहि वसल्लम की अज़ीम सुन्नत दाढ़ी मुबारक चेहरे से गायब नीज़ झूट, ग़ीबत, चुगली वादा खिलाफी, बद गुमानी, बद निगाही, वालिदैन की नाफरमानी, फिल्मे डिरामे, गाने बाजे वगैरह वगैरह गुनाह आदत में शामिल होने के बावजूद ज़बान पर ये अल्फ़ाज़ शिकवाह खेल रहे होते हैं |

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क़बूलियते दुआ में ताख़ीर का सबब :- प्यारे इस्लामी भाइयों बसा औक़ात क़बूलियते दुआ की ताख़ीर में काफी मस्लिहतें होती हैं जो हमारी समझ में नहीं आतीं हुज़ूर सरापा नूर फैज़ गन्जूर सलल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमाने सुरूर जब अल्लाह तआला का कोई प्यारा दुआ करता है तो अल्लाह तआला जिब्राइल अलैहिस्सलाम से इरशाद फरमाता है ठहरो अभी न दो ताके फिर मांगे के मुझको इसकी आवाज़ पसंद है और जब कोई काफिर या फ़ासिक़ दुआ करता है फरमाता है ए जिब्राइल अलैहिस्सलाम इसका काम जल्दी करो ताके फिर न मागे के मुझको इसकी आवाज़ मकरूह यानि न पसंद है | (कंज़ुल उम्माल)

नेक बन्दों की दुआ क़बूल होने में ताख़ीर की हिकमत :- हज़रत सय्यदना याहया बिन सईद बिन कत्तान रहमतुल्लाह अलैह ने अल्लाह तआला को ख्वाब में देखा अर्ज़ की: इलाही में अक्सर दुआ करता हूँ और तू क़बूल नहीं फरमाता? हुक्म हुआ: ए याहया में तेरी आवाज़ को पसंद करता हूँ इस वास्ते तेरी दुआ की क़बूलियत में ताख़ीर करता हूँ | (रिसलाह कुशैरिया)

“फ़ज़ाइले” दुआ पेज नंबर 97 में आदाबे दुआ बयान करते हुए हज़रते अल्लामा रईसुल मुताकल्लीमीन मौलाना नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं |

जल्दी मचाने वाले की दुआ क़बूल नहीं होती :- दुआ के आदाब में से ये भी है के दुआ के क़बूल जल्दी न करे हदीस शरीफ में है के खुदाए तआला तीन आदमियों की दुआ क़बूल नहीं करता एक वो के गुनाह की दुआ मांगे दूसरा वो के ऐसी बात चाहे के क़तए रहम हो तीसरा वो के जल्दी करे के मेने दुआ मांगी अब तक क़बूल नहीं हुई | (मुस्लिम शरीफ)

हदीस का मफ़हूम :- इस हदीस में फ़रमाया गया है के नाजाइज़ काम की दुआ न मांगी जाए के वो क़बूल नहीं होती है नीज़ किसी रिश्तेदार का हक़ जाए होता हो ऐसी दुआ भी न मांगे और दुआ की क़बूलियत के लिए जल्दी न करे वरना दुआ क़बूल नहीं की जाएगी |

दुआ की क़बूलियत में ताख़ीर :- हज़रत सय्यदना अल्लामा रईसुल मुताकल्लीमीन मौलाना नक़ी अली खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं ए अज़ीज़ तेरा परवरदिगार फरमाता है:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान: में दुआ मांगने वाले की दुआ क़बूल करता हूँ जब मुझ से दुआ मानगो |
पारा दो सूरह बक़रह आयात 186

دَعوَةَ الدّاعِ إِذا دَعانِ

और दूसरी जगह इरशाद फरमाता है:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान: क्या हम अच्छे क़बूल करने वाले हैं |
पारा 23 सुराह साफ़ात आयत 75

فَلَنِعمَ المُجيبونَ

एक जगह और इरशाद फरमाता है तर्जुमा कंज़ुल ईमान: मुझसे दुआ मांगो में क़बूल फ़रमाऊं |
पारा 24 सूरह मोमिन आयत 60

ادعوني أَستَجِب لَكُم

पस यक़ीन समझो के वो तुझे अपने डरसे महरूम नहीं करेगा और अपने वादे को वफ़ा फरमाएगा वो अपने हबीब सलल्लाहो अलैहि वसल्लम से फरमाता है:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान: साइल को न झिड को |

وَأَمَّا السّائِلَ فَلا تَنهَر

आप किस तरह अपने ख्वाने करम से दूर करेगा बल्कि वो तुझपर नज़रे करम रखता है के तेरी दुआ के क़बूल करने में देर करता है |

अरकुन निसा के दो रोहानी इलाज यानि कमर दर्द का इलाज :- अरकुन निसा की पहचान ये है के चड्डे यानि रान के जोड़ से लेकर पाऊँ के टखने तक शदीद दर्द होता है ये मर्ज़ बरसों तक पीछा नहीं छोड़ता इसका रोहानी इलाज ये है के दर्द के मक़ाम पर हाथ रखकर अव्वल आखिर दरूद शरीफ, सुराह फातिहा एक बार और सात मर्तबा ये दुआ पढ़कर दम कीजिए: अल्लाहुम्मा अज़हिब अन्नी सूआ मा अजिदु यानि ए अल्लाह तआला मुझ से मर्ज़ दूर फ़रमादे और अगर दूसरा दम करें तो “या मुहैय्यी” सात बार पढ़कर गैस हो या पीठ या पेट में तकलीफ “या अरकुन निसा” का दर्द या किसी भी जगह दर्द हो या किसी अज़ू के जाइए हो जाने का खौफ हो, अपने ऊपर दम कर लीजिए इंशा अल्लाह तआला फाइदा होगा |

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